पंजाब के लेबर हब में श्रमिक एक-तिहाई मजदूरी पर नौकरी करने को तैयार
भटिंडा से 60 किलोमीटर दूर, मनसा का ‘मालगोदाम लेबर हब’ रेलवे स्टेशन के नजदीक है। हर रोज लगभग 100-150 दिहाड़ी मजदूर यहां आते हैं। ज्यादातर को निजी ठेकेदारों द्वारा सामान उठाने, सफाई और अन्य मामूली कन्सट्रक्शन कार्य के लिए काम पर रखा जाता है।
भठिंडा: बलकरा सिंह के माथे की गहरी झुर्रियां संघर्ष की निशानी हैं, जबकि उनकी उम्र सिर्फ 32 साल है। बलकरा सिंह दक्षिणी पंजाब के भठिंडा शहर के गोल डिग्गी लेबर हब में पिछले पांच सालों से हर रोज दिहाड़ी मजदूरी की तलाश में आते हैं।
2016 के अंत के बाद से, वह ज्यादातर दिन अपने घर निराश ही लौटते हैं। उन्होंने कहा कि अब उन्हें महीने में करीब 10 दिन ही काम मिलता है।
गरीबी के कारण बलकरा को दूसरी क्लास में ही स्कूल छोड़ना पड़ा था। उनका एकमात्र सपना अपने बच्चों ( चार और छह साल की उम्र के ) की शिक्षा पूरी करनी थी। अमरगढ़ गांव में उनका छोटा सा घर है, जहां वह अपनी पत्नी, बच्चों और माता-पिता के साथ रहते हैं। उनका घर गोल डिग्गी से लगभग 14 किमी दूर है। हब तक पहुंचने के लिए उन्हें दो बार बस बदलनी पड़ती है और किराए में 30 रुपये लगते हैं।
जब हम अप्रैल 2019 की शुरुआत में बलकरा से मिले, तो उन्हें यकीन नहीं था कि उनका सपना कभी सच होगा। नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा नवंबर 2016 में भारत की मुद्रा का 86 फीसदी हिस्सा वापस लेने के कदम ने, कैजुअल जॉब्स सेक्टर ( कृषि, छोटे पैमाने पर कपड़ा इकाइयों, असंगठित खुदरा व्यवसायों और पर्यटन ) को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, जो नकद भुगतान पर चलता है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने बताया है।
50 लाख पुरुषों (ज्यादातर असंगठित क्षेत्र से) ने नोटबंदी के दो वर्षों के बाद अपनी नौकरी खो दी है, जैसा कि एक नई रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया-2019’ में बताया गया है। ‘सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट’ (सीएसई), और बेंगलुरु के ‘अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी’ द्वारा नौकरी के नुकसान का यह नवीनतम अनुमान प्रकाशित किया गया था और 16 अप्रैल, 2019 को जारी किया गया था। यदि महिलाओं को अध्ययन में शामिल किया जाता, तो संख्या में निश्चित तौर पर वृद्धि होती।
पंजाब में 19 मई को लोकसभा आम चुनाव होने हैं और यहां हम राज्य के अनौपचारिक नौकरियों के संकट को देख रहे हैं।
वर्ष 2016 के नवंबर में पंजाब में बेरोजगारी की दर ( जब नोटबंदी की घोषणा की गई थी ) 4.9 फीसदी थी, जो दिसंबर 2016 में बढ़ कर 6.1 फीसदी हो गई है, जैसा कि एक सलाह देने वाली संस्था ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ ने बताया है। यह बेरोजगारी दर जून 2017 में 8.9 फीसदी तक पहुंच गई और नवंबर 2017 में नोटबंदी की पहली वर्षगांठ पर बढ़कर 9.2 फीसदी हो गई। अक्टूबर 2018 में यह आंकड़ा 11.7 फीसदी पर पहुंच गया, और फरवरी 2019 तक 12.4 फीसदी रिकॉर्ड दर्ज किया गया।
