नोटबंदी के एक साल बाद प्याज किसान संकट में, बैंकिंग प्रणाली से मदद नहीं
महाराष्ट्र में नासिक जिले के एक प्याज किसान विजय निकम के पास स्मार्टफोन नहीं है, न ही नेटबैंकिंग के बारे में उन्होंने सुना है और नजदीकी शहर में एटीएम में नकद शायद ही उपलब्ध रहता है। इस दिवाली उनके पास पैसे नहीं थे। नोटबंदी के एक साल बाद इंडियास्पेंड ने संकट में अर्थव्यवस्था की जांच के लिए प्याज किसानों से मुलाकात की।
वालवाडी / लासलगांव / पिंपलगांव, नासिक (महाराष्ट्र): सरकार के द्वारा नकदी रहित अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से उच्च मूल्य वाले मुद्रा नोटों को बदलने के एक साल बाद, नासिक के प्याज किसानों के पास जरुरी चीजें खरीदने के लिए भी पैसों की कमी है।
नोटबंदी के बाद से ही यह सुनिश्चित किया गया है कि मध्यस्थ उन्हें चेक द्वारा भुगतान करे, लेकिन बैंकिंग सुविधाएं बहुत कम हैं और शाखाओं के बीच चेक की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि इससे नकद भुगतान में सप्ताह भर का समय लग जाता है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था अब भी काफी हद तक नकदी पर चलती है। बिना नकदी के किसान बीज और उपकरणों को खरीदने और मजदूरों को भुगतान करने में असमर्थ हैं । अगर इस वजह से फसल बोने में देरी होती है तो किसानों का नुकसान बड़ा हो सकता है। ऐसी हालत में कभी-कभी उन्हें निजी साहूकारों के पास जाना पड़ता है। निजी साहूकार उच्च ब्याज पर पैसे देते हैं।
9 नवंबर, 2016 को सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था से 86 फीसदी मुद्रा को वापस लेने के छह सप्ताह बाद, इंडियास्पेंड ने नासिक में प्याज के किसानों पर तत्काल प्रभाव की जानकारी दी थी। किसानों ने अपर्याप्त बैंकिंग सुविधाएं, खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी और चेक निकासी की धीमी गति की शिकायत की थी। एक वर्ष बाद हमने यह जानने के लिए नासिक का दोबारा दौरा किया कि कैसे इसने किसानों के जीवन को प्रभावित किया है और वे कैशलेस अर्थव्यवस्था के कितने नजदीक हो पाए हैं।
मंडी में उदासी
नासिक जिले के लासलगांव में कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) एशिया का सबसे बड़ा प्याज बाजार है, जो भारत में उत्पादित 15 फीसदी प्याज की फसल का प्रबंधन करता है। दीवाली के एक हफ्ते बाद, इंडियास्पेंड ने इस बाजार का मिजाज निराशाजनक पाया है।
किसानों के निराश होने के कारण पर 50 वर्षीय किसान अशोक कदम ने इंडियास्पेंड को बताया कि, “तीन दिन पहले जिस फसल की कीमत 3,250 रुपए थी, उसकी कीमत अब 2,000 रुपए प्रति क्विंटल है। ” लेकिन केवल कम कीमत ही उनकी चिंता का कारण नहीं है। नोटबंदी के बाद से, किसान अपने उत्पाद को मंडियों (कृषि बाज़ार) में बेचते हैं और उन्हें चेक के द्वारा भुगतान किया जा रहा है।
कदम बताते हैं कि, चेक से नकद मिलने में करीब चार से छह वर्ष का समय लग जाता है। वह अपने गांव में अहमदाबाद जिले के कोपरगांव ब्लॉक के मेगावदेवी दमोरी की एक बैंक शाखा में चेक जमा कराते हैं और फिर एक बड़ी शाखा तक पहुंचने के लिए एक सप्ताह का समय लगता है और फिर वहां संसाधित होने के लिए एक या दो सप्ताह का समय लगता है।
