गरीबों के लिए बताए गए बजट में गरीबों के हित से जुड़े कार्यक्रमों की अनदेखी
बजट भाषण का मतलब संदेश देना है। हालांकि हम सभी ने सामाजिक क्षेत्र के लिए बजट का अंदाजा लगाया होगा, लेकिन हममें से ज्यादातर लोगों ने इसे गलत समझा है।
इस वर्ष के बजट भाषण में स्वच्छता या आवास की सरकार की प्रमुख योजनाओं में निवेश पर ध्यान केंद्रित नहीं किया गया है। कौशल और रोजगार सृजन पर थोड़ा ही ध्यान केंद्रित किया गया है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, " बजट में कृषि और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, आर्थिक रूप से कम विशेषाधिकार प्राप्त के लिए अच्छे स्वास्थ्य देखभाल का प्रावधान, वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल, बुनियादी ढांचा सृजन और देश में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार पर ध्यान दिया गया है। "हालांकि, सामाजिक क्षेत्र के कार्यक्रमों की संख्या पर एक नजर यह बताती है कि संदेश और संख्याएं जुड़ती नहीं है।
ग्रामीण विकास के लिए कम पैसा
बजट भाषण में प्रधान मंत्री आवास योजना और स्वच्छ भारत मिशन जैसे प्रमुख योजनाओं के लिए आवंटन का कोई जिक्र नहीं है। केवल निर्धारित या हासिल किए गए लक्ष्य दोहराए गए हैं।
वास्तव में, दोनों योजनाओं के ग्रामीण हिस्सों के लिए आवंटन में पिछले वर्ष के संशोधित अनुमानों की तुलना में 9 फीसदी की गिरावट आई है।
ग्रामीण स्वच्छता और आवास के लिए आवंटन में गिरावट
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Decline In Allocations For Rural Sanitation & Housing | ||||
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Scheme | 2017-18 Budget Estimates | 2017-18 Revised Estimates | 2018-19 Budget Estimates | % Change between 2017-18 RE and 2018-19 BE |
Swachh Bharat Mission-Gramin | 13,948 | 16,948 | 15,343 | -9% |
Swachh Bharat Mission-Urban | 2,300 | 2,300 | 2,500 | 9% |
Pradhan Mantri Awas Yojana- Gramin | 23,000 | 23,000 | 21,000 | -9% |
Pradhan Mantri Awas Yojana - Urban | 6,043 | 6,043 | 6,505 | 8% |
Source: Union Budget; Figures in Rs crore
ग्रामीण रोजगार सृजन पर सरकार की रणनीति भी स्पष्ट नहीं है। ग्रामीण विकास मंत्रालय की सबसे बड़ी योजना ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना’ (मनरेगा) पर सबसे ज्यादा आवंटन था लेकिन बजट भाषण में इसका कोई जिक्र नहीं हुआ है।
हालांकि, बजट अनुमानों की तुलना में, आवंटन में 15 फीसदी की वृद्धि से 48,000 करोड़ रुपए से लेकर 55,000 करोड़ रुपए तक बढ़ा है। लेकिन यह 2017-18 के संशोधित अनुमान के बराबर है। लंबित भुगतानों में वृद्धि और मुआवजे में बढ़ोतरी के कारण, यह वृद्धि अभी भी पर्याप्त नहीं है और मनरेगा पर सरकार का रुख स्पष्ट नहीं है।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के लिए आवंटन
Allocations For Mahatma Gandhi National Rural Employment Guarantee Scheme | ||||||
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Year | 2016-17 Actuals | 2017-18 BE | 2017-18 RE | 2018-19 BE | % increase between 2017-18 RE and 2018-19 BE | % increase between 2017-18 BE and 2018-19 BE |
Allocation | 48,214.95 | 48,000 | 55,000 | 55,000 | 0% | 15% |
Source: Union Budget; Figures in Rs crore
शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए तकनीक, लेकिन स्कूलों में बिजली तक नहीं