गोल डिग्गी में नौकरियां लाखों में से थी जो अब गायब है। बलकरा, जो 15,000 रुपये प्रति माह कमाने में सक्षम थे, उन्हें अब मुश्किल से 9,000 रुपये मिलते हैं। गोल डिग्गी में हमसे बात करने वाले लगभग हर श्रमिकों ने दिहाड़ी मजदूरी में कमी होनें की सूचना दी – नोटबंदी से पहले 450 रुपये से 550 रुपये होती थी जो अब 300 रुपए से भी कम है। महीने के अंत में जब परिवार बचत और हताशा से बाहर निकलते हैं, तो यह 200 रुपये हो जाता है।
बलकरा ने याद किया, “नोटबंदी के तुरंत बाद मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सचमुच एक ठहराव आया था और ऐसा समय भी आया, जब महीने में मुश्किल से चार दिन काम करता था। उन्होंने कहा कि आकस्मिक नौकरियों में अवसर बहुत नहीं मिलते। एक हद तक सीन अभी भी ठहरा हुआ है। यह अब भी उतना जीवंत नहीं है जितना पहले था।”
आप भठिंडा के वाणिज्यिक केंद्र के केंद्र में स्थित गोल डिग्गी श्रम बाजार में इस तरह की कहानियां सुन सकते है, जो महंगे ब्रांड्स को बेचने वाले शोरूम से घिरा हुआ है। हर दिन सुबह 8 बजे से, लगभग 100-150 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी- सफाई, बढ़ईगीरी और चिनाई वाली नौकरियों की तलाश में यहां आते हैं।
ठेकेदार ट्रकों में यहां पहुंचते हैं और कम मजदूरी के लिए समझौता करने के इच्छुक श्रमिकों की तलाश करते हैं। एक समय था जब इस बाजार में श्रमिकों की कमी होती थी। अब 11:40-11:45 बजे तक उन श्रमिकों में घबराहट का माहौल रहता है, जिन्हें तब तक काम नहीं मिलता है। उनमें से 60 से अधिक को एक ठेकेदार से दूसरे ठेकेदार के सामने हाथ जोड़कर नौकरी के लिए गुहार लगाते देखा जा सकता है। और जिन्हें काम मिलता है, उनके लिए मजदूरी 150 रुपये से 200 रुपये कम है, जबकि आधिकारिक न्यूनतम वेतन अकुशल मजदूर के लिए 311.12 रुपये और कुशल मजदूर के लिए 375.62 रुपये है।
नोटबंदी के बाद उपजे हालात की छाया में भारतीय रोजगार पर 11-आलेखों की श्रृंखला में यह आठवीं रिपोर्ट है। आप पहले के रिपोर्ट यहां, यहां, यहां, यहां, यहां, और यहां पढ़ सकते हैं। ये रिपोर्ट भारत के अनौपचारिक क्षेत्र में रोजगार को ट्रैक करने के लिए देश भर के श्रम केंद्रों से हैं। श्रमकेंद्रों से तात्पर्य ऐसे स्थानों से है, जहां अकुशल और अर्ध-कुशल श्रमिक अनुबंध की नौकरियों की तलाश में जुटते हैं। ये केंद्र देश के अनपढ़, अर्ध-शिक्षित और योग्य-लेकिन-बेरोजगार लोगों में से 92 फीसदी कर्मचारियों को रोजगार देता है, जैसा कि सरकारी डेटा पर 2016 के अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के एक अध्ययन से पता चलता है।
अनौपचारिक श्रमिकों के जीवन और आशाओं को ध्यान में रखते हुए, यह श्रृंखला नोटबंदी और जीएसटी के बाद नौकरी के नुकसान के बारे में चल रहे राष्ट्रीय विवादों को एक जमीनी परिप्रेक्ष्य में देखती है। ऑल इंडिया मैन्यफैक्चरर ऑर्गनाइजेशन के एक सर्वेक्षण के अनुसार, चार साल से 2018 तक नौकरियों की संख्या में एक-तिहाई गिरावट आई है। सर्वेक्षण में 300,000 सदस्य इकाइयों में से 34,700 को शामिल किया गया था। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के आंकड़ों के अनुसार केवल 2018 में, 1.1 करोड़ नौकरियां खो गईं और इनमें से ज्यादातर असंगठित ग्रामीण क्षेत्र में थे।
