जानकारी की कमी से स्वस्थ जीवन पर प्रभाव
ग्लोबल बर्डन ऑफ डीज़ीज (वाशिंगटन विश्वविद्यालय में स्वास्थ्य मेट्रिक्स और मूल्यांकन के लिए संस्थान के नेतृत्व में एक पहल ) अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2013 में भारतीय पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 64.2 वर्ष दर्ज की गई है जोकि 1990 के आंकड़ों से 6.9 वर्ष अधिक है।
भारतीय महिलाओं की जीवन प्रत्याशा 68.5 दर्ज की गई है जोकि 1990 के आंकड़ों से 10.3 वर्ष अधिक है।
जीवन प्रत्याशा में वृद्धि होना एक अच्छी खबर है। लेकिन यह और बेहतर होता यदि पुरुष एवं महिलाओं दोनों के लिए ‘स्वस्थ्य जीवन प्रत्याशा’ में वृद्धि होती।
पुरुषों के स्वस्थ जीवन प्रत्याशा में 6.4 वर्ष की वृद्धि हुई है जबकि महिलाओं के स्वस्थ जीवन प्रत्याशा में 8.9 वर्ष की वृद्धि दर्ज की गई है।
जीवन प्रत्याशा एवं स्वस्थ्य जीवन प्रत्याशा के बीच का अंतर संकेत देता है कि लोगों के जीवन के कुछ वर्ष किसी प्रकार की बीमारी या चोट की चपेट में बीतेंगे।
जीवन प्रत्याशा एवं स्वस्थ जीवन प्रत्याशा के बीच के अंतर को बंद करना महत्वपूर्ण है। इस अंतर को बंद करना इस लोकप्रिय धारणा को दूर करने पर जोर देता है कि बढ़ती उम्र में स्वास्थ्य बिगड़ जाती है।
निम्न पर विचार करें :
- इंडियन हार्ट वाच ( भारत के 11 शहरों में किए हृदय अध्ययन ) में भाग लेने वाले 6,000 प्रतिभागियों में से करीब एक तिहाई लोग उच्च रक्तचाप से ग्रसित थे लेकिन उनमें से भी केवल 57 फीसदी लोगों को अपनी स्थिति के विषय में जानकारी थी।
- वर्ष 2014 में कोयंबटूर में किए गए एक अध्ययन में भाग लेने वाले केवल 48 फीसदी उत्तरदाता ही हृदय जोखिम कारकों के संबंध में जागरुक थे।
- वर्ष 2014 में हुए पैन इंडिया अध्ययन में भाग लेने वाले 12,608 उत्तरदाताओं में से 21 फीसदी लोगों को उच्च रक्तचाप की शिकायत थी लेकिन केवल 4.76 फीसदी लोग ही अपनी स्थिति से अवगत थे।
- वर्ष 2013 में पंजाब में की गई कैंसर के प्रति जागरुकता के सर्वेक्षण से ( जल्दी पता लगाने के लिए लक्षणों की रिपोर्ट पर आधारित ) पता चला है कि कैंसर के संदिग्ध लक्षणों से पीड़ित लोगों में से केवल 28 फीसदी लोगों की ही कैंसर की पुष्टि की गई थी।
- वर्ष 2011 में केरल में हुई एक अध्ययन में भाग लेने वाले 86 फीसदी उत्तरदाताओं ने मुंह के कैंसर के बारे में सुना था। लेकिन केवल 62 फीसदी लोगों को इसके कारणों का पता था
- वर्ष 2014 में की गई एक अध्ययन में सामने आया है कि सामान्य आबादी की केवल आधी जनता ही मधुमेह बीमारी के संबंध में जानती है लेकिन इनमें से करीब आधे लोगों को ही पता था कि मधुमेह बीमारी को रोका जा सकता है एवं यह अन्य अंगो को भी प्रभावित कर सकती है।
- गैट्स इंडिया के अनुसार, केवल 2 फीसदी भारतीय व्यस्कों को धूम्रपान से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव के संबंध में जानकारी थी। लोगों को पता था कि धूम्रपान से बीमारी हो सकती है, कौन सी बीमारी, यह स्पष्ट नहीं था। 85 फीसदी लोगों के मुताबिक धूम्रपान से फेफड़े का कैंसर हो सकता है जबकि 64 फीसदी का मानना था कि इससे दिल का दौड़ा पर सकता एवं 46 फीसदी के अनुसार धूम्रपान से स्ट्रोक पड़ने का खतरा बढ़ सकता है।
स्वास्थ्य जानकारी के अनावरण होने का बावजूद शहरी जनता रहती है अंजान
