खुले में शौच में 26 प्रतिशत की कमी, लेकिन शौचालयों का निर्माण और उनके इस्तेमाल के आंकड़े मेल नहीं खाते !
नई दिल्ली: चार साल पहले की तुलना में 2018 में गांवों में अधिक लोगों के पास शौचालय की सुविधा है, लेकिन फिर भी उनमें से 44 फीसदी खुले में शौच करते हैं। यह जानकारी राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश को कवर करने वाले एक सर्वेक्षण में सामने आई है। सर्वेक्षण की रिपोर्ट 4 जनवरी, 2019 को सामने आई है। इन चार राज्यों में संयुक्त रुप से भारत की ग्रामीण आबादी का दो-पांचवां हिस्सा रहता है और इन राज्यों ने खुले में शौच करने की उच्च दर की सूचना दी है, 2016 में करीब 68 फीसदी, जैसा कि सरकारी रिपोर्ट से पता चलता है।
सर्वेक्षण में शामिल लोगों ने पाया कि लगभग एक चौथाई लोग ( 23 फीसदी ), जो एक शौचालय का स्वामित्व करते हैं, खुले में शौच करते हैं। यह एक ऐसा आंकड़ा है, जो 2014 से अपरिवर्तित है। पेपर के निष्कर्ष के अनुसार, मूलत: शौचालय के गड्ढों को खाली करने से जुड़ी जाति को लेकर दूरियां और इसके साथ उलझी गहरी मान्यताओं को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
रिसर्च इंसट्टूट फॉर कम्पैशनट इकोनोमिक्स ( आरआईसीई ) और नई दिल्ली स्थित वैचारिक संस्था अकाउन्टबिलिटी इनिशटिव द्वारा प्रकाशित पेपर ‘चेंचेज इन ओपन डिफेकेटेशन इन रुरल नार्थ इंडिया: 2014-2018’, वर्ष 2018 में 9,812 से अधिक लोगों और 156 सरकारी अधिकारियों के सर्वेक्षण पर आधारित है। शोधकर्ताओं ने पहली बार अक्टूबर 2014 में, भारत के स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम) के लॉन्च होने से कुछ महीने पहले इन प्रतिभागियों से मिले थे। अगस्त 2018 में, उन्होंने मिशन के प्रभाव को मापने के लिए उनका पुनरीक्षण किया। इसमें राजस्थान के उदयपुर में अकाउन्टबिलिटी इनिशटिव 2017 के सर्वेक्षण के निष्कर्ष भी में जोड़े गए थे।
हमने पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के सचिव और स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के प्रभारी को पत्र के निष्कर्षों के जवाब के लिए ईमेल किया। प्रतिक्रिया मिलने पर हम इस आलेख को अवश्य अपडेट करेंगे।
अध्ययन के अनुसार, 2014 के बाद से, 70 फीसदी लोगों ने शौचालयों का उपयोग नहीं किया है और खुले में शौच में 26 प्रतिशत अंक की कमी आई है। 2014 में शौचालय के बिना लगभग 57 फीसदी घरों ने 2018 तक, एक शौचालय का निर्माण किया। हालांकि, नई संरचनाओं के साथ एक समस्या थी। ज्यादातर एकल गड्ढे के डिजाइन पर आधारित थे, न कि सरकार द्वारा अनुशंसित जुड़वां-गड्ढे। ट्विन-पिट डिजाइन एक गड्ढे में मल कीचड़ के अपघटन की अनुमति देता है, जबकि दूसरे का उपयोग होता रहता है। इससे इसे खाली करने का एक सुरक्षित तरीका मिलता है। एकल गड्ढों को मैन्युअल रूप से या महंगी सक्शन मशीनों के माध्यम से खाली कराने की जरूरत होती है। ‘स्वच्छ भारत अभियान’ काफी हद तक शौचालय निर्माण पर केंद्रित था और इसमें शुद्धता और प्रदूषण को लेकर बहुत कम काम हुआ है, जैसा कि राईस में फेलो और पेन्सिलवेनिया विश्वविद्यालय में पीएचडी के उम्मीदवार और पेपर के प्रमुख लेखक आशीष गुप्ता ने कहते हैं। वह कहते हैं कि, " इसका नतीजा यह है कि जब टॉयलेट कवरेज में वृद्धि हुई, टॉयलेट मालिकों के बीच खुले में शौच में कमी नहीं हुई।" 2018 में, गुजरात और उत्तर प्रदेश में FactChecker.in की जांच में भी झूठे आंकड़ों और ज्यादा संख्या में खुले में शौच के साथ अनुपयोगी और खराब गुणवत्ता वाले शौचालय पाए गए थे।
राजस्थान और मध्य प्रदेश खुले में शौच से मुक्त नहीं!
