कोरोनावायरस और बाढ़ से एक साथ लड़ते यूपी और बिहार
लखनऊ/पटना: "कोरोनावायरस से बचने के लिए घर में रहना ज़रूरी है, लेकिन हमारा तो घर ही पानी में डूब गया है। सरकार की ओर से एक तिरपाल मिला है, अपने परिवार के साथ इसी छोटी सी जगह में रहते हैं,” उत्तर प्रदेश के बाराबंकी ज़िले के तिलवारी गांव के पप्पू (40) ने कहा।
पप्पू के पांच बच्चे हैं, सबसे बड़ी बेटी की उम्र 8 साल है तो सबसे छोटी बेटी 14 महीने की है। यह परिवार नदी के बंधे पर जहां रहता है। यह एक छोटी सी जगह है, यहां शारीरिक दूरी बनाए रखना मुमकिन नहीं है। परिवार में किसी के पास मास्क नहीं है और न ही संक्रमण से बचने के लिए हाथ धोने के लिए साबुन।
उत्तर प्रदेश और बिहार में पिछले एक महीने से कोरोनावायरस के मामलों में तेज़ी आई है। इसी के साथ दोनों ही राज्यों के कई ज़िले बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। उत्तर प्रदेश के 20 और बिहार के 16 ज़िले बाढ़ से प्रभावित हैं। दोनों ही राज्यों के इन ज़िलों में बाढ़ का असर कोरोनावायरस के ख़िलाफ़ चल रहे अभियान पर भी पड़ा है।
"बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में सांस से संबंधित बीमारियां भी बढ़ती हैं, ऐसे में सीवियर कोरोनावायरस होने का ख़तरा रहता है जिससे मरीज़ की मौत की आशंका भी बढ़ जाती है," केजीएमूय के रेस्पिरेटरी मेडिसिन विभाग के हेड, डॉ. सूर्यकांत ने इंडियास्पेंड को बताया।
इंडियास्पेंड की टीम जब उत्तर प्रदेश और बिहार के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में गई तो वहां कोई भी कोरोनावायरस से बचाव के तरीकों का पालन करता हुआ नज़र नहीं आया। जानकारों का कहना है कि बाढ़ के दौरान राहत के कामों में लापरवाही से इन इलाक़ों में कोरोनावायरस का संक्रमण बढ़ सकता है।
उत्तर प्रदेश के 75 जिलों में से बाढ़ प्रभावित 20 ज़िलों में राज्य के 20% से ज़्यादा कोरोनावायरस मामले हैं। बिहार के 38 ज़िलों में से बाढ़ प्रभावित 16 ज़िलों में राज्य के लगभग 15% कोरोनावायरस के मामले हैं।
भले ही प्रशासन की ओर से लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने और मास्क लगाने की हिदायत दी जा रही हो, लेकिन ज़मीन पर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता। लोगों की शिकायत है कि उनके पास खाने को भी पैसे नहीं हैं तो ऐसे में वह मास्क कैसे ख़रीदें। सरकार की तरफ़ से बाढ़ पीड़ितों के लिए मास्क का कोई इंतज़ाम नहीं किया गया है।
यूपी में कोरोनावायरस के 20% मामले बाढ़ प्रभावित ज़िलों में
बाढ़ की वजह से अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर बाराबंकी ज़िले के पप्पू इसी तिरपाल में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं। फ़ोटोः रणविजय सिंह
उत्तर प्रदेश के 20 ज़िलों के 802 गांव बाढ़ की चपेट में हैं। जो ज़िले बाढ़ से प्रभावित हैं उनमें, अंबेडकर नगर, अयोध्या, आज़मगढ़, बहराइच, बलिया, बलरामपुर, बाराबंकी, बस्ती, गोंडा, गोरखपुर, कुशीनगर, लखीमपुर खीरी, मऊ, सिद्धार्थ नगर, महाराजगंज, देवरिया, संत कबीरनगर, पीलीभीत, प्रतापगढ़ और सीतापुर शामिल हैं, यह जानकारी 9 अगस्त को उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दी गई है।
