टीबी की एक नई दवा और भारतीयों का डर
जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ्रीका: दक्षिण अफ्रीका की तरह ही भारत को तुरंत तपेदिक (टीबी) की दवा-बेडकाइक्लिन- उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इसे अब तक अंतिम चरण के दवा के रूप में उपयोग किया जाता है। दक्षिण अफ़्रीकी टीबी-एचआईवी एक शोधकर्ता ने इंडियास्पेंड को बताया कि इस बीमारी के एक बहुआयामी प्रतिरोधी संस्करण के साथ लगभग 147,000 भारतीयों के लिए यह दवा बेहद जरुरी है।
दक्षिण अफ्रीका में हुए एक रिसर्च में सबित हुआ है कि इस दवा के इस्तेमाल से मृत्यु दर कम हुई है। इसके बाद 2018 में, दक्षिण अफ्रिका, बहुआयामी-प्रतिरोधी टीबी (एमडीआर-टीबी) और व्यापक दवा प्रतिरोधी टीबी (एक्सडीआर-टीबी) के साथ वयस्कों और किशोरों के लिए अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के हिस्सा के रुप में ‘बेडकाइक्लिन’ बनाने वाला पहला देश बन गया है। इसके दवा के साथ ही इसके साइड इफेक्ट्स के साथ विषाक्त इंजेक्शन दवाओं के बदल दिया है। साइड इफेक्टस में सुनने की क्षमता प्रभावित होना , गुर्दे की विफलता और मनोविकार शामिल हैं।
पोर्ट एलिजाबेथ के ‘नेल्सन मंडेला विश्वविद्यालय ट्यूबरकुलोसिस रिसर्च यूनिट’, में क्लिनिकल रिसर्च विशेषज्ञ, फ्रांसेस्का कॉनराडी कहती हैं, "बेडकाइक्लिन वर्तमान में दवा प्रतिरोधी टीबी के लिए सबसे अच्छी दवा है और भारत को भी बिना किसी डर के इस दवा का उपयोग शुरु करना चाहिए।”
53 वर्षीय कॉनराडी कहती हैं, " दवा प्रतिरोध एक चिंता का विषय है और हमें इस पर करीबी नजर रखना है। हमें यह सुनिश्चित करना है कि नई दवाओं के विकास एजेंडा पर जोर दिया जाए, ताकि जब प्रतिरोध ‘बेडकाइक्लन’ तक विकसित हो ( अब से 30-40 साल बाद मान लें) तब हमारे पास एक और नई दवा हो। "
17 अगस्त, 2018 को, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दवा-प्रतिरोधी टीबी (डीआर-टीबी) के बेहतर उपचार के लिए सिफारिशें जारी कीं हैं। इसमें ‘बेडकाइक्लिन’ सहित कई खाने वाली दवाओं के उपयोग को प्राथमिकता दी गई है। इसे पहली बार 2004 में ‘जॉनसन एंड जॉनसन’ की एक सहायक कंपनी, ‘जांसेन फार्सुटिका’ द्वारा विकसित किया गया था और अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन द्वारा 2012 में उपयोग के लिए जारी किया गया।
‘बेडकाइक्लिन’ का उपयोग महत्वपूर्ण है क्योंकि टीबी दुनिया भर में मौत का नौवां प्रमुख कारण है। 2016 में दुनिया भर में करीब 1.6 मिलियन की मृत्यु का कारण यह बीमारी रही है। इसमें से 27 फीसदी भारतीय थे।
उसी वर्ष, रिफाम्पिसिन के प्रतिरोध के साथ 600,000 नए मामले सामने आए थे ( वर्तमान पहली लाइन दवा, अब 47 साल पुरानी है ) जिनमें से 490,000 को एमडीआर-टीबी थी।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में भारत में मल्टीड्रग प्रतिरोधी मरीजों की अनुमानित संख्या 140,000 थी, जो विश्व के एक चौथाई (28 फीसदी) से अधिक है।
