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श्रम विभाग और नई दिल्ली की एक स्वयं सेवी संगठन के संयुक्त अभियान के दौरान छुड़ाया गया एक बाल मजदूर। भारत में दुनिया का सबसे बेहतर, यहां तक कि युरोप से भी बेहतर गुलाम विरोधी कानून है, लेकिन किसी भी अन्य देश की तुलना में यहां आधुनिक गुलामी में रहने वाले लोगों की संख्या भी अधिक है।

2016 वैश्विक गुलामी सूचकांक के मुताबिक दुनिया भर में करीब 4.6 करोड़ लोग गुलामी की परिस्थिति में रहते हैं। इनमें से 1.8 करोड़ यानी 39 फीसदी भारत में हैं। इसका मतलब हुआ कि भारत में गुलामी की परिस्थिति में रहने वाले लोगों की संख्या सबसे ज्यादा है।

यह 1.8 करोड़ भारतीयों ने ( स्वीडन की आबादी से दोगुनी संख्या ) अपनी स्वतंत्रता अन्य तरीकों के साथ घरेलू श्रम और यौन दासता के माध्यम से खोई है।

विश्व स्तर पर आधुनिक गुलामी में अफ्रीकी खानों में बाल श्रमिकों, अमेजॉन के वनों की कटाई वाले कर्मचारियों या यूरोप में वाणिज्यिक यौन शोषण में फंसे लोगों को शामिल किया गया है।

ब्रिटेन के नॉटिंघम विश्वविद्यालय में समकालीन दासता के प्रोफेसर केविन बाल्स के अनुसार, अर्थव्यवस्था की तरह, गुलामी भी एक वैश्विक घटना बन गई है, जो 150 बिलियन डॉलर का उद्योग है। प्रोफेसर बाल्स अमरिका में एक गैर लाभकारी संस्था ‘फ्री द स्लेवस’ के सह-संस्थापक भी हैं।

बर्लिन में हुए 2016 के फॉलिंग वाल्स सम्मेलन के दौरान इंडियास्पेंड को दिए गए साक्षात्कार में प्रोफेसर बाल्स ने बताया कि गुलामी से एक भारतीय को मुक्त करने के लिए 13,000 रुपए से अधिक की लागत नहीं है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत में दुनिया में सबसे अच्छा गुलामी विरोधी कानून हैं और साथ ही उन्होंने बताया कि किस प्रकार हम गुलामी से लड़ सकते हैं।

1. आप गुलामी को कैसे परिभाषित करते हैं? जबरिया या मजबूर मजदूर और गुलामी के बीच अंतर क्या है?

'मजबूर श्रम' शब्द 1920 के दशक में गढ़ा गया था, क्योंकि औपनिवेशिक शक्तियां गुलाम शब्द का उपयोग नहीं करना चाहतीं थीं। यदि एक व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा नियंत्रित किया जाता है और अन्य व्यक्ति द्वारा हिंसा या बलात्कार का इस्तेमाल किया जा रहा है और यदि यह नियंत्रण श्रम या यौन या दूसरों के लिए शोषण के लिए है, तो यह गुलामी की स्थिति है। यह अतीत की गुलामी से भी अलग नहीं है। अतीत की गुलामी कभी-कभी कानूनी होती रही है लेकिन लिखित कानून के अस्तित्व में आने से पहले भी गुलामी अस्तित्व में थी।

गुलामी को पूर्व में एक कानूनी अधिकार भी था। इसका मौलिक मानदंड यह था कि अगर व्यक्ति पूर्ण नियंत्रण में है और इसका उद्देश्य शोषण है, तो यह प्राचीन रोम और आज पर लागू होगा। मैं 'आधुनिक गुलामी' शब्द का प्रयोग करता हूं क्योंकि लोगों को इससे यह जानने में सहायता मिलेगी कि मैं इतिहास की बात नहीं कर रहा हूं।

2. आप भारत के बारे में हमें क्या बता सकते हैं, वैश्विक गुलामी सूचकांक दर्शाता है कि भारत उन पांच देशों में से हैं जहां गुलामों की संख्या सबसे ज्यादा है?