राजस्थान और मध्य प्रदेश, दो राज्य जिन्होंने खुद को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया था, अभी तक उस लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाए हैं। राजस्थान और मध्य प्रदेश में क्रमशः 53 फीसदी और 25 फीसदी खुले में शौच करने का अनुमान लगाया गया था।
शोधकर्ताओं ने कहा कि उत्तर भारत में किसी भी जिले में खुले में शौच को समाप्त नहीं किया गया। इस पेपर के अनुसार, ऐसा तब है जब खुले में शौच की दर में हर साल लगभग 6 प्रतिशत अंकों की तेजी से गिरावट हो रही है।
गुप्ता कहते हैं, “सरकार अपने दावों का जरुरत से ज्यादा प्रचार रही है और उसे नहीं माप ( खुले में शौच ) रही है, जिसे मापने की जरुरत है।”उत्तर भारत में शौचालय के स्वामित्व में 34 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है, 2014 में 37 फीसदी से 2018 में 71 फीसदी तक। मध्य प्रदेश और राजस्थान में सबसे अधिक अंतर - 47 प्रतिशत अंक था।
खुले में शौच में बदलाव, 2014-18
Source: RICE
हालांकि, सर्वेक्षण में पाया गया कि 40 फीसदी घरों में शौचालय है और 56 फीसदी परिवारों में कम से कम एक सदस्य सदस्य खुले में शौच करते हैं। चार राज्यों में 60 फीसदी पर बिहार और 53 फीसदी पर राजस्थान खुले में शौच की सूची में आगे थे। मध्य प्रदेश में सबसे कम दर– 25 फीसदी थी।
शोधकर्ताओं ने परिणामों का विश्लेषण किया और पाया कि पिछले चार वर्षों में खुले में शौच की दर में कमी व्यवहार परिवर्तन से प्रेरित नहीं थी, बल्कि ई शौचालय के स्वामित्व में वृद्धि की वजह से थी।
यह भी कारण है कि 23 फीसदी शौचालय मालिक, जो खुले में शौच करते थे, 2014 से 2018 तक अपरिवर्तित थे। पेपर में कहा गया है कि, "यह खोज हमारे गुणात्मक साक्षात्कार के अनुरूप है, जिसमें पाया गया कि शौचालयों के उपयोग की बजाय स्थानीय अधिकारियों ने एसबीएम की प्राथमिकता शौचालयों के निर्माण में बताई थी। ”
स्व-निर्मित शौचालय के उपयोग की अधिक संभावना
सर्वेक्षण में शामिल -चार वर्षों के दौरान शौचालय का निर्माण करने वाले 57 फीसदी प्रतिभागियों में से 42 फीसदी को किसी न किसी प्रकार का सरकारी समर्थन मिला। इसके अलावा, इन शौचालयों का औसत 17 फीसदी सरकार या ठेकेदार द्वारा बनाया गया था। ठेकेदार-निर्मित संरचनाओं की संख्या मध्य प्रदेश (33 फीसदी) में सबसे अधिक थी, इसके बाद उत्तर प्रदेश (22 फीसदी) था।
शौचालय स्वामित्व और सरकार से समर्थन, 2018
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Latrine Ownership & Support From Government, 2018 | |||||
