चुनाव 2017: पंजाब में लोकलुभावन नीतियों से आर्थिक मंदी और बेरोजगारी को बढ़ावा
पंजाब के अमृतसर से सटे तरनतारन में एक किराने की दुकान से गुजरता हुआ एक सायकिल सवार। चुनावी जंग के लिए तैयार राज्यों में उद्योग, सेवाएं और कुल अर्थव्यवस्था की विकास दर राष्ट्रीय औसत से कम है। साथ ही इन राज्यों के युवाओं में बेरोजगारी की दर भारतीय औसत से ज्यादा है।
पंजाब के उद्योग, अन्य सेवाएं और कुल अर्थव्यवस्था की विकास दर 5.9 फीसदी है, जो कि 7.6 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से नीचे है। राज्य के युवाओं में बेरोजगारी की दर 16.6 फीसदी है, जबकि भारतीय औसत 10.2 फीसदी है। हालांकि, राज्य में साक्षरता में वृद्धि हुई है, लेकिन फिर भी प्राथमिक स्तर में स्कूल छोड़ने (ड्रॉप आउट) की दर में वृद्धि के साथ शिक्षा प्रणाली लड़खड़ा रही है। वर्ष 2014-15 में स्कूल छोड़ने की दर 1.3 फीसदी से बढ़ कर वर्ष 2015-16 में 3.1 फीसदी हुई है।
इस आर्थिक पृष्ठभूमि के खिलाफ 4 फरवरी 2017 को भारत के 11 वें सबसे समृद्ध राज्य पंजाब में 1.974 करोड़ मतदाता नई सरकार चुनने के लिए अपना वोट देंगे। राज्य में पिछले एक दशक में ‘शिरोमणि अकाली दल-भारतीय जनता पार्टी’ गठबंधन का बोलबाला रहा है। राज्य में कई लोकलुभावन नीतियां चल रही हैं, जो पर्याप्त रूप से कृषि संकट के समाधान के बिना शिक्षा और सार्वजनिक निवेश के लिए राशि में कटौती करती प्रतीत होती हैं।
वर्ष 2014-15 में पंजाब में, 96,638 रुपए की प्रति व्यक्ति आय थी। पड़ोसी राज्य हरियाणा के 124,092 रुपए से 22 फीसदी कम है।
कुछ समृद्ध राज्यों के प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद, 2014-15
Source: Reserve Bank of India's Handbook of Statistics; At constant (2011-12) prices
पंजाब की प्रति व्यक्ति आय लगभग तीन गुना वृद्धि हुई है। वर्ष 2004-05 में 33,103 रुपए से बढ़ कर वर्ष 2014-15 में 96,638 रुपए तक हुआ है। जबकि हरियाणा के लिए यह वृद्धि तीन गुना से भी ज्यादा हुई है। वर्ष 2004-05 में 37,972 रुपए से बढ़ कर वर्ष 2014-15 में 1,20,492 रुपए तक हुआ है।
पूर्व अनुमान के अनुसार, 2015-16 में पंजाब के लिए प्रति व्यक्ति आय में 5 फीसदी वृद्धि होकर 101498 रुपए तक होने की संभावना है, लेकिन यह वृद्धि आर्थिक समस्याओं को प्रतिबिंबित नहीं करती है।
पांच वर्षों में पहली बार राष्ट्रीय औसत से बेहतर कृषि विकास, लेकिन समस्या बरकरार
हालांकि, वर्ष 2010 के बाद पहली बार वर्ष 2015-16 में, राष्ट्रीय कृषि विकास दर की तुलना में पंजाब की उच्च कृषि विकास दर दर्ज करने की संभावना है लेकिन औसत खेत आकार कम हो रहे हैं। वर्ष 2010-11 में कृषि जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, 2005-06 से 2010-11 तक के पांच सालों में खेत का औसत आकार 3.9 हेक्टेयर से 3.5 हेक्टेयर हुआ है। यही नहीं कृषि विकास की गति धीमी है और कई युवाओं की अब खेती में रुचि नहीं रही है, जैसा कि ‘एशिया पैसिफिक जर्नल’ की इस रिपोर्ट में बताया गया है।
पंजाब सरकार के आंकड़ों के अनुसार, नौ वर्षों के दौरान कृषि विकास की दर में गिरावट हुई है। वर्ष 2005-06 में 0.95 फीसदी से गिरकर वर्ष 2014-15 में (-)3.40 फीसदी हुआ है।
पंजाब में कृषि विकास दर, 2005-16
Source: Economic and Statistical Organization, Punjab Government
पंजाब के आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 के अनुसार अनुसंधान और विकास का अभाव और सिंचाई सुविधाओं का फायदा उठाने की असमर्थता ऐसे मुद्दे हैं, जिससे कृषि का विकास धीमा हो सकता है। जल एक उभरता हुआ संकट है। पंजाब में 142 भूजल ब्लॉक में से 110 अति-दोहित हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड न मार्च 2016 में विस्तार से बताया है।
वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, कृषि विकास में गिरावट का गंभीर प्रभाव कामकाजी आबादी वाले हिस्से के उन 63 लाख लोगों पर हुआ है, जो कृषि क्षेत्र से संबंधित हैं।
