दिल्ली की वायु गुणवत्ता खतरनाक, सर्दियों में सरकार की इमरजेंसी योजना विफल
नई दिल्ली: 1 नवंबर, 2018 से 6 जनवरी, 2019 तक लगभग हर हफ्ते दिल्ली में वायु प्रदूषण के विषाक्त स्तर की निगरानी की गई, जिससे पता चला कि महानगर में प्रदूषण के वार्षिक संकट से निपटने के लिए सरकार की इमरजेंसी योजनाएं विफल हो गई हैं। यह जानकारी शहर के निवासी कल्याण संघों (आरडब्ल्यूए) के एक समूह ‘यूनाइटेड रेजिडेंटस ज्वाइंट एक्शन’ (यूआरजेए) की रिपोर्ट से पता चलता है। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब दिल्ली की हवा की गुणवत्ता 17 जनवरी, 2019 को खतरनाक स्तर से ऊपर पाई गई, कुछ क्षेत्रों में तो तीन गुना अधिक तक ।
Children across states of Haryana, Delhi, Uttar Pradesh (Kanpur, Varanasi), Bihar experiencing extremely polluted air this morning. Schools need to recognise this and take necessary steps (call it a day off). No point forcing people to step out on a day like this #AirPollution pic.twitter.com/9G0Ls7CM0i
— UrbanSciences (@urbansciencesIN) January 17, 2019
Today the Delhi average AQI is one of the highest in a long time, AQI 795.
The average in #Delhi is based on more than 100 monitors which means majority of the monitors are ranging around #AQI 500-1000.
If this is not a #health #emergency, what is?#AirPollution pic.twitter.com/Xq6w5TUzgt
— AQI India (@AQI_India) January 17, 2019
रिपोर्ट में 14 सरकारी विभागों के लिए दायर 45 राइट-टू-इंफॉर्मेशन एप्लिकेशन के निष्कर्षों को संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है। जनवरी, 2017 में सरकार द्वारा शुरू की गई रणनीति, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान ( जीआरएपी) की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए केंद्रीय, राज्य और नगरपालिका निकायों से जवाब मांगे गए थे।
यूआरजेए द्वारा 68 दिनों के लिए एकत्र किए गए आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि मध्य दिल्ली के आईटीओ क्षेत्र में एक दिन को छोड़कर हवा की गुणवत्ता लगातार स्वीकार्य सीमा से ऊपर थी।
दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ( एनसीआर) में बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने के लिए, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) प्राधिकरण के माध्यम से जीआरएपी के कार्यान्वयन को अधिसूचित किया था। नवंबर 2016 में, दिल्ली में वायु प्रदूषण सुरक्षित स्तर से 16 गुना ऊपर पहुंच गया था, और दिल्ली सरकार ने इमरजेंसी घोषित कर दिया था।
पिछले दो वर्षों में, दिल्ली के प्रदूषण का स्तर स्वस्थ लोगों के लिए भी श्वसन और कार्डियक सिस्टम को कुप्रभावित करने के लिए पर्याप्त था। इस प्रदूषण के स्वास्थ्य प्रभावों का अनुभव ‘हल्की शारीरिक गतिविधियों’ में भी हो सकता है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 15 जून, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
जीआरएपी शहर की वायु के जहरीले पार्टिकुलेट मैटर या पीएम 2.5 को 61-120 µg / m3 और 300+ mg / m3 के बीच के स्तर पर आने पर जीआरएपी कई कार्रवाईयों को पूरा करती है। हवा में पीएम 2.5 के अनुमेय स्तर (24 घंटे के औसत) के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) का मानक 25 μg / m3 है, जबकि भारत का राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक, 1.4 गुना ज्यादा, 60 μg / m3 की अनुमति देता है। जीआरएपी प्रणाली केंद्रीय वायु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के वायु-गुणवत्ता मॉनिटर द्वारा उत्पन्न राष्ट्रीय वायु-गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) रीडिंग के आधार पर प्रदूषण के स्तर को वर्गीकृत करती है। जीआरएपी के तहत उठाए गए कदम प्रदूषण के स्तर के अनुसार वर्गीकृत किए गए हैं। इसमें शहर में कचरा जलाने और ट्रकों के प्रवेश पर प्रतिबंध, और हवा की गुणवत्ता खराब होने के आधार पर बिजली संयंत्रों, ईंट भट्टों और स्टोन क्रशर को बंद करना शामिल है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 9 नवंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।