इन बाढ़ प्रभावित इन 20 जिलों में 11 अगस्त तक कोरोनावायरस के कुल 28,871 मामले सामने आ चुके थे। राज्य में 11 अगस्त तक कुल मामलों की संख्या 131,763 हो चुकी थी। यानी राज्य के 20% से ज़्यादा मामले बाढ़ प्रभावित ज़िलों में हैं।
बाढ़ प्रभावित गांवों में लोगों के आने-जाने के लिए नावों का ही सहारा है। फ़ोटोः रणविजय सिंह
"हमने निर्देश दिए हैं कि राहत और बचाव कार्य में लगे लोग कोरोनावायरस के मद्देनज़र सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखें। हमारा प्रयास है कि वायरस के संक्रमण का ख़तरा कम से कम रहे। हम प्रभावित लोगों को भी बता रहे हैं कि वो मास्क पहनें और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें,” उत्तर प्रदेश के राहत आयुक्त संजय गोयल ने इंडियास्पेंड को बताया।
भले ही प्रशासन की ओर से लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने और मास्क लगाने की हिदायत दी जा रही हो, लेकिन ज़मीन पर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता। बाराबंकी ज़िले के कुरौनी गांव में हमें लोगों भीड़ नाव का इंतज़ार करते दिखी। लोढ़ेमऊ गांव में भी ऐसा ही नज़ारा था। इनमें से किसी के भी चेहरे पर मास्क नहीं था। लेकिन कोरोनावायरस का डर ज़रूर देखने को मिला।
शीतल की उम्र क़रीब 65 साल और लाल बहादुर की उम्र 25 साल है। लाल बहादुर के मुताबिक़, यहां कोरोनावायरस जैसी कोई चीज़ नहीं है, लेकिन शीतल को इससे बहुत डर लगता है। "रोज़ सुन रहा हूं कि लोग बीमार हो रहे हैं। यह बीमारी यहां न फैले तो अच्छा है," शीतल ने कहा।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में अगर कोरोनावायरस का प्रसार होता है तो हालात और ख़राब होंगे। "बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में संक्रामक रोगों का ख़तरा ज़्यादा रहता है। हम इसे लेकर काम कर रहे हैं, जगह-जगह छिड़काव कराया जा रहा है ताकि मच्छर पैदा न हों। इस बार कोरोनावायरस की चुनौती भी है। हम इस पर भी ध्यान दे रहे हैं कि इन क्षेत्रों में संक्रमण न फैले। हमारी ओर से लोगों को एहतियात बरतने को कहा जा रहा है,” उत्तर प्रदेश के चिकित्सा और स्वास्थ्य विभाग के महानिदेशक, डॉ. देवेंद्र सिंह नेगी ने इंडियास्पेंड से एक बातचीत में कहा।
बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में राहत एवं बचाव के काम में जुटी टीमों को सावधानी बरतने के निर्देश दिए गए हैं। राहत के काम में एनडीआरएफ़ की 15, एसडीआरएफ़ और पीएसी की 7-7 टीमें लगाई गई हैं।
बाढ़ राहत केंद्र में बाराबंकी के लोढ़ेमऊ गांव के शीतल (सफ़ेद कुर्ते में) और लाल बहादुर। फ़ोटोः रणविजय सिंह
बिहार में भी बाढ़ से हालात ख़राब
"बाढ़ में अनाज बह गया, घर में पानी घुस गया है। सरकार की ओर से प्लास्टिक (तिरपाल) मिला है, इसी में रह रहे हैं,” बिहार के सारण ज़िले के लखनपुर गांव की मालती देवी (46) ने बताया। मालती का गांव जलमग्न हो चुका है।
मालती के साथ वहां कई और महिलाएं भी खड़ी थीं, इनमें से किसी ने भी मास्क नहीं लगाया था। जब इनसे मास्क के बारे में पूछा गया तो जवाब में महिलाओं ने कहा कि खाने के लिए तो पैसा है नहीं फिर मास्क कहां से लगाएंगे। इन लोगों ने बताया कि इन्हें सरकार की ओर से भी मास्क नहीं दिए गए हैं।