कदम आगे बताते हैं, "किसान प्याज तब बेचते हैं जब उन्हें पैसों की सबसे ज्यादा जरुरत होती है।" कुछ प्रजातियों को छोड़कर, सफेद प्याज चार से छह माह के बीच तक संग्रहीत किया जा सकता है और तब बेचा जाता है, जब उन्हे किसी चीज की जरुरत होती है, जैसे कि अगले फसल बोने के लिए पैसे या बिल का भुगतान या चिकित्सा या घरेलू खर्चों की जरुरत।
8 नवंबर, 2016 तक किसानों को फसल बेचने के तुरंत बाद नकद मिलता था। कदम कहते हैं, "लेकिन अब हमें नकद नहीं मिल रहा है, जब हमें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। ऐसे में हम ऋण लेने और ब्याज का भुगतान करने पर मजबूर हैं।" वह बताते हैं कि नोटबंदी से उन पर सीधे असर नहीं पड़ा, क्योंकि उसके पास ज्यादा नकदी नहीं थी, लेकिन अब चेक व्यवस्था उन्हें पर कर्ज में धकेल रहा है।
शेगु गांव के येवला ब्लॉक के एक अन्य प्याज किसान भीकाजी गावरे ने इंडियास्पेंड को बताया, “ उत्पाद बेचने के लिए यात्रा करने के लिए ऋण के लिए मुझे मेरी पत्नी के जेवर को गिरवी के रूप में रखने के अलावा मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। एक बार भुगतान मेरे खाते में जमा हो जाता है, तो मैं देनदार को चुका सकूंगा।” उन्होंने बताया कि हर बार उन्हें पैसों की जरुरत होती है और उन्हें पैसे ऋण लेने पड़ते हैं।
एशिया के सबसे बड़े प्याज बाजार में लासलगांव कृषि उत्पाद बाजार समिति के एकाउंटेंट अशोक गायकवाड़ कहते हैं, "किसानों ने बार-बार मांग की है कि मंडियों में नकद लेन-देन की व्यवस्था शुरु हो, लेकिन व्यापारियों की ओर से इसका उग्र प्रतिरोध देखने को मिलता है।"
किसानों ने बार-बार मांग की है कि मंडियों में नकदी लेनदेन वापस आ जाए, लेकिन व्यापारियों की र से तीव्र प्रतिरोध हुआ है, जैसा कि लासलगांव एपीएमसी में एकाउंटेंट अशोक गायकवाड़ कहते हैं। इस साल की शुरुआत में, जब एपीएमसी ने व्यापारियों को नकद या आरटीजीएस (वास्तविक समय सकल निपटान) द्वारा भुगतान करने के लिए कहा था, तो व्यापारियों ने हड़ताल की थी। गायकवाड़ कहते हैं, “चेक की प्रक्रिया का धीमा समय व्यापारियों को एक नया लाभ देता है, जो वे खोना नहीं चाहते हैं। कई व्यापारियों ने देरी के भुगतान के लिए पोस्ट-डेटेड चेक जारी किए हैं। कई एपीएमसी पर बाउंस चेक के खिलाफ कई किसानों ने शिकायत की है।”
लासलगांव और पिंपलगांव एपीएमसी में काम करने वाले एक अन्य प्याज व्यापारी सुशांत भंडारे कहते हैं, “यदि एपीएमसी ने एक संकल्प पारित कर दिया है, तो व्यापारी नकद भुगतान करने लगेंगे।
कैशलेस अर्थव्यवस्था को पूरे पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता होती है। इंडियास्पेंड ने अपने दौरे में देखा कि एक वर्ष बाद भी पूरे गांव में कमी है, जहां अब तक इंटरनेट तक पहुंच नहीं है, और निकटतम एटीएम 25 किमी दूर है, निकटतम राष्ट्रीयकृत बैंक 15 किमी दूर है, और जिला सहकारी बैंक 10 किमी दूर है।
यहां अधिकांश ग्रामीणों के पास स्मार्टफोन नहीं है। भारत भर में 1 बिलियन लोगों के पास स्मार्ट फोन नहीं है, इसलिए वे मोबाइल बैंकिंग सेवाओं या इंटरनेट-आधारित भुगतान प्रणाली तक नहीं पहुंच सकते।
