ग्लोबल वार्मिंग पर त्वरित रोक नहीं तो भारत जैसे देशों में खाद्य, जल और रोग संकट
नई दिल्ली: अगर भारत पानी, भोजन और स्वास्थ्य संकट से बचने की इच्छा रखता है और 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक के वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण प्राकृतिक आपदाएं जारी रहती हैं, तो 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 58 फीसदी तक कटौती करने के लिए इसे एक मजबूत अंतर्राष्ट्रीय प्रयास के साथ सहयोग करना होगा। यहां एक और अन्य मजबूत कदम ( ऊर्जा उत्पादन के लिए कोयले के उपयोग को 78 फीसदी तक कम करना और यह सुनिश्चित करना कि बिजली की आपूर्ति का 60 फीसदी नवीनीकरण से आता है ) मानव गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव को सीमित करने के लिए आवश्यक है, जिसने वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर (1800 से पहले) से 1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा दिया है, जैसा कि जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की नवीनतम रिपोर्ट से पता चलता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मौजूदा दर पर ग्लोबल वार्मिंग 2040 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाएगा। यह खतरे की रेखा 2-डिग्री-सी वृद्धि के लिए पहले अनुमानित की तुलना में तेजी से और अधिक व्यापक प्रभाव के साथ उभर जाएगी।
बेंगलुरु के ‘इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स’ (आईआईएचएस) के संस्थापक निदेशक और 8 अक्टूबर, 2018 को जारी किए गए आईपीसीसी की रिपोर्ट के मुख्य समन्वय लेखक, अरोमर रेवी कहते हैं, "समय बहुत दूर नहीं है जब हम अपने स्वयं के विकल्पों और कार्यों का जलवायु पर पड़ने वाले प्रभावों को महसूस करेंगे।"
ग्लोबल वार्मिंग में 1 डिग्री सेल्सियस के बढ़ोतरी के साथ, भारत ने केरल में बाढ़, उत्तराखंड में जंगल की आग और उत्तर और पूर्व में गर्मी की लहरों जैसे चरम मौसम की घटनाओं का अनुभव किया है, जिससे इसकी कमजोरी दिखाई दे रही है। ऐसी स्थिति से करीब 600 मिलियन भारतीयों के जोखिम में आने की संभावना है।
तापमान में और वृद्धि से खाद्य और पानी की उपलब्धता कम हो जाएगी और आईपीसीसी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत जैसे देश अधिक वेक्टर- बीमारियों की ओर बढ़ेंगे। रिपोर्ट में वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की संभावनाओं और लाभों को बताया है। पिछले और वर्तमान उत्सर्जन के कारण वैश्विक तापमान में प्रति दशक 0.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। जलवायु परिवर्तन पर वैज्ञानिकों द्वारा अनुशंसित सख्त कार्रवाई, भारत के लिए एक गंभीर समाचार के रूप में आता है, जैसा कि हमने 7 अक्टूबर, 2018 को बताया था। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन प्रदूषक और दूसरा सबसे बड़ा कोयला उपभोक्ता है । यहां लगभग 15 मिलियन परिवार ऐसे हैं (7 अक्टूबर, 2018 तक) जिनके पास अभी भी बिजली की कोई सुविधा नहीं है।
सिडनी के ‘एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस संस्थान’ में ऊर्जा वित्त अध्ययन के निदेशक टिम बकली कहते हैं, "आईपीसीसी टेक्स्ट स्पष्ट संकेत भेजता है कि हमें कोयले के उपयोग को मूल रूप से कम करने की जरूरत है। इसका मतलब है कि कोयले के नए साधनों के लिए कोई जगह नहीं है और इसका मतलब यह भी है कि सरकारों को अपने मौजूदा कोयला संयंत्रों के नवीनीकरण के साथ बदलना शुरू करना है।"
रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार, 2030 तक उत्सर्जन कम करने के लिए राष्ट्रों को जारी संदेश का लक्ष्य पर्याप्त नहीं है। भले ही वे पूरा हो जाएं, फिर भी 2100 तक लगभग 3 डिग्री सेल्सियस की ग्लोबल वार्मिंग होगी, इसके बाद भी वार्मिंग जारी रहेगी। ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए आईपीसीसी रिपोर्ट में सुझाए गए अधिक मांग वाले उपायों से समुद्र के वार्मिंग स्तर में वृद्धि धीमी हो सकती है। चरम गर्म दिनों की संख्या कम हो सकती है और 2100 तक कई प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाया जा सकता है। रेवी कहते हैं, "हमारी अर्थव्यवस्था, समाज और प्रशासन के काम करने के तरीके में बड़े बदलाव लाने के हमारे पास समय कम है।" "ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का मतलब है कि हमें चार बड़े सिस्टमों को बदलना है: हमारी ऊर्जा और औद्योगिक प्रणाली, जो ग्रीनहाउस गैसों का अधिक उत्पादन करती हैं, कृषि और वन प्रणाली, और हमारे शहर, जो जलवायु के लिए जोखिम पैदा करते हैं, लेकिन मूल-चूल परिवर्तन के अवसर प्रदान करते हैं।" इसे सक्षम करने के लिए, हमें अपने शासन के ढांचे को बदलने की जरूरत है, परियोजनाओं को वित्त पोषित करने के तरीके को नए सिरे से बनाने की जरूरत है। राज्यों के माध्यम से गांवों से लेकर नगर पालिकाओं तक, सभी स्तरों पर राष्ट्रीय स्तर पर ऐसा करने के लिए संस्थागत क्षमता का निर्माण हो सकता है।
तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कम करने से दुनिया बच सकती है?
