कोविड-19ः यूपी में प्रवासियों की वापसी जारी लेकिन स्क्रीनिंग और क्वारंटीन का पालन नहीं
लखनऊ/गोरखपुर। गुवाहाटी के रहने वाले 23 साल के विकास बोरी पंजाब के लुधियाना में मज़दूरी करते थे। लॉकडाउन में जब काम छूट गया तो वह काम की तलाश में उत्तर प्रदेश के सहारनपुर पहुंच गए। विकास बताते हैं कि लुधियाना से सहारनपुर तक वह रोडवेज़ की बस से आए लेकिन कहीं भी उनकी कोई स्क्रीनिंग नहीं हुई।
"हम 27 जून की रात सहारनपुर बस अड्डे पर ही सो गए। अगले दिन सुबह पता चला कि मैं जिस व्यक्ति के साथ आया था वह मेरे पैसे लेकर भाग गया। मैंने वापस लुधियाना जाना चाहा तो पता चला कि लुधियाना की गाड़ी लखनऊ से मिलेगी, इसलिए मैं बस से लखनऊ आ गया,” विकास बोरी ने कहा।
लखनऊ के चारबाग स्टेशन पर असम के गुवाहाटी के रहने वाले विकास बोरी। फ़ोटोः रणविजय
इस सवाल पर कि क्या सहारनपुर से लखनऊ आने पर आपकी स्क्रीनिंग हुई, विकास कहते हैं, "ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैं बस अड्डे से उतर कर सीधा रेलवे स्टेशन आया हूं, यहां बता रहे हैं कि ट्रेन कल मिलेगी।” विकास अकेले नहीं थे जो लखनऊ के चारबाग स्टेशन तक बिना स्क्रीनिंग के पहुंच गए। कई दूसरे यात्री भी यूपी के अन्य ज़िलों से यहां पहुंचे थे, जिनकी बस अड्डे पर न तो स्क्रीनिंग हुई और न ही नाम-पता दर्ज किया गया। इनमें से कई यात्री वेटिंग हॉल में सो रहे थे तो कई स्टेशन पर यहां-वहां घूम रहे थे।
अप्रैल महीने की शुरुआत में जब प्रवासियों का घर लौटना शुरु हुआ तो राज्य सरकार ने गांवों में स्कूलों को क्वारंटीन केंद्र बना दिया और वहां प्रवासियों के रहने का इंतज़ाम किया गया। 14 दिन की अवधि पूरी करने के बाद अगर इनमें कोरोनावायरस के लक्षण नहीं नज़र आए तो ही यह अपने घर जा सकते थे। बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर बाहर से आने वालों की थर्मल स्क्रीनिंग के इंतज़ाम किए गए थे।
मगर अब धीरे-धीरे क्वारंटीन केंद्र निष्प्रभावी हो गए हैं। बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर थर्मल स्क्रीनिंग करने वाली टीमें नज़र आनी बंद हो गई हैं। अब जो भी लोग गांव पहुंच रहे हैं उन्हें होम क्वारंटीन के लिए कहा जा रहा है। यह तब है जब राज्य में कोरोनावायरस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और प्रवासियों का भी गांवों की ओर लौटना जारी है। हालांकि सरकार ने क्वारंटीन केंद्रों को बंद करने का कोई आदेश अभी तक जारी नहीं किया है। कोरोनावायरस के शुरुआती दौर में इस महामारी को नियंत्रित करने के लिए उत्तर प्रदेश में जितने प्रयास किए गए थे, अनलॉक-1 के बाद ज़मीनी स्तर पर अब उसके आधे प्रयास भी नज़र नहीं आ रहे हैं।
बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर स्क्रीनिंग नहीं
