क्यों नहीं थम रही हैं झारखंड में जादू-टोने के कारण हत्याएं
रांची: हर रोज़ दोपहर के वक़्त ठाकुर मुंडा और उनकी पत्नी चमरी देवी रांची ज़िले के नामकुम ब्लॉक में अपने गांव बारोती के पास जंगल से बारी-बारी से जलाने वाली लकड़ियां इकट्ठा करने जाते थे।
24 सितंबर 2019 को, मुंडा अपना भोजन करने के बाद लकड़ियां लाने के लिए जाने वाले थे कि उनके दो भतीजे पहुंच गए। उन्होंने मुंडा की पत्नी के बारे में पूछा।? मुंडा परिवार को उस स्थान पर ले गए जहां उन्होंने आखिरी बार चमरी देवी को देखा था लेकिन वह कहीं नहीं दिखी। वह उस रास्ते पर पहुंचे जहां से वह जंगल से अपने घर जाते थे लेकिन वह वहां भी नहीं मिली।
दंपत्ति की विवाहित बेटी, सुमी पहान भी तब अपने मायके आई हुई थी और वह भी खोज में शामिल हो गई। “अचानक हमने रास्ते पर ख़ून देखा – जैसे किसी ने ऐसी चीज़ को ज़मीन पर घसीटा था जिससे ख़ून बह रहा हो,” सुमी ने बताया। ख़ून के निशान एक ढलान के नीचे ख़त्म हुए और वहां चमरी देवी की लाश पड़ी थी।
जांचकर्ताओं ने बाद में पाया कि ठाकुर के भोजन के लिए घर जाने पर उनके भतीजों ने चमरी देवी की धारदार हथियारों से हत्या कर दी थी। ठाकुर मुंडा के भतीजे का 15 वर्षीय बेटा लंबे समय से बीमार था और स्थानीय ओझा ने चमरी देवी पर “बुरी नज़र” लगाने का आरोप लगाया था। बताया जाता है कि लड़के के पिता और चाचा ने उनकी हत्या की साज़िश रची थी।
काले जादू में विश्वास के कारण होने वाली हत्याएं झारखंड में आम हैं। झारखंड में 2019 में जादू-टोने से संबंधित 27 मौतों की रिपोर्ट मिली थी, राज्य पुलिस विभाग के आंकड़ों के अनुसार। 2018 में ऐसी मौतों की संख्या 18 थी, नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के हाल ही में जारी हुए आंकड़ों के अनुसार।
आंकड़ों से पता चलता है कि देश में जादू-टोने के पीड़ितों में झारखंड सबसे आगे है। इसमें महिलाओं को पहले ‘डायन’ करार दिया जाता है और फिर उनके साथ मारपीट होती है, जिसमें अक़्सर जान चली जाती है। आंकड़ों से पता चलता है कि 2014 से अब तक झारखंड में डायन करार देकर 173 महिलाओं की हत्या की गई है। 2017 में देश भर में जादू-टोना करने के शक में मारे गए 73 लोगों में से 19 (23%) झारखंड से थे, एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार।
देश में 2018 में ‘जादू-टोने’ से संबंधित कुल 63 मौतों में से 18 झारखंड में थीं, जो सभी मौतों का लगभग एक-तिहाई है। इसके बाद झारखंड से दोगुनी से अधिक जनसंख्या वाला मध्य प्रदेश था, जहां ऐसी 10 मौतें हुई थीं।
पुलिस अधिकारियों ने इंडियास्पेंड के साथ अनौपचारिक बातचीत में इन हमलों के लिए राज्य की कम साक्षरता दर (70.3%) और काले जादू में विश्वास को ज़िम्मेदार बताया।
लेकिन झारखंड के रांची और गुमला ज़िलों में हमारी जांच के दौरान हमने एक अन्य कारण पाया – एक बहुत निर्धन राज्य में गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सुविधाओं की भारी कमी। राज्य की जनसंख्या का 75.95% गांवों में बसता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं दूरी पर मौजूद शहरों में होने और परिवहन की सुविधाओं की कमी के कारण मुश्किल में फंसे लोगों को नीम हकीमों और ओझा से मदद लेना आसान लगता है।