ग्लोबल वार्मिंग के कारण कई दुर्भाग्यपूर्ण प्राकृतिक घटनाएं सीमित हो सकती हैं। गुरुत्वाकर्षण और आवृत्ति दोनों में, यदि तापमान वृद्धि 2015 की पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित पिछली सीमा 2 डिग्री सेल्सियस तक नहीं 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित है और तो है। कुछ लाभ हैं:
जमीन पर कम चरम गर्म दिन: मध्य-अक्षांश (भारत सहित) में अत्यधिक गर्म दिन लगभग 3 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होंगे ,यदि ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित है, 4 डिग्री सेल्सियस के मुकाबले एक डिग्री कम है, जो 2 डिग्री सेल्सियस परिदृश्य के साथ आएगी।
भारत जैसे उष्णकटिबंधीय देशों में उच्चतम वृद्धि के साथ, अधिकांश भूमि क्षेत्रों में गर्म दिनों की संख्या में वृद्धि का अनुमान है।
समुद्र स्तर में सीमित वृद्धि: अनुमानों से पता चलता है कि,1.5 डिग्री सेल्सियस वृद्धि औसत वैश्विक समुद्र स्तर को 2100 तक 0.26-0.77 मीटर बढ़ा देगा। 2 डिग्री सेल्सियस परिदृश्य के अनुरूप वृद्धि से यह लगभग 0.1 मीटर कम है । रिपोर्ट में कहा गया है, "वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि में 0.1 मीटर की कमी का तात्पर्य है कि वर्ष 2010 में जनसंख्या के आधार पर 10 मिलियन कम लोग संबंधित जोखिमों के संपर्क में होंगे ।" यह छोटे द्वीपों, तटीय क्षेत्रों और डेल्टा में खारे पानी के घुसपैठ, बाढ़ और बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाने के जोखिम बढ़ा देता है।
प्रजातियों की दोगुनी संख्या सुरक्षित: अगर ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित है, तो रिपोर्ट द्वारा अध्ययन की गई 105,000 प्रजातियों के लिए जलवायु के आधार पर निर्धारित भौगोलिक रेंज में से आधे से अधिक खो जाने की आशंका है। लेकिन 2 डिग्री सेल्सियस परिदृश्य के तहत, दोगुनी संख्या ( 18 फीसदी कीड़े, 16 फीसदी वनस्पतियां और 8 फीसदी कशेरुकी ) अपने घर खो देंगे।
कम पानी का तनाव: रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने से अधिक क्षेत्रीय परिवर्तनशीलता के साथ जलवायु परिवर्तन के कारण पानी की कमी का सामना करने वाले लोगों की संख्या में 50 फीसदी तक कमी हो सकती है।
कम वेक्टर बीमारियां: रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग में कोई भी वृद्धि मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। गर्मी से संबंधित विकृति और मृत्यु दर के लिए 2 डिग्री सेल्सियस से कम जोखिम, 1.5 डिग्री सेल्सियस पर अनुमानित है। मलेरिया और डेंगू बुखार जैसे कुछ वेक्टर- बीमारियों से होने वाले जोखिमों का 1.5- 2 डिग्री सेल्सियस रेंज में वार्मिंग के साथ बढ़ने का अनुमान है।
फसल पैदावार में कम कमी: ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने से मक्का, चावल, गेहूं और अन्य अनाज फसलों की पैदावार में विशेष रूप से उप-सहारा अफ्रीका, दक्षिणपूर्व एशिया और मध्य और दक्षिण अमेरिका में कम कटौती होगी। इसके परिणामस्वरूप चावल और गेहूं में पोषण के नुकसान में शुद्ध कटौती होगी, जो कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) के स्तर से प्रभावित होता है।
पशुधन पर कम प्रभाव: अनुमानों के मुताबिक खाद्य गुणवत्ता में परिवर्तन की सीमा, बीमारियों के फैलाव और जल संसाधन उपलब्धता के आधार पर बढ़ते तापमान से पशुधन प्रभावित हो जाएगा। ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करके इस क्षति को रोक दिया जा सकता है। यह भारत को चिंता का विशेष कारण है - भारत दुनिया में सबसे बड़ी पशुधन आबादी (12 फीसदी) में से एक है।
ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करने के लिए क्या करें?