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Indicator | All Four States | Bihar | MadhyaPradesh | Rajasthan | UttarPradesh |
All Households | |||||
Owns latrine | 71% | 49% | 90% | 78% | 74% |
Any government support | 39% | 19% | 53% | 46% | 43% |
Government money | 21% | 9% | 24% | 42% | 20% |
Government built | 14% | 9% | 25% | 2% | 16% |
Households That Did Not Own A Latrine In 2014 | |||||
Owns latrine | 57% | 37% | 83% | 65% | 61% |
Any government support | 42% | 18% | 66% | 37% | 55% |
Government money | 20% | 5% | 29% | 33% | 23% |
Government built | 17% | 11% | 33% | 2% | 22% |
Source: RICE; Figures in percentage of households
यहां यह बात महत्वपूर्ण है कि शौचालय का निर्माण किसने किया: ठेकेदार द्वारा निर्मित शौचालय आमतौर पर खराब गुणवत्ता के थे और यह पाया गया कि जिन लोगों ने स्वयं शौचालय बनवाए थे, उनकी दूसरों की तुलना में उनका उपयोग करने की संभावना 10 प्रतिशत अधिक थी।
पेपर ने पाया कि ठेकेदार निर्मित सबसे अधिक शौचालय आदिवासी घरों में थे। शायद इसलिए कि वे सबसे गरीब थे और उनकी ओर से शौचालय निर्माण पर पैसा खर्च करने की संभावना नहीं थी। इसके अलावा, आदिवासी क्षेत्रों में भ्रष्ट ठेकेदारों के लिए धन जमा करना आसान है, जैसा कि पेपर में आरोप लगाया गया था।
मैन्युअल रूप से एकल गड्ढे की सफाई अब भी पसंद
बनाए गए अधिकांश शौचालय ( 40 फीसदी ) एकल गड्ढे वाले थे, जबकि जुड़वां गड्ढों में केवल 25 फीसदी शौचालय देखे गए थे। इसके अलावा, 31 फीसदी शौचालयों में एक नियंत्रण कक्ष था, जिसका मतलब था कि उन्हें एक सक्शन मशीन द्वारा खाली किया जाना था और सभी शौचालय डिजाइनों में सबसे महंगा था।
शौचालय के साथ वाले घरों में गड्ढों के प्रकार
हालांकि, सरकार द्वारा समर्थित शौचालयों में, जुड़वां गड्ढे वाले डिजाइन पसंदीदा थे, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में। वहां 61 फीसदी शौचालय में यह डिजाइन था। इसका एक कारण यह हो सकता है कि लोगों द्वारा जुड़वां गड्ढे का विकल्प चुने जाने पर वे 12,000 रुपये की सरकार द्वारा मिलने वाली सब्सिडी का उपयोग कर सकते थे।
स्थानीय सरकारी अधिकारियों ने शोधकर्ताओं को दिए साक्षात्कार में स्वीकार किया कि ज्यादातर ग्रामीणों ने रोकथाम कक्षों को प्राथमिकता दी और जुड़वां गड्ढों वाले 48 फीसदी शौचालय मालिकों ने कहा कि दोनों गड्ढों का उपयोग एक ही समय में किया गया था, जो स्थाई डिजाइन के विचार से मेल नहीं खाते हैं।
आदिवासियों और दलित परिवार चेतावनी और जुर्माने का ज्यादा
सामना कर सकते हैं!
सभी चार राज्यों में, 56 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि लोगों को एक शौचालय का निर्माण करने के लिए राजी करने में वे बलपूर्वक तरीकों से परिचित थे ( जुर्माना, लाभ से वंचित करने की धमकी, खुले में शौच करने से रोकना )। मध्य प्रदेश और राजस्थान में क्रमशः 47 फीसदी और 42 फीसदी उत्तरदाताओं ने बिना शौचालय वाले लोगों को सरकारी लाभ से वंचित होने के बारे में सुना था। गुप्ता कहते हैं, "जाति को चुनौती देने के बजाय, स्वच्छ भारत मिशन ने इसे मजबूत किया।" उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है क्योंकि कार्यक्रम ने समुदाय में मांग पैदा करने के लिए समुदाय के नेतृत्व वाले कुल स्वच्छता दृष्टिकोण का इस्तेमाल किया, उन्होंने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि भारतीय गांव जाति की रेखाओं के बीच बहुत विभाजित हैं।
एक शौचालय का निर्माण करने के लिए लोगों को मनाने के लिए धमकी, जुर्माना, जबरदस्ती का सामना, 2018
Threat, Fines, Coercion Faced To Persuade People To Construct A Toilet, 2018 | ||||||
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Coercive state action | Faced By | All Four States | Bihar | Madhya Pradesh | Rajasthan | Uttar Pradesh |
Stopped from open-defecation | Own household | 9% | 11% | 11% | 11% | 6% |
Aware of in village | 47% | 40% | 67% | 54% | 42% | |
Benefits threatened | Own household | 5% | 3% | 9% | 13% | 3% |
Aware of in village | 25% | 9% | 47% | 42% | 20% | |
Fine threatened | Own household | 2% | 1% | 6% | 1% | 2% |
Aware of in village | 26% | 14% | 47% | 25% | 28% | |
Any of these three | Own household | 12% | 12% | 17% | 19% | 9% |
Aware of in village | 56% | 47% | 78% | 68% | 50% |
Source: RICE
सभी चार राज्यों में, शौचालयों के साथ वाले घरों में अन्य सामाजिक समूहों की तुलना में बलपूर्वक तरीकों का सामना करने की संभावना दलित परिवारों में दोगुनी और आदिवासी परिवरों में तिगुनी थी।सर्वेक्षण में दिखाया गया कि, भले वे शौचालय के मालिक हो या नहीं, इसके बावजूद उन्हें इन खतरों का सामना करने की अधिक संभावना थी।
दलितों और आदिवासियों में बलपूर्वक तरीकों का सामना करने की संभावना ज्यादा
Source: RICE
इसके अलावा, जिन लोगों को शौचालय का निर्माण करने के लिए मजबूर किया गया था, उनके द्वारा शौचालय के उपयोग की संभावना कम थी।
अधिकांश स्थानीय अधिकारियों ने नहीं सोचा था कि ये उपाय अनुचित या कुछ ‘ज्यादा’ ही थे। शोधकर्ताओं ने कहा कि वे शौचालय निर्माण लक्ष्य को 'अनुचित रूप से कम समय में' लोगों तक तक पहुंचाने में तत्पर थे।
'पवित्रता' के विचार के साथ जुड़ी पाबंदियां अब भी बड़े पैमाने पर
शोधकर्ताओं ने पाया कि मुस्लिम परिवारों की तुलना में हिंदू घरों में खुले में शौच की संभावना अधिक थी। इसके अलावा, छोटे गड्ढों की तुलना में बड़े गड्ढों वाले हिंदू घरों में खुले में शौच करने की संभावना कम थी। ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि छोटे गड्ढों को बार-बार खाली करने की आवश्यकता होती है जो कि 'जातिगत' दूरियों से जुड़े होते हैं।
गड्ढे के आकार और धर्म के अनुसार शौचालय मालिकों के बीच खुले में शौच, 2018
Source: RICE
बड़े गड्ढों को समायोजित करने के लिए, अपने स्वयं के शौचालय का निर्माण करने वाले परिवारों ने औसतन, 34,000 रुपये खर्च किए - 12,000 रुपये की सरकारी सब्सिडी का लगभग तीन गुना। शोधकर्ताओं ने कहा कि यह अंतर बताता है कि क्यों घरों को एक शौचालय बनाने के लिए दबाव बनाना पड़ा।
पेपर में कहा गया है कि, ट्विन-पिट डिजाइन और टिकाऊ और सस्ती मल कीचड़ प्रबंधन के बारे में जागरूकता फैलाने का प्रयास ( अभिनेता अक्षय कुमार की एक लेट्रिन को खाली करने वाला वीडियो अभियान एक उदाहरण है ) पर्याप्त नहीं है। गुप्ता कहते हैं कि, खुले में शौच को खत्म करने के लिए जबरदस्ती की रणनीति खत्म होनी चाहिए, इसकी बजाय सामाजिक दृष्टिकोण को बदलने के लिए प्रयासों के साथ-साथ शौचालय के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए । ”
( यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )
यह आलेख मूलत: अंग्रेजी में 07 जनवरी, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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