जेटली ने अपने भाषण में कहा है कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार डिजिटल प्रौद्योगिकी और बुनियादी ढांचे के माध्यम से होगा। वित्त मंत्री ने कहा, "शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने में प्रौद्योगिकी सबसे बड़ी संचालक होगी।हम शिक्षा में डिजिटल तीव्रता को बढ़ाने और '' ब्लैकबोर्ड '' से धीरे-धीरे '' डिजिटल बोर्ड '' की ओर बढ़ने का प्रस्ताव करते हैं।
अब, तथ्य ये हैं: शिक्षा के लिए जिला सूचना प्रणाली (डीआईएसई) के 2015 आंकड़ों के मुताबिक सभी प्राथमिक विद्यालयों में से केवल 57 फीसदी में बिजली तक पहुंच थी और केवल 26 फीसदी में कंप्यूटर थे। यह इस तथ्य के बावजूद है कि कंप्यूटर सहायता प्राप्त शिक्षण के लिए ‘सर्व शिक्षा अभियान’ (एसएसए) के तहत प्रति जिला 50 लाख रुपए आवंटित किया गया है।
जिन्होंने भी कभी एक दूरस्थ विद्यालय का दौरा किया है, उन्हें पता होगा, जहां विद्यालय भवन में नहीं चलते,वहां डिजिटल ब्लैकबोर्ड बहुत दूर की बात है।
माध्यमिक विद्यालयों की स्थिति भी कुछ बेहतर नहीं है। माध्यमिक शिक्षा प्रबंधन सूचना प्रणाली (एसईएमआईएस) के आंकड़ों के अनुसार, 2015-16 में, केवल 40 फीसदी माध्यमिक विद्यालयों में कंप्यूटर और इंटरनेट और 31 फीसदी में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) प्रयोगशालाएं थी।
जबकि विद्यालय की बुनियादी ढांचा कमजोर बना हुआ है, लेकिन यह सकारात्मक है। जुलाई 2017 तक आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 248,209 शिक्षकों ने अब तक शिक्षक प्रशिक्षण में दाखिला लिया। शिक्षकों के लिए एकीकृत बीएड कार्यक्रम की शुरुआत करने और शिक्षक प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करने का सरकार का कदम स्वागत योग्य है ।
मातृ एवं बाल स्वास्थ्य और पोषण के लिए सीमित प्रावधान
बजट डेटा के मुताबिक राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के भीतर प्रजनन और बाल स्वास्थ्य के लिए आवंटन 30 फीसदी कम कर दिया गया है। 2017 में, सरकार ने मातृ एवं बाल स्वास्थ्य पर भारत के प्रदर्शन में सुधार के लिए कई नीतियों और रणनीतियों की घोषणा की थी।
मई 2017 में, मातृत्व लाभ कार्यक्रम, जिसका अब नाम बदलकर प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना किया गया है, उसे पूरे देश में विस्तारित किया गया था। यह योजना पहले बच्चे की डिलीवरी के लिए माताओं को 5000 रुपए नकद प्रोत्साहन के माध्यम से मजदूरी हानि के लिए मुआवजा प्रदान करता है। लगभग 60 अर्थशास्त्री ने दिसंबर 2017 में वित्त मंत्री को पत्र लिखा था, जिसमें बताया गया था कि इस योजना के लिए आवंटित 2,700 करोड़ रूपए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), 2013 के अंतर्गत की आवश्यकता का एक तिहाई है। इस योजना के तहत सभी गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को कम से कम 6,000 रूपए मिलती है।
वास्तव में, इस वर्ष के आवंटन में 7 फीसदी की गिरावट आई है।
‘इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेज’ (आईसीडीएस) की उपेक्षा भी आश्चर्य की बात है। विशेषकर, सितंबर 2017 में, सरकार ने आईसीडीएस के तहत अनुपूरक पोषण कार्यक्रम (एसएनपी) के लिए यूनिट की लागत में वृद्धि की घोषणा की है जिसके लिए उच्च संसाधनों की आवश्यकता होगी। हालांकि, आईसीडीएस के लिए आवंटन, केवल 16,245 करोड़ रुपए से 16,335 करोड़ रुपए में मामूली 7 फीसदी की वृद्धि दिखाते हैं।
स्वीकृत बजट की तुलना में कई राज्यों में एसएनपी पर खर्च पहले से ही ज्यादा है। यह स्पष्ट नहीं है कि इन अतिरिक्त इकाई लागतों को वित्तपोषित कैसे किया जाएगा।
स्वास्थ्य बीमा में स्पष्टता की जरूरत
राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना (एनएचपीएस), जिसे दुनिया के सबसे बड़े सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य सेवा कार्यक्रम के रूप में उद्धृत किया गया है, उसे बढ़ावा मिला है।
