कोविड-19: उत्तर प्रदेश में ज़रूरी और ग़ैर ज़रूरी ऑपरेशन कम हुए
लखनऊ: बीते 13 सितंबर को देश के मशहूर सीतापुर नेत्र चिकित्सालय में हमारी मुलाक़ात 66 साल के आत्माराम से हुई। आत्माराम को मोतियाबिंद है और उसी के ऑपरेशन के लिए वो सीतापुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर हरदोई ज़िले के अटरा गांव से सीतापुर आए थे। कोरोनावायरस के संक्रमण के मामले निकल आने की वजह से अस्पताल 10 दिन के लिए बंद था। आत्माराम परेशान हैं कि उनकी आंख की तकलीफ़ बढ़ती जा रही है और ऑपरेशन टलता जा रहा है। आत्माराम का ऑपरेशन जुलाई महीने में होना था लेकिन कोरोनावायरस के संक्रमण की वजह से टाल दिया गया।
“दिक्कत तो पहले से थी लेकिन गर्मी में ऑपरेशन कराना सही नहीं था। जुलाई में ऑपरेशन होना था तो पता चला कि कोरोना की वजह से ऑपरेशन नहीं हो रहे हैं। अब दोबारा आए थे डॉक्टर को दिखाने तो पता चला कोरोना के केस निकलने की वजह से अस्पताल दस दिन के लिए बंद कर दिया गया है,” आत्माराम ने इस संवाददाता को बताया।
आत्माराम अकेले नहीं हैं जिनकी सर्जरी कोरोनावायरस की वजह से वक़्त पर नहीं हो पाई है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने मार्च के महीने में जारी एक एडवाइज़री में सभी ग़ैैर-ज़रूरी सर्जरी टालने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद देश भर में सभी ग़ैर-ज़रूरी सर्जरी टाल दी गई थीं।
कोरोनावायरस के दौरान देश भर में लगभग 70% सर्जरी टाली गई हैं, फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस में आईक्यूवीआईए के हवाले से 16 सितंबर को प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार।
उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के अनुसार इस साल एक जून से 30 जून तक हुई मेजर सर्जरी में लगभग 28% और छोटी सर्जरी में लगभग 26% की गिरावट आई है।
“कोविड की वजह से इमरजेंसी होने पर ही ऑपरेशन किए जा रहे हैं बाकी के ऑपरेशन टाल दिए गए हैं। मरीज़ों को इससे काफी दिक्कत हो रही होगी लेकिन मजबूरी है,” किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज (केजीएमसी) के बाल हड्डी विभाग के अध्यक्ष, डॉ. अजय सिंह ने कहा।
उत्तर प्रदेश में सर्जरी में कमी
उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य में जून के महीने में हुई सर्जरी के आंकड़े जारी करते हुए बताया था कि राज्य में सभी ज़रूरी ऑपरेशन किए जा रहे हैं। इन आंकड़ों के अनुसार इस साल एक जून से 30 जून तक हुई मेजर सर्जरी में लगभग 28% और छोटी सर्जरी में लगभग 26% की गिरावट आई है। इस साल जून के महीने में 40,957 बड़े ऑपरेशन किए गए जबकि पिछले साल इसी दर्मियान 53,032 ऑपरेशन किए गए थे। इसी तरह इस साल जून में 66,845 छोटे ऑपरेशन किए गए जबकि पिछले साल जून में कुल 89,238 छोटे ऑपरेशन किए गए थे।