ख़राब स्वास्थ्य सुविधाएं, कम साक्षरता और ओझा की ठीक करने की शक्ति में गहरा विश्वास रखने जैसे कारणों से झारखंड में जादू-टोने से जुड़ी मौतों की संख्या अधिक है, ग्रामीणों, अधिकारियों और एनजीओ कर्मियों से बातचीत में हमें पता चला।
‘ओझा’ और उनके ‘इलाज’
झारखंड के कुछ सबसे निर्धन क्षेत्रों में, महिलाओं को डायन क़रार देना और सभी प्रकार की मुश्किलों के लिए उन्हें दोषी बताना असामान्य है। यह मुश्किलें या दुर्घटनाएं छोटी या बड़ी हो सकती हैं -- किसी ग्रामीण का बीमार होना, किसी का साइकिल से गिरना या यहां तक कि फ़सल का बर्बाद होना, ग्रामीणों ने बताया।
सुमी पहान को जल्दी ही यह पता चल गया कि उनकी मां की हत्या क्यों की गई थी। उनके पिता के भतीजे का बेटा कुछ समय से बीमार था और परिवार चिंतित था। “उसे बुख़ार और थकान थी और उसके इलाज के लिए परिवार घर पर एक ओझा को लाया था,” सुमी ने बताया। झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में ओझा या भगत सभी प्रकार की बीमारियों और मुश्किलों के लिए “उपचार” बताते हैं। लोगों पर उनके प्रभाव के कारण अक़्सर उनकी भूमिका इससे अधिक हो जाती है।
हत्या से तीन दिन पहले, एक ओझा ने लड़के की बीमारी का कारण “घोषित” किया था। उसने चमरी देवी को एक “डायन” घोषित किया था जिसने लड़के को अपनी “शक्तियों” से बीमार कर दिया था, ग्रामीणों ने बाद में शोकाकुल परिवार को बताया था।
दो दिन बाद, सुमी के चाचा और लड़के के पिता, फौदा मुंडा, उसके दो बेटों और एक दोस्त ने कथित तौर पर चमरी देवी की हत्या कर दी थी।
झारखंड के बहुत से क्षेत्रों में ओझा की “शक्तियों” पर इस प्रकार का “अंधविश्वास” सामान्य है। “अपनी बीमारियों से हम इसी तरह निपटते हैं,” सुमी ने बताया। “ओझा हमें बीमारियों के लिए उपचार बताते हैं और वह हमें जीवन में विभिन्न समस्याओं से लड़ने में भी सहायता करते हैं,” उन्होंने कहा।
यहां से 80 किलोमीटर दूर, पश्चिमी झारखंड के गुमला ज़िले में नगर सिस्कारी गांव के प्रधान, मडवारी ओरांव ने इसकी पुष्टि कीः “अगर कोई साइकिल से भी गिर जाता है, तो वह किसी ओझा के पास जाता है क्योंकि उसे डर लगता है कि उसके गिरने का कारण उसकी ख़राब किस्मत है।”
ओझा, आमतौर पर हमेशा एक पुरुष होता है, स्थानीय जड़ी-बूटियों वाला “इलाज” बताता है, ओरांव ने कहा। “लेकिन कई बार, वह समस्या के लिए एक अपशकुन को कारण बताता है और मोटी रक़म मांगता है,” उन्होंने बताया। अगर कोई परिवार वह राशि देने में असमर्थ होता है तो ओझा पैसे के बदले कोई चीज़ मांगता है -- मुर्गी या बकरी। जब उसे कोई “समाधान” नहीं मिलता, तो ओझा आमतौर पर किसी को “डायन” घोषित कर उसे मुश्किल का कारण बता देता है, ओरांव ने बताया।
शराब की वजह से हुई किसी की मौत के लिए चार लोगों की हत्या
गुमला ज़िले में नगर सिस्कारी गांव के प्रधान मडवारी ओरांव। जुलाई 2019 में गांव में चार लोगों की जादू-टोने के डर से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी।
