पांच दिन बचे हैं उत्तर प्रदेश चुनाव में, भाजपा के समर्थक ज्यादा, 40% मतदाता अभी भी दुविधा में
Supporters of the Bharatiya Janata Party (BJP) cheer ahead of a speech by Prime Minister Narendra Modi at an election rally in Meerut. With Uttar Pradesh going to elections in five days, 28% voters support the BJP, while 40% of voters remain undecided, according to a survey.
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में पांच दिन शेष रह गए हैं। लेकिन हमारे सर्वेक्षण के मुताबिक 40 फीसदी मतदाताओं का अपने वोट को लेकर दुविधा बरकरार है। ‘इंडियास्पेंड’ एवं ‘फोर्थलायन’ संस्था द्वारा एक सर्वेक्षण किया गया है। फोर्थलायन डेटा विश्लेषण एवं जनमत संग्रह के लिए काम करती है।हम बता दें कि उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा राज्य है और राज्य में 13.8 करोड़ मतदाता हैं, जो उत्तरी अमेरिकी देश मेक्सिको की आबादी से ज्यादा है।
‘फोर्थलायन’ ने उत्तर प्रदेश में 2,513 पंजीकृत मतदाताओं से टेलीफोन के माध्यम से हिंदी में बातचीत की है। ‘फोर्थलायन’ के मुताबिक बातचीत के बाद उभर कर आए संकेत उत्तर प्रदेश के शहरी और ग्रामीण के मतदाताओं के साथ-साथ सामाजिक आर्थिक, उम्र, लिंग और जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह सर्वेक्षण 24 जनवरी से 31 जनवरी के बीच आयोजित किया गया है।
इस सर्वेक्षण पर पहले लेख में हमने उन मुद्दों का विश्लेषण किया है, जो वहां के मतदाताओं के अनुसार महत्वपूर्ण हैं।
कुल मिलाकर, सर्वेक्षण में शामिल 28 फीसदी मतदाताओं ने कहा कि वे भरतीय जनता पार्टी (भाजपा) को वोट देंगे। जबकि 18 फीसदी मतदाताओं का कहना था कि वे समाजवादी पार्टी (सपा) को वोट देंगे। हम बता दें कि वर्तमान में राज्य में सपा का शासन है। 4 फीसदी लोगों का कहना है कि वे मयावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को वोट देंगे। वर्ष 2007 से 2012 के बीच मायावती उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही हैं। केवल 1 फीसदी लोगों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) को वोट देने की बात की है।
‘फोर्थलायन-इंडियास्पेंड’ द्वारा आयोजित सर्वेक्षण में हमने मतदाताओं से उन चार पार्टियों के संबंध में पूछा, जिसने पिछले राज्य और संसदीय चुनावों में सबसे अधिक सीटें जीती हैं। सर्वेक्षण में यह नहीं पता लगाया गया है कि एक पार्टी कितनी सीटें जीतेगी बल्कि केवल विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए लोकप्रिय समर्थन के संबंध में जानने की कोशिश की गई है। इसे चुनाव परिणाम का संकेत के रूप में बिल्कुल नहीं देखा जाना चाहिए।
Source: FourthLion-IndiaSpend survey
दुविधा में पड़े मतदाताओं के पास फैसले की ताकत
दुविधा में पड़े मतदाताओं का बड़ा प्रतिशत संकेत देते हैं कि किसी भी पार्टी को लोकप्रिय समर्थन प्राप्त हो सकता है।
सर्वेक्षण में पाया गया कि कुल महिला मतदाताओं में से आधी महिलाओं ने यह निर्णय नहीं लिया है कि वे किसे वोट देंगी। महिला मतदाताओं में 45 फीसदी महिलाएं 30 से 44 आयु वर्ग के बीच की हैं, 42 फीसदी महिलाएं ग्रामीण क्षेत्रों से हैं, 43 फीसदी दलित हैं, 44 फीसदी अन्य पिछड़े वर्ग से हैं और 43 फीसदी गरीब तबके से हैं। यहां गरीबी का पैमाना दो पहिया वाहन या कार के स्वामित्व से है। जिनके पास कोई दो पहिया वाहन या कार नहीं है, उसे गरीब के रूप में देखा गया है।