संपन्न, शिक्षित एवं जानकार शहरी लोगों को अधिक स्वस्थ रहना चाहिए। ऐसा आपको लग सकता है कि शहरी जनता बेहतर आहार एवं सही विकल्प बनाने के लिए सशक्त हैं।
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि देश भर के शहरों एवं कस्बों में जागरुकता की कमी के कारण गैर-संक्रामक रोगों के प्रसार में लगातार वृद्धि हो रही है।
केनेथ ई थोर्प, पार्टनरशिप टू फाइट क्रॉनिक डिज़ीज ( राष्ट्रीय खाका तैयार करने के लिए हितकारों को साथ लाने का एक उत्प्रेरक ) के अध्यक्ष के मुताबिक "लोगों ने गैर संचारी रोगों के संबंध में सुना है, लेकिन केवल सुनना ही स्वस्थ्य जीवन के लिए पर्याप्त नहीं है”।
डेविड काज़, येल विश्वविद्यालय में शोधकर्ता एवं पोषण , वजन प्रबंधन और पुरानी बीमारी की रोकथाम के जानकार, मानते हैं कि जानकारियों से लाभ लेने की बजाय लोग इसकी अनदेखी करते हैं।
विरोधाभासी संदेश जैसे कि एक दिन आप सुनते हैं कि कॉफी स्वास्थ्य के लिए ठीक है और दूसरे दिन सुनते हैं कि काफी स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं है और यही वजह है कि लोग जानकारियों पर ध्यान नहीं देते हैं।
स्वास्थ्य संबंधी संदेश सीधा एवं सरल होनी चाहिए जैसे रोज़ाना फलों एवं सब्ज़ियों की पांच हिस्से खाने चाहिए। हफ्ते में पांच दिन 30 मीनट व्यायाम करनी चाहिए। चीनी एवं नमक कम मात्रा में खानी चाहिए। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ से बचें। धूम्रपान छोड़े। एक दिन में केवल एक ड्रिंक ही सीमित करें।
थोर्प के अनुसार स्वास्थ्य के बारे में गंभीर बनने के लिए, लोगों को गैर - संचारी रोगों के बोझ के संबंध में स्पष्ट होना चाहिए , शीघ्र निदान और निवारक उपाय के महत्व भी समझना चाहिए।
तभी तो लोग नियमित रूप से स्वास्थ्य जांच कराएंगे, क्योंकि पुराने रोग कई वर्षों तक स्पर्शोन्मुख रहते हैं या मौजूदा मामूली लक्षण को अनदेखा करते हैं या उम्र बढ़ने के लक्षण समझते हैं।
भारत इस स्तर की जागरुकता से काफी दूर है।
Awareness of diabetes | |
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A 2014 study with population size 14,274 from 188 urban and 175 rural areas, including 480 self-reported diabetics | Percent (%) |
Overall awareness among the study population | 43.2 |
Awareness among rural people | 58.4 |
Awareness among urban people | 36.8 |
Awareness among males | 46.7 |
Awareness among females | 39.6 |
Awareness that diabetes can be prevented (general population) | 56.3 |
Awareness that diabetes can be prevented (diabetic population) | 63.4 |
Awareness that diabetes can affect other organs (general population) | 51.5 |
Awareness that diabetes can affect other organs (diabetic population) | 72.7 |
Source: National Institutes Of Health
Awareness of cardiovascular disease | |
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1. In 2012, Indian Heart Watch surveyed 6,400 men and women from 11 cities | Percent (%) |
Participants found to have hypertension | 32 |
Participants aware of their own hypertension | 57 |
2. A 2014 pan India study of 12,608 subjects | |
Prevalence of hypertension | 21 |
Awareness of own hypertension | 5 |