बिहार के सारण ज़िले के बाढ़ प्रभावित लखनपुर गांव की महिलाएं। फ़ोटोः प्रशांत राय
बिहार के 16 जिलों के 125 प्रखंडों की 1223 पंचायतों के क़रीब 73 लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हैं, राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग के हवाले से छपी लाइव हिंदुस्तान की इस रिपोर्ट के अनुसार।
"बाढ़ की स्थिति तो सामान्य होती जा रही है। 16 ज़िले प्रभावित हैं, जहां हमारा विभाग काम कर रहा है। कोरोनावायरस को लेकर दुनिया भर में काम के तरीक़ों में बदलाव आया है तो हम भी उसी हिसाब से काम कर रहे हैं। बीमारी से बचाव जरूरी है, इसका ध्यान रखा जा रहा है,” बिहार के आपदा प्रबंधन मंत्री लक्ष्मेश्वर राय ने इंडियास्पेंड से कहा।
बिहार के बाढ़ प्रभावित 16 ज़िलों में 11 अगस्त तक कोरोनावायरस के 13,052 मामले सामने आ चुके हैं। राज्य में 11 अगस्त तक कुल मामले 86,812 हो चुके हैं। यानी राज्य के क़रीब 15% मामले बाढ़ प्रभावित ज़िलों से हैं।
"यह दोहरी चुनौती है, लेकिन फिर भी जो संभव है वो किया जा रहा है। बाढ़ प्रभावित इलाकों में ज़्यादा जांच कराई जा रही है, क्योंकि यह ज़्यादा ज़रूरी है,” बिहार के स्वास्थ्य विभाग के निदेशक डॉ. नवीन चंद्र प्रसाद ने बताया।
अन्य रोगों का भी ख़तरा
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में त्वचा, पेट, लीवर से संबंधित बीमारियां, मच्छरों से जनित रोग, पीलिया और सांस से संबंधित बीमारियों का ख़तरा रहता है।
बाढ़ प्रभावित इलाक़ों में लोगों तक स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने में भी तमाम मुश्किलें आती हैं। यूपी के बाराबंकी ज़िले के तिलवारी गांव के 12 साल के ब्रह्मादीन को पैर में खुजली की शिकायत है। "बाढ़ के पानी से हमें खुजली होने लगती है। कई लोगों को फोड़़ा भी हो जाता है। अभी किसी अस्पताल में दिखा भी नहीं सकते, सब कुछ पानी में जो डूबा है,” ब्रह्मादीन ने कहा।
ब्रह्मादीन का घर भी बाढ़ में डूब गया है। वह अपने परिवार के साथ यहां रहता है। फ़ोटोः रणविजय सिंह
उत्तर प्रदेश में वैसे तो बाढ़ प्रभावित जिलों में 253 मेडिकल टीमें लगाई गई हैं, लेकिन ज़्यादातर टीमें पानी उतरने के बाद ही प्रभावित गांवों तक पहुंच पाती हैं।
"हमने अपने ज़िले में 22 चौकियां बनाई हैं और इन पर डॉक्टर और कर्मचारियों को तैनात किया है। फ़िलहाल खुजली और बुख़ार की शिकायतें ज़्यादा आ रही हैं। वैसे हमारा ज़्यादातर काम बाढ़ का पानी उतरने के बाद शुरु होता है,” बाराबंकी ज़िले के सीएमओ डॉ. रमेश चंद्र ने बताया।
"बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में शारीरिक दूरी का नियम ख़त्म हो जाता है। लोगों को घर छोड़कर दूसरी जगह जाना होता है, वहां जितनी जगह मिलेगी उसी में रहना है। इन हालातों में वायरस से बचाव के उपाय करना मुश्किल हो जाता है,” डॉ. सूर्यकांत ने बताया।
(रणविजय, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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