इसी कारण से किसानों के आत्महत्या करने के मामलों में भी वृद्धि हुई है। वर्ष 2016 में लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब के अनुसार, भारत में किसानों के आत्महत्या के मामले में पंजाब तीसरे स्थन पर है। वर्ष 2015 में 449 किसानों के आत्महत्या करने की सूचना मिली है।
सेवा और उद्योग में सामान्य रुप से उन लोगों के लिए रोजगार के मौके हों , जो कृषि क्षेत्र से बाहर जाना चाहते हैं । पंजाब में ऐसा हो भी रहा है, लेकिन यह आवश्यक दर से होता नजर नहीं आ रहा है।
सेवाओं में वृद्धि, लेकिन पर्याप्त नौकरियां नहीं
सेवा क्षेत्र में विकास हो रहा है, लेकिन यह पर्याप्त नौकरियां प्रदान करता प्रतीत नहीं होता है या वैसी नौकरियां जो राज्य के शिक्षित युवा या ग्रामीण क्षेत्रों के लोग चाहते हैं । सेवा क्षेत्र में रोजगार वर्ष 2012-13 में 36.7 फीसदी से बढ़ कर वर्ष 2015-16 में 39 फीसदी हुआ है।
इसी अवधि के दौरान प्राथमिक क्षेत्र में रोजगार 37.6 फीसदी से गिरकर 34.2 फीसदी हुआ है, जैसा कि 14 दिसंबर, 2016 को राज्यसभा के एक जवाब में बताया गया है।
वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार राज्य में करीब 70 लाख लोग सेवा क्षेत्र के रोजगार से जुड़े हुए हैं।
‘एशिया पैसिफिक’ जर्नल के एक अध्ययन के अनुसार, “तकनीकी कौशल की कमी के कारण ग्रामीण युवाओं को शहरी लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा में कठिनाई होती है।अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए वे विदेशों की ओर जाने लगे हैं और ग्रामीण युवाओं में भी यह प्रवृति खूब देखी जा रही है।”
पंजाब के आर्थिक सर्वेक्षण- 2015-16 के मुताबिक 7.6 फीसदी की भारत की विकास दर की तुलना में वर्ष 2015-16 के लिए पंजाब की अर्थव्यवस्था के लिए 5.9 फीसदी होने की संभावना है। जाहिर तौर पर यह पर्याप्त रोजगार के अवसर उत्पन्न करने के लिए अपर्याप्त है। वर्ष 2015-16 के लिए माध्यमिक (औद्योगिक और संबद्ध गतिविधियों) और तृतीयक (सेवा) सेक्टरों के लिए अनुमानित विकास दर राष्ट्रीय औसत की तुलना में कम होने की संभावना है।
वाशिंगटन डीसी में स्थित एक अमरिकी संस्था ‘सीएटीओ’ संस्थान द्वारा वर्ष 2012 की इस टिप्पणी के अनुसार बढ़ती सब्सिडी को पंजाब की विकास दर में गिरावट के लिए एक प्रमुख कारण के रूप में उद्धृत किया गया है। क्योंकि बढ़ती सब्सिडी के कारण सरकारी निवेश के लिए पैसे की कमी होती है।
किसानों को मुफ्त बिजली और निचली जातियों के विवाहित महिलाओं के लिए नकदी जैसी लोकलुभावन नीतियां भी धीमें विकास के लिए जिम्मेदार हो सकती हैं, जैसा कि ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने मई 2011 की रिपोर्ट में बताया है।
प्रतिबंधात्मक कानून की वजह से बढ़ती जमीन की कीमतें, कृषि पर जोर देने के कारण उच्च शिक्षा की उपेक्षा, 1990 के दशक के बाद से राष्ट्रीय औसत से नीचे निवेश दर और भ्रष्टाचार पंजाब में धीमी गति से औद्योगिक विकास के कुछ मुख्य कारण हैं, जैसा कि सएटीओ संस्थान द्वारा 2012 के इस पेपर में बताया गया है।
पेपर के अनुसार नई दिल्ली द्वारा उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी राज्यों में कारखानों की स्थापना के लिए दिए गए टैक्स ब्रेक से भी पंजाब के औद्योगिक क्षेत्र प्रभावित हुए हैं, क्योंकि इससे औद्योगिक पूंजी राज्य से बाहर चली गई।
प्राथमिक शिक्षा की उपेक्षा, और पंजाब में ड्रॉप आउट की समस्या
पंजाब के शिक्षा आंकड़े बताने से ज्यादा छिपाते हैं। साक्षरता और सामान्य शिक्षा के बजट में वृद्धि हुई है, लेकिन स्कूलों में छात्रों को रोके रखने के लिए प्राथमिक शिक्षा और प्रोत्साहन पर खर्च में कटौती हुई है, जिससे एक साल में प्राथमिक स्कूल छोड़ने वालों की दर दोगुनी हुई है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के आंकड़ों के अनुसार, महिला साक्षरता दर वर्ष 2011 में 70.7 फीसदी से 11 प्रतिशत अंक बढ़ कर 2015-16 में 81.4 फीसदी हुआ है। पुरुष साक्षरता दर में 7 प्रतिशत अंक की धीमी वृद्धि देखी गई है।यह वर्ष 2011 में 80.44 फीसदी से बढ़ कर वर्ष 2015-16 में 87.5 फीसदी हुआ है।