3. Results of a 2014 Coimbare based study of 50 people | |
Awareness of risk factors of cardiovascular disease | 48 |
Awarenes of older age being a greater risk factor | 90 |
Awareness of family history of heart disease being a risk factor | 68 |
Awareness of diabetes as co-morbidity factor | 80 |
Awareness that male diabetic patients are at higher risk | 66 |
Sources: National Institutes Of Health (table 1), British Medical Journal (table 2), Indian Journal Of Pharmacy Practice (table 3)
Awareness of cancer | |
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1. A 2013 survey in Punjab | No. |
Number of people with questionable symptoms | 84453 |
Number of people with confirmed cancer diagnosis | 23874 |
2. A 2011 study in Thiruvankulam, Kerala of 1885 people | Percent (%) |
Awareness of oral cancer | 86 |
Assuming oral cancer is associated with poor oral health | 41 |
Aware of the correct cause of oral cancer | 62 |
Belief that oral cancer is contagious | 24 |
Belief that oral cancer cannot be treated | 42 |
Awareness that smoking can cause oral cancer | 77 |
Awareness that alcohol can cause oral cancer | 64 |
Awareness than chewing pan can cause oral cancer | 79 |
Sources: Dept. of Health & Family Welfare (table 1), Shodh Ganga (table 2)
Awareness of respiratory diseases | |
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Global Adult Tobacco Survey (GATS) 2009-10 | Percent (%) |
Aware that smoking causes serious disease | 90.2 |
Aware that smoking causes serious disease among adults with secondary and above education | 96 |
Aware that smoking causes serious disease among adults with no formal education | 80 |
Aware that smoking causes stroke | 49.4 |
Aware that smoking causes heart attack | 63.9 |
Aware that smoking causes lung cancer | 84.9 |
Aware that second-hand smoke can cause serious disease in non-smokers | 82.9 |
Source: Ministry of Health & Family Welfare
सबसे बड़ी गलतफहमी- बुढ़ापा यानि बुरा स्वास्थ्य
गैर संचारी रोगों के संबंध में जागरुरका एवं उनके जोखिम कारकों का आभाव सोने पर सुहागा की भांति है। भारत गैर संचार रोगों से बाहर तभी निकल पाएगा जब लोग इससे बढ़ती उम्र का प्रभाव समझना बंद कर देंगे।
करीब दो दशक पहले, विलियम कोसटेली, फ्रामिंघम हार्ट अध्ययन के अध्यक्ष, (संयुक्त राज्य अमेरिका के शहर फ्रामिंघम में हृदय रोग पर किया गया लंबी अवधि का अध्ययन ) ने कहा, " बुरा स्वास्थ्य उम्र की वजह से नहीं होता है। यह उन रोग प्रक्रियाओं के होने वाले कारणों के लंबे अनावरण की वजह से होता है। "
हृदय रोग, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और अन्य गैर संचारी रोगों को जीवन का हिस्सा समझने जैसी गलत धारणा बनाए रखने से देश पर लगातार इसका बोझ बढ़ रहा है, वर्ष 1990 में 31 फीसदी की नुकसान से लेकर 2013 में 52 फीसदी के नुकसान तक बढ़ा है।
इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में आपको बताया है कि किस प्रकार गैर संचारी रोग लोगों पर बुरा प्रभाव डाल रहा है।