''कोविड में सर्जरी को लेकर अस्पतालों को नए दिशा-निर्देश दिए गए हैं। अस्पताल उसका पालन कर रहे हैं अब महामारी का असर हर सेक्टर पर ही हुआ है। हेल्थ सेक्टर पर भी इसका असर पड़ा है इसके बावजूद ज़रूरी ऑपरेशन लगातार हुए हैं जो सरकार की उपलब्धि है,'' यूपी के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक, डॉ देवेन्द्र नेगी ने बताया।
“हम आमतौर पर एक दिन 18 से 20 ऑपरेशन करते थे लेकिन कोविड की वजह से इमरजेंसी होने पर ही ऑपरेशन किए जा रहे हैं। मरीज़ों को इससे काफी दिक्कत हो रही होगी लेकिन मजबूरी है क्योंकि अगर कुछ होता है तो ज़िम्मेदारी सर्जन पर आएगी और कोई भी डॉक्टर अपना रिकॉर्ड नहीं ख़राब करना चाहेगा,” केजीएमसी के डॉ अजय सिंह ने बताया। उन्होंने ये भी बताया कि कई डॉक्टर ही पॉजिटिव हैं इसलिए भी ऑपरेशन रोकने पड़ रहे हैं।
ब्रिटिश जर्नल ऑफ़ सर्जरी में कोविड के दौरान हुई सर्जरी पर 12 मई को प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड के दौरान एक बड़ी संख्या में सर्जरी टाली गई हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक पूरी दुनिया में हर हफ़्ते 2367,050 ऑपरेशन टाले गए हैं। भारत में हर हफ़्ते टाले जाने वाले ऑपरेशन की संख्या 48,728 (12 हफ़्ते में लगभग 5.85 लाख) रही।
बर्मिंघम विश्वविद्याल सहित कई संस्थानों के शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के 71 देशों के 359 अस्पतालों में सर्जरी पर एक अध्ययन किया। इस अध्ययन के मुताबिक़ कोविड-19 से दुनिया भर में पहले से तय करीब 72.3% सर्जरी रद्द की जा सकती हैं। इनमें से अधिकतर ग़ैर कैंसर सर्जरी हो सकती हैं।
“कोरोना महामारी के दौरान सर्जरी को इसलिए टाला गया जिससे मरीज़ों को कोविड-19 के ख़तरे से बचाया जा सके और अस्पतालों में ज़्यादा से ज़्यादा कोविड मरीज़ों का इलाज हो सके। हालांकि इससे मरीज़ों पर बुरा असर पड़ेगा और कुछ मामलों में मौत की आशंका भी बढ़ सकती है,” इस अध्ययन में शामिल शोधकर्ता, अनिल भांगू ने कहा।
सीतापुर आंख अस्पताल 13 सितंबर से फिर बंद कर दिया गया जिससे दूर दराज़ से इलाज के लिए आ रहे मरीज़ों को लौटना पड़ रहा है। फोटो: श्रृंखला पाण्डेय
“सरकार ने सर्जरी की मंज़ूरी तो दे दी है लेकिन ख़तरा तो अभी भी टला नहीं है। अब कैंसर का कोई मरीज़ अगर पॉज़िटिव है तो उसकी रिपोर्ट निगेटिव आने तक उसका ऑपरेशन टालना ही पड़ेगा। कोविड से तो लोगों की मौत हुई ही है, इसके अलावा दूसरी बीमारियों में इलाज न मिलने से भी बहुत लोगों की जान गई है,” लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के ऑनकोलोजी विभाग के हेड, डॉ. आशीष सिंघल ने इंडियास्पेंड को बताया।
