नीतिगत समस्या से सौर उर्जा की रफ्तार हो सकती है कम
नई दिल्ली: रिकॉर्ड वृद्धि के एक साल बाद, यदि सरकार सौर ऊर्जा के लिए चीन और मलेशिया से आयातित मॉड्यूल पर प्रस्तावित 25 फीसदी सुरक्षा शुल्क को मंजूरी देती है तो भारत का स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र प्रभावित हो सकता है। घरेलू उद्योग की रक्षा के लिए आयात वृद्धि को रोकने के उद्देश्य से सुरक्षा शुल्क एक अस्थायी उपाय है।
एक बार कर लगाए जाने पर चीन और मलेशिया से आने वाली सौर यूनिट्स महंगे हो जाएंगे। ये देश भारत की 80 फीसदी से अधिक जरूरतों को पूरा करते हैं। इसलिए ये ड्यूटी, अगले पांच वर्षों में यानी 2022 तक 100 गीगावाट (जीडब्लू) तक पहुंचने के भारत के सौर ऊर्जा लक्ष्य को को पूरा करने से दूर कर सकता है। यह लक्ष्य भारत की मौजूदा सौर उर्जा क्षमता का लगभग चार गुणा है।
वाणिज्य मंत्रालय की एक शाखा, ‘डायरेक्टेट जनरल ऑफ ट्रेड रेमेडीज’ (डीजीटीआर) ने घरेलू निर्माताओं को ‘गंभीर मार’ से बचाने के लिए कर की सिफारिश की है, जो विदेशी आपूर्तिकर्ताओं के कारण हो सकता है।
यह कर दो साल के लिए लागू होगा। पहले वर्ष में 25 फीसदी, दूसरे वर्ष के पहले छह महीनों के लिए 20 फीसदी और शेष छह महीने के लिए 15 फीसदी। कर का कार्यान्वयन औपचारिक रूप से वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग द्वारा अधिसूचित होगा।
इससे सौर क्षमता की स्थापना की लागत में वृद्धि होगी और अंततः टैरिफ में वृद्धि होगी, जो जीतने वाले बोलीदाताओं ने परियोजनाओं को पाने के लिए रिवर्स नीलामी में उद्धरित किया है।
ऐसी नीलामी में घोषित कीमतें पिछले कुछ वर्षों में तेजी से नीचे आई हैं, जिससे देश को वित्तीय वर्ष 2017-18 में कोयले की तुलना में अधिक नवीकरणीय क्षमता स्थापित करने में मदद मिली है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कर कोयले की तुलना में सौर ऊर्जा की आकर्षकता को खत्म करने के साथ-साथ, बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के वित्तीय स्वास्थ्य को भी खराब कर सकता है।
डिस्कॉम कैसे होंगे प्रभावित
दिल्ली स्थित, वैचारिक संस्था, ‘काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वाइरन्मन्ट एंड वॉटर’ ( सीईईई ) में स्वच्छ ऊर्जा विशेषज्ञ कनिका चावला ने कहती हैं, "सौर ऊर्जा की कीमत में वृद्धि होने की संभावना है।"
सौर ऊर्जा शुल्क मौजूदा 2.5 रुपये प्रति यूनिट से 3 रुपये प्रति यूनिट (1 किलोवाट प्रति घंटे) से ऊपर जाएगा, जैसा कि 17 जुलाई, 2018 को ‘द बिजनेस स्टैंडर्ड’ की रिपोर्ट में बताया गया है।
चावला ने इंडियास्पेन्ड को बताया कि इसका कारण मांग को पूरा करने के लिए घरेलू निर्माताओं की क्षमता का महंगा और अपर्याप्त दोनो है।
सौर संयत्रों के लिए भारत की वार्षिक घरेलू विनिर्माण क्षमता लगभग 3 जीडब्ल्यू है, या 20 जीडब्ल्यू की देश की आवश्यकता का 15 फीसदी है। भारत द्वारा निर्मित सौर संयत्रों के एक वाट की कीमत 62 रुपये है और चीनी संयत्रों के लिए एक वाट की कीमत 25 रुपये, है, जैसा कि डायरेक्टेट जनरल ने सौर आयात पर अस्थायी 70 फीसदी कर की सिफारिश के एक हफ्ते बाद, इंडियास्पेंड ने 25 जनवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया था। इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया था।