औद्योगिक और सेवा क्षेत्र की नौकरियों के लिए क्यों बढ़ती साक्षरता दर युवा पंजाबियों को तैयार करने के लिए काफी नहीं है, इसे समझने के लिए जिला सूचना प्रणाली के आंकड़ों को देखना होगा। आंकड़े बताते हैं कि प्राथमिक स्तर पर वार्षिक ड्राप आउट दर में वृद्धि हुई है। यह वर्ष 2014-15 1.3 फीसदी से वर्ष 2015-16 में 3.1 फीसदी हुई है।
प्रोत्साहन के लिए धन में कटौती छात्रों के डॉप आउट का मुख्य कारण हो सकता है। 32 सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में 50,000 से अधिक छात्रों को मध्यान्ह भोजन नहीं परोसा जा रहा है, जैसा कि एनडीटीवी की सितंबर 2016 की यह रिपोर्ट कहती है। अक्सर स्कूलों में छात्रों को बनाए रखने के लिए एक प्रोत्साहन के रूप में उद्धृत किए जाने वाले मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम के लिए राशि में कटौती की गई है। वर्ष 2015-16 में इसे 277 करोड़ रुपए से कम कर वर्ष 2016-17 में 250 करोड़ रुपए किया गया है।
कक्षाओं का अभाव, क्लास में अत्यधिक बच्चे यानी भीड़-भाड़ और बुनियादी सुविधाएं जैसे कि बिजली या पीने के पानी की अनुपलब्धता भी छात्रों के स्कूल छोड़ने कारण बनती हैं, जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने मई 2016 की इस रिपोर्ट में बताया गया है।
तकनीकी शिक्षा से अलग सामान्य शिक्षा के लिए बजट में 15.6 फीसदी की वृद्धि हुई है। वर्ष 2015-16 में यह 1,820.8 करोड़ रुपए से बढ़ कर वर्ष 2016-17 में 2,106.5 करोड़ रुपए हुआ है।
सर्वभौमिक शिक्षा के लिए एक केंद्रीय सरकारी कार्यक्रम सर्व शिक्षा अभियान के लिए राशि में 15 फीसदी की कटौती हुई है। वर्ष 2015-16 में 890 करोड़ रुपए से यह कम होकर वर्ष 2016-17 में 750 करोड़ रुपए हुआ है।
हिंदुस्तान टाइम्स की दिसंबर 2016 की इस रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने ड्रॉप आउट को कम करने के लिए “स्मार्ट क्लास” की शुरुआत की है। स्मार्ट क्लास का मतलब एक ऐसी कक्षा से है. जहां विशेष सॉफ्टवेयर के साथ कंप्यूटर, ओडियो-वीडियो डेवाइस के जरिए पढ़ाया जाता है। इन कक्षाओं का उद्देश्य उन बच्चों को प्रोत्साहन देना है, जो टीवी देखने के बहाने स्कूल में दाखिला लेते हैं और उन्हें उसी माध्यम से पढ़ाया और सिखाया जाता है।
पंजाब का शिक्षा संकट आंशिक रूप से ग्रामीण बेरोजगारी में प्रकट होता है। हो सकता है कि उतनी नौकरियां न हों, जितने की युवा पंजाबियों को जरूरत है । फिर भी युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित नहीं किया जा रहा है।
ग्रामीण इलाकों में युवा बेरोजगारी दर रष्ट्रीय औसत की तुलना में सात फीसदी ज्यादा
भारत में आठवां सबसे अधिक ग्रामीण युवा बेरोजगारी दर पंजाब का है। यह ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय औसत से अधिक है। युवा रोजगार दर, श्रम बल में 18-29 वर्ष की उम्र वाले ऐसे युवाओं के अनुपात को दर्शाता है, जो बेरोजगार हैं।
युवा बेरोजगारी दर, 2015-16
Source: Labour Bureau; Unemployment rate for persons between 18-29 years in percentage.
‘इकनामिक एंड पलिटकल वीकली” के वर्ष 2014 के इस पेपर के अनुसार, कृषि क्षेत्र में मशीनीकरण में वृद्धि और सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों में काम करने के लिए आवश्यक कौशल की कमी के कारण पंजाब के ग्रामीण शिक्षित युवा अधर में लटके हैं।
‘द मिंट’ में छपी जून 2016 की एक रिपोर्ट के अनुसार रोजगार के अवसर प्रदान करने और कृषि पर ध्यान केंद्रित करने में राज्य की विफलता ने भी बेरोजगारी को बढ़ाने में योगदान दिया है।
(सालवे विश्लेषक हैं। नायर मुंबई विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और सांख्यिकी में स्नातक हैं। दोनों इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।))
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 31 जनवरी 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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