2013 और मार्च 2016 के बीच, तीन वर्षों के लिए भारतीय टीबी रोगी जो निजी क्षेत्र के डॉक्टरों के पास गए थे ( भारत में कुल रिपोर्ट का 11.4 फीसदी ) केवल "कंपैसिनेट यूज" कार्यक्रम के तहत ‘बेडकाइक्लिन’ का उपयोग कर सकते थे। मार्च 2016 में, भारत सरकार ने घोषणा की कि सशर्त पहुंच कार्यक्रम के तहत छह केंद्रों में मरीजों को ‘बेडकाइक्लिन’ दिया जाएगा, जो सरकार के ढांचे और प्रोटोकॉल के तहत सुलभ किया जा सकता है। उच्च न्यायालय में पेश किए गए 2017 सरकारी हलफनामे के मुताबिक, आज तक 824 मरीजों को बेडकाइक्लिन दिया गया है।
वर्ष 2013 के बाद से, दक्षिण अफ्रीका ( 4 फीसदी डीआर-टीबी बोझ के साथ ) दुनिया भर में ‘बेडकाइक्लिन’ को अपने डीआर-टीबी रोगियों को अनुमति देने में सबसे आगे है। जून 2018 में, दक्षिण अफ्रीका की सरकार ने घोषणा की कि दवा-प्रतिरोधी टीबी के लिए एंटीबायोटिक इंजेक्टेबल्स ‘कनामाइसिन’ और ‘क्लोफाजिमिन’ को बदल कर, शॉर्ट-कोर्स ट्रीटमेंट रेजिमेंट में ‘बेडकाइक्लिन’ का उपयोग किया जाएगा।
जुलाई 2018 में, दक्षिण अफ्रीकी स्वास्थ्य विभाग ने एक विश्वस्तरीय चिकित्सा पत्रिका द लंसेट रेस्पिरेटरी मेडिसिन में 19, 000 डीआर-टीबी रोगियों के एक पूर्वदर्शी अध्ययन को प्रकाशित किया। इस अध्ययन में दिखाया गया कि एमडीआर-टीबी रोगियों को ‘बेडकाइक्लिन’ के साथ इलाज किए गए मरीजों में से 13 फीसदी की मृत्यु हुई थी, जबकि मानक उपचार के साथ वाले रोगियों में यह आंकड़े 25 फीसदी थे। वही बेडकाइक्लिन के साथ एक्सडीआर-टीबी रोगियों का इलाज करने वालों में 15 फीसदी रोगियों की मृत्यु हुई। यह मानक नियमों में 40 फीसदी मृत्यु दर का लगभग एक तिहाई है।
वर्ष 2010 में ‘बेडकाइक्लिन’ के लिए दक्षिण अफ्रीका में ‘बेटाक्विलाइन’ और ‘डेलमनिड’ (ओत्सुका फार्मास्युटिकल्स द्वारा विकसित एक और नई टीबी दवा) के लिए आयोजित किए गए औचक फेज-2 नैदानिक परीक्षण के लिए कॉनराडीमुख्य जांचकर्ता थीं। उन्होंने दक्षिण अफ्रीका के स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर काम किया है और वह एक ऐसे विचार मंच से जुड़ी हैं, जोदक्षिण अफ्रीका में टीवी से लड़ाई के मामले में मार्गदर्शन के लिए सरकार, अकादमिक और नागरिक समाज के विशेषज्ञों को एक साथ लाता है। कॉनराडी के साथ एक साक्षात्कार के मुख्य अंश:
एमडीआर-टीबी के इलाज के लिए ‘बेडकाइक्लिन’ को उपयोग में लाने में आपकी भूमिका क्या रही है?
‘बेडकाइक्लिन’ ट्रायल मूल पंजीकरण (सभी क्लिनिकल ट्रायल को बेडाक्विलाइन ट्रायल के सार्वजनिक क्लिनिकल परीक्षण परीक्षण में पंजीकृत होना है) के बाद से मैं एमडीआर-टीबी के इलाज के लिए ‘बेडकाइक्लिन’ के साथ संबंधित रही हूं। एक अध्ययन में रोगियों को दवा ‘बेडकाइक्लिन’ या प्लेसबो प्राप्त करने के लिए यादृच्छिक बनाया गया था। वहीं से मैं देख सकती थी कि यह एमडीआर-टीबी के मरीजों के जीवन में अंतर लाने जा रहा था। हमने लगभग 25 मरीजों का चयन किया, और हम नहीं जानते थे कि कौन सा रोगी उपचार ‘बेडकाइक्लिन’ पर था, लेकिन हम रासायनिक प्रतिक्रिया से बता सकते थे कि मरीज ‘बेडकाइक्लिन’ दवा पर थे। और जब हमने कुछ सालों बाद इसे देखा तो पाया कि हमारा अंदाजा लगभग सही था। मरीज जो आसानी से वजन में वृद्धि कर पा रहे थे, जो बलगम साफ कर पा रहे थे, वे ‘बेडकाइक्लिन’ पर थे, और जो नहीं कर पा रहे थे, वे मानक इलाज पर थे। तो जब ट्रायल समाप्त हो गया ,मैंने स्वास्थ्य के प्रमुख विभाग, नोबर्ट