जम्मू-कश्मीर को तम्बाकू देता है उच्च टैक्स राजस्व और सीओपीडी संकट भी
श्रीनगर: क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) के उच्चतम प्रसार वाले चार भारतीय राज्यों में से, जम्मू और कश्मीर (जे एंड के) में 2017-18 तक सात वर्षों में 5,530 करोड़ रुपये की तंबाकू बिक्री दर्ज की गई है, जैसा कि विशेष रूप से इंडियास्पेंड द्वारा पहुंचे गए राज्य बिक्री टैक्स के आंकड़ों से पता चलता है। यह राशि जम्मू में ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान’ की तर्ज पर चार अत्याधुनिक अस्पतालों के निर्माण के लिए आवश्यक धन के बराबर है।
खांसी, घरघराहट और सांस फूलने जैसी लक्षण के साथ सीओपीडी भारत में दूसरी सबसे अधिक जानलेवा बीमारी है। यह बीमारी 2017 में लगभग 10 लाख भारतीयों की मौत के लिए जिम्मेदार है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मार्च 2018 में, वाशिंगटन विश्वविद्यालय के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज अध्ययन का हवाला देते हुए बताया है। फेफड़ों के वायुमार्ग की सूजन के कारण, यह ऑक्सीजन को निकालने और कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालने वाले वायु थैली को नष्ट कर देता है।
‘द लैंसेट’ में प्रकाशित 2018 के एक अध्ययन के अनुसार, वायु प्रदूषण और धूम्रपान को भारत में सीओपीडी के प्राथमिक कारणों के रूप में माना गया है।
3 मार्च, 2019 को इंडियास्पेंड को दिए साक्षात्कार में पुणे स्थित चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन के निदेशक सुंदरदीप सालवी कहते हैं, “जम्मू और कश्मीर खाना पकाने और गर्म करने के लिए बायोमास ईंधन के व्यापक रुप से जलने साथ ही व्यापक रूप से धूम्रपान का अनुभव करता है, जो संयुक्त रुप से राज्य में सीओपीडी के लिए 16-18 फीसदी के व्यापक दर का कारण बनते हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 5-7 फीसदी है।”
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा प्रति 100,000 जनसंख्या पर 4,750 के बराबर या ज्यादा सीओपीडी आंकड़े रिपोर्ट करता है,जो पूरे भारत में सबसे ज्यादा है।
जम्मू और कश्मीर में, लगभग 470,000 पुराने रोगियों में सीओपीडी (एईसीओपीडी) के तीव्र प्रसार की सालाना लागत लगभग 210 करोड़ रुपए है, जो चार मातृत्व अस्पतालों को स्थापित करने के लिए पर्याप्त है, जैसा कि एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है।
द इकोनॉमिक टाइम्स ने एक गैर-लाभकारी संस्थान, वॉलेंट्री हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सूत्रों का हवाला देते हुए कहा है, " उत्तर में जम्मू और कश्मीर 'स्मोकिंग कैपिटल' के रूप में तेजी से उभर रहा है।"
ग्लोबल टोबैको सर्वे 2016-17 के अनुसार, पांच में से एक या जम्मू-कश्मीर के 29.8 फीसदी लोग धूम्रपान करते हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत 10.7 फीसदी है। धूम्रपान की आदतों से यह राज्य भारतीय राज्यों में छठे स्थान पर हैं।इस सर्वेक्षण के अनुसार, मेघालय, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और मिजोरम आरोही क्रम में इससे आगे हैं।
यह समझने के लिए कि जम्मू-कश्मीर में सिगरेट और बीड़ी सहित तंबाकू और तंबाकू उत्पादों का उपयोग कितना व्यापक है, इंडियास्पेंड ने इन वस्तुओं पर राज्य में एकत्र बिक्री टैक्स पर सात साल से 2017-18 तक के डेटा को देखा है।
हमने पाया कि तंबाकू और तम्बाकू उत्पादों से राज्य के बिक्री टैक्स विभाग को 70 से अधिक वस्तुओं के बीच अपना उच्चतम राजस्व प्राप्त हुआ है, जिसमें ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स शामिल हैं।
Source: Jammu and Kashmir sales tax department Note: Total consumption of tobacco and tobacco products is our analysis of the data
