कोविड-19 लॉकडाउन महिलाओं के लिए अभिशाप
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से क़रीब 250 किलोमीटर दूर महोबा की रहने वाली चालीस साल की कुशा देवी सात बच्चों की मां हैं। कुशा देवी लॉकडाउन के ख़त्म होने का इंतज़ार कर रही हैं और चाहती हैं कि उनके पति पहले की तरह ही दिन में दस घंटे काम करें और घर पर रहकर उन्हें पीटना बंद कर दें।
दुनिया के 90 देशों में कोरोनावायरस के संक्रमण की वजह से हुए लॉकडाउन के कारण 400 करोड़ लोग अपने घरों में क़ैद होकर रह गए हैं। यह एक सुरक्षात्मक उपाय तो है, लेकिन इसकी वजह से महिलाओं के ख़िलाफ़ घरेलू हिंसा के मामले बढ़े हैं।
कोविड-19 के संक्रमण से पहले भी हर साल बड़ी संख्या में महिलाएं घरेलु हिंसा का शिकार होती रही हैं। पिछले 12 महीने में 15 से 49 आयु वर्ग की 24.3 करोड़ महिलाएं और लड़कियां अपने पार्टनर से यौन और/या शारीरिक हिंसा की शिकार हुई हैं, संयुक्त राष्ट्र महिला की कार्यकारी निदेशक फुमज़िले म्लाम्बो-न्गुका द्वारा 6 अप्रैल, 2020 को प्रकाशित एक रिपोर्ट में बताया गया। साल 2017 में दुनिया भर में 87,000 महिलाओं की इरादतन हुई, इनमें से अधिकांश हत्याएं अंतरंग साथी या पारिवारिक सदस्य द्वारा की गईं।
अगर कोविड-19 के संक्रमण के दौरान घरेलू हिंसा के बढ़ते मामलों को नहीं रोका गया तो यह महामारी के आर्थिक प्रभाव को भी बढ़ाएगा, यूएन वीमेन ने कहा। महिलाओं के प्रति हिंसा के कारण दुनिया भर में लगभग 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डालर के नुक़सान का अनुमान लगाया गया था।
Source: UNWomen
दुनिया भर से जो आंकड़े सामने आए हैं उनसे पता चलता है कि कोविड-19 के प्रकोप के बाद से महिलाओं और लड़कियों के प्रति हिंसा और ख़ास तौर पर घरेलू हिंसा के मामले बढ़ गए हैं। महिलाओं के लिए काम करने वाले कई सामाजिक संगठनों का आंकलन है कि भारत में भी घरेलू हिंसा के मामलों में इस दौरान बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। भारत में घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी की बात राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा भी स्वीकार करती हैं।
"चूंकि हमें शिकायतें ऑनलाइन मिल रही हैं, इसलिए मैं यह नहीं बता सकती कि घरेलू हिंसा के मामलों में कितनी वृद्धि हुई है, लेकिन निश्चित रूप से वृद्धि तो हुई है," राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने फ़ोन पर बताया।
जानकारों का कहना है कि लॉकडाउन के चलते घर पर रहने की वजह से पुरुष अपनी कुंठा महिलाओं पर निकालते हैं। “हमारे रिकॉर्ड में कुछ पुराने मामले हैं, जिन्होंने लंबे समय से कोई शिकायत नहीं की थी, लॉकडाउन के दौरान फिर से हमारे पास आए हैं। हमने लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि देखी है,” राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने कहा।
उत्तर प्रदेश में भी बढ़े घरेलू हिंसा के मामले
उत्तर प्रदेश में महिला अधिकारों के लिए काम कर रहे संगठनों का कहना है कि लॉकडाउन के दौरान घरेलू हिंसा की शिकायतें बढ़ गई हैं। अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की उत्तर प्रदेश की हेल्पलाइन हर रोज़ तमाम शिकायतें आ रही हैं।
