क्या मैगी के साथ मिलावटी तेल और अंडो पर लगेगी रोक
- मुंबई में खुले बिकने वाले तेल 64% अशुद्ध होते हैं। हाल ही में भारतीय उपभोक्ता मार्गदर्शक सोसाईटी(Consumer Gudience Society of India) द्वारा किए गए एक रिसर्च में यह बात सामने आई है। संस्था ने तिल का तेल, नारीयल तेल, मूंगफली का तेल, सरसो तेल, बिनौला तेल, सूरजमुखी का तेल और सोयाबीन तेल के 291 नमूनों का परीक्षण किया था।
- एम. एस य़ूनिवर्सीटी ऑफ बड़ोदा (M.S. University of Baroda) द्वारा किए गए एक शोध में अनाज, दलहन, सब्ज़ियां, जड़ों और कंद में तय सीमा के उपर अर्सेनिक पाया गया। ये रिसर्च 2013 में किया गया था। अनाज, फल और दही में कैडमियम की मात्रा भी तय सीमा से ज़्यादा पाई गई थी।
- 2013 में भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान (Indian Veterinary Research Institute) द्वारा किए गए एक रिसर्च में कुछ और चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। देहरादून, इज़्जतनगर और उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में किए गए शोध में अंडो में भी अशुद्धता पाई गई। जांचे गए अंडो में से 28% अंडो में ई-कोलाई से दूषित पाए गए जबकि 5% में बहु दवा प्रतिरोधी साल्मोनेला बैक्टीरिया मिले।
- 2011 में केरला के कोट्टायम शहर में भी बत्तख के अंडो की शुद्धता जांची गई। जांचे गए आधे से ज़्यादा अंडे साल्मोनेला से दूषित पाए गए।
- एक राष्ट्रव्यापी अध्ययन में 1,791 दूध के नमूनों की जांच की गई। जांच किए गए नमूनों में से 69% दूध भारतीय मानकों के अनुरूप नहीं था ( हालांकि ये दूध आवश्यक रुप से असुरक्षित नहीं थे )। इंडियास्पेंड ने आपको पहले ही अपने रिपोर्ट में बताया है कि भारत में बिकने सबसे अधिक मिलावटी खाद्य दूध ही है।। तेल और अंडे, दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं।
आम खाद्य पदार्थों में मिलावट का प्रतिशत
Source: FSSAI, Consumer Guidance Society of India, research
हालांकि हमने हाल में ही होने वाले परीक्षण की चर्चा की है....हमारे आप-पास ऐसी खाने की हजारो वस्तुएं हैं जो अशुद्ध हैं और भारतीय खाद्य सुरक्षा मानकों के मुताबिक नहीं हैं।
मैगी पर बवाल
दो मिनट में तैयार हो जाने वाली मैगी नूडल्स भारत के हर घर में बेहद लोकप्रिय है। हाल ही में किए गए परीक्षण में मैगी को भारतीय खाद्य सुरक्षा के मानकों के अनुरुप नहीं पाया गया है। मैगी को सेहत के लिए असुरक्षित और खतरनाक मानते हुए देश के कई राज्यों में मैगी की बिक्री पर पाबंदी लगा दी गई है। मामले को देखते हुए नेस्ले कंपनी ने मैगी को बाज़ार से वापस लेने का फैसला किया है।
नेस्ले कंपनी ने जारी किए गए अपने आधिकारीक बयान में कहा है -“उपभोक्ताओं का विश्वास और उत्पादों की सुरक्षा कंपनी की पहली प्रथामिकता है। लेकिन दुर्भाग्यवश हाल में हुए कुछ घटनाक्रम से उपभोक्ताओं में भ्रम का माहौल बन गया है। इसलिए मैगी के पूर्ण रुप से सुरक्षित होते हुए भी कंपनी ने इसे वापस लेने का निर्णय किया है”।
उपभोक्ता मामलों के मंत्री राम विलास पासवान ने इसे एक गंभीर मुद्दा बताया है। पूरा मामला उपभोक्ताओं की सुरक्षा से जुड़ा है इसलिए सररकार ने पहली बार उपभोक्ताओं की ओर से स्वत: संज्ञान लिया है।
मैगी मामले ने तूल तब पकड़ा जब उत्तर प्रेदेश के खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (FDA ) द्वारा किए गए टेस्ट में गड़बड़ी पाई गई। परीक्षण में भारतीय खाद्य सुरक्षा के तय सीमा से कई गुना अधिक सीसा पाया गया।
खाद्य सुरक्षा और मानक (Food Safety and Standards (Contaminants, Toxins and Residues) Regulations), 2011 के अनुसार मैगी जैसे खाद्य पदार्थ में सीसा की स्वीकार्य सीमा 2.5 पीपीएम तक हो सकती है। जबकि मैगी के टेस्ट में यह मात्रा 17.2 पीपीएम पाई गई है। खून में सीसे की अधिक मात्रा हमारी सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं। जानकारों के मुताबिक सीसे की अधिक मात्रा जमा होने से कैंसर, दिमागी बीमारी, मिर्गी या फिर किडनी खराब हो सकती है।