Top 10 causes of total disability adjusted life years (DALYs) in India - both sexes - 1990 | ||
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Rank | Cause | Number of DALYs |
1 | Lower respiratory infections | 58,575,091 |
2 | Diarrheal diseases | 45,823,554 |
3 | Neonatal preterm birth | 43,528,317 |
4 | Tuberculosis | 32,316,152 |
5 | Neonatal encephalopathy | 27,042,318 |
6 | Ischemic heart disease | 20,826,128 |
7 | Other neonatal disorders | 20,622,132 |
8 | Chronic obstructive pulmonary disease | 15,835,167 |
9 | Iron-deficiency anemia | 15,224,610 |
10 | Tetanus | 11,310,697 |
Cerebrovascular disease | 10,330,888 | |
All non communicable diseases | 178,246,814 | |
Total | 571,397,207 |
Top 10 causes of total DALYs in India - both sexes - 2013 | ||
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Rank | Cause | Number of DALYs |
1 | Ischemic heart disease | 36,913,309 |
2 | Chronic obstructive pulmonary disease | 20,883,884 |
3 | Lower respiratory infections | 20,478,343 |
4 | Tuberculosis | 20,452,255 |
5 | Neonatal preterm birth | 19,438,644 |
6 | Neonatal encephalopathy | 19,079,665 |
7 | Diarrheal diseases | 18,068,505 |
8 | Cerebrovascular disease | 15,403,888 |
9 | Road injuries | 13,542,985 |
10 | Low back & neck pain | 13,271,541 |
All non communicable diseases | 256,485,586 | |
Total | 494,698,971 |
इंडियास्पेंड से बात करते हुए दामोदर बचानी, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज के डायरेक्टर प्रोफेसर एवं भारत के उप आयुक्त ( गैर संचारी रोग ), स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, ने बताया कि “कुछ पुराने रोगों के लिए उम्र कारण हो सकती है लेकिन हर किसी को मधुमेह या कैंसर जैसी बीमारियां नहीं होती है। उम्र को हम रोक नहीं सकते लेकिन स्वस्थ जीवन जीना हमारे हाथ में है।”
कुछ लोगों जो इन रोग से ग्रसित होते हैं, वो मान लेते हैं कि यह बीमारियां जीवन भर के लिए है।
लेकिन थोर्प कहते हैं कि “यह सही नहीं है।”
थोर्प कहते हैं कि गैर संचार रोगों का इलाज आनुवंशिक विरासत के कारण अकस्मात रुप से नहीं किया जा सकता है लेकिन ऐसा नहीं है कि इसका इलाज नहीं किया जा सकता है।
अपने जीवन शैली के बदले के बजाए इन रोगों के साथ जीने की धारणा रखना हमारी उम्र को कम कर देता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, “भारत में समय से पहले मरने ( 70 की उम्र से पहले ) वाले चार में से एक जान गैर संचारी रोग के कारण जाती है।”
ग्रामण भारत में है कम जागरुकता
देश के शहरी इलाकों में लोग जानकारी की अतिभार से जूझ रहें हैं तो वही ग्रामीण इलाकों में जानकारी की कमी के कारण लोग बीमारियों का शिकार बन रहे हैं।
माना जाता था कि गैर संचारी रोग मुख्य रूप से जीवन शैली में अनियमता के कारण ही होती है - शहरीकरण , बढ़ती उम्र और धन।
नोबेजीत रॉय , प्रोफेसर, भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बीएआरसी) अस्पताल, मुंबई , और रोग अध्ययन के वैश्विक बोझ का एक सह-लेखक बताते हैं कि इसी धारणा के कारण एक नई धारणा यह उत्पन्न हुई कि ग्रामीण इलाकों के लोग दूसरी जीवन शैली से जीते हैं इसलिए वह गैंर संचारी रोगों से ग्रस्त नहीं होते हैं।