कुशा देवी भी उत्तर प्रदेश की उन महिलाओं में से एक हैं जो लॉकडाउन की वजह से घरेलू हिंसा का शिकार हो रही हैं। कुशा देवी के पति को शराब पीने की लत है जो उसे पीटता रहता है। उससे बचने के लिए वह अपनी शाम घर के बाहर पड़ोस की महिलाओं से बात करने में बिताती हैं।
40 साल की गृहिणी कुशा देवी की शादी चार साल बड़े रामकृष्ण साहू से हुई। उनके सात बच्चे हैं, सबसे बड़ी बेटी की उम्र 21 साल और सबसे छोटी की उम्र डेढ़ साल है। उनका परिवार उत्तर प्रदेश में महोबा ज़िले के कबरई ब्लॉक में रहता है। “वह एक मज़दूर है। पहले वह काम पर जाता था और वापस आकर शराब पीता और फिर छोटी-छोटी बातों पर मुझसे झगड़ा करता था। और अब, चूंकि उसकी कमाई बंद है, इसलिए वह घर में रखे राशन के सामान को बाहर ले जाकर उसे बेच देता है और उससे मिले पैसों से शराब ख़रीदता है,” कुशा बताती है कि उसके सामने कैसे एक शराबी पति के साथ परिवार के 9 सदस्यों का पेट भरने की चुनौती बढ़ गई है।
“यह एक ऐसा समय है जब बहुत से पुरुष काम ना होने और सीमित पैसे के कारण निराश हैं। ऐसे में हिंसा के लिए परिवार की महिलाएं उनकी आसान शिकार हैं, जो निश्चित रूप से असहनीय है,” ब्रेकथ्रू संगठन के उत्तर प्रदेश प्रमुख कृति प्रकाश ने कहा।
पुलिस का ढुलमुल रवैया
घरेलु हिंसा का शिकार महिला की अक़सर शिकायत होती है कि पुलिस उनकी रिपोर्ट पर कार्रवाई नहीं करती है। “हम शुरुआती कुछ शिकायतों पर एफ़आईआर दर्ज नहीं करते। जब भी घरेलू हिंसा की शिकायत सामने आती है, हम दोनों पक्षों की काउंसलिंग करते हैं। उसी मामले की दूसरी शिकायत पर हम फिर से काउंसलिंग करते हैं और हिंसा करने वाले को चेतावनी देते हैं और अगर तीसरे सत्र के बाद भी स्थिति बेहतर नहीं होती है, तो हम शिकायत दर्ज करते हैं और कार्रवाई करते हैं,” महोबा के पुलिस अधीक्षक मणि लाल पाटीदार ने बताया।
“मेरी राय में ज़्यादातर मामलों में, विशेष रूप से, घरेलू हिंसा के मामलों पुलिस धीरे-धीरे काम करती है। अगर महिला गंभीर रूप से घायल है, उसे फ़्रैक्चर हुआ है, या ख़ून बह रहा है, तो मेरी राय में और कानून के अनुसार, एफ़आईआर दर्ज की जानी चाहिए, हिंसा करने वाले को गिरफ़्तार किया जाना चाहिए और इस बात को सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अपराधी को अदालत से सज़ा मिले,” 112 हेल्पलाइन यूपी के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक असीम अरुण ने कहा।
उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक असीम अरुण। फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
विश्व भर में घरेलू या दूसरी तरह की हिंसा का शिकार महिलाओं में से 40% से कम किसी भी तरह की मदद मांगती हैं। मदद मांगने वाली महिलाओं में से 10% से भी कम पुलिस के पास जाती हैं।