दैनिक मजदूरी बढ़ जाती है, लेकिन बहुत कम नौकरियांवर्ष 2017 में, शिरोमणि अकाली दल(एसएडी) और भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले गठबंधन को पंजाब के राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने हराया था। एसएडी गठबंधन से लोगों में निराशा इतनी तीव्र थी कि इसकी सीट की गिनती में 73 फीसदी की गिरावट हुई थी, 2012 के चुनाव में 56 से 2017 में सिर्फ 15 हो गए थे। नए मुख्यमंत्री बने अमरिंदर सिंह, राज्य में बेरोजगारी और नशीली दवाओं के उपयोग- ये दो सबसे बड़े मुद्दों को संबोधित करने के लिए सत्ता में आए थे।
सत्ता में आने के तुरंत बाद, नई सरकार ने अपने प्रमुख डबल मिशन, घर-घर रोज़गार (हर घर के लिए एक नौकरी) और करोबार (व्यवसाय) मिशन की शुरुआत की, जिसने हर परिवार को आय का एक स्रोत देने का वादा किया। सीएम ने फरवरी 2019 में जालंधर में एक जॉब फेयर में कहा कि योजना के शुभारंभ के बाद से 550,000 से अधिक युवाओं को नौकरी की पेशकश की गई है। सितंबर 2017 से 28 फरवरी, 2019 के बीच 37,542 युवाओं को सरकारी नौकरी दी गई है।
एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि लगभग 171,000 व्यक्तियों को निजी क्षेत्र के साथ रखा गया था और लगभग 365,000 लोगों को स्वरोजगार योजनाओं के तहत 50,000 रुपये से लेकर 1,00,000 तक कम ब्याज दरों पर ऋण देने में मदद की गई थी।
पंजाब में सभी जिलों में सितंबर 2017 में स्थापित, रोजगार और उद्यम के जिला ब्यूरो का उद्देश्य सरकारी रोजगार योजनाओं का समन्वय और कार्यान्वयन करना है। रोजगार सृजन और तकनीकी शिक्षा मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने कहा कि राज्य 2019-20 में विभिन्न कौशल विकास योजनाओं के तहत 50,000 युवाओं को प्रशिक्षित करेगा। फरवरी 2019 में, राज्य सरकार ने कन्सट्रक्शन क्षेत्र में नौकरियों के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त प्रशिक्षण पंजाबी युवाओं को प्रदान करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। कार्यक्रम में बढ़ईगीरी और चिनाई कार्य जैसे कन्सट्रक्शन कौशल में बुनियादी प्रशिक्षण शामिल था।
2018 में, कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने अर्ध-कुशल श्रम के लिए न्यूनतम दैनिक वेतन के रूप में 341.12 रुपये, अकुशल श्रमिकों के लिए 311.12 रुपये और कुशल व्यक्ति के लिए 375.62 रुपये निर्धारित किए। गोल डिग्गी में अधिकांश श्रमिकों ने हमें बताया कि वे कम भुगतान में काम करने के लिए मजबूर हैं। 2016 में, नोटबंदी से ठीक पहले, अर्ध-कुशल श्रमिक के लिए न्यूनतम वेतन 317.28 रुपये था।
हालांकि, मजदूरों ने तब अधिक कमाया, प्रतिदिन 350-500 रुपये के बीच। श्रमिकों ने हमें बताया, “आज, दोनों कुशल और अकुशल श्रमिकों की दर में भारी गिरावट आई है ।”
“मुझे अब महीने में 10 दिन काम मिलता है”62 वर्षीय सच्चा सिंह सुबह की चकाचौंध से खुद को बचाने के लिए अपनी फीकी गुलाबी पगड़ी को शॉल से ढंकते हैं और गोल डिग्गी में नौकरी के लिए इंतजार करते है। अशिक्षित सच्चा सिंह 2009 में एक निजी राजमिस्त्री थे, अब दिहाड़ी मजदूरी का काम शुरू कर दिया था।
