“ खेत अपशिष्ट से गर्मी में राहत और प्रदूषण में बचत ”
पंजाब और हरियाणा में खेतों में जो आग लगाई जाती है, उस आग की दिल्ली के वायु प्रदूषण में आधे से ज्यादा का योगदान है। यह जानकारी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक नए अध्ययन में सामने आई है। हार्वर्ड में एक वायुमंडलीय रसायनविद और एक यूएस स्टार्ट-अप, ‘ग्रीन स्क्रीन’ के सह-संस्थापक, डैनियल कुसवर्थ खेत के अपशिष्ट को परिवर्तित करके एक समाधान का सुझाव देते हैं खेत के अपशिष्ट का उपयोग शहरी गरीबों को गर्मी से बचाने के लिए किया जा सकता है।
माउंट आबू, राजस्थान: साल में नवंबर वह महीना है, जब दिल्ली के 16.3 मिलियन निवासियों को पंजाब और हरियाणा में कृषि अपशिष्टों में लगाई गई आग का सबसे बुरा असर पड़ता है। अगली फसल के लिए भूमि को साफ करने के लिए फसल खूंटी या अपशिष्ट को जला दिया जाता है। मार्च 2018 में प्रकाशित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के मुताबिक, ये आग दिल्ली के वायु प्रदूषण के आधे हिस्से का कारण बनती है, न की 20 फीसदी का कारण बनता जैसा कि भारत के पूर्व पर्यावरण मंत्री ने 2017 में दावा किया था (पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एक वैज्ञानिक ने अपशिष्ट में आग से दिल्ली में प्रदूषण का 70 फीसदी तक अनुमान लगाया था)।
अब, हार्वर्ड स्टडीज के सह-लेखकों में से एक डैनियल कुसवर्थ द्वारा स्थापित एक अमेरिकी स्टार्ट-अप, ग्रीन स्क्रीन, खेत के अपशिष्ट को परिवर्तित करके एक समाधान का प्रस्ताव दे रहा है। अपशिष्टों को एक शीतलन पैनल में जलाने से शहर के गरीबों को कठिन मदद मिल सकती है।
ग्रीन स्क्रीन को, जो एक वर्ग मीटर ( एक मानक दरवाजे के आधे आकार का) आकार ) से कम आकार का होगा और उसमें 350 रुपये (5 डॉलर) से अधिक की लागत नहीं आएगी। यह एक नई भौतिक तकनीक के साथ काम करेगी, जिसमें फसल खूंट को मोल्ड करने योग्य पदार्थ में परिवर्तित करने के लिए प्राकृतिक बाध्यकारी एजेंट, जैसे कुछ प्रकार के कवक का उपयोग करना शामिल है।
गर्मियों के महीनों के दौरान भारत के शहरी गरीब सबसे कठिन जिंदगी जीते हैं। और गर्मी के लगातार बढ़ते रहने की आशंका है,, खासतौर से गंगा के मैदानी इलाकों में, संभावित रूप से 2070 के दशक तक आठ महीने तक गर्मी का मौसम रहेगा, ऐसी बात वैज्ञानिक बता रहे हैं। यदि वैश्विक तापमान को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए ग्रीनहाउस-गैस उत्सर्जन में कटौती नहीं की जाती है, तो गर्मी को सहन करना लगातार कठिन होता जाएगा,जैसा कि इंडियास्पेंड ने भी जनवरी 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार दिल्ली की आबादी का दसवां हिस्सा झुग्गी में रहता है। हालांकि, 2012 में, राजधानी के नागरिक निकाय ने अनुमान लगाया था कि लगभग आधे लोग झुग्गी और नागरिक सुविधाओं से रहित अनधिकृत कॉलोनियों में रहते हैं।
वायु प्रदुषण गरीबों और अमीरों को समान रूप से प्रभावित करता है। आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 में गैर-संक्रमणीय बीमारियों के कारण हर चार मौतों में से एक (24.4 फीसदी) के लिए जिम्मेदार है। पिछले नवंबर में, उत्तरी कृषि राज्यों से दिल्ली आने वाला तीव्र धुएं से गंभीर श्वास, अस्थमा और एलर्जी के मामलों में वृद्धि हुई थी (2017 की रिपोर्ट यहां और 2016 से यहां देखें )। पुरानी अवरोधक फुफ्फुसीय बीमारी, कैंसर और मधुमेह जैसी गैर-संक्रमणीय बीमारियों की बढ़ती घटना के लिए भी प्रदूषण की जिम्मेदारी है (लंसेट में प्रकाशित इस 2017 के वैश्विक अध्ययन को देखें)।