मूल्य नियंत्रण
इस बीच, व्यापारियों को सरकार से बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
एपीएमसी में प्याज की कीमतों में भारी उतार-चढ़ाव के कारणों का पता लगाने के लिए उपभोक्ता मामलों के केंद्रीय मंत्रालय की ओर से एक प्रतिनिधिमंडल ने लासलोंगांव की यात्रा की थी। कुछ समय बाद ही सितंबर में आयकर विभाग ने नासिक के सात बड़े प्याज व्यापारियों के गोदामों पर छापा मारा था।
अगस्त में प्याज की कीमतों में बढ़ोतरी हुई थी। खराब बारिश के कारण आंशिक तौर पर कर्नाटक में 30 फीसजी से 40 फीसदी कम उत्पादन हुआ है, और आंशिक तौर पर व्यापारियों द्वारा कार्टेलिसेशन करने के लिए, जिसे संघीय कृषि मंत्रालय ने महाराष्ट्र सरकार से जांच करने को कहा था।
जिसके परिणामस्वरूप छापे कुछ दिनों के लिए नीलामी रुक गए और और कीमतों में 35 फीसदी की गिरावट हुई थी। अक्टूबर में, व्यापारियों को चार दिनों से अधिक प्याज संग्रहित नहीं करने के लिए कहा गया था, जिससे आगे व्यापार प्रभावित होता है।
किसानों के नकद भुगतान करने वाले कुछ एपीएमसी बाजारों में से एक, नासिक के पिंपलगांव कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) में ट्रक से उतरते प्याज। चेक लेने की बजाय किसान नकद भुगतान के लिए कम दर को भी स्वीकार कर लेते हैं।
भंडारे कहते हैं, “ हमने अपनी खरीद प्रतिदिन 5000 क्विंटल से घटा कर 500 क्विंटल प्रति दिन कर दी है। चार दिनों में बड़ी मात्रा में माल निकालने, क्रमबद्ध और परिवहन करना मुश्किल है, क्योंकि यह काम श्रमिक आपूर्ति पर निर्भर है और दीवाली के बाद से काम के लिए कम मजदूर उपलब्ध हैं।
नतीजतन, व्यापारी सामान्य से कम से कम 50 फीसदी कम खरीद रहे हैं, जैसा कि चांदवाड एपीएमसी के एक प्याज व्यापारी संजय अग्रवाल ने इंडियास्पेंड को बताया है। वह कहते हैं, "व्यापारी बेचने की तुलना में अधिक खरीदने के लिए तैयार नहीं हैं। एक एजेंट के रूप में अपने 25 वर्षों में ऐसा पहली बार हुआ है कि इस तरह के स्टॉक-रखरखाव पर प्रतिबंध लगाए गए हैं।"
कीमतें कम रखने के प्रयासों का लक्ष्य शहरी उपभोक्ता को खुश रखने का है, लेकिन किसानों को नुकसान पहुंचा है। नासिक के कृषि विशेषज्ञ गिरिधर पाटिल कहते हैं, “चूंकि यह सरकार शहरी मतदाताओं को अपने मूल मतदाता आधार के रूप में देखती है, इसलिए किसानों की कम कीमतों पर उन्हें खुश रखने के लिए प्रतिबद्ध है। यहां तक कि (ए) ऋण छूट को अनिश्चित काल तक देरी हो रही है, यह 31 अक्टूबर तक वितरित होने की उम्मीद थी लेकिन आखिर में यह सुनने मिला है कि ऋण माफी दस्तावेज़ 'जांच के तहत' थे। ”
विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को मूंग, उड़द दाल और सोयाबीन के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा है, जिससे वे अपने निवेश को ठीक नहीं कर पा रहे है। और फिर प्याज जैसे कृषि उत्पादों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। महाराष्ट्र के बीड जिले के एक कार्यकर्ता किसान वैजनाथ भोंसले ने कहा, "क्या इस तरह से किसान खेती से बाहर नहीं हो जाएंगे?"
मध्यप्रदेश में भी, किसान नकदी में भुगतान नहीं होने पर नाराज हैं और सरकार ने व्यापारियों से 50,000 रुपए तक की रकम के लिए नकद भुगतान करने के लिए कहा है।
कैशलेस अर्थव्यवस्था-एक लंबा रास्ता
नाशिक के मालेगांव तालुक के दाभाडी गांव के एक प्याज किसान विजय निकम कहते हैं कि उनके पास स्मार्टफोन नहीं है, न ही नेटबैंकिंग के बारे में सुना है और नजदीकी शहर में एटीएम में हमेशा नकद की कमी रहती है।
इंडियास्पेंड उनसे मुलाकात की। वे तब अपने गांव से 70 किलोमीटर दूर एक बड़े प्याज बाजार पिंपलगांव एपीएमसी में थे। हालांकि, वहां अन्य बाजार करीब हैं, लेकिन वे पिंपलगांव जाना पसंद करते हैं क्योंकि व्यापारी वहां नकदी में भुगतान करते हैं। उन्होंने कहा, "चेक लेनदेन के कारण दीवाली के दौरान मेरे पास कोई पैसे नहीं थे।" उन्होंने कि अगर उन्हें भुगतान नकद में मिलता है तो वो अपनी फसल सस्ते में भी बेच देते हैं।
बड़े किसान भी प्रभावित
मालेगांव के नाशिक में वालवाड़ी 1,500 लोगों का एक छोटा सा गांव है। मुंबई से 295 किमी और जिला राजधानी से 123 किमी स्थित है, यह गुगल मानचित्र पर नहीं है। पानी की सख्ती से कमी वाले वालवाडी के कुएं हर साल जनवरी तक सूख जाते हैं
महिलाएं एक कुएं से से पानी भरती हैं, जो गांव के पीने के पानी का एकमात्र स्रोत है। आधे घर खाली हैं क्योंकि उनके मालिक ढलानों पर रहने के लिए चले गए हैं, जहां अधिक पानी है।
सरकार की परिभाषा से, 37 वर्षीय पाटिल जो 40 एकड़ जमीन के मालिक है, वह बड़े किसान हैं - भारत के 0.70 फीसदी बड़े किसानों में से एक। लेकिन वह मकई, प्याज और तूर उगाते हैं और तनाव में जीते हैं।
जून में बोए गए लाल प्याज, अक्टूबर में बेमौसम बारिश से नष्ट हो गए हैं। वह कहते हैं, "मुझे प्याज फिर से बोने के लिए पैसे की ज़रूरत है। लेकिन मेरे पास पोस्ट-डेटेड चेक दिए हैं जिससे नकद मिलने में महीने लगेंगे। मुझे शहर में सबसे बड़े प्याज व्यापारी से 21,000 रुपए का एक चेक मिला था, जो तीन बार बाउंस हुआ है। एक बार मैंने शाखा में बैठ कर उन्हें फोन किया जिससे वे मुझे नकद भुगतान करने के लिए सहमत हुए। " पाटिल आगे बताते हैं, "कोई भी ऋण पर खाद, कीटनाशक या बीज नहीं देता। हमें खेती के लिए दैनिक आधार पर नकदी की जरूरत है। "
नासिक के वालवाडी गांव में 40 एकड़ जमीन के मालिक 37 वर्षीय दीपक पाटिल, उन किसानों में से एक हैं, जो सरकार के दबाव के कारण कैशलेस अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रही व्यवस्था में खुद को बंधन में पाते हैं। उनके पास स्मार्टफोन है, लेकिन उनके गांव में ऑनलाइन लेन-देन को सक्षम करने के लिए कोई इंटरनेट कनेक्टिविटी नहीं है। निकटतम एटीएम 25 किमी दूर है और निकटतम बैंक 10 किमी दूर है। चेक की प्रक्रिया पूरी करने में बैंकों को सप्ताह भर का समय लगता है।
