क्या बजट का 4.5% काफी है महिला योजनाओं के लिए?
केंद्रीय बजट 2016-17 में महिलाओं (भारत के 1.2 बिलियन लोगों में से जिनकी हिस्सेदारी 48 फीसदी है) पर खर्च के लिए 90,624.76 करोड़ रुपए (13.3 बिलियन डॉलर) दिया गया है यानि कि सरकारी खर्च का 4.5 फीसदी महिलाओं पर खर्च के लिए आवंटित किया गया है। इसमें एक दशक पहले, 2006 से 5 फीसदी की गिरावट हुई है (28,737 करोड़ रुपए या 6.4 बिलियन डॉलर) जब भारत में पहली बार लिंग-प्रभावनीय बजट आरंभ किया गया था।
यह राशि कई केंद्रीय प्रशासित कार्यक्रमों में खर्च की जाती है, जिसमें लड़कियों को मौत से बचाना, बलात्कार पीड़ितों की सहायता, माताओ के लिए बेहतर स्वास्थ्य एवं पोषण, कन्या जन्म एवं उनके पालन-पोषण पर प्रोत्साहन मिलना शामिल है।
प्रतिनीधियों– राष्ट्रीय पार्टियां, शिक्षा क्षेत्र, उद्योग एवं समाजिक क्षेत्र – के बीच आम सहमति है कि यह राशि पर्याप्त नहीं है। बजट के बाद ‘जेंडर बजट’ पर चर्चा के लिए पिछले हफ्ते दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। यह कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र महिला (यूएन वूमन) भारत कार्यालय द्वारा आयोजित किया गया था जहां कई विशेषज्ञ मौजूद थे।
"Social inclusion is essential to growth"- @rebeccaunwomen #Budget2016 pic.twitter.com/WLjoRUALXY
— UN Women India (@unwomenindia) March 2, 2016
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का यह बयान, जेंडर बजट को समझाते हुए कहता है कि, “जेंडर बजट का तर्क इस तथ्य से उठता है कि राष्ट्रीय बजट का प्रभाव, संसाधन आवंटन पैटर्न के माध्यम से पुरुषों और महिलाओं पर अलग पड़ता है। भारत की आबादी में 48 फीसदी हिस्सेदारी महिलाओं की है लेकिन कई सामाजिक संकेतकों जैसे कि स्वास्थ्य, शिक्षा, आर्थिक अवसर, इत्यादि में यह अब भी पुरुषों से पीछे हैं। इसलिए उनकी असुरक्षा एवं संसाधनों तक उनकी पहुंच में कमी के कारण उन पर विशेष ध्यान की आवश्यकता है।”
2014-15 एवं अगले वर्ष के बीच मंत्रालय के लिंग विशेष कार्यक्रम के लिए बजट में 1,131 करोड़ रुपए (160 मिलियन डॉलर) की गिरावट हुई है।
प्रमुख योजनाएं जैसे कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं, समेकित बाल विकास सेवाएं (आईसीडीएस) और राष्ट्रीय पोषण मिशन (एनएनएम) के कार्यान्वयन के लिए मंत्रालय ज़िम्मेदार है।
हालांकि, अगले वित्त वर्ष में अधिकांश कार्यक्रमों के आवंटन में मामूली वृद्धि हुई हैं, लेकिन इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना (आईजीएमएसवाई) के लिए राशि लगभग दोगुनी की गई है – 230 करोड़ रुपए (34.2 मिलियन डॉलर) से 400 करोड़ रुपए (60 मिलियन डॉलर) की गई है। यह एक मातृत्व लाभ योजना है जो गर्भवती और स्तनपान कराने वाली उन महिलाओं की नकद सहायता प्रदान करता है जिन्हें मातृत्व अवकाश प्राप्त नहीं होता है।
केंद्र सरकार ने समाज कल्याण वित्त पोषण में कटौती की है और अब इसकी ज़िम्मेदारी राज्य सरकार को दे दी है कि वह समाज कल्याण पर कितना खर्च करना चाहते हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी अपनी रिपोर्ट में बताया है।
केंद्र सरकार, बिना शर्त के अब अधिक राशि राज्य सरकारों को दे रही है ताकि उनके पास अधिक वित्तिय प्रशासन अधिकार रहे, लेकिन जैसा कि हमने बताया है, केंद्र की सहायता के बिना, राज्य सरकार पुनर्वितरित नहीं कर सकता है।
जीवीएल नरसिंहा राव, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के प्रवक्ता ने महिलाओं के लिए सरकारी आवंटन के संबंध में चर्चा की। गरीबों के लिए मुफ्त एलपीजी कनेक्शन एवं मुद्रा योजना - उद्यमियों के लिए माइक्रो- वित्त योजना – से महिलाओं को अतिरिक्त लाभ मिलेगा। उन्होंने कहा कि, “हमें उम्मीद है कि आने वाले वर्षों में इसका परिणाम नज़र आएगा।” विपक्ष पार्टियों के प्रवक्ताओं ने – कांग्रेस के मनीष तिवारी एवं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी वृंदा कारत – इन आवंटन को मात्र खाना-पूर्ति बताया है।
"The approach of gender responsive budgeting continues to be neglected in the budgeting process"Subrat Das, @CBGAIndia analyses #Budget2016 — UN Women India (@unwomenindia) March 2, 2016
भारत की महिला श्रम-शक्ति भागीदारी 25.5 फीसदी है जो कि सोमालिया (37 फीसदी) से भी कम है एंव 43 फीसदी महिलाएं (15 से 59 वर्ष के बीच) घरेलू काम करती हैं, जैसा की इंडियास्पेंड ने पहले भी विस्तार से बताया है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार योजना (मनरेगा) के तहत करीब 55 फीसदी श्रमिक महिलाएं थीं, जैसा की इंडियास्पेंड ने पहले भी चर्चा की है एवं मनरेगा के तहत लिंग आवंटन 12,833 करोड़ रुपए (या 1.9 बिलियन डॉलर) या महिलाओ के लिए आवंटन का 14 फीसदी था।
वर्ष 2006 से शुरु हुआ जेंडर विशेष आवंटन महिला एंव बाल विकास मंत्रालय के तहत आता है जो पहले मानव संसाधन विकास मंत्रालय का एक विभाग था।
"The needs of working women are lacking in #Budget2016" @brindacpim pic.twitter.com/GaFqO2nS3C
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"Do schemes like #makeinindia look at gender?"- Rohit Azad, prof of JNU on #Budget2016 pic.twitter.com/ZNxsOTheBy — UN Women India (@unwomenindia) March 2, 2016
"What are the needs of women farmers?How do we operationalize their needs?"Yamini Mishra of @unwomenasia #Budget2016 pic.twitter.com/6TBLClDqtA
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(तिवारी इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 8 मार्च 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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