इस साल मई में, सरकार ने एंटी-डंपिंग कर को संभालने वाली दो एजेंसियों का विलय कर दिया और डीजीटीआर बनाने के लिए सुरक्षात्मक उपायों का आयात किया। उस संस्था ने अब 25 फीसदी कर की सिफारिश की है।
सस्ते सौर आयात के कारण 2017 में भारत के पास रिकॉर्ड-कम सौर टैरिफ था, जिसकी दर कोल आधारित संयत्रों द्वारा उत्पन्न बिजली की दर से कम थी।
कोयले से बनाई गई बिजली के लिए 3.20 रुपये के मुकाबले रिकॉर्ड किया गया सबसे कम सौर टैरिफ 2.44 रुपये प्रति यूनिट था, जैसा कि इंडियास्पेन्ड की रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है।
सौर लागत और टैरिफ में वृद्धि से एक बार फिर कोल आधारित ऊर्जा पर लोगों का ध्यान जाएगा, जो जलवायु के लिए हानिकारक होगी, जैसा कि इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आईआईएसडी) और इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) के साथ जुड़े ऊर्जा विशेषज्ञ विभूति गर्ग ने बताया है।
चावला कहती हैं, “कर पहले से ही निर्माणाधीन परियोजनाओं की लागत में वृद्धि कर सकता है अगर उन्हें प्रति यूनिट लागत के रूप में मुआवजा नहीं दिया जाता है।कुछ ऊर्जा खरीद समझौते (पीपीए) ( बिजली निर्माता और एक डिस्को के बीच हस्ताक्षर ) यह सुनिश्चित करने के लिए 'पास-थ्रू' तंत्र है कि पाइपलाइन में परियोजनाओं में नुकसान नहीं होता है।ये प्रावधान बिजली उत्पादकों को नुकसान से बचाते हैं, यदि उत्पादन लागत उनके नियंत्रण से बाहर कारकों के कारण बढ़ जाती है-उदाहरण के लिए, शुल्क और कर।”
इससे यह संकेत मिलता है कि डिसकॉम को सौर ऊर्जा उत्पादकों को भुगतान किए गए टैरिफ में वृद्धि करना होगा, जिनकी पूंजीगत लागत सुरक्षा शुल्क के कारण बढ़ेगी। चावला ने इंडियास्पेंड को बताया, " यूटिलिटीज पर वित्तीय बोझ बढ़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप संभावित ओवरबर्डिंग हो सकती है।"
सरकारी आंकड़ों पर इंडियास्पेंड विश्लेषण के मुताबिक, पहली बार भारत ने वित्त वर्ष 2017-18 में नवीकरणीय क्षमता में 11.77 जीडब्ल्यू जोड़ा है। इसी अवधि के दौरान यह थर्मल और हाइड्रो इंस्टॉलेशन संयुक्त (5.3 जीडब्ल्यू) की दोगुनी क्षमता थी।
यह रिकॉर्ड वृद्धि सिर्फ सौर द्वारा संचालित ऊर्जा से थी।वर्ष 2017-18 में सौर ऊर्जा स्थापना में 9.36 जीडब्ल्यू, 2016-17 से 70 फीसदी अधिक, और 2017-18 में भारत में कुल 11.77 जीडब्ल्यू अक्षय क्षमता का लगभग 80 फीसदी दर्ज किया गया।
गुरुग्राम स्थित परामर्शदाता संस्था ब्रिज टू इंडिया में नवीकरणीय ऊर्जा विशेषज्ञ सुरभी सिंघवी ने कहा, "2015 के अंत और 2016 के आरंभ में निविदा जारी करने में वृद्धि, 2017-18 में 9 जीडब्ल्यू जोड़ने के पीछे के प्राथमिक कारण हैं।"
विकास के लिए सौर क्षमता नीलामी / आवंटन
सौर मॉड्यूल की कीमतों में 11 रुपये प्रति वाट की गिरावट आईं, मार्च 2015 में 33 रुपये प्रति वाट से मार्च 2017 में 22 रुपये प्रति वाट। यह गिरावट 33.33 फीसदी है।
2015 के बाद अधिशेष आपूर्ति के कारण सौर मॉड्यूल की कीमतों में तेजी से गिरावट आई, जिससे सौर स्थापना की लागत कम हो गई।
सौर मॉड्यूल मूल्य सूचकांक
गर्ग कहते हैं, “महत्वपूर्ण विनिर्माण क्षमता जोड़ने के लिए दो साल की खिड़की बहुत छोटी है। नीति की अनिश्चितता विदेशी निर्माताओं को निवेश से दूर रखता है। सुरक्षा शुल्क आयातित उत्पादों की कीमतों को असंगत बना देगा, और सौर लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में प्रगति प्रभावित होगी, क्योंकि सुरक्षा उपाय लक्ष्य को पूरा करने के लिए घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ाने में मददगार नहीं होंगे।"