ऐसे लोग जिन्होंने अब तक यह निर्णय नहीं लिया कि वे किस पार्टी को वोट देंगे उनमें से ज्यादातर पिछड़े वर्ग (38 फीसदी) और दलित (21 फीसदी) हैं। सर्वेक्षण में शामिल कम से कम 70 फीसदी मतदाताओं ने कहा कि उनके पास किसी प्रकार का वाहन नहीं है, जो उनकी आय के स्तर का संकेत हो सकता है।
नई दिल्ली स्थित संस्था, ‘सेंटर फॉर पालिसी रिसर्च’ के सीनियर फेलो निलंजन सरकार का कहना है, “लोग यह बताना नहीं चाहते कि वे किस पार्टी वो वोट देंगे।” उन्होंने स्पष्ट किया कि कई लोग जीतने वाली पार्टी के लिए वोट करना चाहते हैं। चुनाव के बाद मिलने वाले लाभ के लिए यह भी एक रणनीति हो सकती है। सरकार का मानना है कि वोट देने के एक या दो दिन पहले वे अपने परिवार या दोस्तों से विमर्श कर सकते हैं।
राज्य में चुनाव 11 फरवरी से शुरु होंगे और सात चरणों में होगें। पहले के चरणों में किस पार्टी को ज्यादा समर्थन मिला है, इस पर भी बाकी मतदाताओं का निर्णय बदल सकता है।
हिन्दुस्तान टाइम्स के लेखक और सहयोगी संपादक प्रशांत झा, जनवरी 2017 में लिखते हैं, “हाल के चुनावी रुझानों के पता चला है कि पहले कुछ चरणों का अंत चुनावी माहौल पर असंगत प्रभाव के रुप में हुआ है।”
नोएडा स्थित चुनाव अनुसंधान और मतदान संगठन, सी-वोटर के संस्थापक और संपादक यशवंत देशमुख कहते हैं, “ज्यादातर मतदाता चुनाव से पहले ही अपना मन बन लेते हैं कि किसे वोट देना है। और वे अपना मन तभी बदलते हैं, जब कोई महत्वपूर्ण घटना हो जाती है।” देशमुख का मानना है कि कुछ मतदाता जो विशेष रूप से जाति या धर्म के प्रति संवेदनशील हैं, वे अपना वोट किसे देना है, यह निर्णय लेने के लिए उम्मीदवार की घोषणा होने तक इंतजार कर सकते हैं ।
Source: FourthLion-IndiaSpend survey
किसके कितने पक्के मतदाता?
भाजपा को समर्थन देने वाले कम से कम 33 फीसदी मतदाताओं का कहना है कि वे अन्य पिछड़े वर्ग से हैं। 11 फीसदी का कहना है कि वे मुस्लिम हैं । जबकि 22 फीसदी का कहना है कि वे दलित हैं। सपा समर्थकों में 29 फीसदी मुस्लिम हैं, जबकि 14 फीसदी दलित हैं। 40 फीसदी बसपा समर्थक दलित हैं, जबकि 22 फीसदी अन्य पिछड़े वर्ग से हैं और 16 फीसदी मुस्लिम हैं।
Source: FourthLion-IndiaSpend survey
आईडीएफसी संस्थान में पॉलिटिकल इकॉनमी राजनीतिक अर्थव्यवस्था में सीनियर फेलो प्रवीण चक्रवर्ती द्वारा जनवरी 2017 में किए गए विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 2014 में संसदीय चुनावों में 403 सीटों में से 81 फीसदी भाजपा ने जीता था। वर्ष 2017 राज्य विधानसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन की आशंका तब पनपती है, जब भारी संख्या में भाजपा समर्थक मतदाता दूसरी तरफ चले जाएं।
भारत में संसदीय और राज्य विधानसभा चुनाव, दोनो हर पांच साल पर होते हैं, हालांकि वे विभिन्न चक्रों का पालन करते हैं। उत्तर प्रदेश में पिछला विधानसभा चुनाव 2012 में हुआ था, जब समाजवादी पार्टी ने 224 सीटों पर जीत हासिल कर सरकार बनाई। भाजपा ने 47 सीटों पर, बसपा ने 80 सीटों पर और कांग्रेस ने 28 सीटों पर जीत हासिल की थी। राष्ट्रीय लोक दल, कौमी एकता दल सहित अन्य दलों ने भी 24 सीटों पर जीत हासिल की थी।
(शाह लेखक / संपादक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
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