एनजेजेका से संपर्क किया, और मैंने कहा कि यह ‘बेडकाइक्लिन’ यहां एक पंजीकृत दवा नहीं है, लेकिन मुझे सच में लगता है कि हमें योजना बनाने की जरूरत है। उस समय जैनसेन ने मुझसे संपर्क किया था और कम्पैशनेट एक्सेस प्रोग्राम करने के बारे में पूछा था, और मैंने कहा कि हमें इस दवा को जल्दी से उपयोग में लाने की जरूरत है। हमने क्लीनिकल-एक्सेस प्रोग्राम नामक शुरू की, जहां प्री-एक्सडीआर-टीबी और एक्सडीआर-टीबी वाले रोगियों को दवा तक पहुंच प्रदान की गई थी।
हमारे पास बेडकाइक्लिन क्लिनिकल-एक्सेस प्रोग्राम पर 200 रोगी थे, और उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया। मृत्यु दर 12.5 फीसदी थी, जो व्यापक रूप से दवा प्रतिरोधी टीबी वाले लोगों के लिए असाधारण रूप से कम है। हम स्वीकार कर सकते हैं कि यह सामान्य है, लेकिन फिर हमने एक्सडीआर-टीबी से मरने वालों की संख्या 50 फीसदी होने की उम्मीद की थी। इसलिए यह बहुत बड़ी बात थी।
इसी के आधार पर, नॉरबर्ट नड्जेका ( जो बहुत आगे सोच रहा है ) दवा प्रतिरोधी टीबी में रुचि रखने वाले चिकित्सकों के एक समूह को एक साथ रखा। इसमें कई तरह के लोग थे- क्लिनीकल जांचकर्ता, अकादमिक, फार्माकोलॉजिस्ट, माइक्रोबायोलोजिस्ट। हम सब एक साथ बैठे और हमने फैसला किया कि ‘बेडकाइक्लिन’ के लिए कौन पात्र होना चाहिए ।
हमें थोड़ा सावधान रहना पड़ा। हमने फैसला किया कि रिफाम्पिसिन प्रतिरोधी टीबी वाले सभी लोग जिनको क्विनोलोन के लिए अतिरिक्त प्रतिरोध था, [दूसरी लाइन टीबी दवाएं] और / या इंजेक्शनबेल-एक्सडीआरआर और प्री-एक्सडीआर-टीबी रोगियों, और जो भी मौजूदा उपचार पर उपचार-सीमित साइड इफेक्ट्स था, उसे ‘बेडकाइक्लिन’ दिया जाएगा। यह निर्णय 2014 में बनाया गया था।
अब, एक अच्छे विचार पर काम करना मुश्किल है, क्योंकि आपको लोगों को मनाने, धमकाने, समझाने और जो कुछ भी कर सकते हैं, वह करना है, ताकि लोग अपनी आदतों को बदल सकें, और फिर जब उनकी आदतें बदल जाएंगी, तो वे देख सकते हैं कि यह फैसला सही था।
ऐसा तब भी हुआ था जब हमने हमारे एचआईवी कार्यक्रम में एंटी-रेट्रोवायरल (एआरवी) उपचार में बदलाव किए थे। आखिर में स्वास्थ्य विभाग को पुरानी दवाओं के बारे में डॉक्टरों से कहना पड़ा, "अब आप इनका उपयोग नहीं कर सकते हैं, यहां नई दवाएं हैं, इनका उपयोग करें।"
टीबी रोग बोझ: भारत और दक्षिण अफ्रीका
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The Tuberculosis Burden: India & South Africa | |||||
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Country | TB patients | TB Incidence (Patients per 100,000 population) | TB Mortality Rate (Deaths per 100,000 population) | RR/MDR-TB patients | RR/MDR-TB Incidence (Patients per 100,000 population) |
India | 27,90,000 | 211 | 32 | 1,47,000 | 11 |
South Africa | 4,38,000 | 781 | 41 | 19,000 | 34 |
Note: RR/MDR-TB: Rifampicin resistant/ multidrug resistant TB
Source: Global Tuberculosis Report 2017
जैसा कि दक्षिण अफ्रीका ने ‘बेडकाइक्लिन’ को शामिल करने के लिए मानक उपचार के नियम को बदल दिया है, तो आपने अब क्या बदलाव देखा है?
