जापान के परमाणु रिएक्टर से होगा भारत को फायदा?
1999 में जापान के फुकुशिमा में स्थित परमाणु बिजली संयंत्र
क्यूशू इलेक्ट्रिक पावर कंपनी, जापान की प्रमुख उपयोगिता कंपनी, ने 10 अगस्त से 890 मेगावाट ( MW ) की क्षमता वाली परमाणु रिएक्टर को पुन: आरंभ करने की योजना में है। यह परमाणु रिएक्टर सेंडाई में लगाया जाएगा। गौरतलब है कि चार वर्ष पूर्व साल 2011 में हुए फुकुशिमा आपदा के बाद जापान के 50 परमाणु उर्जा संयंत्रों को बंद कर दिया गया था। इसके बाद ही जापान परमाणु उर्जा श्रोतों के विरोध में व्यापक रुप से सामने आया था।
परमाणु रिएक्टर का पुन: आरंभ करने का निर्णय परमाणु विद्युत रिएक्टरों पर तमाम सुरक्षा जांच करने के बाद लिया गया है। यदि सब ठीक रहा तो दूसरे रिएक्टर भी आरंभ किए जाएंगे।
जापान में परमाणु उर्जा फिर से आरंभ होने से भारत को भी काफी फायदा पहुंच सकता है। जापान की सहायता से भारत कोयला एवं तरल जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता को कम करने का प्रयास कर सकता है। कोयला एवं तरल जीवाश्म ईंधन पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक हैं।
परमाणु परिणाम : अधिक गैस, कम कोयला एवं कच्चे तेल
जापान के परमाणु उर्जा का प्रयोग करने से अन्य ईंधन के उपयोग में कमी आएगी। इससे भारत जैसे गैस ग्राहक देशों में तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी ) की कीमतों को नीचे लाने और कीमत कम रखने में सहायता होगी।
पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतों में गिरवाट आने के रास्ते पर ही एलएनजी की कीमतों में भी खासी गिरावट दर्ज की गई है। यदि आंकड़ों पर नज़र डालें तो पिछले डेढ़ साल, 2014 के प्रारंभ से 18.3 डॉलर प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट ( एमएमबीटीयू ) से गिर कर जून 2015 तक 7.6 डॉलर प्रति एमएमबीटीयू दर्ज किया गया है। जापान में एलएनजी की मांग की कमी से गैस की नियंत्रितकीमतों पर लंबे समय तक प्रभाव रहेगा।
भारत में इस समय 23,000 MW से भी अधिक प्राकृतिक गैस आधारित बिजली संयंत्र है जो ईंधन की कमी की वजह से उनकी क्षमता के एक अंश (20%) के रुप में कार्य करती है।
आयातित एलएनजी का ईंधन के रुप में उपयोग बहुत ही महंगा है। इसका आंशिक रुप से एक कारण जापान की भारी मांग से कीमत का उपर होना है। इस मुद्दे पर इंडियास्पेंड ने पहले ही विस्तार से चर्चा की है।
सस्ते एलएनजी से असहाय निवेश को अधिक उत्पादक बनाया जा सकेगा। भारत के स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता में गैस आधारित बिजली की हिस्सेदारी 10 फीसदी है।
इस क्षमता के उपयोग से कोयले के इस्तेमाल को काफी हद तक कम किया जा सकता है जोकि पर्यावरण के लिए बेहद हानिकारक है। गैस आधारित बिजली में नए निवेश भी किए जा सकते हैं जो कि ईंधन की कमी के कारण सालों से बंद पड़े हैं।
भारत में उत्पन्न बिजली में 75 फीसदी हिस्सेदारी कोयले की होती है। इसलिए गैस के उपयोग में वृद्धि का मतलब है कोयले के इस्तेमाल में कमी होना।
India’s Electricity Generation (excludes imports & renewable) | ||||
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Source | Capacity (MW) | Share of Capacity (%) | Electricity Generated (Billion Units) | Share of electricity generation (%) |
Thermal (Coal) | 158,738 | 69.5 | 837.2 | 79.9 |
Thermal (Gas) | 22,916 | 10 | 41.1 | 3.9 |
Nuclear | 5,780 | 2.5 | 36 | 3.4 |
Hydro | 40,885 | 17.9 | 129.1 | 12.3 |
Total | 228,320 | 100 | 1,048 | 100 |