दिल्ली में कई कारणों से समस्या और बढ़ गई है - पड़ोसी राज्यों में फसल जलना, निर्माण गतिविधि, बिजली संयंत्रों से यातायात और उत्सर्जन। सर्दियों में, समस्या और भी विकट हो जाती है, क्योंकि स्थिर हवाएं प्रदूषण को दूर नहीं ले जाती हैं।
अध्ययन की अवधि के दौरान वायु की गुणवत्ता खराब
जैसा कि हमने पहले उल्लेख किया है, डेटा से पता चला है कि दिल्ली की हवा की गुणवत्ता अध्ययन के 68-दिन की अवधि के दौरान कुछ समय को छोड़ कर बाकि सभी दिन अस्वस्थ थी। नौ मॉनिटरों में 612 रीडिंग मिलीं और पीएम 2.5 का स्तर 104 मामलों में 300 µg / m3 से अधिक पाया गया।
जब परिवेश पीएम 2.5 का स्तर 48 घंटे से अधिक समय तक 300µg/m3 से ऊपर रहता है, तो जीआरएपी के तहत सूचीबद्ध सभी इमरजेंसी चरण सक्रिय हो जाते हैं। यूआरजीए प्रेस विज्ञप्ति कहती है, "आरटीआई प्रतिक्रियाओं से प्राप्त जानकारी से पता चलता है कि वायु गुणवत्ता स्तर खराब होने पर कार्य करने के लिए ऐसी विस्तृत प्रक्रिया और अधिसूचना के बावजूद, जीआरएपी के तहत प्रदूषण को रोकने के लिए कार्यान्वयन की देखरेख के लिए जिम्मेदार विभागों में जागरूकता और उपाय करने के लिए उचित कार्यान्वयन की कमी है।”
औसतन, दिल्ली के आनंद विहार का पार्टिकुलेट प्रदूषण अनुमान के स्तर से 10 गुना अधिक था
इस अवधि में अध्ययन में शामिल सभी क्षेत्रों ने अनुमान की सीमा से कम से कम पांच गुना अधिक पीएम 2.5 स्तर की सूचना दी है। पूर्वी दिल्ली में आनंद विहार और पश्चिमी दिल्ली में अशोक विहार में पीएम 2.5 का औसत स्तर अनुमान की सीमा से लगभग 10 गुना अधिक देखा गया है। सीपीसीबी, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) और भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ( शहर की वायु गुणवत्ता पर नजर रखने के लिए जिम्मेदार तीन एजेंसियां )को डेटा को संसाधित करने और ईपीसीए को उनके निष्कर्षों के बारे में सूचित करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। ईपीसीए तब प्रदूषण से निपटने के उपाय तैयार करता है और उन्हें संबंधित अधिकारियों तक पहुंचाता है। हालांकि, एजेंसियों के बीच समन्वय सुचारू नहीं था।
बैठकों में केवल 39 फीसदी उपस्थिति
जीआरएपी प्रभावी रूप से तब तक काम नहीं कर सकता, जब तक कि एनसीआर और पड़ोसी राज्यों में विभिन्न एजेंसियां एक साथ काम नहीं करती हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 9 नवंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। जीआरएपी के कार्यान्वयन के लिए 12 एजेंसियां जिम्मेदार हैं।यूआरजेए की रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि जिम्मेदार एजेंसियों की उपस्थिति 39 फीसदी तक कम थी।
ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान बैठकों में एजेंसियों की उपस्थिति
आयोजित 18 जीआरएपी बैठकों में से, लोक निर्माण विभाग (पीडब्लूडी), दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन (डीएमआरसी) और डिसकॉम ने सिर्फ एक में भाग लिया। शामिल 12 एजेंसियों में से सात ने इन बैठकों में आधे से भी कम भाग लिया।
यूआरजेए के अध्यक्ष अतुल गोयल ने कहा, "ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान एक सुविचारित नीति है, जरूरत है इसे जमीन पर लागू करने और दिल्ली में हर साल बढ़ रहे वायु प्रदूषण के स्तर से निपटने की है। हालांकि, आरटीआई जवाब से पता चलता है कि अधिकांश एजेंसियां और विभाग अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों से अनजान हैं जैसा कि जीआरएपी के तहत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है। लेकिन एजेंसियों द्वारा अनुत्तरित कई महत्वपूर्ण सवालों के साथ, यह स्पष्ट है कि वे या तो जीआरएपी के तहत कदमों के बारे में नहीं जानते हैं या अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए तैयार नहीं हैं। दोनों स्थितियों में, यह नीतिगत विफलता है, जिससे दिल्ली के नागरिकों को सांस लेने में दिक्कतें हो रही हैं। ”
(डेटा वैज्ञानिक रायबग्गी कार्डिफ विश्वविद्यालय से कम्प्यूटेशनल और डेटा पत्रकारिता में ग्रैजुएट हैं और इंडियास्पेंड से ट्रेनी के रूप में जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: 17 जनवरी 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।
"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :