नौकरी पर डेटा अधिक शहरी बेरोजगारी का करती है खुलासा, लेकिन औपचारिक नौकरियों की संख्या भी ज्यादा
नई दिल्ली: सरकार द्वारा जारी नवीनतम नौकरियों के आंकड़ों -काफी विवादों और बहस के बीच- में 45 वर्षों में सामान्य बेरोजगारी की सबसे उच्च दर दिखाया गया है, लेकिन ये आंकड़े औपचारिक रोजगार में वृद्धि का भी खुलासा करते हैं, विशेष रूप से शहरी और गैर-कृषि क्षेत्रों में। सभी नौकरियों में, औपचारिक रोजगार की हिस्सेदारी 35.8 फीसदी की है।
हमारे निष्कर्ष 31 मई, 2019 को ‘नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस’ (एनएसएसओ) द्वारा जारी पिरीआडिक लेबर फोर्स सर्वे (पीएलएफएस) और एनएसएसओ’ की तरफ से 2005-05 में ‘क्विनक्वेनियल एम्प्लॉयमेंट एंड अनएम्प्लॉयमेंट सर्वे के एक तुलनात्मक परिणाम से आए थे।:
- 13 वर्षों में, शहरी क्षेत्रों में ‘नियमित’ श्रमिकों की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। 2004-05 में 35.6 फीसदी थी, जो बढ़कर 2017-18 में 47 फीसदी हुई है।
- औपचारिक गैर-कृषि क्षेत्र में श्रमिकों ( सरकारी संगठन, सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, और सार्वजनिक / निजी सीमित कंपनियां, ट्रस्ट / गैर-लाभकारी संस्थान और स्वायत्त निकाय ) की हिस्सेदारी 2004-05 में 27.8 फीसदी थी, जो बढ़कर 2017-18 में 35.8 फीसदी हुई है।
‘सभ्य रोजगार’ के आंकड़ों में एक विरोधाभास भी दिखता है। ‘सभ्य रोजगार’ इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनिजैशन और भारत सरकार द्वारा रोजगार की स्थितियों का विश्लेषण करने के लिए उपयोग किया जाने वाला टर्म है।
जिस अवधि का हमने विश्लेषण किया है, उस दौरान गैर-कृषि, शहरी रोजगार में कॉंट्रैक्ट जॉब और पेड लीव वाले लोगों के लिए रोजगार दर में गिरावट हुई है। हालांकि, पिछले 13 सालों में सामाजिक सुरक्षा लाभ वाले नौकरियों में वृद्धि हुई है, जो इस तरह के रोजगार का सबसे महत्वपूर्ण माप है।
नतीजतन, शहरी नौकरी बाजार में एक नया विरोधाभास उभर रहा है: श्रमिकों के दो सेटों ( एक बेहतर रोजगार की स्थिति या अच्छी नौकरियों के साथ, और दूसरा खराब रोजगार स्थितियों के साथ ) के लिए अपेक्षाकृत सुरक्षित औपचारिक रोजगार में वृद्धि, अनौपचारिक रोजगार के बराबर ही हैं।
यह भारत की रोजगार स्थितियों का एक व्यापक विश्लेषण है, जिसके लिए एक विस्तृत जांच की आवश्यकता है, इस चेतावनी के साथ कि पीएलएफएस 2017-18 और पिछले एनएसएसओ सर्वेक्षणों की तुलना में सीमाएं हैं।
पीएलएफएस हर तीन महीने में शहरी क्षेत्रों में और साल में एक बार ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में रोजगार को मापता है और शिक्षा के स्तर को वर्गीकरण के लिए एक मापदंड के रूप में उपयोग करता है।
पीएलएफएस 2017-18, जुलाई 2017 में माल और सेवा कर (जीएसटी) के कार्यान्वयन के बाद आयोजित किया गया था, डेटा बताता है कि तब से औपचारिक श्रमिकों के अनुपात में वृद्धि हुई है। पिछले 13 वर्षों में, शहरी क्षेत्रों में ‘नियमित’ श्रमिकों की हिस्सेदारी, वर्ष 2004-05 में 35.6 फीसदी से बढ़कर 2017-18 में 47 फीसदी हुई है।
इसी अवधि के दौरान, पुरुषों के लिए नियमित रोजगार 40.6 फीसदी से बढ़कर 45.7 फीसदी और महिलाओं के लिए आंकड़े 35.6 फीसदी से 52.1 फीसदी हुए हैं। हालांकि, जीएसटी की जल्दबाजी, और अराजक कार्यान्वयन के लिए अक्सर व्यापक रूप से आलोचना की गई थी। (जीएसटी के कार्यान्वयन के बाद नौकरी के नुकसान पर हमारी श्रृंखला यहां पढ़ें)।
पीएलएफएस रिपोर्ट से पता चला है कि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पहले कार्यकाल के दौरान, जब गणना ‘सामान्य स्थिति’ (जो सर्वेक्षण की तारीख से पहले एक वर्ष की संदर्भ अवधि के आधार पर निर्धारित की जाती है) से की गई तो भारत की बेरोजगारी दर 6.1 फीसदी थी और जब ‘वर्तमान साप्ताहिक स्थिति’ द्वारा गणना की जाती है (जो सर्वेक्षण की तारीख से पहले सात दिनों की संदर्भ अवधि के आधार पर निर्धारित की जाती है) तो यह 8.9 फीसदी थी।
रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि शहरी महिलाओं (27.2 फीसदी) में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा थी। शहरी, शिक्षित भारतीय में बेरोजगारी दर इस प्रकार से देखी गई -पुरुष (9.2 फीसदी) और महिलाएं (19.8 फीसदी) और सामान्य रूप से महिलाओं में (10.8 फीसदी)।
अन्य डेटा स्रोत इस निष्कर्ष का समर्थन करते हैं कि औपचारिक-गैर-कृषि रोजगार में वृद्धि हुई है। इनमें कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ), कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ईएसआईसी) और पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) द्वारा जारी मासिक पेरोल डेटा शामिल हैं।
क्यों 'सभ्य रोजगार' हैं महत्वपूर्ण
यूनाइटेड नेशन के सस्टैनबल डेवलपमेंट गोल्स (एसडीजी) के अनुरूप, ‘सभ्य रोजगार’ एक प्रमुख सरकारी महत्वाकांक्षा है। गोल नंबर आठ इस प्रकार है "निरंतर, समावेशी और सतत आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोजगार और सभी के लिए सभ्य काम को बढ़ावा देना।"
आंकड़ों पर एक नजर डालने से पता चलता है कि, 'सभ्य रोजगार' के लिए तीन संकेतकों में से दो (लिखित नौकरियों के कॉंट्रैक्ट, और भुगतान किए गए अवकाश) के लिए, शहरी, गैर-कृषि रोजगार में गिरावट आई है। लेकिन तीसरे संकेतक (सामाजिक सुरक्षा द्वारा लाभ) में एक उत्थान दिखता है, जो अधिक महत्वपूर्ण है।
गैर-कृषि, शहरी क्षेत्रों में सभ्य रोजगार के लिए पहला संकेतक एक लिखित नौकरी कॉंट्रैक्ट या नौकरी की अवधि के बारे में नियोक्ता के साथ एक औपचारिक समझौता है।
इस मापदंड के अनुसार, नवीनतम पीएलएफएस रिपोर्ट से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों में नियमित श्रमिकों (एक लिखित नौकरी कॉंट्रेक्ट के साथ) की हिस्सेदारी 2004-05 में 40.9 फीसदी थी, जो घटकर 2017-18 में 27.6 फीसदी और महिलाओं के लिए 38.8 फीसदी से 28.6 फीसदी हो गई है।
पीएलएफएस रिपोर्ट से पता चलता है कि पेड लीव के योग्य नियमित श्रमिकों के हिस्सेदारी (‘सभ्य रोजगार’ के लिए दूसरा सूचक ) शहरी क्षेत्रों में 2004-05 में 54.5 फीसदी थी, जो घटकर 2017-18 में 47.2 फीसदी और महिलाओं के लिए 52.0 फीसदी से 48.2 फीसदी हुई है।
सभ्य रोजगार की स्थिति के लिए तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण संकेतक सामाजिक सुरक्षा लाभ के लिए पात्र नियमित श्रमिकों की हिस्सेदारी है ( प्रॉविडेंट फंड, पेंशन, ग्रेच्युटी, स्वास्थ्य देखभाल, और मातृत्व लाभ ) जो, 2004-05 में 46.6 फीसदी थी, उससे 6.2 प्रतिशत अंक बढ़कर 2017-18 में 52.3 फीसदी और महिलाओं के लिए 40.4 फीसदी से 49.9 फीसदी हुई है।
पीएलएफएस 2017-18 इस प्रकार पुष्टि करता है कि लिखित कॉंट्रैक्ट होने और पेड लीव पाने वाले नियमित श्रमिकों की संख्या में गिरावट आई है।
फिर भी, पिछले 13 वर्षों से जारी सरकारी प्रयासों के परिणामस्वरूप सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करने वाले शहरी क्षेत्रों में औपचारिक श्रमिकों की संख्या में वृद्धि हुई है।
(कुमार इकोनोमिक्स में पीएचडी हैं और नई दिल्ली के ‘इंपैक्ट एंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिटूट’ से जुड़े हैं। मेहता डेवलप्मेंट इकोनोमिक्स में पीएचडी हैं और नई दिल्ली के ही ‘इंस्टिटूट फॉर ह्युमन डेवलप्मेंट’ से जुड़े हुए हैं। )
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 26 जून 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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