“इस वैश्विक महामारी की वजह से उन महिलाओं के लिए और भी कठिन समय हो गया है जो अपने घरों की चार दीवारी के अंदर लगातार हिंसा का सामना कर रही हैं। लॉकडाउन के बाद घरेलू हिंसा के मामले तीन गुना बढ़ गए हैं,” एसोसिएशन ऑफ़ एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव्स की एक्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर, जेंडर एक्टिविस्ट और वकील रेणु मिश्रा ने कहा।
शराब की वजह से घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी
तीस साल की शीला यादव बताती हैं कि पुरुषों का शराब पीना और फिर अपनी पत्नियों की पिटाई करना या उन्हें संभोग के लिए मजबूर करना उनके गांव में एक बहुत ही आम बात है। “मेरे गांव के पुरुष पहले कच्ची शराब बनाते थे। बीच में यह कम हो गया था, लेकिन लॉकडाउन के बाद से ज़्यादातर घरों में शराब की खपत बढ़ गई है। असल में, जब शराब की दुकानें बंद होती हैं, तो वह महंगे दाम पर ब्लैक में ख़रीदते हैं,” शीला अपने एक पड़ोसी के बारे में बताती हैं।
शीला अपने गांव में पड़ोसियों के साथ। फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
शीला उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के गोसाईगंज ब्लॉक के कर्बला गांव से हैं। वह एक अस्पताल में सफाई कर्मचारी के रूप में काम करती हैं, लेकिन लॉकडाउन के दौरान उन्हें काम पर आने से मना कर दिया गया है।
लखनऊ के गोसाईगंज ब्लॉक के कर्बला गांव में घरेलू हिंसा की एक पीड़ित। फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
"लॉकडाउन के कारण, लोग निश्चित रूप से अपने घरों तक सीमित रह गए हैं, लेकिन महिलाओं के प्रति हिंसा के मामले भी तेज़ी से बढ़े हैं। मेरे घर के ठीक सामने रहने वाला एक व्यक्ति अपनी आमदनी बंद होने की हताशा को अपने घर की महिलाओं पर निकालता है और आस-पड़ोस के लोग बस देखते रहते हैं। कम से कम पुरुष उसे ऐसा करने से रोक सकते हैं लेकिन नहीं,” शीला ने कहा।
गर्भ निरोधकों की कमी से अवांछित गर्भ के मामले बढ़े
उत्तर प्रदेश के हमीरपुर ज़िले की 27 वर्षीय प्रियंका साहू का कहना है कि वह अपने पति से तंग आ गई है जो हमेशा सेक्स की मांग करता है। "मेरे जैसी महिला जो पहले घरेलू या अन्य काम करने जाती थी, अब अपने ही घरों में उन पुरुषों के साथ क़ैद है, जिन्हें सेक्स के अलावा कुछ नहीं चाहिए." प्रियंका ने बताया।
घरेलू हिंसा की शिकार प्रियंका साहू (बदला हुआ नाम)। फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा
लॉकडाउन से पहले प्रियंका हमीरपुर में एक घरेलू कामगार के रूप में काम करती थीं। उनके पति एक शर्ट फ़ैक्ट्री में काम करते थे। "लेकिन अब, हम दोनों घर पर हैं। अगर मैं मना करने की हिम्मत करती हूं, तो वह मुझे मारता है। मेडिकल स्टोर हमारे घर से बहुत दूर है और वह कंडोम ख़रीदने के लिए नहीं जा सकता क्योंकि पुलिस रास्ते में पूछती है कि वह किस काम से कहां जा रहा है। अब हमारी आशा जी भी अक्सर नहीं आती हैं,” प्रियंका अपने पति और परिवार के बारे में ज़्यादा बात नहीं करना चाहती हैं। उनके पति को शराब पीने की लत भी नहीं है।
कुशा देवी से यह पूछने पर कि क्या उन्होंने या उनके पति ने गर्भनिरोधक का इस्तेमाल किया या कभी करते हैं, उन्होंने कहा, “गर्भनिरोधक क्या है? मैंने एक बार उसे इसका उपयोग करने के लिए कहा था और उस रात उसने मुझे बहुत पीटा था और पूरी रात मुझे सोने नहीं दिया।”