FDA रिपोर्ट की बाद कई राज्यों में मैगी सैंपल टेस्ट किए गए। दिल्ली, गुजरात, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, तमिल नाडू में भी मैगी पर अस्थायी रुप से पाबंदी लगा दी गई है। इतना ही नहीं कई राज्यों में दूसरे ब्रैंड के नूडल्स जैसे कि वाई-वाई, एक्सप्रेस नूडल्स, आदि पर भी रोक लगा दी गई है।
इनमें भी होता है सीसा
केवल खाने में ही सीसा नहीं पाया जाता है। हवा, जिसमें हम सांस लेते हैं, पानी जो हम पीते हैं यहां तक कि घर की दीवारों पर जो पेंट लगाए जाते हैं, उनमें भी सीसा होता है।
मानक निर्धारित करनेवाली भारत की सर्वोच्च संस्था, भारतीय मानक ब्यूरो ( बीआईएस) के अनुसार घरेलू पेंट में सीसे की स्वैच्छिक मानक मात्र को 1,000 पीपीएम (1,000 पार्ट्स प्रति दस लाख) से घटा कर 90 पीपीएम ( पार्ट्ट प्रति दस लाख) कर दिया है। हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में इन मानकों का भी उल्लंघन होता नज़र आया।। टॉक्सिक द्वारा किए गए एक शोध में घरों में इस्तेमाल होने वाले पेंट में सीसा की मात्रा 111 गुना अधिक पाई गई। शोध में कररीब 101 पेंट के सैंपल लिए गए। जिनमें में 32 सैंपल में सीसे की मात्रा अधिक पाई गई।
पेंट के अलावा, ये सीसा दिल्ली और नागपुर में बिकने वाले पालक से लेकर पश्चिम बंगाल के बैगन, टमाटर और बीन्स में भी पाए गए हैं।
मैगी में मोनोसोडियम ग्लूटामेट ( MGS ) भी
खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनिय, 2011 के मुताबिक, मोनो सोडियम ग्लूटामेट ( MGS ) मैगी और पास्ता में नहीं मिलाना चाहिए। जबकि टेस्ट मेंमें सीसा के अलावा मोनोसोडियम ग्लूटामेट (एमएसजी) भी खासी मात्रा में पाई गई है।
हालांकि अमेरिकी खद्य एवं औषधि प्रशासन के मुताबिक एमएसजी को नुकसानदेह नहीं माना गया है। लेकिन भारत में इसे असुरक्षित और खतरनाक माना जाता है जिससे मुंह, सिर, गले में जलन, हाथ-पैरों में कमजोरी, पेट की गड़बड़ी जैसी समस्या होती हैं।
मैगी भारत में सबसे लोकप्रिय नूडलस ब्रांड में से है जो भारतीय बाज़ार का 70% हिस्सा कब्जा करती है। मिलावट के इस खुलासे से उपभोक्ताओं में हंगामा होना लाज़मी है। मैगी के साथ, उपभोक्ताओं के दिमाग में कई और पदार्थों को लेकर मिलावट का संदेह पैदा हो गया है।
खाद्य पदार्थों में मिलावट पर रोक लगाना बेहद ज़रुरी है। लेकिन भारत में अब भी पर्याप्त परीक्षण प्रयोगशालाओं की कमी है।
इंडियास्पेंड ने अपनी रिपोर्ट में पहले ही बताया है कि भारत में अब तक केवल 148 खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाएं हैं। इसका मतलब यह है कि प्रत्येक प्रयोगशाला 88 करोड़ लोगों के लिए काम करता है। वहीं चीन में हर 0.2 मिलियन लोगों के लिए एक प्रयोगशाला है।
पर्याप्त प्रयोगशालाओं के अभाव में खाद्य पदार्थों में मिलावट की संख्या बढ़ती जा रही है।FSSAI के नियमों पर खाद्य पदार्थ खड़े नहीं उतर पा रहे। दोनों के बीच का प्रतिशत लगातार बढ़ रहा है। पिछले तीन सालों में इन आंकड़ों में 6% बढ़ोतरी दिखी है। 2011-2012 में यह आंकड़े 12.77% थे जबकि 2013-14 में ये आंकड़े 18.80% दर्ज किए गए।
खाद्य पदार्थ के नमूने परीक्षण के परिणाम
Source: FSSAI; Note: Data for FY 2012 to FY 2014 for 14 states/UTs only, data for FY 2015 is for first 6 months for all states/UTs
खाद्य पदार्थो में मिलावट से संबंधित मामलों की संख्या में जबरदस्त उछाल देखने को मिला है। 2011-12 में यह आंकड़े 764 थे जबकि 2013-14 में यह बढ़कर 3,845 देखे गए। यानि आंकड़ों में 403 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
गैर अनुरुप खाद्य नमूनों के विरुद्ध की गई कार्यवाही
Source: FSSAI; Note: Data for FY 2012 to FY 2014 for 14 states/UTs only, data for FY 2015 is for first 6 months for all states/UTs
उपर दिए गए डाटा से जाहिर है कि यह पर्याप्त नहीं। ■
(सेठी इंडिया स्पेड के साथ विश्लेषक हैं।)
यह लेख मूलत: 6 जून 2015 को अंग्रेजी में indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ था।
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