2008 में सरकार द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत 30,000 रुपये प्रति परिवार की कवरेज की वार्षिक कवरेज से, यह योजना अब प्रति परिवार 500,000 रुपए तक की कवरेज के साथ 100 मिलियन गरीब और कमजोर परिवारों को कवर करेगी।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना / राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना के लिए आवंटन
Allocations For Rashtriya Swasthya Bima Yojana/National Health Protection Scheme | ||||||
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Year | Actual 2016-2017 | Budget 2017-2018 | Revised 2017-2018 | Budget 2018-2019 | % change between RE 2017-18 and BE 2018-19 | % change between BE 2017-18 and BE 2018-19 |
Allocation | 465.6 | 1000 | 470.52 | 2000 | 325% | 100% |
Source: India Budget; Figures in Rs crore
अधिक से अधिक रोगियों के साथ भी, गरीब राज्यों में भी, निजी सुविधाओं के लिए विकल्प चुनना, एक मजबूत स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज सुनिश्चित करने के लिए एकमात्र व्यवस्था हो सकती है।
आरएसबीवाई के प्रदर्शन पर पिछले अनुभव से पता चलता है कि बढ़ा हुआ आवंटन ही पर्याप्त नहीं होगा। आरएसबीवाई जेब खर्च व्यय (ओओपीई) को कम नहीं कर पा रहा है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 17 अक्टूबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।
आरएसबीवाई के तहत केवल 11 फीसदी घरों का नामांकन किया गया था, और इनमें से लगभग आधे गरीब नहीं थे, जैसा कि सौमित्र घोष और नबाणीता दत्ता गुप्ता द्वारा 18 राज्यों के 37,343 घरों को कवर करते हुए हालिया एक अध्ययन में बताया गया है।
इस प्रकार, यदि योजना का स्वास्थ्य कवरेज मे सुधार करने से प्रभाव देखना है तो सावधानीपूर्वक लक्ष्यीकरण सुनिश्चित करने, जागरूकता और विनियमन बढ़ाने पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी।
परिवार जो समान्य तौर पर सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं का इस्तेमाल नहीं करते हैं।
Source: National Family Health Survey, 2015-16 (NFHS-4); Figures in percentage
ये वृद्धि बुनियादी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल की लागत पर आई हुई प्रतीत होती हैं।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति (एनएचपी) 2017 में व्यापक देखभाल प्रदान करके स्वास्थ्य देखभाल को लोगों के करीब लाने का विचार ( मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सहित ) है, हालांकि भाषण में उल्लेख होने से संबंधित आवंटन नहीं दिखा है ।
वास्तव में, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के लिए आवंटन में 2 फीसदी की कमी आई है, जैसा कि FactChecker ने 1 फरवरी, 2018 को रिपोर्ट किया है। एनएचएम के भीतर राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के लिए आवंटन में भी 5 फीसदी की गिरावट आई है।
अगर भारत की स्वास्थ्य नीति का उद्देश्य लोगों के खर्च से कम करना है तो निवारक स्वास्थ्य देखभाल पर ध्यान केंद्रित करना, रेफरल को मजबूत करना और एक मजबूत प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली आवश्यक है।
(कपूर ‘सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च एंड डायरेक्टर ऑफ द अकाउनबिलिटी इनिशीअटिव’ में फेलो हैं। आलेख में इनपुट रितिक शुक्ला का है। शुक्ला रिसर्च एसोसिएट हैं और ‘अकाउनबिलिटी इनिशीअटिव’ से जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 02 फरवरी 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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