भारी संख्या में प्रवासी मज़ूदरों की वापसी को ध्यान रखते हुए उत्तर प्रदेश में बाहर से आने वाले लोगों के लिए क्वारंटीन सेंटर बनाए गए। बाहर से आने वाले लोगों को यहां 14 दिन के लिए रखा जाना था और अगर उनमें 14 दिन बाद कोरोनावायरस के लक्षण नज़र नहीं आए तो उन्हें घर भेज दिया जाता था। अप्रैल के महीने में पूरे राज्य में इसके लिए 5,470 क्वारंटीन सेंटर्स बनाए गए, जिसमें 10 से 15 लाख प्रवासियों के रहने का इंतज़ाम किया गया था। लेकिन अब ये सेंटर्स लगभग बंद हो चुके हैं।
"प्रदेश में अब तक 1,658 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से करीब 22.37 लाख लोगों को प्रदेश में लाकर उनके घरों तक पहुंचाया गया है," यूपी के अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने 26 जून को कहा था। इसके अलावा लोग अन्य साधनों से भी उत्तर प्रदेश में आ रहे हैं। इन्हें भी होम क्वारंटीन रहने की सलाह भर दी जा रही है।
लखनऊ का चाराबाग स्टेशन। फ़ोटोः रणविजय
यूपी में अनलॉक-1 से अनलॉक-2 के बीच कोरोनावायरस के मामले तेज़ी से बढ़े हैं। 8 जून से यूपी में धार्मिक स्थल और रेस्टोरेंट भी खुल गए थे। ऐसे में इस तारीख़ से ही कोरोनावायरस के मामलों को देखें तो 8 जून (अनलॉक-1) तक प्रदेश में कोरोनावायरस के कुल 10,536 मामले मिले थे, जबकि 2 जुलाई (अनलॉक-2) तक यह मामले दोगुने से भी अधिक बढ़कर 24,056 हो गए। इस बीच राज्य में बसों का आवागमन भी बेरोक-टोक जारी है। अकेले 1 जुलाई को ही राज्य के अंदर यूपी रोडवेज़ की 5,856 बसों के ज़रिए 878,607 लोगों ने यात्रा की, यूपी के अपर मुख्य सचिव, गृह, अवनीश अवस्थी ने 2 जुलाई को यह जानकारी दी।
उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े बस डिपो में से एक कौशांबी बस डिपो दिल्ली की सीमा से लगी है। लॉकडाऊन में छूट के बाद से यहां से हर रोज़ 200 से अधिक बसें राज्य के अलग-अलग ज़िलों को जाती हैं। आमतौर पर दिल्ली से यूपी जाने वाले यात्री यहां से बसें लेते हैं। यह बस स्टेशन दिल्ली के इतना क़रीब है कि इसकी चाहरदीवारी दिल्ली की सीमा से मिली हुई है। इंडियास्पेंड की टीम ने 2 जुलाई को पाया कि यहां न तो कोई स्क्रीनिंग की व्यवस्था है और ना ही सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है, हालांकि बसों के अंदर लोगों को बिठाते समय एक निश्चित दूरी रखी गई थी।
होम क्वारंटीन का ठीक से पालन नहीं
गोरखपुर के पानापार गांव के रहने वाले जवाहर कनौजिया (50 साल) गुजरात के गांधी नगर में कपड़े धोने और प्रेस करने का काम करते थे। लॉकडाउन के बाद जब अनलॉक-1 की घोषणा हुई तो जवाहर अपने 24 साल के बेटे धर्मेंद्र कनौजिया के साथ गोरखपुर लौट आए। 14 जून को उनकी ट्रेन गोरखपुर स्टेशन पहुंची जहां से बिना किसी स्क्रीनिंग के यह लोग सीधे गांव चले आए।
"हमारी ट्रेन 14 जून की सुबह गोरखपुर स्टेशन पहुंची। हम स्टेशन से बाहर आए और टैम्पो से गांव चले आए। घर आने पर लोगों ने कहा कि अभी घर के लोगों के साथ मत रहो तो घर के बाहर रह रहे हैं," धर्मेंद्र कनौजिया ने बताया।
धर्मेंद्र अपने पिता जवाहर के साथ घर के बाहर एक आधे बने मकान में होम क्वारंटीन के तौर पर रह रहे हैं। इंडियास्पेंड की टीम जब इन लोगों से मिलने पहुंची तो धर्मेंद्र तो वहां मौजूद थे, लेकिन जवाहर गांव का चक्कर लगाकर लौट रहे थे। हमने उनसे पूछा कि आप होम क्वारंटीन में हैं तो बाहर क्यों घूम रहे हैं? इसके जवाब में जवाहर कहते हैं, "यह छोटी सी जगह है, यहां मन नहीं लगता, इसलिए गांव में गया था।"
केंद्र सरकार ने होम क्वारंटीन के लिए जो गाइड-लाइन जारी की हैं अगर उसे देखें तो जवाहर और धर्मेंद्र उसके एक भी नियम में फिट नहीं बैठते। गाइड-लाइन के मुताबिक, होम क्वारंटीन में जो भी व्यक्ति रह रहा है वो एक हवादार कमरे में रहे जिससे जुड़ा हुआ एक शौचालय हो। अगर कोई दूसरा व्यक्ति भी उस कमरे में रह रहा है तो करीब एक मीटर की दूरी बनाकर रहे। होम क्वारंटीन हुआ व्यक्ति घर के बाहर तो दूर, घर में भी नहीं घूम सकता।
घर के बाहर आधे बने मकान में होम क्वारंटीन में रह रहे धर्मेंद्र कनौजिया। फ़ोटोः रणविजय
इस समय शहरों से जो भी गांव जा रहा है उनकी निगरानी के लिए 'निगरानी समिति' बनाई गई है। इस समिति में प्रधान से लेकर आशा वर्कर्स तक शामिल हैं। हमने पानापार गांव की ही आशा वर्कर सुधा देवी से बात की और यह पूछा कि जो लोग बाहर से आ रहे हैं उन्हें क्वारंटीन करने की क्या व्यवस्था है? इस सवाल पर सुधा ने कहा, "अब जो भी बाहर से आ रहा है उसे होम क्वारंटीन रहने को कहा जा रहा है। स्कूलों में क्वारंटीन करने का काम अब नहीं हो रहा।"
सुधा जो बात कह रही हैं ऐसी ही बात यूपी के अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश अवस्थी ने 2 जून को कही थी, "ट्रेनों से अन्य राज्यों से आने वाले लोगों को 14 दिन तक होम क्वारंटीन रहना है।"
"यह आदेश है कि अगर किसी के घर में क्वारंटीन की व्यवस्था नहीं है तो उसे सरकारी क्वारंटीन में रखा जाएगा," राज्य के अपर मुख्य सचिव, चिकित्सा स्वास्थ्य, अमित मोहन प्रसाद ने इंडियास्पेंड को बताया।
"स्क्रीनिंग लगातार होनी है," रेलवे स्टेशन और बस अड्डों पर स्क्रीनिंग में ढिलाई बरतने के सवाल पर उन्होंने कहा।
गांवों तक पहुंचा कोरोनावायरस
"हम बाहर से आए लोगों के संपर्क में लगातार रहते हैं और अगर इनमें से किसी में कोरोनावायरस के लक्षण पाए जाते हैं तो हम इसकी जानकारी अधिकारियों को देते हैं," होम क्वारंटीन हुए लोगों की निगरानी के बारे में आशा वर्कर सुधा ने बताया।
आशा वर्कर्स ने राज्य में कोरोनावायरस महामारी की शुरुआत से लेकर 29 जून तक क़रीब 19.19 लाख कामगारों/श्रमिकों से उनके घर पर जाकर संपर्क किया है, जिसमें से 1,700 लोगों में कोरोनावायरस जैसे लक्षण मिले हैं। इनके सैंपल जांच के लिए भेजे गए, जिसमें से 1,262 लोगों की रिपोर्ट आ चुकी है और 231 लोग कोरोनावायरस से संक्रमित पाए गए, यूपी के चिकित्सा-स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव, अमित मोहन प्रसाद ने 29 जून को बताया।