"लॉकडाउन की वजह से आशा कार्यकर्ताओं का आना-जाना भी सीमित हो गया है और निश्चित रूप से गर्भ निरोधकों का इस्तेमाल भी कम हो गया है, जिससे ख़ास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में अनचाहे गर्भ के मामले बढ़ेंगे," लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर नीतू सिंह ने कहा।
“हम आम तौर पर मानते हैं कि शिक्षा की कमी के कारण घरेलू हिंसा होती है लेकिन यह वास्तव में एक भ्रम है। हाल ही में एक एमबीबीएस डॉक्टर से शिकायत मिली थी, जिसे उसके घर में बंद कर दिया गया और ड्यूटी के लिए भी बाहर नहीं जाने दिया गया। पुलिस का पूरा ध्यान अभी कोविड-19 पर केंद्रित है और घरेलू हिंसा के मामले आवश्यक सेवाओं के दायरे में नहीं आते हैं। अगर हमारे देश की 49% आबादी के साथ इस तरह का बर्ताव किया जाएगा, उनकी शिकायतों पर उचित कार्रवाई नहीं की जाएगी तो हम किस दिशा में जा रहे हैं? यही वजह है कि महिलाओं का एक हिस्सा ऐसा भी है जो पुलिस से मदद लेने की बजाय हिंसा बर्दाश्त करना बेहतर समझता है,” जेंडर कार्यकर्ता और वरिष्ठ वकील रेणु मिश्रा ने कहा।
"हमने अपने हेल्पलाइन नंबरों के साथ एक वीडियो बनाया, जिसमें हमने महिलाओं से कहा कि वह घरेलू हिंसा के मामलों की रिपोर्ट करें। लगभग 45 दिन के अंदर ही हमें केवल दो ज़िलों--चित्रकूट और बांदा-- से 20 शिकायतें मिलीं," बुंदेलखंड स्थित ग़ैर सरकारी संगठन, वानंगना की संस्थापक पुष्पा सिंह ने कहा। पुष्पा चित्रकूट में रहती हैं और महिलाओं के प्रति हिंसा, बालिका शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के लिए काम करती हैं। "जो मामले हमें मिल रहे हैं उससे पता चलता है कि लॉकडाउन के दौरान भी पतियों के द्वारा हो रहे बलात्कार, महिलाओं के प्रति शारीरिक और मानसिक हिंसा बंद नहीं हुई है। घर से बाहर निकाले जाने का ख़तरा उन्हें शिकायतें दर्ज कराने से रोक रहा है,” पुष्पा ने बताया।
“हमने कुछ हेल्पलाइन नंबर जारी किए, ख़ासकर जब लॉकडाउन शुरू हुआ। हमने यह महसूस किया कि पीड़ित हमारे पास नहीं पहुंच पाएंगे। जिस हेल्पलाइन नंबर का जिम्मा मेरे पास है उस पर मुझे औसतन हर रोज़ दो शिकायतें मिलती हैं। उत्तर प्रदेश में हमारे संगठन के और भी हेल्पलाइन नंबर हैं जो दूसरे लोग संभालते हैं। अगर हम सभी हेल्पलाइन पर आई सभी कॉल को जोड़ दें तो हर रोज़ हमारे पास काफ़ी शिकायतें आ रही हैं,” अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की उपाध्यक्ष मधु गर्ग ने बताया।
ज़्यादातर महिलाएं पहली बार अपनी पति की ओर से यौन हिंसा का सामना करती हैं। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़े बताते हैं कि उत्तर प्रदेश की जो महिलाएं यौन हिंसा का शिकार हुई हैं उनमें से 93.9% ने पहली बार यौन हिंसा का सामना अपने वर्तमान पति से किया था। (पीड़ितों की पहचान छिपाने के लिए हमने उनके नाम बदल दिए हैं।)
(जिज्ञासा, उत्तर प्रदेश में स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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