सरकार द्वारा इन वस्तुओं पर लगाए गए 40 फीसदी बिक्री टैक्स के आधार पर हमारे अनुमानों के अनुसार,राज्य में उपयोगकर्ताओं ने 2017-18 तक सात वर्षों में 5,530 करोड़ रुपये के तंबाकू उत्पादों का उपभोग किया है। 2018-19 में राज्य में वस्तु एवं सेवा कर व्यवस्था लागू होने के बाद, कर की दर अब घटकर 28 फीसदी रह गई है।) हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि वार्षिक रूप से, राज्य में तंबाकू उत्पादों की खपत औसतन 800 करोड़ रुपये है। इन बिक्री आंकड़ों से वर्ष के हिसाब से डेटा सुझाव देते हैं कि राज्य में तंबाकू उत्पादों की खपत बढ़ रही है। सिर्फ 2017-18 में गिरावट देखी गई थी।
28.2 फीसदी धूम्रपान करने वालों में सीओपीडी है
श्रीनगर में शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसकेआईएमएस) में जनरल मेडिसिन विभाग के प्रमुख परविज कौल कहते हैं, "हमारे अध्ययनों से पता चला है कि कश्मीर में बायोमास जलने और धूम्रपान करने का बहुत अधिक प्रचलन है। सीओपीडी के लिए दोनों जिम्मेदार हैं। धूम्रपान स्वयं बायोमास जलाने का एक रूप है।"
कश्मीर के लोगों में फेफड़े कम काम करते हैं और इसके पीछे भी धूम्रपान ही जिम्मेदार है, जैसा कि कौल और अन्य द्वारा किए गए और अक्टूबर 2016 में इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ट्यूबरकुलोसिस एंड लंग डिजीज में प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया है।
टीम ने क्रोनिक एयरफ्लो सीमा या सीएएल की घटनाओं को मापा, जो फुफ्फुसीय कामकाज को कम करता है।
श्रीनगर के चेस्ट डिजीज हॉस्पिटल (सीडीएच), वरिष्ठ सलाहकार नजीर शाह कहते हैं, "हमारे पास सभी मौसमों में सीओपीडी से पीड़ित रोगी आते हैं। हमने देखा है कि उनमें से अधिकांश तंबाकू सेवन करते हैं।"
फिर भी, सितंबर 2018 के एक और अध्ययन में निष्कर्ष निकाला गया कि कश्मीर में सीओपीडी की व्यापकता है और यह धूम्रपान से जुड़ा है। इस अध्ययन के अनुसार, गैर-धूम्रपान करने वालों, पूर्व-धूम्रपान करने वालों और वर्तमान धूम्रपान करने वालों के बीच सीओपीडी का प्रसार 2.7 फीसदी, 22 फीसदी और 28.2 फीसदी था। इसके अलावा, सीओपीडी के 59.5 फीसदी लोगों में तंबाकू सेवन का इतिहास रहा है।
खतरों के बारे में कम जागरूकता
श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) में वरिष्ठ मनोचिकित्सक और प्रोफेसर अरशद हुसैन कहते हैं, “जागरूकता और अपर्याप्त वकालत की कमी के कारण तंबाकू का उपयोग, विशेष रूप से सिगरेट पीना, कश्मीर में सामाजिक रूप से स्वीकार्य है।”
हुसैन कहते हैं, “तम्बाकू के इस व्यापक प्रचलन से, विशेष रूप से धूम्रपान, जो कि बहुत ही तनावपूर्ण क्षेत्र बन गया है, लोगों को रोज़मर्रा की ज़िन्दगी से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। जब भी लोग चिंता और तनाव का अनुभव करते हैं, तो वे तंबाकू जैसे पदार्थों का सहारा लेकर उसे दूर करने की कोशिश करते हैं।"
जम्मू-कश्मीर की 45 फीसदी आबादी मानसिक परेशानी का अनुभव करती है, जैसा कि मई 2016 में मेडिसिन सैंस फ्रंटियर्स (या डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स, इंटरनैशनल मेडिकल ह्यूमैनिटेरियन ऑर्गनाइजेशन) द्वारा कश्मीर में मानसिक स्वास्थ्य पर एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में पता चलता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर घाटी में लगभग 18 लाख वयस्कों में (जनसंख्या का 45 फीसदी) महत्वपूर्ण मानसिक संकट के लक्षण हैं।
हुसैन ने इस क्षेत्र में धूम्रपान के खिलाफ आक्रामक सार्वजनिक अभियान की कमी की ओर इशारा किया। उन्होंने बताया, "उदाहरण के लिए, कुछ समय पहले, एक आदेश जारी किया गया था कि कार्यालयों या सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान की घटनाओं की सूचना दी जाए, लेकिन इसे हल्के में लिया गया है और लोग कार्यालयों और सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान करते रहे हैं।"
अरशद अपने अनुभव से बताते हैं कि धूम्रपान का बढ़ता प्रचलन न केवल श्वसन रोगों के प्रमुख कारणों में से एक है, बल्कि युवाओं में नशीली दवाओं के दुरुपयोग के लिए एक प्रवेश द्वार भी है। मनोचिकित्सक कहते हैं, "अधिकारियों को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि युवाओं को खेल जैसी गतिविधियों में कैसे शामिल किया जा सकता है जो इस स्थिति से बचने में मदद कर सकते हैं।"