नीतिगत समस्या ने पहले ही पवन ऊर्जा को प्रभावित किया है
सौर से पहले, सरकारी नीति में बदलाव के कारण पवन ऊर्जा क्षेत्र को कठिन झटका लगा था।
फरवरी 2017 तक, पवन ऊर्जा उत्पादन करने वाले राज्यों के बिजली नियामकों द्वारा पवन शुल्क अलग-अलग सेट किए गए थे। उत्पादक संबंधित नियामकों द्वारा पहले से तय टैरिफ के अनुसार, संबंधित डिसकॉम के साथ पीपीए में प्रवेश करते थे।
फिर, भारत की नवीकरणीय क्षमता वृद्धि को चलाने के लिए जिम्मेदार नई और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) की एक इकाई, सौर ऊर्जा निगम (एसईसीआई) ने पहली पवन नीलामी आयोजित की, जहां प्रतिस्पर्धी बोली-प्रक्रिया के माध्यम से कीमतें तय की गईं और सबसे कम कीमत लगाने वाला जीता।
फरवरी 2017 में रिवर्स नीलामी से 3.46 रुपये प्रति यूनिट टैरिफ सामने आया, जो 4 रुपये और 6 रुपये प्रति यूनिट से कम था, जो नियामकों ने पहले सिफारिश की थी। जल्द ही, लगभग सभी राज्य रिवर्स नीलामी मॉडल में चले गए।
एसईसीआई द्वारा अक्टूबर 2017 में आयोजित नीलामी में, पवन ऊर्जा की कीमत रिकॉर्ड रूप से 2.64 रुपये प्रति यूनिट पर पहुंच गया।
‘ब्रिज टू इंडिया’ के सिंघवी कहते हैं, “ इस शिफ्ट ने पुरानी परियोजनाओं को और अधिक प्रभावित किया है, क्योंकि पुराने पीपीए में उच्च टैरिफ में डिसकॉम अब बिजली खरीदने के लिए अनिच्छुक हैं। उन्होंने पुराने पीपीए से फिर से बातचीत करने का प्रयास किया है।”
छह साल में मार्च 2018 तक, 17 जीडब्ल्यू से 34 जीडब्लू तक स्थापित क्षमता की दोगुना होने के साथ, पवन क्षेत्र, जो भारत की नवीकरणीय क्षमता वृद्धि का हालिया सबसे मजबूत पक्ष था, साल दर साल में क्षमता वृद्धि में 67 फीसदी की गिरावट देखी गई है।
2017-18 में कुल 1.76 जीडब्ल्यू पवन क्षमता रही, जबकि इससे पहले वर्ष यह 5.5 जीडब्ल्यू था। इस क्षेत्र में जल्द किसी वृद्धि की उम्मीद नहीं है।
सिंघवी कहते हैं, "नीलामी-आधारित आवंटन में आम तौर पर बदलाव 18-24 महीने के अंतराल में होता है। अचानक मूल्य परिवर्तन परियोजनाओं की पाइपलाइन को प्रभावित करता है, क्योंकि परियोजना डेवलपर्स को समायोजित करने में समय लगता है। "इसलिए, हम 2019 की शुरुआत तक (पवन) क्षेत्र में गति की उम्मीद नहीं करते हैं।”
मंदी
‘ब्रिज टू इंडिया’ के अनुमान के अनुसार, वर्ष 2018 में केवल सौर ऊर्जा में 6.3 गीगावाट की वृद्धि होगी। 2017 से 25 फीसदी कम। सिंघवी ने कहा कि 2016-17 और 2017-18 में नए सौर निविदा जारी करने में मंदी की वजह से यह गिरावट पहले से ही अपेक्षित थी।
गर्ग कहते हैं, “निकट अवधि में कर से क्षमता वृद्धि प्रभावित हो सकती है, जिसे टाला जा सकता है।”
हालांकि, यह नीति अनिश्चितता व्यापार के लिए खराब है। गर्ग ने कहा, " ऐसी नीतिगत जोखिमों को कम किया जाना चाहिए। अनिश्चित स्थितियों में परिचालन बहुत मुश्किल हो जाता है।"
(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता है और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 20 जुलाई, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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