यह एक ऐसा देश है जहां गुलामों की संख्या सबसे ज्यादा है। हमने भारत में राज्यवार आकस्मिक नमूना सर्वेक्षण किया। भारत में गुलामों का आनुपातिक हिस्सा सर्वोच्च नहीं है।

मॉरिटानिया और हैती में, गुलामों का अनुपात बहुत अधिक है। भारत में 130 करोड़ की आबादी में से 1.8 करोड़ गुलाम हैं। भारत पर ध्यान केंद्रित करने का एक कारण यह है कि हम देश में ऐसे सर्वे कर सकते हैं, जो चीन में नहीं कर सकते। हालांकि चीन में हम अब भी कोशिश कर रहे हैं। हकीकत यह है कि में भारत में अच्छे विरोधी गुलामी विरोधी कानून सख्त हैं। सवाल इसे ठीक से लागू करने का है।

दरअसल, भारत के कानून यूरोपीय कानूनों से भी बेहतर हैं। जमीनी स्तर पर, भारत में, हमारे पास कुछ बेहद अनुभवी गुलाम विरोधी वर्ग हैं, जो कई तरह की गुलामी से लगातार लड़ रहे हैं। मैं पिछले 20 वर्षों में उनमें से कुछ के साथ काम कर रहा हूं।

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दरअसल, भारत के कानून यूरोपीय कानूनों से भी बेहतर हैं। जमीनी स्तर पर, भारत में, हमारे पास कुछ बेहद अनुभवी गुलाम विरोधी वर्ग हैं, जो कई तरह की गुलामी से लगातार लड़ रहे हैं। मैं पिछले 20 वर्षों में उनमें से कुछ के साथ काम कर रहा हूं।

3. क्या आप हमें उनके काम के बारे में बता सकते हैं?

उत्तर प्रदेश में ऐसे समूह हैं जो गुलामी के वंशानुगत रूपों पर काम कर रहे हैं । वहां ऐसे परिवार हैं, जो मूल रूप से गुलामी में हैं। वे नहीं जानते कि वे कितनी पीढ़ियों से गुलामी में हैं, क्योंकि उन्होंने अपने दादा-परदादाओं को वहीं काम करते देखा है।

अब उस जगह में समुदाय-संगठित मॉडल का उपयोग किया जा सकता है, जिससे कम जोखिम के साथ गांव में गुलामी के मानदंडों को तोड़ जा सकेगा। जब हमने यह सब 20 साल पहले शुरू किया था तो हमें यह सीखना पड़ा कि जोखिम को कैसे कम करना है, जिससे गांव आसानी से गुलामी से बाहर आकर स्वतंत्र हो जाए। लेकिन इसका विरोध करने वाले और गुलामों को बचाने में जुटे लोगों को आपस में उलझने से स्थिति बिगड़ भी तो सकती है। चोट आ सकती है, मौत हो सकती है।

मामला गंभीर हो सकता है।कई मायनों में यह आज पत्रकारों द्वारा लिखी जा रही किसी अच्छी रिपोर्ट की तरह नहीं है । आज दुनिया भर में कई लोग दूसरों को गुलामी से बाहर निकालने के लिए अपने जीवन को खतरे में डाल रहे हैं और उनके नामों को भी कोई भी नहीं जानता है। उनमें से ज्यादातर को एक महीने में 100 डॉलर (6,518 रुपए) का भुगतान किया जाता है। लेकिन वे लड़ रहे हैं गुलामी के विरोध में। उन्हें गोली मारी जाती है, लेकिन वे उठते हैं और फिर अपना काम शुरु करते हैं।

4. क्या कृषि में गिरावट भारत में गुलामी के लिए एक कारण है?