सच्चा सिंह गोल डिग्गी से लगभग 5 किमी दूर लाल सिंह नगर में एक कमरे के घर में अपनी पत्नी, बेटे, बहू और दो पोते के साथ रहते हैं। हालांकि उनके घर में बिजली की सुविधा है, लेकिन क्षेत्र के निवासियों की ओर से अक्सर दूषित पानी मिलने की शिकायतें उठती रहती हैं।
नोटबंदी और उसके बाद का समय उनके परिवार के लिए एक झटका लेकर आया। पहले एक दिन के काम के लिए वह 500 रुपये तक कमाते थे और महीने में कम से कम 20 दिन काम पाते थे। नवंबर 2016 के बाद, उनका वेतन 350 रुपये तक गिर गया, और फिर महीने के अंत तक 250 रुपये तक गिर गया।
यह परिवार- सच्चा सिंह के वेतन लगभग 3,500 रुपये प्रति माह और उनके बेटे की मासिक कमाई 8,000 रुपये- पर टिका है। बेटा एक स्थानीय कारखाने में सुरक्षा गार्ड का काम करता है। उन्होंने कहा, "नोटबंदी के तुरंत बाद, ऐसे दिन भी देखे जब मैंने पूरे महीने में 1,400 रुपये कमाए थे।"
62 वर्षीय निजी राजमिस्त्री सच्चा सिंह, जिनसे हम भठिंडा के गोल्ड डिग्गी बाजार में मिले। उन्होंने 2009 में दिहाड़ी मजदूरी का काम शुरू कर दिया था। नोटबंदी से पहले, उन्होंने एक दिन के काम के बदले 500 रुपये तक कमाए। नवंबर 2016 के बाद दैनिक आमदनी गिरकर 350 रुपये हो गई और फिर महीने के अंत तक 250 रुपये तक हो गया।
संयुक्त व्यापार परिषद के महासचिव डीपी मौर ने कहा. “नोटबंदी ने न केवल श्रमिक वर्ग के बीच, बल्कि पूरे पंजाब के छोटे उद्योगपतियों के बीच व्यापक हलचल पैदा किया। उन्होंने कहा कि लुधियाना में कम से कम 10,000-15,000 कांट्रैक्ट श्रमिक हैं, जो उद्योगों में साइकिल, होजरी और ऑटो पार्ट्स के उत्पादन से जुड़े हैं। नोटबंदी के बाद हो सकता है उन्होंने अपनी नौकरी खो दी हो । एक सटीक आंकड़ा जुटाना कठिन है, क्योंकि पंजाब के उद्योग ज्यादातर असंगठित श्रमिकों को रोजगार देते हैं।
अलग-अलग लेबर हब, कहर वही
उत्तरी पंजाब के मनसा जिले के मालगोदाम श्रम बाजार में नौकरियों के लिए पूरे दिन इंतजार करने के बाद, 67 वर्षीय, राम सिंह सिर्फ कुछ सब्जियों के साथ घर लौट जाते हैं। मनसा भठिंडा से लगभग 60 किमी दूर है और यहां भी हमने अनौपचारिक क्षेत्र में बेरोजगारी की वही कहानियां सुनीं।
झुके हुए, राम सिंह एक अनपढ़ मजदूर हैं, जो सफाई, भार उठाने या राजमिस्त्री और बढ़ई की मदद करने जैसे काम करते हैं। 2008 से, वह अपने गांव, नंगल कलां से बस से 8 किलोमीटर की यात्रा करके लेबर हब जा रहे हैं और प्रतिदिन 20 रु खर्च करते हैं। वह एक छोटे से घर में अपनी पत्नी, बेटे, बहू और दो पोते के साथ रहते हैं। उनका बेटा मानसा में एक कारखाने में एक ठेका मजदूर के रूप में काम करता है, जबकि उसकी बहू एक खेतिहर मजदूर के रूप में काम करती है। कुल मिलाकर, परिवार हर महीने लगभग 11,000 रुपये कमाता है।
परिवार को अपने रोज के खर्चों में भारी कटौती करनी पड़ी है, और अपने भोजन में से दाल को हटाना पड़ा है। राम बताते हैं, “नोटबंदी के तुरंत बाद कई महीने सिर्फ दो दिन काम मिल पाया था।”
उनका औसत दैनिक वेतन 350 रुपये से घटकर 230 रुपये से हो गया है। परिवार की कम आय ने बच्चों को भी प्रभावित किया है। दोनों बच्चे स्कूल में हैं। राम अपनी पोती के लिए नई किताबें खरीदने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं और उसे पिछले दो वर्षों से उसे अपने बड़े भाई की पुस्तकों से काम चलाना पड़ा है।
