ग्रामीण मजदूरी में 10 साल की सबसे धीमी बढ़ोतरी
ग्रामीण भारत में रहने वाले लोगों की मजदूरी अब उतनी नहीं बढ़ रही है जितनी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के समय बढ़ी थी। इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर 2014 के दौरान ग्रामीण भारत में औसत दैनिक मजदूरी इससे पहले साल इसी अवधि के मुकाबले 3.8 फीसदी बढ़ी है। ग्रामीण मजूदरी में यह 2005 के बाद सबसे कम बढ़ोतरी है।
गत जून तक भी ग्रामीण मजदूरी में बढ़ोतरी की दर दहाई अंकों में होती थी। अखबार के मुताबिक, वर्ष 2011 में यह बढ़ोतरी दर 20फीसदी तक पहुंच गई थी।
ग्रामीण मजदूरी में बढ़ोतरी की गति धीमी पड़ने की बात ऐसे समय में सामने आई है जब महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (नरेगा) पर होने वाले सरकारी खर्च में कटौती को लेकर चिंताएं बढ़ती जा रही हैं।
हालांकि, सरकार इस योजना का गला घोंटने के आरोपों को नकार चुकी है लेकिन स्क्रॉल को मिले आंकड़े बताते हैं कि पांच राज्यों के अलावा सभी अन्य राज्यों को नरेगा के तहत इस साल केंद्र से पिछले साल के मुकाबले काफी कम फंड मिला है। चालू वित्त वर्ष के बाकी बचे महीनों में जब तक सरकार इस कमी की भरपाई नहीं करती है, तब तक योजना के तहत राज्यों को मिलने वाली फंडिंग में कमी बनी रहेगी। और जिसकी मार करोड़ों ग्रामीण मजदूरों को झेलनी पड़ेगी।
कैसे पिछले साल के मुकाबले घटी या बढ़ी नरेगा की फंडिंग
Source: NREGA; *FY 2015 figures are up to Dec.19, 2014; FY 2015 figures for Telangana have been added to those of Andhra Pradesh to allow for comparison with previous years
क्या नरेगा के खर्च में कटौतीकी वजह से ही ग्रामीण मजदूरी बढ़नी कम हो गई ?
ग्रामीण भारत पर नरेगा के प्रभाव का अध्ययन करने वाली आईआईटी दिल्ली की अर्थशास्त्री रितिका खेडा कहती हैं कि निश्चित तौर पर यह मुमकिन है। हालांकि, अर्थशास्त्री रमेश चंद्र के अनुमान के अनुसार ग्रामीण भारत में पैदा होने वाले कुल रोजगार का सिर्फ 3 फीसदी नरेगा से आता है। ग्रामीण मजदूरी के मामले में वास्तव में हो क्या रहा है, इसे समझने के लिए और ज्यादा सावधानीपूर्वक विश्लेषण करने की जरूरत है।
मिसाल के तौर पर, मजदूरी में हुई“नाममात्र” कीबढ़ोतरी को देखने के बजाय “वास्तविक” बढ़ोतरी को जानने के लिए मेहनताने को कीमतों के साथ जोड़कर देखना जरूरी है। जब कीमतें ज्यादा होती हैं, मजदूरी की “असल” वैल्यू कम हो जाती है। वैसे भी पिछले कुछ महीनों में महंगाई कम हुई है।
Source: NREGA; *FY 2015 figures are up to Dec.19, 2014; FY 2015 figures for Telangana have been added to those of Andhra Pradesh to allow for comparison with previous years
जिन वर्षों में महंगाई ज्यादा थी, तब इस पर बहस छिड़ी कहीं नरेगा पर सरकारी खर्च ही तो महंगाई नहीं बढ़ा रहा है। क्योंकि ग्रामीण मजदूरों के हाथ में ज्यादा पैसे पहुंचने से खाने-पीने और उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बढ़ती है जबकि आपूर्ति में कोई इजाफा नहीं होता है। हालांकि, रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन मजदूरी और महंगाई की इस घुमावदार प्रक्रिया को नकार चुके हैं।
अगस्त, 2014 में पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार राजन ने कहा कि ग्रामीण मजदूरी पर नरेगा का प्रभाव 10 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकता है। राजन ने ग्रामीण मजदूरी में बढ़ोतरी का श्रेय अन्य कारकों जैसे कृषि से बेहतर आमदनी, कंस्ट्रक्शन सेक्टर का विकास और कामगारों में महिलाओं की घटती संख्या जिससे उपलब्ध मजदूरों की संख्या घटती है, को दिया है।
इस लिहाज से देखें तो ग्रामीण मजदूरी में धीमी बढ़ोतरी को सिर्फ नरेगा खर्च में कटौती से नहीं समझा जा सकता है।
रितिका खेडा कहती हैं, “फिर भी मजदूरी में बढ़ोतरी की दर कम होना चिंता का विषय है क्योंकि इसका असर उन बहुत-से लोगों पर पड़ेगा जो और ज्यादा गरीब होने के कगार पर हैं।और इसलिए भी क्योंकि मजदूरी नहीं बढ़ेगी तो ग्रामीण मांग में कमी के चलते इसका असर जीडीपी पर पड़ेगा। ”
जाहिर है, ग्रामीण भारत में बुरे दिनों से बाकी अर्थव्यवस्था भी अछूती नहीं रहेगी।
(यह लेख मूलत: Scroll.in पर प्रकाशित हुआ था)
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