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बाँदा(उत्तर प्रदेश )/मुंबई : उस पर स्नेह करने वाले अपने परिवार के साथ, सफेद हैट से अपने सलीके से बंधे बालों को ढके , अपनी ट्रॉफियों से घिरी शोभा सिंह खंगार , 15, उस संकीर्ण गली की ओर, जहाँ वह रहती है इशारा करती है।

उत्तर प्रदेश के दक्षिण-पूर्वी छोर पर बसे, रूढ़िवादी, काफी हद तक गरीब, बांदा शहर की एक शांत दोपहर में क्रिकेट की सफेद पोशाक पहने हुए खंगार कहती है "मैंने अपने भाइयों और बहनों के साथ, इसी गली में छह साल की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू किया,"।

कुछ वर्षों के बाद, उसकी बहनों ने खेलना बंद कर दिया लेकिन स्कूल को धन्यवाद देना चाहिए कि उनके प्रोत्साहन पर खंगार खेलती रही। यह आसान नही था , और अभिभावकों की अनुमति खास कर उसके पिता की -जो बाँदा रेलवे पुलिस में हेड कांस्टेबल हैं -महत्त्वपूर्ण थी।

पारंपरिक बंधनो से मुक्त, इस दृढ़ निश्चयी किशोरी ने भाला फेंक, डिस्कस थ्रो और खो-खो में जिला स्तरीय प्रतियोगिताओं में जीत हासिल की, लेकिन क्रिकेट उसका पहला प्यार है।

आज, खंगार जिले की एकमात्र महिला पेशेवर क्रिकेट खिलाड़ी है और उत्तर प्रदेश के लिए खेलने के लिए प्रशिक्षण ले रही है और उसे भारतीय अंडर -19 महिला क्रिकेट टीम में चुने जाने की उम्मीद है।

Banda Cricketer - Shobha

शोभा सिंह खंगार (चरम दाएं ), एक हेड कांस्टेबल की 15 वर्षीय बेटी, उत्तर प्रदेश के रूढ़िवादी, गरीब बुंदेलखंड क्षेत्र में अपने जिले का प्रतिनिधित्व करने वाली अकेली पेशेवर महिला क्रिकेटर है।

छवि आभार : खबर लहरिया

"इस क्षेत्र में बहुत कम महिलाएँ हैं ," खंगार कहती है । "यदि मुझे मेरे माता-पिता से समर्थन और स्कूल के प्रिंसिपल और शिक्षक से प्रोत्साहन नहीं मिलता तो मैं इतनी आगे तक नहीं पहुंच पाती।"

इंडिया स्पेंड द्वारा संकलित किए गए आंकड़ों के अनुसार, भारत भर में , इस तरह का समर्थन बढ़ रहा है-यद्यपि धीरे-धीरे -और गांव, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर के खेल प्रतियोगिताओं में महिलाओं की भागीदारी पिछले चार साल में 328% तक बढ़ी है। यह बढ़ोतरी चकाचौंध करने वाली लगती है लेकिन इसका आधार बहुत छोटा है।

खेल और शिक्षा का यह समन्वय भागीदारी बढ़ाने का मुख्य कारण है ,जैसा कि खंगार के साथ हुआ । 2009 के राइट टु एजुकेशन एक्ट (शिक्षा का अधिकार अधिनियम ) द्वारा हर स्कूल में खेल सुविधाओं का होना आवश्यक किया गया है और सरकारी शिक्षा प्रणाली , केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) के अंतर्गत खेलों को अनिवार्य बनाया गया है।

यह ज़मीनी स्तर पर प्रोत्साहन देने वाला दृष्टिकोण महिलाओं में खेल-कूद के प्रति उत्साह को बढ़ावा दे रहा है।

पीवाईकेकेए योजना के अंतर्गत प्रतियोगिताओं में राज्यवार प्रतिभागी, 2013-14 में

Source: Lok Sabha

बजट में गिरावट के बावजूद ,खेलों में ग्रामीण महिला भागीदारी वर्ष 2008-09 में 249,190 से बढ़कर 2013-14 में 1.07 मिलियन तक हो गई है।

उत्साह के ऐसा उभार मुख्यधारा खेलों तक भी पहुंचता है, जैसे कि क्रिकेट।

झूलन गोस्वामी, मिताली राज, नीतू डेविड और नुशीन अल खादीर , भारत की बेहतरीन महिला क्रिकेट खिलाडियों में से कुछ हैं और सभी छोटे शहरों से आती हैं।

झूलन गोस्वामी को दुनिया की सबसे तेज़ महिला गेंदबाज़ों में से एक माना जाता है। मिताली राज, भारतीय महिला टीम की कप्तान, महिलाओं के टेस्ट क्रिकेट में दूसरी सबसे अधिक रन बनाने वाली महिला हैं।

एक अच्छी शुरुआत लेकिन आईपीएल के वर्चस्व सागर में बस एक बूंद मात्र

जैसा कि खंगार का मामला इंगित करता है, शैक्षिक संस्थानों और परिवार का समर्थन महत्वपूर्ण है, लेकिन एक रूढ़िवादी देश में, सरकार का समर्थन एक प्रमुख भूमिका निभाता है।