उन्होंने यह भी कहा कि महामारी के इस दौर में मरीज़ों का ख़र्च भी बढ़ गया है। “पब्लिक ट्रांसपोर्ट अभी पूरी तरह से नहीं चल रहे हैं। अगर किसी मरीज़ को सर्जरी करानी है तो वह टैक्सी लेकर आएगा, कोविड टेस्ट कराएगा, दो दिन रिपोर्ट आने का इंतज़ार करेगा और उसके बाद जाकर उसकी सर्जरी होगी। इस बीच आने-जाने, रहने, खाने-पीने और टेस्ट का ख़र्च तो बढ़ ही गया है,” डॉ. आशीष सिंघल ने आगे कहा।
“मेरा पथरी का ऑपरेशन होना था लेकिन कोरेाना के डर से नहीं करा रहे हैं। हम ग़रीब लोग हैं सरकारी अस्पतालों में ही इलाज करा सकते हैं। यहां वैसे भी मरीज़ों की भीड़ रहती है तो ऑपरेशन का नम्बर महीने भर बाद आता था और अब तो कोरोना की वजह से न नम्बर आ रहा है न हिम्मत हो रही है। यहां कोरोना के भी मरीज़ हैं अब क्या पता बगल की लाइन में खड़ा कोई पाज़िटिव है या निगेटिव,” बलरामपुर ज़िले के रहने वाले अमित यादव ने बताया।
अमित ने आगे ये भी कहा कि उनके यहां अच्छे डॉक्टर नहीं है तो कोई बड़ी दिक्कत होने पर सब लखनऊ ही दिखाने आते हैं। जिन लोगों की दवा यहां से चल रही है उनके लिए दिक्कत होती है। दूसरे शहर इतनी दूर आना फिर डॉक्टर मिले या न मिले।
सर्जरी के नियमों में बदलाव
कोरोनावायरस के बाद से स्वास्थ्य सेवाओं में कई बदलाव आए हैं। सर्जरी भी इससे अछूती नहीं है। किसी भी मरीज़ को अब ऑपरेशन से पहले कोविड टेस्ट कराना अनिवार्य हो गया है। ऑपरेशन करने वाली टीम में शामिल स्वास्थ्यकर्मियों को भी विशेष सावधानी बरतने की ज़रूरत होगी। सरकार ने मई के महीने में ऑपरेशन करने की इजाज़त दे दी थी। उसके बाद इमरजेंसी सर्जरी शुरु कर दी गई थीं। बाद में हर्निया, स्टोन, एक्सीडेंटल, गाल ब्लेडर सर्जरी भी शुरु कर दी गईं। लेकिन अभी भी मरीज़ अस्पताल जाने से डर रहे हैं और वो ख़ुद भी सर्जरी टाल रहे हैं।
“सरकार ने सरकारी अस्पतालों को कोविड सुविधाओं में बदल दिया और महामारी के समय प्राइवेट अस्पतालों ने भी कोई ज़िम्मेदारी नहीं ली। ऐसे में बाकी बीमारियों के इलाज में दिक्कतें तो आई ही हैं। हमारे मेडिकल कॉलेज के हड्डी विभाग को कोविड अस्पताल में बदल दिया गया तो अब इस विभाग के मरीज़ों को दिक्कत होना स्वाभाविक है,” डॉ. अजय सिंह ने बताया।
डॉ. अजय आगे कहते हैं, “कोरोना की शुरुआत देखकर ही ये अंदाज़ा लगा लेना चाहिए था कि ये महामारी इतनी जल्दी नहीं जाएगी। शुरु से ही कोविड और नॉन-कोविड अस्पतालों को अलग रखना चाहिए था। इससे कम से कम बाकी मरीज़ों को तो सही इलाज मिल पाता।”
किंग जार्ज मेडिकल कॉलेज के हड्डी विभाग के हेड, डॉ अजय सिंह। फोटो: श्रृंखला पांडेय
“कोविड में सर्जरी करने से ख़तरा बढ़ जाता है। अगर मरीज़ पॉज़िटिव है तो 50 फ़ीसदी स्टाफ़ के संक्रमित होने का ख़तरा हो जाएगा। एनीस्थीसिया में जो गैस निकलती है ओटी में मौजूद लोग कही न कहीं इन्हेल (सांस के साथ अंदर लेना) कर लेते हैं। इसलिए जहां तक संभव है ऑपरेशन टाले जा रहे हैं,” डॉ. आशीष सिंघल ने कहा।
कोरोनावायरस के दौरान नॉर्मल डिलीवरी की संख्या बढ़ी