ग्रीन स्क्रीन गर्मी से कुछ राहत प्रदान कर सकता है और वायु प्रदूषण को कम करने में मदद करता है। हार्वर्ड स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग एंड एप्लाइड साइंसेज में वायुमंडलीय रसायनविद, कुसवर्थ कहते हैं, दिल्ली की वायु प्रदूषण की समस्या की ‘भयावहता’ ने उन्हें और उनके सह-संस्थापक ( हार्वर्ड चैन पब्लिक हेल्थ स्कूल के ग्लोबल हेल्थ प्रैक्टिशनर एलेक्स रॉबिन्सन और राम्या पिन्नामाननी तथा हार्वर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ डिज़ाइन में एक शहरी योजनाकार गीना सिएनकोन ) को सीधे इसमें शमिल होने के लिए प्रेरित किया।
डेटा वैज्ञानिक और गणितज्ञ कुसवर्थ बताते हैं, "हम सभी मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के परस्पर रिश्ते में रुचि रखते हैं, मुझे जलवायु परिवर्तन और जलवायु नीति में भी दिलचस्पी है।कृषि अपशिष्ट जलने का मुद्दा विशेष रूप से दिलचस्प और जटिल है। यह वायु प्रदूषण, कृषि दक्षता और विनियमन के बीच फंसा है।"
हालांकि कुसवर्थ कभी भारत नहीं आए हैं और न ही दिल्ली के प्रदूषण का अनुभव किया है। वह कहते हैं, "मैं अपनी पहली यात्रा के लिए तैयार हूं।" उनसे बातीत का एक अंश-
“जर्नल एन्वायर्नमेंटल रिसर्च लेटर के 2018 अंक में प्रकाशित आपके अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला है कि सर्दी की ओर बढ़ते मौसम में दिल्ले में होने वाले वायु प्रदूषण में करीब आधी हिस्सेदारी कृषि अपशिष्ट आग की है। चूंकि यह शोध ग्रीन स्क्रीन के लिए आपका शुरुआती बिंदु है, क्या आप हमें बता सकते हैं कि आप इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंचे? क्या इस कारण अन्य उत्तरी शहरों में भी वायु प्रदूषण होता है?
हमने अनुमान लगाया है कि अक्टूबर-नवंबर के दौरान दिल्ली में कण प्रदूषण का लगभग आधा कृषि अपशिष्ट आग के कारण था। हम दो विश्लेषण के माध्यम से इस निष्कर्ष पर पहुंचे। पहले विश्लेषण में, हमने 2012-2016 से उपलब्ध सभी कणों (पीएम 2.5) अवलोकनों को एकत्रित किया, जिसमें केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, दिल्ली में संयुक्त राज्य दूतावास और आपका (इंडियास्पेंड) के अपना नेटवर्क शामिल था। [ यहां बता दें कि दिसंबर 2015 में, इंडियास्पेंड ने 2.5 माइक्रोन से छोटे कणों की घनत्व के आधार पर दिल्ली समेत कई भारतीय शहरों में वायु गुणवत्ता को मापने के लिए कम लागत वाले सेंसर का नेटवर्क लॉन्च किया, जिसे वैज्ञानिक रूप से पीएम 2.5 कहा जाता है।)
हमने दिल्ली में प्रदूषण की सामान्य स्थिति की पृष्ठभूमि का आकलन करने के लिए आग से पहले और बाद में दिल्ली में पीएम 2.5 सांद्रता का विश्लेषण किया। आग की घटनाओं की तुलना में, पहले और बाद में पीएम 2.5 की सांद्रता लगभग 50 फीसदी कम थी।
दूसरे विश्लेषण में, हमने दिल्ली के उपरोक्त क्षेत्रों के पीएम 2.5 उत्सर्जन अनुमानों को प्राप्त करने के लिए अग्नि हॉटस्पॉट की उपग्रह छवियों का उपयोग किया। शहरी केंद्र की तरफ इस प्रदूषण के प्रवाह को अनुकरण करने के लिए हमने इन उत्सर्जन को तरल गतिशीलता मॉडल के साथ जोड़ा। इस मॉडल वाले पीएम 2.5 की सांद्रता सबसे ज्यादा जलने वाली घटनाओं के दौरान देखे गए। फिर, हमने पाया कि इन घटनाओं के दौरान लगभग आधे प्रदूषण के लिए आग जिम्मेदार है।
जैसा कि आपने कहा था, यह शोध ग्रीन स्क्रीन के लिए ट्रिगर था। दिल्ली वायु प्रदूषण पर कृषि अपशिष्ट आग के उत्सर्जन के प्रभाव को कम करने के लिए कृषि पद्धतियों में बदलावों से संभावित स्वास्थ्य लाभ भी दिखे। और हां, कृषि अपशिष्ट आग से उत्सर्जित धुआं की बड़ी मात्रा से भारत के गंगा के मैदानी इलाके के अन्य हिस्सों में वायु प्रदूषण में भी योगदान देता है।
अपने शोध से कृषि अनुसंधान के बने पोर्टेबल, हल्के वजन वाले स्क्रीन, ‘ग्रीन स्क्रीन’ की अवधारणा तक आप कैसे गए ? ग्रीन स्क्रीन की संकल्पना किसने की? क्या आप स्क्रीन के डिजाइन का वर्णन कर सकते हैं? स्क्रीन के उत्पादन में आप कितना कृषि अपशिष्ट का उपयोग करेंगे?
हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एक कोर्स के दौरान ‘ग्रीन स्क्रीन’ का विकास हुआ। इसका उद्देश्य भारत जैसे विकासशील देशों के सामने आने वाली अचूक समस्याओं के व्यवहार्य समाधान तैयार करना था। हार्वर्ड चैन पब्लिक हेल्थ स्कूल के ग्लोबल हेल्थ प्रैक्टिशनर्स एलेक्स रॉबिन्सन और राम्या पिन्नामाननी साथ थे। मैं था। साथ ही, हावार्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ डिजाइन में एक शहरी योजनाकार गीना सिआयनकोन ने ‘ग्रीन स्क्रीन’ के विकास के योगदान दिया, जो वायु प्रदूषण और चरम गर्मी की अंतःस्थापित समस्याओं को हल कर सकता है।
ग्रीन स्क्रीन शून्य-बिजली उपभोग करने वाला, एयर कूलिंग पैनल है। इसका आकार लगभग 36 "x 36" x 4 "है , लेकिन आकार को आवासीय समुदायों की आवश्यकताओं के आधार पर समायोजित किया जा सकता है। यह पूरी तरह से कृषि अपशिष्ट से बना है, जिसे किसानों द्वारा जला दिया जाता है और प्रदूषण में योगदान देता है। हमारा समाधान एक साथ अतिरिक्त कृषि अपशिष्ट के लिए वैकल्पिक उपयोग को प्रोत्साहित करता है । यह अपशिष्ट गर्मी से राहत दिलाने का भी काम करता है।
हम अपशिष्ट से बायो-लुगदी का उत्पादन करेंगे, और इसे स्क्रीन के ‘कॉनिअल -कूलिंग ज्योमेट्री’ में ढालेंगे। स्क्रीन दो प्रक्रियाओं के माध्यम से ठंडा हो जाएगा-वायु प्रवाह और वाष्पीकरण। यदि पैनल को पानी नहीं दिया जाता है, तो यह शंकु ज्योमेट्री के माध्यम से हवा के प्रवाह के माध्यम से ठंडा हो जाएगा। जैव-लुगदी के साथ पानी मिलेगा। फिर वाष्पीकरण के माध्यम से आगे ठंडा होगा।
Concept drawings of Green Screen.
‘ग्रीन स्क्रीन’ को गर्मियों के भयानक महीनों के लिए खास तौर पर डिजाइन किया गया है। चूंकि ग्रीन स्क्रीन एक हिंग सिस्टम के माध्यम से स्थापित है, इसलिए इसमें लोगों के लिए प्रायवेसी और सिक्यूरिटी के भी फीचर्स हैं।
हालांकि, ये प्रारंभिक दिन हैं, लेकिन हम छत पैनलिंग के लिए ग्रीन स्क्रीन को अनुकूलित करने के लिए संभावित डिजाइन संशोधनों पर विचार कर रहे हैं। हमें पैनलिंग के आकार को समायोजित करने और संरचना के बड़े हिस्सों को बदलने की क्षमता निर्धारित करने के लिए लोड-बेयरिंग और टिकाऊ बनाने के लिए इसका परीक्षण करना होगा।
हालांकि ग्रीन स्क्रीन के प्रभाव को अनुकूलित करने के लिए आवश्यक कृषि अपशिष्ट की सटीक मात्रा अभी भी निर्धारित की जा रही है। शुरुआती अनुमानों के तौर पर एक टन बायो-लुगदी से 100 स्क्रीन तैयार करना है, जो एक टन कार्बन डाइऑक्साइड को हवा में प्रवेश करने से रोक देगा। प्रदूषण कम करने को समझने के लिए यह आंकड़ा काफी है कि एक यात्री वाहन प्रति वर्ष 4.6 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करता है।
आगे क्या होगा? क्या आपके पास भारत में लॉन्च करने के लिए उत्पाद तैयार है?