20 जुलाई 2019 को, ओरांव के गांव में चार लोगों की जादू-टोने के डर से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। शराब की लत की वजह से 45 वर्ष के बोलो ओरांव की मृत्यु हुई थी और ओझा ने इसका दोष चार लोगों पर लगाया था, जिनकी ओरांव के घर के पीछे एक सामुदायिक क्षेत्र में हत्या कर दी गई थी।
ग्रामीण झारखंड के अन्य क्षेत्रों की तरह, नगर सिस्कारी में, ओझा की समाज में असाधारण स्थिति का संबंध ख़राब स्वास्थ्य सुविधाओं से है। गुमला ज़िले में सुदूर सिसाई ब्लॉक के नगर सिस्कारी के जो सबसे क़रीब स्वास्थ्य केंद्र है वह भी 15 किलोमीटर की दूरी पर है। वहां पहुंचना बहुत मुश्किल है और इस कारण से अधिकतर लोग जाने से बचते हैं, ओरांव ने बताया।
“कोई सार्वजनिक परिवहन उपलब्ध नहीं है,” जादू-टोने और मानव तस्करी जैसी समस्याओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए काम कर रहे एक स्थानीय संगठन संवाद के साथ जुड़ी सिसाई की कार्यकर्ता, मालती कुमारी ने बताया। “वहां पहुंचने के लिए एक निजी वाहन होना चाहिए -- जो कुछ ही लोगों के पास है--या सिसाई से ऑटो बुलाना पड़ता है, और कुछ ही लोग यह ख़र्च उठा सकते हैं।”
झोला छाप ‘डॉक्टर’ सबसे निकट की सहायता है, मालती ने बताया। “यह ऐसे स्थानीय लोग हैं जिन्होंने पहले प्राइवेट डॉक्टरों के पास कम्पांउडर के तौर पर काम किया है। वह स्थानीय लोगों से संपर्क कर उनका भरोसा हासिल करते हैं। कुछ समय बाद, वह इसका फ़ायदा उठाकर गांवों में जाते हैं और सामान्य बीमारियों के लिए दवाएं देते हैं,” उन्होंने बताया।
लेकिन जब हालात नीम-हक़ीम के बस के बाहर हो जाते हैं तो लोग ओझा के पास जाते हैं।
झारखंड में स्वास्थ्य पर बहुत कम ख़र्च
इन मुश्किलों के पीछे झारखंड का अपने नागरिकों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने का ख़राब रिकॉर्ड है। राज्य के ख़र्च का केवल 4.82% ही स्वास्थ्य सुविधाओं पर ख़र्च होता है, 2018 के नेशनल हेल्थ प्रोफ़ाइल के अनुसार। जो देश में स्वास्थ्य पर होने वाले सबसे कम ख़र्च में शामिल है। देश में औसतन 11,082 लोगों पर एक सरकारी एलोपैथिक डॉक्टर है, लेकिन झारखंड में 18,518 की आबादी पर एक एलोपैथिक डॉक्टर है। यह केवल बिहार और उत्तर प्रदेश के औसत से ही अधिक है।
इसके साथ ही झारखंड में औसतन 3,079 लोगों पर सरकारी अस्पताल में एक बेड है, जो देश में 1,844 के औसत की तुलना में सबसे कम उपलब्धता में शामिल है।
स्वास्थ्य सुविधाओं की आपूर्ति और मांग में इस अंतर का राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य आंकड़ों पर प्रभाव पड़ता है। नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 के अनुसार, राज्य में संस्थागत जन्म दर देश में सबसे कम में से एक है -- 78.9% के राष्ट्रीय औसत की तुलना में झारखंड में यह 61.9% है। राज्य में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 29 मृत्यु के साथ पांच वर्ष से कम बच्चों की मृत्यु दर 14वीं सबसे अधिक है।
इसी अंतर को झोला छाप और ओझा पूरा करते हैं।
