गैस की कीमत में 58% गिरावट - भारत को हो सकता है फायदा
दक्षिण मुंबई से 400 किमी स्थित दाभोल बिजली परियोजना। फोटो मार्च 1999 में ली गई है।
दाभोल परियोजना के लिए आईडीबीआई बैंक, भारतीय स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और केनरा बैंक सहित कई बैंकों से 85,00 करोड़ रुपए लिया गया है। एक समय में विदेशी निवेश और राज्य के अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का प्रदर्शन रहा दाभोल परियोजना, वर्ष 2013 से कोंकण तट पर, ( दक्षिण मुंबई से 160 किमी ) निष्क्रिय पड़ा है।
पिछले दो वर्षों में, 1,967 मेगावाट (मेगावाट) परियोजना से बिजली उत्पन्न नहीं हुआ है। इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है कि परियोजना के बंद होने से न केवल इस पर किया गया पूरा निवेश खतरे में है बल्कि बिजली संयंत्र बंद होने से ( प्राकृतिक गैस आधारित बिजली संयंत्र ) देश में बिजली की भारी कमी भी हो रही है।
दाभोल सहित भारत के पास 24,000 मेगावाट प्राकृतिक गैस आधारित बिजली संयंत्र हैं जो कि बिजली उत्पादन क्षमता का दसवां भाग है। इसमें से ज़्यादातर परियोजनाएं या तो बंद पड़ी हैं या फिर अपनी निर्धारित क्षमता के मात्र आंशिक रुप में काम कर रही हैं। इससे स्पष्ट है कि बिलियन डॉलरों के निवेश पर खतरा मंडरा रहा है।
वैश्विक बाज़ार में पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस की कीमतों में गिरावट होने से अब इन असहाय संपत्तियों के लिए कुछ आशा की किरण दिखती है।
तरलीकृत प्राकृतिक गैस की कीमत (एलएनजी) में 58 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। अप्रैल 2014 में जहां 18.3 डॉलर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट ( एमएमबीटीयू ) दर्ज की गई थी वहीं सितंबर 2015 में यह आंकड़े 7.7 डॉलर एमएमबीटीयू दर्ज की गई है। यह आंकड़े कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का भी संकेत देते हैं। परिणामस्वरूप, गैस आधारित बिजली की कीमत में भी गिरावट हुई है। बिजली की कीमत में गिरावट निश्चित रुप से कुछ उपभोक्ताओं के लिए प्रलोभक हैं। उदाहरण के लिए, 1 नवंबर 2015 से दाभोल बिजली परियोजना फिर से शुरु करने का प्रस्ताव दिया गया है। यह बिजली, 5.5 5 रुपये प्रति यूनिट पर मुंबई के उपनगरीय रेलवे प्रणाली को बेची जाएगी।
गैस - बिजली क्षेत्र में सुधार होने से आसार दिख रहे हैं। सितम्बर 2015 के लिए भारत की गैस आधारित विद्युत संयंत्र, उनकी निर्धारित क्षमता के 25.4 फीसदी पर संचालित है, इसे प्लांट लोड फैक्टर ( पीएलएफ ) भी कहा जाता है। कोयला और परमाणु ईंधन ऊर्जा संयंत्रों की 60 फीसदी से 80 फीसदी पर काम करने की क्षमता को देखते हुए यह कम ही लगता है।
लेकिन वर्ष 2014-15 के मुकाबले इसमें सुधार अवश्य हुआ है। वर्ष 2014-15 में गैस आधारित विद्युत संयंत्रों की क्षमता का 20 फीसदी पर संचालित थी। इसका अर्थ हुआ कि इनके पास बिजली की 100 युनिट उत्पादन करने की क्षमता थी लेकिन उत्पादन केवल 20 युनिट ही किया गया।
Table 1: Gas, Coal And Nuclear-Power Plants: Capacity Used | |||
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September 15 | April-September 15 | April-March 2105 | |
Gas | 25.4% | 21.8% | 20.8% |
Coal | 63.4% | 60.4% | 64.8% |
Nuclear | 66.9% | 75.1% | 80.5% |
Source: Central Electricity Authority
भारत की अर्थव्यवस्था के लिए प्राकृतिक गैस क्यों है महत्वपूर्ण?
वर्ष 2002 में कृष्णा -गोदावरी बेसिन में प्रमुख प्राकृतिक गैसों की खोज होने के बाद ही रिलायंस, ओएनजीसी एवं गुजरात स्टेट पेट्रोलियम सहित कई कंपनियों ने गैस आधारित विद्युत संयंत्रों की शुरुआत की थी। अनुमानित गैस की आपूर्ति के लिए यह बहुत आशावादी रुप में उभरा। लेकिन बाद में इन संयंत्रों में ईंधन का भारी आभाव पाया गया।
इन संयंत्रों के लिए प्राकृतिक गैस का आयात , एक तरल तरलीकृत प्राकृतिक गैस के रूप में लाया जाना काफी महंगी प्रक्रिया थी। आयातित एलएनजी से उत्पन्न बिजली की कीमत 10 रुपए प्रति युनिट तक जा सकती थी। यह कीमत कोयला बिजली उत्पन्न की तुलना में 200 फीसदी महंगी है, जिसकी कीमत 3.25 प्रति युनिट लगती है (एनटीपीसी , वित्त वर्ष 2014-15) और इसमें भारत की बिजली आवश्यकताओं का करीब तीन चौथाई हिस्सा आएगा।
लैंको , जीवीके , जीएमआर और टोरेंट पावर सहित कई बिजली उत्पादन कंपनियों एवं उधार देने वाले कई बैंकों की स्थिति लड़खड़ा गई है। यह भारत के बुनियादी ढांचा क्षेत्र के नीचे आने का एक महत्वपूर्ण कारक है।
अंतरराष्ट्रीय गैस की कीमतें कम ही रहती हैं तो इसमें निवेश की गई राशि को वापस उबारा जा सकता है।
कुछ वैश्विक घटनाक्रमों के कारण यह संभव हो सकता है :
- जापान अपने कुछ परमाणु उर्जा संयंत्रों का पुनरारंभ कर रहा है जिससे जापान में एलएनजी की मांग में कमी आएगी। यह एलएनजी का दुनिया के सबसे बड़ा ग्राहक है ।
- अमरीका जो तेल एवं गैस का दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक है, जल्द की निर्यात भी शुरु करेगा।
- ईरान, जिसके पास दुनिया का सबसे बड़ा गैस भंडार है, जल्द ही वैश्विक गैस बाजार का हिस्सा बन सकता है।
प्रवृत्ति से लाभ पाने के लिए, भारत को गैस आपूर्ति के लिए कम कीमतों पर बंधे रहने की ज़रुरत है। इससे भविष्य में बिजली संयंत्रों के लिए सस्ता ईंधन मिलते रहना सुनिश्चित होगा।
हालांकि भारत को राज्य बिजली बोर्ड पर वित्तीय संकट और मुक्त बिजली और बिजली की चोरी जैसी समस्याओं सहित कई संबंधित मद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
( अमित भंडारी , एक मीडिया , अनुसंधान और वित्त पेशेवर है। भंडारी ने आईआईटी -बीएचयू से एक बी - टेक और आईआईएम- अहमदाबाद से एमबीए किया है। )
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 14 अक्तूबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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