ग्रामीण एवं गरीब आबादी पर की गई अन्य अध्ययन, ग्लोबल बर्डन ऑफ डीज़ीज साबित करती है कि सामाजिक जनसांख्यिकीय स्थिति, प्रति व्यक्ति आय , शिक्षा, जनसंख्या उम्र और प्रजनन दर पर ध्यान दिए बिना गैर संचारी रोगों , अधिक प्रचलित हो रही है।
क्रिस्टोफर मरे, स्वास्थ्य मेट्रिक्स और मूल्यांकन के लिए संस्थान के निर्देशक एवं वैश्विक अध्ययन के लीडर कहते हैं कि “आय एवं शिक्षा सहित कई कारक स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं लेकिन स्वास्थ्य केवल इन्हीं कारकों पर निर्भर नहीं रहता है।
उदहारण के लिए, भारत में किए गए एक नए अध्ययन से पता चलता है कि ग्रामीण गढ़चिरौली में मौत का मुख्य कारण स्ट्रोक है, उस क्षेत्र में होने वाली सात मौतों में से एक से एख मौत स्ट्रोक के कारण होती है।
ग्रामीण स्ट्रोक रिसर्च एंड एक्शन प्रयोगशाला, सामुदायिक स्वास्थ्य , गढ़चिरौली में शिक्षा, एक्शन और अनुसंधान के लिए सोसायटी के योगेश्वर कालकोंडे ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि "यह महत्वपूर्ण है क्योंकि जब रोग संक्रमण शुरू होता है स्ट्रोक सबसे पहले गैर संचारी रोग माना जाता है और उच्च रक्तचाप, तंबाकू और शराब के सेवन और मधुमेह जोखिम कारक हैं”।
यदि ग्रामीण गढ़चिरौली , जो देश के सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है, में रोग संक्रमण का पहला कदम देखा जा रहा है तो ज़ाहिर है कि अन्य ज़िलो में इससे अधिक नहीं तो कम से कम इसके बराबर के मामले अवश्य होंगे।
रॉय ने बताया कि गरीब आबादी वाले इलाकों में गैर संचारी रोग जीवन शैली के बजाय कुपोषण , घरेलू वायु प्रदूषण, और असुरक्षित परिवहन से जुड़े होते हैं। कारण कुछ भी हो, गरीब लोगों को इस संबंध में जानकारी नहीं है।
थोर्प ने बताया कि “सीमित चिकित्सा सुविधाओं के साथ क्षेत्रों में रहने वाले गरीब लोग बेखबरी का शिकार हैं।”
यह देखने वाली बात होगी कि तीन आम तरह के कैंसर - मौखिक , गर्भाशय ग्रीवा और स्तन – के लिए अल्पविकसित जांच तकनीक में प्राथमिक स्वास्थ्य कर्मियों को प्रशिक्षण देना एवं 30 की उम्र से अधिक एवं गर्भवती महिलों में मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप जैसी बीमरियों के लिए जांच के लिए सर्मथ बनाने से भारत के ग्रामीण इलाकों के लोगों की आयु पर प्रभाव डालता है या नहीं। इस तरह के प्रशिक्षण देश के करीब आधे क्षेत्रों में देनी शुरु हो चुकी है। लेकिन ग्रामीण भारत में गैर संचारी रोगों के लिए एक स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली अब भी नहीं है।
कलकंडे कहते हैं कि “यदि ग्रामीण इलाके में किसी गरीब व्यक्ति में उच्च रक्तचाप की शुरुआती स्तर तर पहचान कर भी ली जाए तो लोग उस पर विश्वास नहीं करते हैं। बीमारियों के बोझ को कम करने के लिए हमें सबसे अधिक आवश्यकता जागरुकता फैलाने एवं दवाईयों के दाम वहन करने योग्य बनाने की है ”।
( बाहरी माउंट आबू , राजस्थान में स्थित एक स्वतंत्र लेखक और संपादक है )
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 30 सितंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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