पहले वर्ष में उसी समय के आस-पास, जब हमें ऐसे रोगी मिल रहे थे जिन्हें इलाज शुरु होने से पहले इंजेक्शन के परिणामस्वरुप सुनने में कठिनाई ( यह सबसे आम संकेत है कि उनकी दवाएं बदल दी गई ) हो रही थी, हमने कनामाइसिन को रोक दिया और हम उन्हें ‘बेडकाइक्लिन’ पर डाल दिया। शुरुआत में, पिछले साल तक लोग थोड़ा से अनिच्छुक थे, जब दक्षिण अफ्रीका के 70 फीसदी रिफाम्पिसिन प्रतिरोधी टीबी मरीजों को ‘बेडकाइक्लिन’ मिला था।
सच्चाई यह है कि हर कोई देख सकता है कि यह एक बेहतर दवा थी, और अगर किसी ने भी यह कहा कि मैं इंजेक्शन लेने से इंकार कर रहा हूं, तो हमारे पास दो विकल्प थे: एक उपेष्टतम परहेज, जो किसी के लिए भी अच्छा नहीं था, और दूसरा बेजएक्विलाइन। इसलिए, हमने रोगियों को ‘बेडकाइक्लिन’ देने के कारणों की तलाश शुरू कर दी। यदि आपने लैंसेट की रेस्पिरेटरी मेडिसिन में नोबर्ट एनजेजेका द्वारा प्रकाशित हालिया आलेख को पढ़ा हो तो पता चलेगा कि दक्षिण अफ्रीका में स्पष्ट रूप से मृत्यु दर में लाभ था, और फिलहाल, यदि आपको एक्सडीआर-टीबी है तो आपको बचने का बेहतक मौका मिला है और आपको एमडीआर-टीबी है तो आपको ‘बेडकाइक्लिन’ मिलता है।
अब हमारे पास 12,000 दक्षिण अफ़्रीकी लोगों का समूह है, जिन्हें यह दवा प्राप्त हुई है। यदि ‘बेडकाइक्लिन’ लेने वाले मरीज मर रहे हैं, तो हमें फौरन पता चल जाता है। लेकिन वास्तव में, हम जानते हैं कि जो लोग ‘बेडकाइक्लिन’ प्राप्त कर रहे हैं वे जी रहे हैं और जो लोग यह नहीं ले रहे हैं, वो मर रहे हैं।
तो जितना भी संभव है, हम उतनी नई दवाएं प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं। अब हमारे पास एक डेलमैनिड क्लिनिकल-एक्सेस प्रोग्राम भी है।
भारत में सबसे बड़ी चिंता नई दवाओं का प्रतिरोध है। केंद्रीय टीबी डिवीजन के डिप्टी डायरेक्टर जनरल ने "प्रतिरोध के कारण नई दवा को प्रतिबंधित करने" का दावा किया है। 2016 से, केवल 1000 भारतीय मरीजों को ‘बेडकाइक्लिन’ तक पहुंच मिली है। क्या ‘बेडकाइक्लिन’ के लिए दवा प्रतिरोध एक विशेष चिंता का विषय है?