नगर सिस्कारी में बाला ओरांव की मृत्यु के कारणों की मेडिकल जांच के लिए किसी ने कोशिश नहीं की। “बाला की मृत्यु नींद में ही हो गई थी। हालांकि, गांव वालों ने ओझा के पास जाने का फ़ैसला किया क्योंकि यहां लोगों ने सोचा कि केवल वह ही मृत्यु का “वास्तविक” कारण बता सकता है,” प्रधान मडवारी ओरांव ने बताया।
ओझा और तांत्रिकों पर विश्वास -- और मेडिकल साइंस पर नहीं विश्वास -- का कारण कम साक्षरता हो सकता है, राज्य के उच्चस्तरीय अधिकारियों ने इंडियास्पेंड को नाम ज़ाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया।
“झारखंड में परंपरागत तौर पर बहुत से समुदाय बीमारियों के इलाज के लिए ओझा और तांत्रिक पर निर्भर हैं,” झारखंड में पुलिस मुख्यालय में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा। “ऐसे लोगों को समुदायों की प्रथाओं और उनकी आस्थाओं के बारे में अच्छी जानकारी होती है और इस कारण से उनका अधिक सम्मान किया जाता है।” इस निर्भरता से झाड़-फूंक करने वालों को सीधे-साधे ग्रामीणों से पैसा ऐंठने में मदद मिलती है, उन्होंने आगे कहा।
क़ानून ‘पर्याप्त मज़बूत नहीं’
ओझा और तांत्रिकों से निपटने के लिए राज्य विधानसभा ने 2001 में प्रिवेंशन ऑफ़ विच (डायन) प्रैक्टिसेज़ एक्ट पारित किया था, जिससे राज्य को महिलाओं को डायन क़रार देने वालों को सज़ा देने की शक्ति मिलती है।
इस क़ानून के सेक्शन 3 में “किसी व्यक्ति की पहचान डायन के तौर पर बताने वाले के लिए” तीन महीने तक की सज़ा और/या 1,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। “किसी व्यक्ति की पहचान डायन के तौर पर बताने और उसका किसी प्रकार से शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न करने वाले के लिए” क़ानून में 2,000 रुपए का जुर्माना और/या छह महीने तक की क़ैद का प्रावधान है।
कथित डायनों को ठीक करने का दावा करने वाले गांव के ओझा की गतिविधियों के लिए एक वर्ष तक की क़ैद और/या 2,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।
लेकिन क़ानून के डर को लेकर बहुत से लोग आश्वस्त नहीं हैं। झारखंड पुलिस की वेबसाइट पर एक्ट के साथ एक नोट में इसकी कमियों पर कहा गया हैः “स्पष्ट तौर पर सेक्शन 3, 4, 5 और 6, महिलाओं को डायन बताने और उन पर अत्याचार के ज़िम्मेदार लोगों पर नियंत्रण करने या सज़ा देने के लिए पर्याप्त नहीं हैं... इस क़ानून के बावजूद, डायन बताई गई महिलाओं का उत्पीड़न होता है, अत्याचार किया जाता है और हत्याएं होती हैं और यह चलन अभी भी जारी है।”
“सैंकड़ों लोगों, अक़्सर बूढ़ी महिलाओं को, हर साल डायन करार दिया जाता है,” नोट में कहा गया है।
इंडियास्पेंड के सवालों के जवाब में, झारखंड पुलिस ने एक बयान जारी कर इस पर ज़ोर दिया कि पुलिस अधिकारी क़ानून के पालन की सावधानी से निगरानी कर रहे हैं। “राज्य के आपराधिक जांच विभाग ने पूरे राज्य में पुलिस अधिकारियों को ऐसे मामलों पर रोक लगाने के लिए क़ानून के साथ ही अन्य कड़े कदमों का प्रचार करने के कड़े निर्देश दिए हैं,” बयान में बताया गया। बयान में आगे कहा गया, “हम ऐसे लंबित मामलों की भी बारीकी से निगरानी कर रहे हैं।”