दर्जनों परिदृश्यों की समीक्षा करने के बाद, आईपीसीसी वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला है कि ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए ऊर्जा और भूमि उपयोग में विशाल, महत्वाकांक्षी वैश्विक बदलाव की आवश्यकता होगी। सभी परिदृश्यों में वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को हटाना आवश्यक है। 12 वर्षों में 2030 तक, इसके उत्सर्जन को 58 फीसदी (2010 के सापेक्ष) घटाया जाना चाहिए। बिजली आपूर्ति का 60 फीसदी नवीकरणीय से लेना होगा और प्राथमिक ऊर्जा के लिए कोयले के उपयोग में 78 फीसदी तक कटौती होनी चाहिए, जैसा कि पहले बताया गया है। इन स्थितियों में एक मॉडल परिदृश्य (पी 1) का गठन होता है, जिसमें सामाजिक, व्यापार और तकनीकी नवाचारों के परिणामस्वरूप 2050 तक कम ऊर्जा मांग होती है, भले ही जीवन स्तर के मानकों में वृद्धि हो, खासकर विकासशील देशों में। एक डाउनसाइज्ड ऊर्जा प्रणाली तेजी से कार्बन कम करने में सक्षम बनाता है जबकि वनीकरण कार्बन डाइऑक्साइड हटाने के लिए एकमात्र विकल्प माना जाता है। 2100 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने के लिए, परिदृश्य पी 1 को कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस) तकनीकों ( परिदृश्य पी 1 को कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (सीसीएस) तकनीकों की आवश्यकता नहीं है ) की आवश्यकता नहीं है। दूसरा चरम परिदृश्य ऊर्जा और संसाधन-केंद्रित पी 4 है, जिसमें आर्थिक विकास और वैश्वीकरण से जीवन शैली के व्यापक रूप से अपना लेने का कारण बनता है, जिसमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का उच्च स्तर होता है। यह परिवहन ईंधन की उच्च मांग और पशुधन उत्पादों की उच्च खपत के कारण होता है।
इस परिदृश्य के तहत, वातावरण से सीओ 2 (जीटीसीओ 2) के लगभग 1,218 गिगाटन को बायोनेर्जी के व्यापक उपयोग के साथ सीसीएस प्रौद्योगिकियों द्वारा समाप्त किया जाना होगा। पी4 के तहत, 2030 तक, सीओ 2 उत्सर्जन 2010 के स्तर से 4 फीसदी अधिक होगा। बिजली आपूर्ति का 25 फीसदी नवीनीकरण से आएगा और प्राथमिक ऊर्जा के लिए कोयला उपयोग में 59 फीसदी की कटौती होगी।
दुनिया को स्वच्छ औद्योगिक प्रणालियों की आवश्यकता क्यों ?
ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कड़ाई से सीमित करने के रास्ते में उद्योग से सीओ 2 उत्सर्जन 2010 के स्तर से 2050 में 75-90 फीसदी कटौती देखने का अनुमान है; यदि लक्ष्य 2 डिग्री सेल्सियस तक घटाया जाता है, तो उत्सर्जन में 50-80 फीसदी तक कटौती होगी। ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए भवनों में ऊर्जा की मांग में बिजली के हिस्से को 2050 तक लगभग 55-75 फीसदी होना चाहिए, जबकि 2 डिग्री सेल्सियस के लिए यह आंकड़े 50-70 फीसदी होंगे। यदि दुनिया को 1.5 डीसी ग्लोबल वार्मिंग परिदृश्य पर विचार करना है तो परिवहन क्षेत्र में 2020 तक कम उत्सर्जन ऊर्जा की हिस्सेदारी में कम से कम 5 फीसदी वृद्धि जरूरी है और 2050 तक यह हिस्सेदारी 35 से 65 फीसदी होनी चाहिए। । 2 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग के लिए, यह वृद्धि 25-45 फीसदी होगी।
(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता है और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 8 अक्टूबर 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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