बेशक, यह एक वैध चिंता है, लेकिन वास्तव में सबसे खराब प्रतिरोध वाले रोगियों को ‘बेडकाइक्लिन’डालने (एक्सडीआर और प्री-एक्सडीआर रोगी) में जोखिम है।
सच्चाई यह है कि, हर बार जब हमारे पास एंटीमाइक्रोबायल होता है, तो हमारे पास प्रतिरोध होता है। हम इसे बचाने में आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन ‘बेडकाइक्लिन’एक बहुत ही उपयोगी दवा है।
लेकिन अगर इसे असफल दौर में एकल दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है ,तो आप निश्चित रूप से प्रतिरोध प्राप्त करेंगे।
हम दक्षिण अफ्रीका में ‘बेडकाइक्लिन’ प्रतिरोध के साथ कुछ मामलों को देख रहे हैं, और वे उन रोगियों तक ही सीमित हैं जिनके साथ ‘बेडकाइक्लिन’ सहित सब कुछ का इलाज किया गया है, और जिनमें लाइनजोलिड प्रतिरोध है, जो प्रतिरोध के लिए उच्च बाधा वाली दवा है।
एक नियमित कार्यक्रम में, हम उम्मीद करते हैं कि उपचार पर लगभग 60 फीसदी रोगी ठीक हो जाएंगे, 20 फीसदी मर जाएंगे और 5-8 फीसदी असफल हो जाएंगे और 10 फीसदी फॉलो अप के लिए आएंगे। लेकिन अगर हम ‘बेडकाइक्लिन’ का उपयोग करते हैं, तो हम इलाज दर को 80 फीसदी तक बढ़ा सकते हैं-यह उस तरह की सफलता दर है जिसे हम उम्मीद करते हैं।
हां, हम कुछ लोगों को खोने जा रहे हैं, और कुछ जीवित नहीं रहेंगे, लेकिन हमारे पास उन लोगों की बहुत कम संख्या होगी, जिनका इलाज कर ठीक नहीं किया गया है। इसलिए, जो लोग पर्याप्त रूप से ठीक नहीं हैं वे ऐसे लोग हैं जो प्रतिरोध की महामारी में सहयोग दे रहे हैं। अब उनकी संख्या पुराने तरीकों की तुलना में कम होगी।
दवा प्रतिरोध एक चिंता का विषय है, और हमें इसके बारे में करीबी नजर रखना होगा। हमें टीवी के संबंध में ऐसे शांत नहीं बैठना चाहिए, जैसा कि अपना पिछला अनुभव है।
अगली टीबी दवाएं प्राप्त करने में 40 साल नहीं लगने चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना है कि नई दवाओं के विकास के एजेंडे पर जोर हो, ताकि जब ‘बेडकाइक्लिन’ प्रतिरोध हो, करीब करीब आज से 30-40 साल आगे तो तब हमारे पास एक और नई दवा हो।
तो ‘बेडकाइक्लिन’ प्रतिरोध एक चिंता है, लेकिन यह हमें उन रोगियों पर इसका उपयोग करने से नहीं रोकना चाहिए, जिन्हें इसकी आवश्यकता है?
आप जानते हैं, यही चर्चा, दक्षिण अफ्रिका में एचआईवी के मरीजों को व्यापक रूप से एआरवी देने पर भी हुई थी। दक्षिण अफ्रीका ने 2003 में सार्वभौमिक रूप से एआरवी शुरू किया था आज दक्षिण अफ्रीका में एआरवी पर सबसे अधिक रोगी हैं। दक्षिण अफ्रीका में, लगभग 7.5 मिलियन लोग एचआईवी संक्रमित हैं।
यह वही सिद्धांत है-जितना अधिक हम इलाज करते हैं, उतना अधिक प्रतिरोध हम प्राप्त करने जा रहे हैं। फिलहाल, अगर कोई दक्षिण अफ्रीका में मर जाता है, तो वह एचआईवी के कारण मर नहीं रहा है। वे इसलिए मर रहे हैं क्योंकि दक्षिण अफ़्रीकी स्वास्थ्य प्रणाली उन्हें जल्द नहीं ढूंढ पाई और उन्हें पर्याप्त उपचार पर नहीं रख पाई। हमारे पास पहली पंक्ति एआरवी पर लगभग 3.8 मिलियन लोग हैं, और दूसरी लाइन एआरवी पर 200,000-300,000 हैं।
तो, आपके पास जो सबसे अच्छी दवाएं है, यह महत्व पूर्ण है। और, हां, प्रतिरोध विकसित होगा, लेकिन हमारे पास और भी योजना हैं। बेडैक्यूलीन हमारी सबसे अच्छी दवा है। दवा प्रतिरोधी टीबी के लिए, और यह सबूत पर आधारित है। यह ऐसी दवा है जिसने रोगियों को तेजी से स्वस्थ बनाया है। डेलामैनइड कहीं भी इसके करीब नहीं है। यह भी एक अच्छी दवा है लेकिन ‘बेडकाइक्लिन’ की तो बात ही अलग है।
बड़े पैमाने पर दवा प्रतिरोधी इंजेक्शन योग्य टीबी दवाओं का वर्तमान चेहरा "सलाह पर मजबूत है लेकिन सबूत पर कमजोर है", लेकिन नई टीबी दवाओं की सुरक्षा के बारे में बड़ी बहस है। इस संबंध में आप क्या सोचते हैं?