दिलचस्प बात यह है कि लोग बहुत सारी चीजें व्यापार के लिए करते हैं । न सिर्फ भारत में, बल्कि पूरे विश्व में। और यह काम वे गुलामों के साथ करते हैं और अगर उनके पास गुलाम नहीं हैं तो वे काम नहीं करते हैं। उदाहरण के लिए, रेत बनाना। सिलिकॉन के बड़े ब्लॉक होते हैं और आपके पास ऐसे लोग होते हैं जो इसे तोड़ कर रेत बनाते हैं। और यह हास्यास्पद लगता है क्योंकि रेत सर्वव्यापी है। और यदि आप श्रमिकों का भुगतान नहीं करते हैं तो यह केवल वित्तीय लाभ से जुड़ा मामला लगता है।

यदि आप गुलामी के चक्र को तोड़ते हैं तो हाथों से रेत बनाना समाप्त हो जाता है। ईंट बनाना भी ऐसा ही काम है। पंजाब से लेकर उत्तर प्रदेश में मिट्टी से ईंट बनाई जाती है। आप कम लागत में ईंट बनाने वाली चीनी मशीन खरीद सकते हैं। लेकिन उन्हें मशीनों के लिए भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उनके पास गुलाम उनके बच्चे और परिवार हैं। जैसे ही आप इस गुलामी को तोड़ देते हैं, या तो उन्हें यह काम बंद करना पड़ेगा या फिर उन्हें उन मशीनों को खरीदना पड़ेगा। उज़्बेकिस्तान और कपास के संबंध में विवाद को जानते होंगे। उसे मजबूर श्रम के रूप में महाविद्यालय के छात्रों द्वारा उगाया जाता है। मैं अमेरिका में मिसिसिपी में कपास बेल्ट में पला बढ़ा हूं। वहां गुलामी के उन्मूलन के बाद जो वास्तव में बदलाव हुए थे, वह बीज निकालने वाले मशीनों का आविष्कार था। मैंने अमेरिकी सरकार से बात की है कि क्यों वे अमेरिकी निर्माताओं से हार्वेस्टर खरीदने के लिए उज़्बेकिस्तान को रुपए कर्ज नहीं देते। ऐसा होने पर फिर उन्हें मजबूर श्रम के लिए छात्रों को लेने की आवश्यकता नहीं होगी।

5. अर्थ जगत में गुलामी का क्या प्रभाव देखने को मिलता है?

संयुक्त राष्ट्र के आकलन के अनुसार, गुलामी का वैश्विक वार्षिक कारोबार 150 बिलियन डॉलर (9 लाख करोड़ रुपए ) का है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में 7-12 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है और 150 बिलियन डॉलर समुद्र में सिर्फ एक बूंद के जैसा है। यह अच्छी खबर है क्योंकि अगर हम 720 करोड़ लोगों की दुनिया में रहते हैं और हमारे पास 4.6 करोड़ गुलाम हैं, तो यह जनसंख्या में एक बूंद के बराबर है और 150 बिलियन डॉलर आर्थिक महासागर में भी बूंद जैसा ही है।

सवाल यह है कि हमारे पास किसी भी गुलामी की आवश्यकता क्यों है? इसका एक कारण वे कानून हैं जिन्हें लागू नहीं किया जाता है, और इसके बारे में कम जागरूकता है। नॉर्वे जैसे देश में, जहां की आबादी 50 लाख और सीमाएं तंग हैं, उनके पास किसी भी गुलामी का क्या कारण है? लेकिन वहां भी गुलामी है। कुछ वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों में हैं, कुछ कृषि और कुछ निर्माण के क्षेत्र में हैं। यह स्वतंत्रता लाभांश है और हम इसे भारत जैसे कुछ स्थानों में मापते हैं।जब लोग गुलामी से बाहर आते हैं, तो वे उपभोक्ता बनते हैं, और इसका मतलब है कि आर्थिक चक्र शुरू हो गया है।

और अगर उनके पास जीवन-यापन के लिए कुछ भी नहीं है, और वे केवल निम्नतम स्तर पर ही उत्पादन कर रहे हैं तो वे आर्थिक समीकरण में शून्य होते हैं। लेकिन जैसे ही वे स्वयं के लिए काम करना शुरू करते हैं तो वे काफी मेहनत करते हैं। एक चीज जिसे वे हमेशा से करना चाहते हैं कि वे अपने बच्चों को उस जलालत भरी जिंदगी से बाहर निकालना चाहते हैं। वे बच्चों को अच्छे स्कूल में भेजना चाहते हैं।और फिर वे भोजन, कपड़े और औजार खरीदने-बेचने जैसे काम करना शुरू करते हैं। ऐसे क्षेत्रों में जहां गुलामी प्रथा बंद है, वहां की स्थानीय अर्थव्यवस्था बढ़ने लगती है। यहां तक ​​कि पूर्व-गुलामधारकों के लिए अवसर भी बनाते हैं।

6. आमतौर पर गुलाम किस तरह के काम करते हैं?

