पटाखों पर प्रतिबंध का विरोध जारी, लेकिन पटाखे सुरक्षा सीमा से 200 से 2,000 गुना अधिक उगलते हैं जहर
वर्ष 2017 में दिवाली पर पटाखों की बिक्री ( जलाने पर नहीं ) पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाये गए प्रतिबंध का फैसला विवादास्पद साबित हो रहा है, लेकिन हम बता दें कि आतिशबाजी या पटाखों से उत्पन्न प्रदूषण सुरक्षित स्तर से सैकड़ों गुना अधिक रहता है।
‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’ (डब्लूएचओ) द्वारा सिफारिश की गई पार्टीकुलेट मैटर 2.5 ( पीएम ) की तय सुरक्षा सीमा की तुलना में लोकप्रिय पटाखे जैसे कि फूलझड़ी, सांप टेबलेट, अनार, पुलपुल, लड़ी या लाड़ और चकरी, 200 से 2,000 गुना ज्यादा उत्सर्जन करता है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 29 अक्टूबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।
पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध की घोषणा का काफी विरोध किया जा रहा है। इसके विरोध में लेखक चेतन भगत ने ट्वीट किया है -
Diwali is 1 day, 0.27% of year. pollution comes from 99.6% days of poor planning and regulation. Fix that. Not make 1 religion feel guilty.
— Chetan Bhagat (@chetan_bhagat) October 9, 2017
कुछ लोगों ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे के रुप में देख रहे हैं, जैसा कि त्रिपुरा के गवर्नर ताथगत राय ने इस ट्वीट के जरिए बताया है –
कभी दही हांडी,आज पटाखा ,कल को हो सकता है प्रदूषण का हवाला देकर मोमबत्ती और अवार्ड वापसी गैंग हिंदुओ की चिता जलाने पर भी याचिका डाल दे !
— Tathagata Roy (@tathagata2) October 10, 2017
कुछ लोगों ने इसे धार्मिक परंपराओं को संरक्षित करना बताया है, जैसा कि अभिजीत ने इस ट्वीट में बताया है –
Tweet from 1818: "Sati burning is part of our culture. Why are these ppl, with the help of outsiders are destroying our Hindu religion?"
— Abhijeet (@abhic4ever) October 10, 2017
लेकिन पुडुचेरी के लेफ्टिनेंट गवर्नर किरण बेदी ने प्रतिबंध का स्वागत किया है।
Feeling very relieved for a noise and smoke free Diwali.
No doubt hurts business of crackers but good health does not come without a price
— Kiran Bedi (@thekiranbedi) October 9, 2017
8 अक्टूबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने दीपावली से पहले (31 अक्टूबर 2017 तक), वायु प्रदूषण में बढ़ोतरी की चिंताओं पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाने की घोषणा की । ‘डब्ल्यूएचओ’ के मुताबिक, दिल्ली विश्व का 11वां सबसे अधिक प्रदूषित शहर है।
भारत ने पीएम 2.5 के लिए 60 μg / m³ (प्रति घन मीटर प्रति माइक्रोग्राम) के 24 घंटे का मानक निर्धारित किया है, जबकि डब्ल्यूएचओ में 25 μg / m³ का कम मानक है।
पीएम 2.5 मानव बालों से 30 गुना ज्यादा महीन होता है, जो मानव अंगों और रक्त प्रवाह में जमा होते हैं, जिससे बीमारी और मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।एक स्वतंत्र अनुसंधान संस्थान, ‘चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ के निदेशक संदीप सालवी कहते हैं, "पटाखों को जलाने के दौरान उत्पन्न अत्यधिक वायु प्रदूषकों का कारण अस्थमा, आंखों और नाक की एलर्जी, श्वसन पथ संक्रमण, न्यूमोनिया और दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है।"
कमजोर प्रतिरक्षा और कमजोर श्वसन प्रतिक्रियाओं वाले बच्चों में विशेष रूप से जोखिम ज्यादा होता है। ‘चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ के वरिष्ठ वैज्ञानिक स्नेहा लिमये ने इंडिया स्पेंड को बताया कि "बच्चे, विशेष रूप से, फुलझड़ी, पुल-पुल और साँप की गोली मुश्किल से एक फुट या दो फुट की दूरी से जलाते हैं और ऐसा करते हुए वे धुआं कणों की एक बड़ी मात्रा में श्वास लेते हैं, जो उनके फेफड़ों तक पहुंचती है।"
पटाखों के कारण प्रदूषण का आकलन करने में, भारत के ‘चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन’ द्वारा यह 2016 का अध्ययन, और पुणे विश्वविद्यालय के ‘इन्टर्डिसप्लनेरी स्कूल ऑप हेल्थ साइंस’ के छात्रों ने प्रत्येक पटाखे जलाने वाले द्वारा आमतौर पर जलाए गए दूरी से उत्सर्जित कण पदार्थ को मापा है।
सांप टैबलेट पीएम 2.5 के उच्चतम स्तर का उत्सर्जन करता है। इसके बाद लड़ी, पुलपुल, फुलझड़ी, चकरी और अनार उत्सर्जन करता है। हालांकि सांप टैबलेट केवल नौ सेकेंड तक जलती है लेकिन यह 64.500 ग्राम / एम 3 के सर्वोच्च स्तर पीए 2.5 स्तर का उत्सर्जन करता है जो कि डब्लूएचओ मानकों से -2,560 गुना अधिक है। वहीं लड़ी का उत्पादन पीएम 2.5 के स्तर का 38,540 ग्राम / एम 3 है जो कि डब्ल्यूएचओ मानकों से 1,541 गुना अधिक है।
लोकप्रिय पटाखों से प्रदूषण: अवधि और मात्रा
Source: Study by the Chest Research Foundation, Pune, and students from the Interdisciplinary School of Health Sciences of the University of Pune
(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 11 अक्टूबर 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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