हमारे पास किसी भी अन्य (मौजूदा) दवाओं के मुकाबले ‘बेडकाइक्लिन’ और ‘डेलमैनिड’ दोनों के लिए और भी सबूत हैं। इसलिए, दवा प्रतिरोधी टीबी को पहली बार 1980 के दशक के मध्य में एक समस्या के रूप में स्वीकार किया गया था। तब ‘रिफाम्पिसिन’ सबसे अच्छी दवा थी, और यह असफल रहा। तो डब्ल्यूएचओ ने जल्दी ही विशेषज्ञों को इकट्ठा किया- और पूछा गया कि "हमें उनका इलाज कैसे करना चाहिए"? उनमें से एक ने कहा, "द्वितीय लाइन इंजेक्टेबल काफी उपयोगी हैं, चलो उन्हें दो महीने दें, या चलो उन्हें छह महीने के लिए दें"। इसलिए, यह सर्वसम्मति बयान था, और यदि आप लंबे समय तक मूल (सिफारिशों के साथ दस्तावेज़) को देखते हैं, तो यह बहुत ही कम सबूत के साथ एक मजबूत सिफारिश है, क्योंकि उन्होंने कभी औचक रूप से परीक्षण नहीं किए हैं।
दक्षिण अफ्रीका दवा प्रतिरोधी टीबी उपचार में अगुआ कैसे बन गया ?
हमारे स्वास्थ्य मंत्री हारून मोटोसेली स्टॉप टीबी पार्टनरशिप (टीबी पर काम कर रहे एक अंतरराष्ट्रीय निकाय) के अध्यक्ष हैं और वे इस मुद्दे को लेकर बहुत जागरुक हैं। इसके अलावा, टीबी कार्यक्रम को दक्षिण अफ़्रीकी करदाताओं द्वारा वित्त पोषित किया जाता है। हम विदेशी दाताओं पर भरोसा नहीं करते हैं। भले ही सभी विदेशी वित्त पोषण को बाहर निकाल दिया जाए, हम फिर भी ठीक रहेंगे।
मुझे लगता है कि अगुआ बनना वास्तव में अच्छा है, आप अपने आप को बहुत अच्छे सलाहकारों से घिरा पाते हैं। दक्षिण अफ्रीका के स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख नॉरबर्ट एनजेजेका ने इस तथ्य को 'क्लिनीकल एक्सेस कमेटी' के साथ रखा है। बेडाक्विलाइन भारत में लगभग उसी समय पंजीकृत था, जब यह दक्षिण अफ्रीका में पंजीकृत था। हम सभी ने इसे देखा और कहा, "
ज्यादा देरी ठीक नहीं। हमें और लोगों को बहरा नहीं बनाना है, ये वो लोग थे जो मौजूदा इंजेक्शन के दुष्प्रभावों से बहरे हुए थे।
मुझे लगता है कि उप-सहारा अफ्रीका में दक्षिण अफ्रीका में यह अधिक आम है। यह एक विशेष अनुवांशिक मामले से जुड़ा हुआ है। दक्षिण अफ्रीका के लगभग 60 फीसदी में एक विशेष अनुवांशिक उत्परिवर्तन होता है, अगर आपको इंजेक्शन मिलता है, तो आपको बहरे होने की संभावना ज्यादा होती है।
क्या आपके पास भारतीय नीति निर्माताओं के लिए बेडएक्विलाइन तक पहुंच से संबंधित कोई सलाह है?
बस इसे अब पूरा कर लेना चाहिए। जैनसेन का कहना है कि उनके पास पर्याप्त स्टॉक हैं। हमारे स्वास्थ्य मंत्री ने फिर से कीमतों में कमी की मांग की है। इंजेक्शन के उपयोग से ज्यादा सस्ता और आसान है ‘बेडकाइक्लिन’ का उपयोग। क्योंकि यदि आप इंजेक्शन योग्य उपयोग करते हैं, तो आपको बहुत सारी देखरेख करनी पड़ती है। निश्चित रूप से ‘बेडकाइक्लिन’ में भी देख रेख की जरूरत है, लेकिन यह सस्ता है। औप बेडकाइलीन की सुरक्षा और प्रभावकारिता के बारे में पर्याप्त सबूत हैं। आप जानते हैं कि एमडीआर-टीबी प्राप्त करने वाले किसी व्यक्ति के लिए औसत आयु 35 वर्ष है। जब आप 35 वर्ष के होते हैं, तो हो सकता है आपके बच्चे हों और 35 वर्षीय में नुकसान होना ठीक नहीं है। आपको अब जीवन बचा लेना है। ‘बेडकाइक्लिन’ प्रतिरोध को फिलहाल भूल जाएं। यह भविष्य में हो सकता है, अभी कोई समस्या नहीं।
(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह साक्षात्कार मूलत: अंग्रेजी में 26 अगस्त, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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