कोरोनावायरस के दौरान एक और बात सामने आई। इस दौरान राज्य में सिज़ेरियन डिलीवरी के मामलों में कमी और नॉर्मल डिलीवरी के मामलों में तेज़ी आई। राज्य में सिज़ेरियन और नॉर्मल डिलीवरी के प्रतिशत का औसत पहले लगभग 50-50 रहता था। लेकिन कोविड के दौरान नॉर्मल डिलीवरी के प्रतिशत में भारी उछाल देखा गया, 22 जून को प्रकाशित दैनिक जागरण की इस रिपोर्ट में बताया गया।
17 सितम्बर, 2020 को सरकारी चिकित्सालयों में कुल 6,723 प्रसव हुए, जिसमें 6,482 नाॅर्मल डिलीवरी और 241 सिज़ेरियन डिलीवरी हुई हैं, राज्य के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव, अमित मोहन प्रसाद ने एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में ये जानकारी दी।
“ऑपरेशन को लेकर कोरोना के समय में अब इतने सारे प्रोटोकॉल फ़ॉलो करने हैं कि किसी भी डॉक्टर का यही प्रयास होगा कि नॉर्मल डिलीवरी ही कराई जाए। बहुत कॉम्पलीकेशन (जटिलताएं) होने पर ही ऑपरेट किया जाए। यही कारण है कि सभी अस्पतालों, खा़सकर प्राइवेट नर्सिंग होम्स में सिज़ेरियन डिलीवरी कम हुई हैं,” लखनऊ के क्वीन मेरी अस्पताल की मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ. एसवी जैसवार ने कहा।
“मुझे डॉक्टर ने शुरुआत में कहा था कि नॉर्मल डिलीवरी नहीं हो पाएगी क्योंकि बच्चा मूव कम कर रहा है। लेकिन अगस्त के महीने में मेरी नॉर्मल डिलीवरी हुई और हम दोनों (मां-बेटी) सेहतमंद हैं,” सीतापुर ज़िले की प्रियंका मिश्रा ने बताया। प्रियंका की डिलीवरी 25 अगस्त को एक प्राइवेट नर्सिंग होम में हुई है।
कोरोना मरीज़ की सर्जरी से जान को ख़तरा
द लैंसेट में छपे एक अध्ययन में भी इस बात को कहा गया है कि कोरोनाकाल में जब तक संभव हो सर्जरी को टाल दिया जाना चाहिए। लैसेंट के इस अध्ययन के मुताबिक कोरोना इंफ़ेक्शन के साथ सर्जरी करवाने वाले मरीज़ों की जान का ख़तरा रहता है। अध्ययन के मुताबिक़ 28% मरीज़ों की सर्जरी के 30 दिन के अंदर मौत हो गई। इसमें ऐसे मरीज़ शामिल थे जिनके सर्जरी से सात दिन पहले या सर्जरी के 30 दिन बाद कोरोना पॉज़िटिव होने की जानकारी मिली। यह अध्ययन एक जनवरी से 31 मार्च 2020 के बीच सर्जरी करवाने वाले 1,128 मरीज़ों पर हुआ। इनमें से 835 यानी 74% मरीज़ों को अचानक सर्जरी की ज़रूरत पड़ी थी जबकि 280 मरीज़ यानी 25% की सर्जरी पहले से प्लान थी।
“कोरोना से जिन लोगों की मौत हुई है उनमें ज़्यादातर वही हैं जिनको पहले से कोई गंभीर बीमारी रही हो। अगर इस दौरान उन्हें किसी इमरजेंसी सर्जरी की ज़रूरत होती है तो उनकी जान को ख़तरा है। इसलिए सरकार भी बार-बार यही कह रही है कि जिन लोगों की कोई मेडिकल हिस्ट्री हो वो ज़्यादा एहतियात बरतें,” लखनऊ मेडिकल कॉलेज के पल्मोनरी विभाग के हेड, डॉ. वेद प्रकाश ने बताया।
(श्रृंखला, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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