पाटिल 20 मजदूरों को रोजगार देते हैं, जिनमें से प्रत्येक को प्रति दिन 250 रुपए का भुगतान करना पड़ता है। उन्होंने इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहा "हम 2 एकड़ जमीन पर 1 लाख रुपए खर्च करते हैं, जिससे 200 किलो प्याज का उत्पादन होता है।" कम कीमतों और खराब वर्षा के कारण, उन्होंने पिछले मौसम में केवल 50,000 अर्जित किए हैं, जिससे वह दो साल पहले लिए गए 17 लाख रुपए के लिए किश्तों का भुगतान करने में असमर्थ रहे हैं।
वे बताते हैं कि पिछले तीन वर्षों में उन्हें हर साल 4 से 5 लाख रुपए के नुकसान का सामना करना पड़ा है। वह कहते हैं, ‘”इतने खराब रिटर्न के साथ किसानों का खेती से विश्वास उठ रहा है। मैंने मुख्य सड़क के पास के शहर वाडेनर में एक बैकअप के रुप में किराना की दुकान खरीदी है। मुझे हर महीने ऋण चुकाने के लिए कई बार बैंक से फोन आता है और वे लोग मुझसे जमीन और दुकान की नीलामी के बारे में कहते हैं। "
दीपक के चाचा विजय पाटिल, जिनकी 1.5 एकड़ भूमि है, वे भी कर्ज के बोझ के तले दबे हैं। उन्होंने इंडियास्पेड से कुछ इस प्रकार अपनी भावना व्यक्त की: “किसानों को ऋण माफी की जरूरत नहीं है। हम अपने उत्पादन के लिए सही कीमत चाहते हैं। ”
किसानों के साथ बैंकों का व्यवहार अच्छा नहीं
नोटबंदी से पहले, ज्यादातर किसान जिला सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) पर भरोसा करते थे, और कई किसानों के पास अन्य बैंकों में खाते नहीं थे।
नोटबंदी के दौरान, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने डीसीसीसी को नए नोटों के लिए निष्क्रिय नोटों का आदान-प्रदान करने से रोक दिया। नवंबर 2016 में, महाराष्ट्र में डीसीसीबी के पास पुराने मुद्रा नोटों में 2,240 करोड़ रुपये थे, और जुलाई 2017 में ही नए नोटों के लिए इन्हें आदान प्रदान करने की अनुमति दी गई।
जब महाराष्ट्र ने जून 2017 में 1.5 लाख रुपये तक के कृषि ऋण पर ऋण माफी की घोषणा की, किसानों ने अपने कर्ज का भुगतान करना बंद कर दिया और डीसीसीबी के साथ आरक्षित नकद में अधिक गिरावट आई है, जो आगे कामकाज में बाधा डालता है।
प्याज के किसानों का कहना है कि उन्हें अब राष्ट्रीयकृत बैंकों तक जाना पड़ता है, जिनके बारे में वे बहुत नहीं जानते हैं और वहां कर्मचारी सहायता नहीं करते हैं। निकम कहते हैं, "राष्ट्रीयकृत बैंकों ने कभी किसानों की आवश्यकताओ को ध्यान में रखने की परवाह नहीं की है। गवरे कहते हैं, "राष्ट्रीयकृत बैंक में भी चपरासी भी एक निरक्षर किसान को चेक स्लिप भरने में मदद नहीं करता है।"
(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 4 नवंबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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