ये आर्थिक सीढ़ी के सबसे निचले पायदान पर काम करते हैं। इन्हें कृषि, खनन आदि में और सेक्स -व्यावसायिक सेक्स शोषण में भी लगाया जाता है। ये खतरनाक और निराश करने वाले काम होते हैं इसलिए गुलाम कर्मचारियों को ऐसे काम मिलते हैं, जिन्हें कोई और नहीं करना चाहता है। मालिक गुलामों से ऐसे काम कराने के तरीकों को खोजते हैं।

7. गुलामी को रोकने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

यदि आप समस्या से बाहर निकलने के लिए रास्ता बनाना चाहते हैं, तो इसका प्रभाव पड़ सकता है। लेकिन यह प्रभाव बहुत असरदार नहीं होगा क्योंकि क्योंकि आप इस समस्या से कई कदम दूर हैं। यदि आप कहते हैं कि आप किसी उत्पाद का उपयोग इसलिए बंद कर देंगे क्योंकि इसमें गुलाम श्रम है तो यह अच्छा है। लेकिन अगर आप सिर्फ यही करने जा रहे हैं तो इससे तब ज्यादा बदलाव की उम्मीद मत करें। जब तक कि आप अरबों अन्य लोगों को ऐसा करने के लिए मना नहीं लेते। सबसे शक्तिशाली तरीका होगा उन नायकों को थोड़ा सा समर्थन देने का एक रास्ता खोजना, जिन नायकों की बात हमने की थी। मान लें कि गुलामों को मुक्त करने की दिशा में लगा समूह उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में है। वे लोग कहते हैं और हम भी जानते हैं कि हर दिन लोग गुलामी से बाहर हो रहे हैं। और हम उन्हें हर महीने मदद के लिए 20 यूरो दें। यह रकम ज्यादा नहीं है क्योंकि भारत में लोगों को गुलामी से बाहर लाने की लागत वास्तव में बहुत कम है। गुलामी में ज्यादातर लोग अमीर देशों में नहीं हैं, बल्कि गरीब देशों में हैं, जहां हर चीज का दाम कम है। भारत में जब हमने किसी व्यक्ति को मुक्त करने के लिए लागत की गणना की तो प्रति व्यक्ति लागत 200 डॉलर(13,000) की थी। यदि आप जर्मनी में एक व्यक्ति को मुक्त करने में मदद करते हैं, तो प्रति व्यक्ति 20,000 डॉलर से 30,000 डॉलर (13 लाख रुपये से लेकर 20 लाख रुपये तक का) का खर्च आएगा।

8. भारत में गुलामी विरोधी-कानून और उससे क्या मदद मिलती है?

गुलामी के खिलाफ महत्वपूर्ण कानूनों में से एक है बंधुआ श्रम प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम 1976 है। यह कानून प्रत्येक व्यक्ति को गुलामी से बाहर आने के लिए थोड़ी सी पूंजी पा लेने की अनुमति देता है। जब आप गुलामी से बाहर आते हैं, तो आपके पास कुछ भी नहीं होता है, कोई संपत्ति नहीं होती है और कोई प्रशिक्षण नहीं होता है, लेकिन आप जानते हैं कि आपके पास एक श्रम कौशल है और भारतीय कानून के तहत आपको तत्काल अनुदान प्राप्त हो सके ताकि आपको खाना, कपड़े और आश्रय और सुरक्षा प्राप्त हो सके।

फिर कुछ हफ्तों के बाद उससे बात की जाती है और फिर एक बड़ा भुगतान किया जाता है ताकि वे उपकरण या जमीन या जीवित रहने के लिए चीजें खरीद सकें। मैं कुछ पूर्व गुलामों को जानता हूं जिन्होंने चार मोबाइल फोन खरीदे और अपने गांव के लिए वे ‘मोबाइल कंपनी’ बन गए।

(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 6 अप्रैल 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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