ग्रामीण झारखंड में बहुत कम लोगों को यह पता है कि डायन बताई गई किसी महिला पर हमला या उसकी हत्या करने के लिए अन्य अपराधों में समान हिंसा की तरह ही सज़ा मिलती है, ओझा और तांत्रिकों से जुड़े भ्रमों को दूर करने और इनके पीड़ितों की सहायता की कोशिश करने वाले रांची के महिलाओं के एनजीओ, एसोसिएशन फ़ॉर एडवोकेसी एंड लीगल इनिशिएटिव्स (एएएलआई) की प्रोग्राम ऑफ़िसर, कनकलता कुमार ने बताया।
“हमने ओझा और तांत्रिकों के ऐसे मामले देखे हैं जिनमें आरोपियों ने हमें बताया कि उन्होंने यह सोचकर अपराध किया था कि सज़ा केवल छह महीने की होगी और इस वजह से वह जल्द छूट जाएंगे,” उन्होंने कहा। उन्होंने इस सोच की ओर इशारा किया कि हत्या और हमले से संबंधित सामान्य क़ानून “डायनों” पर लागू नहीं होते।
“उसे सज़ा देने की ज़रूरत थी।”
चमरी देवी की मौत से ठाकुर मुंडा के परिवार को एक से अधिक झटके लगे थे। ठाकुर की उम्र 60 साल की है और वह परिवार को नहीं चला सकते। इस वजह से सुमी की तीन छोटी बहनों को ज़िम्मेदारी संभालनी पड़ी। इनमें से एक गंगी ने बताया कि वह हाई स्कूल के बाद अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सकी। उसका कहना था, “हम तीन बहनें हैं -- एक को पशुओं की देखभाल करनी होती है, अन्य दो खेत और घर पर मदद करती हैं।”
परिवार धान, दालों और मक्का की खेती करता है, लेकिन यह केवल उनके इस्तेमाल के लिए पूरा पड़ पाता है। घर का ख़र्च चलाने के लिए परिवार अस्थायी तौर पर मज़दूरी भी करता है। गंगी कपड़े और बैग सिलकर रोज़ 200 से 300 रुपए कमाती है।
चमरी देवी के बारे में आरोप उनकी मृत्यु के बाद भी जारी हैं। “हर बार हमारे घर से बाहर निकलने पर, कोई व्यक्ति एक टिप्पणी कर देता है -- हम कहां जा रहे हैं, हम किससे मिल रहे हैं,” गंगी ने बताया।
इन तानों से परिवार इतना परेशान है कि वह गांव को छोड़ना चाहते हैं। गांव वाले पुलिस जांच की ज़रूरत पर भी प्रश्न करते हैं, सुमी ने कहा। “वह कहते रहते हैं कि उसे सज़ा मिलनी चाहिए थी। वास्तव में, आरोपियों के परिवार ने हमें उन्हें जेल से बाहर निकालने के लिए पैसा देने को कहा था और ताना मारा था कि वैसे भी वह तीन साल में बाहर आ जाएगा,” सुमी ने बताया।
सुमी और उनके परिवार को महसूस हुआ कि उन्हें किसी तरह इस संकट से निपटना होगा। उन्होंने वह किया जो उन्हें समझ आया। वह फौदा मुंडा के परिवार के साथ मिलकर फ़ैसले के लिए एक अन्य ओझा के पास गए। “यह पता लगाने के लिए कि मेरी मां डायन थी या नहीं,” गंगी ने बताया।
परिवारों ने 2,200 रुपए में वाहन किराए पर लिए और कुछ अन्य ग्रामीणों को गवाह के तौर पर लेकर एक ओझा के पास गए जिसने 5,000 रुपए मांगे। वहां जाना “कारगर रहा”। ओझा ने फौदा के परिवार को एक निर्दोष की हत्या करने के लिए फटकार लगाई। “वह उन्हें बताता रहा कि उन्होंने ग़लत व्यक्ति को मारा था,” सुमी ने बताया।
मुंडा परिवार को आख़िरकार इससे छुटकारा मिल गया।
(कुणाल स्वतंत्र पत्रकार हैं, वह राजनीति, लैंगिक मुद्दों, विकास और प्रवासियों पर लिखते हैं। वह स्कूल ऑफ़ ओरिएंटल एंड अफ़्रीकन स्टडीज़, लंदन के छात्र रहे हैं।)
यह रिपोर्ट अंग्रेज़ी में तीन मार्च 2020 को IndiaSpend पर प्रकाशित हुई है।
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