श्रीनगर के इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज़ इन एजुकेशन (आईएएसई) में मनोविज्ञान पढ़ाने वाले मलिक रोशन आरा कहते हैं, “इस क्षेत्र में सशस्त्र और राजनीतिक संघर्ष की ताजा लहरें तंबाकू के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही हैं। हिंसा और राजनीतिक अशांति की बार-बार की घटनाएं अक्सर लोगों को उनके घरों तक ही सीमित कर देती हैं। इससे लोगों की चिंता बढ़ती है। इसलिए, लोगों को तंबाकू का उपयोग तनाव-बस्टर के रूप में करते हैं, क्योंकि तब जब तंबाकू का उपयोग हमारी संस्कृति में स्वीकार्य माना जाता है।"
सीओपीडी और रोगियों और परिचारकों के लिए इसकी उच्च लागत
एनल्स ऑफ ग्लोबल हेल्थ में 22 जनवरी, 2019 को प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में अस्पताल में भर्ती होने और रोगियों और उनके परिचारकों के कार्य-दिवस की आउट-पॉकेट लागतों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया।
अध्ययन में अनुमान लगाया है कि, " भारत में एईसीओपीडी (सीओपीडी की एक्यूट एक्ससेर्बेशन) की लागत भारतीय मूल्य में 44,390 रुपए प्रति प्रवेश है और ज्यादातर (71 फीसदी) प्रत्यक्ष अस्पताल की लागत से संबंधित है। महत्वपूर्ण रूप से, कुल लागत का लगभग 30 फीसदी परिवहन, दवाओं और नैदानिक परीक्षणों और आउट-ऑफ-पॉकेट खर्चों से संबंधित था। इन परिणामों से पता चलता है कि एईसीओपीडी की लागत रोगियों और उनके परिवारों के लिए एक बड़ा आर्थिक बोझ हो सकता है।"
इस अध्ययन ने रोग के वित्तीय बोझ की गणना की है : 2011 की जनगणना के अनुसार, राज्य की आबादी 12 मिलियन के करीब है। 40 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों में सीओपीडी के 19फीसदी की ‘ व्यापकता’ को देखते हुए, राज्य में बीमारी के साथ अनुमानित 470,000 रोगी हैं।"
यह मानते हुए कि सीओपीडी के कम से कम आधे रोगियों में प्रति वर्ष दो प्रकोपन होंगे, हम अनुमान लगा सकते हैं कि जम्मू और कश्मीर में एईसीओपीडी पर लगभग 2.1 अरब रुपये खर्च किए गए हैं।"
धूम्रपान के खतरों के बारे में जागरूकता के निम्न स्तर को देखते हुए, अधिकांश विशेषज्ञ आदत के खिलाफ एक मजबूत अभियान का सुझाव देते हैं, जिसमें उपयोगकर्ताओं को सीओपीडी से निपटने की उच्च लागत के बारे में भी बताया जाए।
धूम्रपान और अन्य तंबाकू उत्पादों के उपयोग के खिलाफ एक मजबूत अभियान शुरू करने की तत्काल आवश्यकता है। लोगों को सीओपीडी जैसे रोगों के लक्षणों से अवगत कराया जाना चाहिए, जो सीधे धूम्रपान से संबंधित हैं। लोगों को सीओपीडी के इलाज की लागत के बारे में भी सूचित किया जाना चाहिए-यह एक निवारक के रूप में कार्य कर सकता है।
-- शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में जनरल मेडिसिन विभाग के प्रमुख परवेज कौल
यहां तक कि 21 वीं सदी में, सिगरेट पीने और अन्य तंबाकू उत्पादों के उपयोग से कश्मीर में सामाजिक स्वीकार्य हैं। हमें तंबाकू के उपयोग से होने वाले हानिकारक प्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक करना होगा। हमें लोगों को यह बताने की भी आवश्यकता है कि धूम्रपान नशा के लिए प्रवेश द्वार है। नशीली दवाओं की लत का एक बड़ा हिस्सा धूम्रपान की आदतों से नशीली दवाओं तक पहुंचता है। सरकार को बुनियादी ढांचा बनाकर लोगों के लिए खेल और अन्य गतिविधियों को भी आकर्षक बनाना चाहिए।
-- सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) के वरिष्ठ मनोचिकित्सक और प्रोफेसेर अरशद हुसैन
राज्य में शांतिपूर्ण माहौल बनाने से महीनों के भीतर समस्या का आधा हल हो सकता है। चिंता का एक बड़ा कारण यह है कि अधिक से अधिक लोग धूम्रपान या अन्य तंबाकू उत्पादों के उपयोग का सहारा लेते हैं। और मुझे लगता है कि लोगों को जागरूक किया जाना चाहिए कि धूम्रपान और तंबाकू का उपयोग उनके जीवन को करने की क्षमता है।
-- इंस्टिटूट ऑफ एडवासंड स्टडीज इन एजुकेशन (आईएएसई) में सहायक प्रोफेसर मलिक रोशन आरा
यह लेख पहली बार यहां HealthCheck पर प्रकाशित हुई थी।
(परवेज पत्रकार हैं और श्रीनगर में रहते हैं।)
यह आलेख अंग्रेजी में 28 जून 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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