सीएनजी के रुप में प्रकृतिक गैस आंशिक रुप से तरल ईंधन जैसे की डीज़ल एवं पेट्रोल की भी जगह ले सकता है। ट्रकों से निकलने वाला धुआं देश के तमाम शहरों के वातावरण को लगातार प्रदूषित कर रहा है।
कुछ वाहनों में तरल ईंधन की जगह सीएनजी का इस्तेमाल करने से समस्या थोड़ी कम हुई है।वर्तमान में भारत, खास कर दिल्ली, मुंबई एवं गुजरात में 1.5 मिलियन वाहन सीएनजी से चलते हैं।
प्राकृतिक गैस की कीमतों में गिरावट एवं पर्याप्त उपलब्धता से देश के दूसरे शहरों में भी डीज़ल एवं पेट्रोल को हटा कर सीएनजी के इस्तेमाल में वृद्धि की जा सकती है। दुनिया के 20 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में 13 शहर भारत के हैं। ऐसे में प्रकृतिक गैस का इस्माल करना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
फुकुशिमा : क्या है तथ्य
फुकुशिमा आपदा भारत में परमाणु विरोधी आंदोलन के लिए समर्थन जुटाने के रूप में कार्य किया है।
भारत के सबसे नए परमाणु बिजली रिएक्टर , 1000 मेगावाट की कुडनकुलम यूनिट -1, को मूल रूप से 2007 में पूरा किया जाना था लेकिन यह पूरी तरह क्रियाशील दिसंबर 2014 में हो पाया है। 2008 तक यूनिट -2 का भी निर्माण हो जाना था लेकिन अब तक इसका निर्माण चल ही रहा है।
परियोजना में रुकावट होने आंशिक रुप से ज़िम्मेदार साइट पर परमाणु विरोध प्रदर्शन होना है।साथ ही हाल ही में हुए फुकुशिमा आपदा इस परियोजना में रुकावट का कार्य किया है।
जापान के नए सुरक्षा उपायों एवं फुकुशिमा और परमाणु शक्ति पर आत्मविश्वास होना भारत के लिए भी महत्वपूर्ण प्रासंगिकता है।
आज की तारीख में भारत में 3,800 MW की क्षमता वाला परमाणु बिजली निर्माणाधीन है जबकि एक अन्य 3,400 MW क्षमता वाली परमाणु बिजली को वित्तीय मंजूरी मिल गई है। नीचे दिए गए आंकड़ों से बात और स्पष्ट होती है :
India’s Nuclear Energy Plans (in MW) | |
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Existing capacity | 5,780 |
Plants under construction | 3,800 |
Plants with financial approval | 3,400 |
Proposed plants (domestic tech) | 4,200 |
Proposed plants (foreign collaboration) | 500 |
Source: Lok Sabha
परमाणु शक्ति चालित संयंत्र से ग्रिड द्वारा जरूरी आधार शक्ति को पूरा किया जा सकता है जिसे वर्तमान में कोयले द्वारा प्राप्त किया जाता है। इंडियास्पेंड ने पहले ही बताया है कि किस प्रकार कोयले को सौर या पवन उर्जा से नहीं बदला जा सकता है।
जापान की परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को पुनः आरंभ करने के निर्णय से भारत निहितार्थ है और वह है तकनीकी सहयोग। भारत -अमेरिका परमाणु समझौते के एक भाग के रूप में भारत, अमेरिका स्थित कंपनियों वेस्टिंगहाउस और जीई - हिताची के साथ सहयोग में परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने के लिए सहमत हो गया है ।
इन परियोजनाओं में आगे बढ़ने के लिए भारत को जापान के साथ भी समझौता करना होगा क्योंकि हिताची एक जापानी कंपनी है और वेस्टिंगहाउस जापान की तोशिबा की एक सहायक कंपनी है।
जापान का अपनी ही धरती पर परमाणु ऊर्जा का उपयोग नहीं करने के साथ इस तरह का समझौता थोड़ा चिंताजनक हो जाता। लेकिन अब ऐसा कोई मामला नहीं रहेगा।
(अमित भंडारी एक मीडिया, अनुसंधान और वित्त प्रोफेश्नल हैं। भंडारी आईआईटी- बीएचयू से बी - टेक और आईआईएम- अहमदाबाद से एमबीए हैं। )
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 7 अगस्त 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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