भारत के इकलौते ग्रामीण खेलकूद कार्यक्रम, पंचायत युवा क्रीड़ा खेल अभियान (पीवाईकेकेए या गांव स्तरीय युवा खेल कार्यक्रम), में भाग लेने वालों में से 53% महिलाएं हैं। इस योजना को अब राजीव गांधी खेल अभियान (आरजीकेए, या राजीव गांधी खेल आंदोलन) कहा जाता है।

आरजीकेए गांवों में खेल अवसंरचना के लिए पूंजी देता है और ब्लॉक, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली वार्षिक प्रतियोगिताओं को बढ़ावा देता है।

महिला खिलाड़ियों के लिए अलग से कोई बजट नहीं है। हालांकि,सरकार द्वारा तटस्थ कार्यक्रमों के तहत 30% तक का न्यूनतम व्यय महिलाओं के लिए आवंटित किया गया है।

महिलाओं के बीच खेल को बढ़ावा देने के लिए 1975 में शुरू की गई राष्ट्रीय महिला चैम्पियनशिप को अब आरजीकेए के साथ एकीकृत कर दिया गया है और यह निम्नलिखित सहायता प्रदान करती है :

Competition levelFunding For Sportswomen
District levelRs 2.4 lakh per district (Rs 20,000 per discipline, for 12 disciplines)
State/UT LevelRs 1 lakh per district for State/UT for 12 sports disciplines
National LevelRs 10 lakh per discipline

Sports under the Rajiv Gandhi Khel Abhiyan
SportSports at National LevelSports for womenNorth East Games
Athletics
Badminton
Basketball✓ (optional)
Gymnastics✓ (optional)
Handball✓ (optional)
Hockey
Kabaddi-
Kho Kho-
Swimming✓ (optional)
Table Tennis
Tennis-
Volleyball✓ (optional)
Archery-✓ (optional)
Wushu-✓ (optional)
Taekwondo-✓ (optional)
Weightlifting-
Cycling--
Boxing-
Judo-
Wrestling--
Football-

2013-14 में पीवाईकेकेए / आरजीकेए कार्यक्रम के तहत कर्नाटक 163,520 महिला प्रतिभागियों (ऊपर इंटरेक्टिव मानचित्र देखें) के साथ इस सूची में शीर्ष स्थान पर रहा। 158,836 महिला प्रतिभागियों के साथ महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर था , इसके उपरांत तमिलनाडु (134,790), गुजरात (101,497) और मध्य प्रदेश (88,116) का स्थान रहा ।

लेकिन सरकारी खर्च केवल एक शुरुआत ही हो सकती है।

पिछले चार वर्षों में, 148 करोड़ रुपये पीवाईकेकेए / आरजीकेए प्रतियोगिताओं के तहत खर्च किए गए थे। इसमें से 10%, या 14 करोड़ रुपए ,महिलाओं के खेल के लिए खर्च हुए। केवल 357 करोड़ रूपये ही ग्रामीण खेलकूद की बुनियादी सुविधाओं के लिए जारी किए गए थे।

यहीं अंतर्विरोध है : 2014 में, 262 करोड़ रुपये ,इंडियन प्रीमियर लीग की नीलामी के दौरान खर्च किए गए थे। यह चार साल में ग्रामीण क्षेत्रों में खेल प्रतियोगिताओं के लिए किए गए सारे खर्च की तुलना में 77% अधिक है।

अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा के उत्तर-पूर्वी राज्यों (असम को कोई राशि नही मिली) को पिछले चार वर्षों में केवल 14.27 करोड़ रुपये प्राप्त हुए। यह राज्य, 2012 ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता और पांच बार विश्व एमेच्योर मुक्केबाजी चैंपियन एमसी मैरीकॉम, 2014 ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतने वाली मुक्केबाज, एल सरिता देवी, और 2014 ग्लासगो राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली, भारोत्तोलक के. संजीता चानू सहित भारत की वैश्विक स्तर की महिला खिलाडियों के घर रहे हैं।

खेल के लिए बुनियादी ढांचे ,जो अब भारत के खेलों को स्वरूप देने के लिए ज़रूरी होता जा रहा है ,विशेष रूप से महिलाओं के लिए, की महत्ता स्वीकारते हुए केंद्रीय सरकार ने मणिपुर में एक खेल विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए 2014-15 के बजट में 100 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं।

(यह आलेख , उत्तर प्रदेश के पांच जिलों और बिहार के एक जिले से महिला पत्रकारों के समूह द्वारा चलाए जा रहे ग्रामीण, साप्ताहिक समाचार पत्र खबर लहरिया के साथ साझेदारी लिखा गया है। चैतन्य मल्लापुर इंडिया स्पेंड के साथ एक नीति विश्लेषक के रूप में कार्यरत हैं।)

छवि आभार : विकिपीडिया/अरिवज़हागान89

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