मनसा में मालगोदाम लेबर हब रेलवे स्टेशन के करीब है। प्रतिदिन लगभग 100-150 दिहाड़ी मजदूर आते हैं। ज्यादातर को निजी ठेकेदारों द्वारा बोझा उठाने, सफाई और अन्य मामूली निर्माण कार्य के लिए काम पर रखा जाता है। नोटबंदी से पहले, लगभग 150 मजदूर काम के लिए यहां इंतजार करते थे। नोटबंदी के तुरंत बाद यह संख्या 50-60 तक आ गई, लेकिन अब धीरे-धीरे बढ़ रही है।
पास का जूता बाजार, जो मुख्य रूप से पंजाबी जुत्तियां बेचता है, अक्सर मजदूरों और स्थानीय लोगों से भरा रहता है। मजदूर सुबह 7 बजे से आना-जाना शुरू कर देते हैं और जिन्हें काम नहीं मिलता, वे सुबह 11 बजे तक इंतजार करते हैं। लगभग 12:30 बजे, अन्य 30-40 मजदूरों का एक समूह आधे दिन के वेतन के काम के लिए इलाके में दौरा करता है। श्रमिकों का ढूंढने लगाने के लिए ठेकेदार साइकिल से आते हैं।
अकुशल श्रमिक सफाई और बोझा ढोने जैसी बुनियादी नौकरियों की तलाश करते हैं। कुशल श्रमिकों को उनके द्वारा ले जाने वाले औजारों के बैग द्वारा चिह्नित किया जाता है। हर नौकरी का सौदा केवल मजदूरी पर लंबी बातचीत के बाद अंतिम रूप दिया जाता है।
दूसरी कक्षा तक पढ़े3 5 वर्षीय अकुशल मजदूर गोरा सिंह अब अपने दो बेटों को स्कूल नहीं भेज सकते। उन्होंने कहा, "मेरे पास उनके लिए किताबें या स्कूल ड्रेस खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं।"
वह 2013 से श्रम हब आ रहे हैं। नोटबंदी से पहले, वह एक महीने में 20 से अधिक दिनों का काम पा जाते थे। अब अगर उन्हें दो हफ्ते भी काम मिल जाता है तो वह खुश दिखते हैं। वह अब हर महीने लगभग 3,000 रुपये कमाते हैं और उनकी पत्नी घरेलू सहायक के रूप में काम करते हुए 3,500 रुपये कमाती है। यदि महीने के अंत तक परिवार का बचत समाप्त हो जाता है तो वह 150 रुपये दैनिक मजदूरी पर भी काम करने को तैयार हो जाता है। उनका परिवार, एक बेडरूम वाले घर में लेबर हब से लगभग 2 किमी दूर रहता है, जिसका किराया 800 रुपये है। सिंह बस किराया बचाने के लिए हब तक पैदल ही जाते हैं।
35 वर्षीय गोरा सिंह वर्ष 2013 से मानसा शहर के मालगोदाम लेबर हब का दौरा कर रहे हैं। नोटबंदी से पहले, वह एक महीने में 20 से अधिक दिनों तक काम पा जाते थे, अब दो हफ्ते भी काम मिल जाता है तो वह खुश रहते हैं।
लेबर कॉन्ट्रैक्टर्स को भी झटका लगा
हमने पाया कि, राज्य के नौकरी हब में श्रम ठेकेदारों पर भी दबाव है। मजदूरी पूर्व-नोटबंदी दरों से आगे बढ़ी है और विभिन्न क्षेत्रों में पर्याप्त श्रमिक नहीं हैं। चूंकि कोई निश्चित दर या मजदूरी नहीं है तो श्रम ठेकेदार द्वारा ली गई कटौती व्यापक रूप से भिन्न होती है।
48 वर्षीय जगतार सिंह, मानसा के एक श्रमिक ठेकेदार हैं, जो आमतौर पर जिले में ईंट भट्टों के लिए श्रमिको को काम तक ले जाते हैं। उन्होंने कहा कि नोटबंदी ने लेबर मार्केट को खत्म कर दिया है और सभी मुश्किलों में हैं।
उन्होंने कहा, "बड़ी संख्या में वे श्रमिक, जो पहले दिहाड़ी मजदूरों के रूप में काम करते थे, नोटबंदी के बाद काम न मिलने से वे कृषि श्रमिकों में स्थानांतरित हो गए हैं। हालांकि, कृषि श्रमिकों को केवल मौसमी रोजगार मिलता है, वर्तमान में उनके लिए बारहमासी मांग है।”