लगभग एक महीने पहले 21 मई तक, आशा वर्कर्स ने 575 प्रवासियों के सैंपल कलैक्ट किए थे जिसमें से 91 संक्रमित पाए गए थे, अमित मोहन प्रसाद की 22 मई की प्रेस कॉन्फ़्रेंस के मुताबिक़।
लखनऊ के मोहम्मदनगर गांव का सरकारी स्कूल जिसमें क्वारंटीन सेंटर बना था। अब यह बंद पड़ा है। फ़ोटोः रणविजय
राज्य के चिकित्सा-स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव, अमित मोहन प्रसाद ने जो आंकड़े 29 जून को साझा किए, उनसे पता चलता है कि यह महामारी अब गांव में भी फैलने लगी हैं। जब बाहर से आने वाले लोगों में संक्रमण पाया जा रहा है तो गांव के स्कूलों में बने क्वारंटीन सेंटर क्यों बंद हो रहे हैं? "स्कूलों में ठीक से व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। जो लोग बाहर से आ रहे थे वह खाना खाने घर जा रहे थे," लखनऊ के मलिहाबाद क्षेत्र के मोहम्मदनगर गांव के प्रधान अखिलेश यादव ने कहा।
"मेरे गांव में अब तक क़रीब 40 लोग बाहर से आए हैं, सबकी निगरानी की गई है। लोग भी जागरूक हैं। अगर कोई बाहर निकलता है तो उसे डांट कर घर पर रहने को कहते हैं," अखिलेश ने बताया।
लखनऊ के मोहम्मदनगर गांव के प्रधान अखिलेश यादव। फ़ोटोः रणविजय
अखिलेश जिस निगरानी समिति की बात कर रहे हैं उसके बारे में बताते हुए यूपी के चिकित्सा-स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव, अमित मोहन प्रसाद ने 29 जून को कहा था, "ग्राम एवं मोहल्ला निगरानी समितियों के द्वारा निगरानी का कार्य सक्रियता से किया जा रहा है। अब तक (29 जून तक) करीब 1.50 लाख सर्विलांस टीम द्वारा करीब 1.10 करोड़ घरों के 5 करोड़ से अधिक लोगों का सर्वेक्षण किया गया है।"
प्रदेश में डोर टू डोर सर्वे की तैयारी
राज्य सरकार पूरे प्रदेश में 5 से 10 जुलाई के बीच सर्वेक्षण अभियान चलाने वाली है। मेरठ मंडल में यह अभियान जुलाई के पहले सप्ताह में ही शुरू हो गया है। बाकी के मंडलों में 5 जुलाई से चलाया जाएगा।
इस अभियान में स्वास्थ्य विभाग की टीम लोगों से हालचाल पूछेगी। अगर किसी को डायबिटीज़, किडनी, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी है उसके बारे में और अधिक जानकारी ली जाएगी। "इस अभियान के तहत हर ग्राम सभा, राजस्व ग्राम, शहरों के हर वार्ड, हर घर में टीमें जाएंगी और सर्वे करेंगी," अमित मोहन प्रसाद ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा।
"मेरठ मंडल में 2,375 ग्रामीण एवं 1,516 शहरी निगरानी समितियां गठित की गई हैं। इसके अलावा 7,585 सर्विलांस टीम लगाई गई हैं। इन्हें बढ़ाकर जल्दी ही 15,000 किए जाने का प्रयास है," राज्य के अपर मुख्य सचिव, गृह, अवनीश अवस्थी ने 2 जुलाई को बताया।
इस रिपोर्ट में संपादकीय टीम का इनपुट भी शामिल है।
(रणविजय, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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