चुनाव में भड़काऊ भाषण के अभियुक्त 3 गुना अधिक सफल
पिछले 12 वर्षों में, चुनावी उम्मीदवारों, जिन्होंने राष्ट्र स्तर पर विभिन्न चुनाव लड़ा है, उनके द्वारा स्वयं बताए गए अपराध रिकार्ड पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार, बिना किसी आपराधिक रिकॉर्ड वाले उम्मीदवारों की तुलना में वैसे उम्मीदवार जो घृणापूर्ण या भड़काऊ भाषण देने के आरोपी हैं, वह तीन गुना अधिक सफल हैं।
इन आंकड़ों की दृष्टि से देखा जाए तो पिछले 12 वर्षों के दौरान, बिना किसी आपराधिक रिकॉर्ड वाले 10 फीसदी उम्मीदवारों ने चुनाव जीता है जबकि आपराधिक मामलों के आरोप वाले उम्मीदवारों के लिए यह आंकड़े 20 फीसदी हैं।
"भड़काऊ भाषण" के आरोप और सफलता दरें
भारत निर्वाचन आयोग (ईसी) के लिए उम्मीदवारों द्वारा स्वयं बताए अपराध रिकॉर्ड के अनुसार कम से कम 70 सांसदों एवं विधायकों के खिलाफ भड़काऊ भाषण के मामले लंबित हैं।
28 भाजपा सांसद/ विधायकों के खिलाफ "भड़काऊ भाषण" के मामले
देश भर में, केंद्रीय मंत्रियों, सांसदों और विधायकों सहित नेताओं द्वारा भड़काऊ भाषण और बयानों का सिलसिला चल रहा है।
हाल ही के कुछ उद्हारण:
केंद्रीय मंत्री
सांसद
विधायक
राजनीतिक दलों के प्रमुख
कैसे होती है “भड़काऊ भाषण” की पहचान, कई कानून हैं लागू
वर्तमान में “भड़काऊ भाषण” की कोई विशिष्ट परिभाषा नहीं है, हालांकि यह करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा विधि आयोग को यह काम सौंपा गया है।
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की इनके समेत, भड़काऊ भाषण से संबंधित कई वर्ग हैं:
- आईपीसी की धारा 153 (ए) - धर्म, भाषा, नस्ल वगैरह के आधार पर लोगों में नफरत फैलाने की कोशिश;
- 153 (बी) - संप्रभुता के खिलाफ बयान
- 295 (ए) - धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के उद्देश्य से बयान;
- 505 (2) - शत्रुता, घृणा या वर्गों के बीच दुर्भावना को बढ़ावा देने वाले बयान
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 125 - चुनाव के संबंध में वर्गों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना।
भाजपा ने "भड़काऊ भाषण" के आरोप वाले उम्मीदवारों की सबसे अधिक संख्या में टिकट दिया
पिछले 12 वर्षों के दौरान, विभिन्न संसदीय और राज्य विधानसभा चुनावों में, “भड़कऊ भाषण” के आरोप वाले कम से कम 399 उम्मीदवारों को राजनीतिक दलों द्वारा मैदान में उतारा गया है। 97 उम्मीदवारों के साथ, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) इस सूची में सबसे आगे है।
भड़काऊ भाषण मामलों के साथ वाले उम्मीदवार
पंजीकरण के समय निर्वाचन आयोग को दिए गए शपथ का किस प्रकार करते हैं राजनीतिक दल उल्लंघन
पंजीकरण के समय, प्रत्येक राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग के लिए "समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र" के सिद्धांतों का पालन करने का विश्वास दिलाते हुए शपथ लेना पड़ता है।
पार्टी को नियमों का ज्ञापन की एक प्रति प्रदान करनी चाहिए जिसमें एक विशिष्ट प्रावधान शामिल होनी चाहिए - लोक अधिनियम, 1951 के प्रतिनिधित्व से तैयार की गई – जो कहती है कि "... .और ऐसे ज्ञापन या नियमों और विनियमों एक विशिष्ट प्रावधान शामिल होगा कि संघ या संस्था भारत के संविधान की सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखेगी एवं और समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के सिद्धांतों का ध्यान रखेगी और भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को कायम रखेगी।"
भड़काऊ भाषण मामले वाले उम्मीदवारों को टिकट देकर, राजनीतिक पार्टियां चुनाव आयोग को दिए शपथ का उल्लंघन करती हैं।
- आईपीसी की धारा 153 (ए) उन लोगों पर लगाई जाती है, जो धर्म, भाषा, नस्ल वगैरह के आधार पर लोगों में नफरत फैलाने की कोशिश करते हैं।
- आईपीसी की 153 (बी) उन लोगों पर लगाई जाती है जो राष्ट्रीय अखंडता के खिलाफ काम करते हैं।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 295ए के मुताबिक़ दूसरों की धार्मिक भावनाएं आहत करने पर जेल का प्रावधान है।
- ऐसा कंटेंट जिसके तहत लोगों में जानबूझ कर अफवाह फैलाने की कोशिश हो, में आईपीसी की धारा 505 लगाने का प्रावधान है।
- आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) में लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत की धारा 125 के तहत कोई भी व्यक्ति निर्वाचन प्रक्रिया के दौरान धर्म, वंश, जाति समुदाय या भाषा के जरिए भारत के नागरिकों के विभिन्न वर्गों के बीच शत्रुता या घृणा की भावनाओं को बढ़ावा देगा या प्रयास करेगा तो यह संज्ञेय अपराध का दोषी होगा।)
(मनोज के. आईआईटी दिल्ली से स्नातक हैं एवं सेंटर फॉर गवरनेंस एंड डिवलपमेंट के संस्थापक हैं। मनोज की शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही में एक विशेष रुचि है।
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 28 मार्च 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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