इसकी ज्योमेट्री को जांचने के लिए हमने संयुक्त राज्य अमेरिका से सोर्स मैटेरियल लिए हैं। जाहिर है, हम एक अनुकूलित उत्पाद विकसित करना चाहते हैं, इसमें सही कॉनिकल आकार शामिल है।
इसके बाद, हमारे सहयोगी, दो गैर लाभकारी संगठन, दिल्ली स्थित चिंतन और ब्रिटेन स्थित WIEGO, हमारे साथ (मुफ्त में) इसे स्थापित करने के लिए काम करेंगे और नए स्तर पर विशिष्ट दिल्ली की झुग्गियों के भीतर घरेलू स्तर पर इन स्क्रीनों के प्रभाव का परीक्षण करेंगे। यह हमें उत्पाद उपयुक्तता, व्यवहार्यता और उपयोगिता को बेहतर ढंग से निर्धारित करने में सक्षम करेगा। यह 2019 में उत्पाद के पायलट चरण के दौरान होगा। वर्तमान में हम अपने भागीदारों के साथ एक शुरुआती रणनीति विकसित कर रहे हैं।
हालांकि हम सभी प्रोटोटाइपिंग और पायलटिंग प्रयासों में बेहतर समन्वयन के लिए घरेलू टीम को शामिल करने की योजना बना रहे हैं। हमारा लक्ष्य आउटसोर्सिंग को कम करके, जितना संभव हो सके दिल्ली के नजदीक स्क्रीन का निर्माण और उत्पादन करना है।
जाहिर है इससे ग्रीन स्क्रीन सस्ती होगी। हम एक किफायती उत्पाद तैयार करना चाहते हैं। हमारा लक्ष्य एक पारंपरिक एयर कंडीशनर की लागत के 1 फीसदी से कम पर ग्रीन स्क्रीन उत्पादों को बेचना है, प्रति स्क्रीन 350 रुपये (5 डॉलर) से अधिक नहीं।
मैं इसे उत्पाद कहता हूं, क्योंकि हमारी योजना भविष्य में ग्रीन स्क्रीन उत्पादन को बढ़ाने और विविधता लाने की है। हम दिन के मजदूरों और छोटे इमारतों के लिए वेंटिलेटेड पोर्टेबल टेंट बनाना चाहते हैं।
उत्पादन के लिए कृषि अपशिष्ट को खरीदने के लिए आपको किन खेतों को लक्षित करना चाहिए। क्या ये खेत पंजाब के किसी भी विशेष क्षेत्र या दिल्ली के निकट होंगे?
हम इस साल के अंत में पर्क्रिया के अगले चरण के लिए नई दिल्ली के बाहर खेतों से कृषि अपशिष्ट की सोर्सिंग करेंगे। हम ‘चिंतन’ के साथ कृषि खेतों के स्थान का निर्धारण करने के लिए काम कर रहे हैं । अभी इस काम को अंतिम रूप दिया नहीं गया है।
हमारी यह एक सतत परियोजना है । हम बताएंगे कि खेतों में कैसे सबसे बड़ा संभावित वायु गुणवत्ता लाभ है, और फिर उस जानकारी का उपयोग किसानों को भागीदारी बनाने के लिए किया जा सकता है। हम अभी तक विशिष्ट खेतों के बारे में टिप्पणी नहीं कर सकते हैं, लेकिन मेरे हालिया पेपर से एक आंकड़ा है जिससे आप दिल्ली में 2012-2016 तक के प्रदूषण की संवेदनशीलता और अग्नि उत्सर्जन के रिश्ते को समझ सकते हैं। इस तरह के मानचित्र से, आप यह समझ सकते हैं कि कौन से क्षेत्र (काला रंग) दिल्ली में प्रदूषण को प्रभावित करेंगे।
आग उत्सर्जन को रोकने के लिए दिल्ली में प्रदूषण की संवेदनशीलता
क्या आप किसी भी चुनौती का अनुमान लगाते हैं? क्या आप सरकारी सहायता चाहते हैं?
चुनौतियां हमेशा विकास प्रक्रिया का हिस्सा होती हैं, हमें विश्वास है कि ग्रीन स्क्रीन टीम का कौशल और सेट की विविधता, इन चुनौतियों को अप्रत्याशित अवसरों में परिवर्तित कर देगी । हम आखिरकार बेहतर उत्पाद की ओर जाएंगे। हम दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति, पर्यावरण विभाग और प्रासंगिक नगर पालिका अधिकारियों के साथ निकटता से सहयोग करने की उम्मीद करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हमारा लक्ष्य शहर में व्यापक रूप से चल रहे ‘हरित’ प्रयासों के अनुरूप है।
(बहरी एक स्वतंत्र लेखक और संपादक हैं।माउंट आबू में रहती हैं।)
यह साक्षात्कार मूलत: अंग्रेजी में 2 सितंबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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