कक्षा चार तक पढ़े जगतार सिंह, नोटबंदी से पहले एक ईंट के भट्टे पर लगभग 16 मजदूरों (पतियों और पत्नियों के आठ समूहों) को लगाते थे, लेकिन अब केवल आठ श्रमिक हैं। ईंट भट्टों को अभी तक पंजाब में निर्माण उद्योग पर नोटबंदी से होने वाले सदमे से उबरना है। जगतार सिंह की मासिक आय 34,000 रुपये से घटकर 20,000 रुपये हो गई है।
प्रवासी कामगारों को कम वेतन
पटियाला के पंजाब विश्वविद्यालय के एक अर्थशास्त्री लखविंदर सिंह के अनुसार, आकस्मिक श्रमिकों की आबादी का एक बड़े हिस्से को ( पंजाब में प्रवासियों सहित ) गेहूं की कटाई, धान की बुवाई और धान की कटाई के मौसम के दौरान केवल 50 दिनों के लिए कृषि रोजगार मिलता है।
इन सभी कार्यों में से केवल धान की बुवाई के लिए कुछ पूर्व अनुभव या ज्ञान की आवश्यकता होती है। इसलिए कृषि क्षेत्र कम में कम कुशल श्रमिकों को काम मिलता है।
पंजाब के ईंट भट्टों में भी बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक काम करते हैं। हमने पाया कि स्थानीय मजदूरों को तो उनके अधिकारों का पता है लेकिन प्रवासी श्रमिकों को अक्सर न्यूनतम मजदूरी से कम भुगतान किया जाता है। आमतौर पर भट्टों पर मजदूरी की दर प्रति 1,000 ईंट तय की जाती है।
जगतार स्थानीय और प्रवासी दोनों श्रमिकों को नियुक्त करते हैं। नोटबंदी से एक महीने पहले एक युगल लगभग 10,000 रुपये कमा सकता था।उन्होंने कहा, “यह अब घटकर 7,500 रुपये हो गया है।”
जीएसटी ने अगला बड़ा झटका दिया
पंजाब में मध्यम और छोटे उद्योग दोहरे रूप से नोटबंदी और जीएसटी से प्रभावित हुए हैं। नेशनल प्रोडक्टिवटी काउन्सल (एनपीसी) के पूर्व उपाध्यक्ष और ‘फेडरेशन ऑफ पंजाब स्मॉल इंडस्ट्रीज एसोसिएशन’ के अध्यक्ष बद्री जिंदल ने कहा कि चीन से सस्ते आयात ने पहले ही इन उद्यमों को प्रभावित कर दिया था।
उन्होंने कहा, '' नोटबंदी ने औद्योगिक इकाइयों को श्रमिकों की छंटनी के लिए मजबूर कर दिया, लेकिन जीएसटी के कार्यान्वयन ने इन करों को समझने और उन्हें नए शासन में दाखिल करने के लिए संसाधन खर्च किए। विमुद्रीकरण और जीएसटी दोनों ही नकदी अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं थे।"
40 वर्षीय राजिंदर कुमार मनसा में केबल ऑपरेटर हैं। उन्होंने विमुद्रीकरण और जीएसटी से पहले लगभग 15,000 केबल कनेक्शन का प्रबंधन किया, जो अब घटकर 12,000 से कम रह गया है। हालांकि बड़ी डायरेक्ट टू होम सर्विसेज ग्राहकों द्वारा भुगतान किए गए जीएसटी के लिए कीमतों में कमी कर सकती हैं, लेकिन कुमार जैसे ऑपरेटरों को घाटे का सामना करना पड़ा। उन्होंने बताया, "जीएसटी के लागू होने के बाद, हमारा केबल कनेक्शन लगभग 100 रुपये महंगा हो गया। लोगों ने केबल कनेक्शन कटवा दिए और बड़े घरानों द्वारा संचालित सस्ते डीटीएच लिंक का विकल्प चुना।"
यह 11 रिपोर्टों की श्रृंखला में से यह आठवीं रिपोर्ट है । पिछली रिपोर्ट आप यहां- इंदौर, जयपुर, पेरुम्बवूर, अहमदाबाद, कोलकाता, लखनऊ, और बेंगलुरु से पढ़ सकते हैं।
शर्मा स्वतंत्र पत्रकार हैं और 101Reporters.com से जुड़े हैं। लुधियाना में रहते हैं।
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 13 मई, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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