पिछले 25 वर्षों में खेती की जमीन घटी है, प्रतिव्यक्ति खाद्यान्न भी
भारत में खेती योग्य भूमि क्षेत्र / फॉर्म्स में गत 25 वर्षों में 15 % की कमी आई है | परिणाम स्वरूप कुल अन्न उत्पादन में गिरावट स्पस्ट है | उपरोक्त परिप्रेक्ष में खेती के रकबे में उतरोत्तर कमी , भविष्य में औद्योगिक विकास के लिए अधिग्रहित होने वाली प्रस्तावित योजनाओं के कारण और कमी हो सकने की संभावनाएं हैं | ये चिंतनीय विश्लेषण इंडियास्पेंड ने सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से प्राप्त किया है |
यहाँ पर ‘नेट जोती गयी कृषिभूमि में बाग- बगीचे समावेशित हैं , वहीं सिर्फ – जोती गयी कृषि भूमि में केवल फसलें पैदा की जाती हैं | पिछले 24 वर्षों (1987 – 88 से 2011-12) में जोती गयी कृषि भूमि के रकबे में / क्षेत्रफल में 87% वर्ष 1987 – 88 से गिरकर 72% वर्ष 2011-12 में हो गयी |
हाल के दिनों में इंडियास्पेंड ने बुंदेलखंड के आपदाग्रस्त किसानों की खेती पर विशेष अध्यन विश्लेषित कर प्रकाशित किया था , साथ ही हमने यह भी लिखा की सम्पूर्ण भारत में किसानों की संख्याओं में उत्तरोत्तर कमी हो रही है |
केंद्र दिल्ली में विराजमान भारतीय जनता पार्टी की सरकार वर्तमान में एक अत्यंत विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अधिनियम पास करने में जुटी है , जिसके राज्य सभा में भी पास होने के बाद देश में खेती योग्य रकबे में और विशेष कमी होने के आसार है |
उपरोक्त भूमि अधिग्रहण अधिनियम में सर्वाधिक विवादास्पद प्रस्तावित बदलाव है , जिस में भारत के 70% किसानों को जरा भी अधिकार नहीं है की – 5 – भूमि अधिग्रहण के विशेष संवर्ग / कटेगोरीस के अधिग्रहित अधिनियम लागू होने पर देश के 70% किसान जरा भी -चूँ- नहीं कर सकते है | ये 5 संवर्ग हैं - औद्योगिक कॉरिडॉर , PPP प्रोजेक्ट्स यानि की ‘ सरकारी – व्यापारी घराने प्रोजेक्ट्स-’ , ग्रामीण क्षेत्रों में उदद्योग सहाय इन्फ्रास्ट्रक्चर , सरकारी प्राइवेट आवासीय कॉलोनी , रक्षा उदद्योग प्रोजेक्ट्स |
केवल फसलों को उपजाने के लिए इस्तेमाल होने वाली जोती भूमि के रकबे में कमी होने का एक कारण यह भी है कि ग्रामीण भारत में खेतीहर किसानों की संख्या में कमी हो रही है | दूसरा कमी का कारण समृद्ध ग्रामीण परिवार जिनकी खेती मजदूर किसान के ऊपर निर्भर है या थे – ऐसे धनी ग्रामीण परिवार जो वर्तमान में शहर/ ग्रामीण इलाकों में व्यापार / नौकरी कर रहे है |उपरोक्त अध्यन फ़ाउंडेशन फॉर अगरारियन स्टडीस नें राष्ट्रीय संपुल सर्वेक्षण ओर्गेनाइजेसन द्वारा एकत्र आंकड़ों के विश्लेषण से प्राप्त किया है | NSSA भारत सरकार के संख्याकिक और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत आता है
खेती योग्य उपलब्ध जमीन के क्रमश: कम होने के कारण भारत की खाद्यान आपूर्ति किस प्रकार प्रभावित हो रही है – इसको जानने के लिए हमने गेंहू,चावल आदि और दालों की उपलब्धता का विश्लेषण किया तो निम्न तथ्य सामने स्पस्ट नजर आए |
Source: Economic Survey 2014-15
जैसा की इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है की भारत के कृषि क्षेत्रों की तमाम समस्याओं में से प्रमुख है – निम्न अन्न उत्पादकता और उपज |
भारत में खाद्यान की प्रति व्यक्ति उपलब्धता पिछले 4 दशकों में 471.8 ग्राम से घट कर 453.6 ग्राम हो गयी है |
एक नई दृष्टि से सिंघावलोकन: भारत में विभिन्न कृषि क्षेत्रों में उत्पादन पिछले 3-4 दशकों में क्रमश: बढ़ा है – जो की निम्न ग्राफ से दर्शित है |
Source: Economic Survey 2014-15
उपरोक्त ग्राफ से स्पस्ट है की खाद्यान का उत्पादन 1980-81 से 2013-14 के अंतराल में लगभग दोगुना और ऑइलसीड्स और कॉटन के उत्पादन में भी 116% और 250% की क्रमश: वृद्धि दर्ज हुई |
यूनाइटेड नेशन्स के फूड और एग्रीकल्चर ओर्गेनाइजेसन की एक रिपोर्ट के अनुसार , ‘भारत विश्व में एक सर्वाधिक खाद्यान / फसलों का उत्पादक देश है – कृषि क्षेत्रों के उत्पादनों में तमाम परेशानियों के बावजूद |
Crop | Rank in world in production | Rank in yield among top 5 producers |
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Cereals | 3rd | 5th |
Coarse grains | 4th | 5th |
Root and tuber | 3rd | 1st |
Vegetable | 2nd | 5th |
Fruits | 2nd | 4th |
Source: FAO Statistical Yearbook 2013
जब की भारत विश्व के 5 सर्वोच्च उत्पादक देशों में नजर आता है , लेकिन कृषि उत्पादों की उपज क्षमता कम है जैसा की निम्न आंकड़ें दर्शाते है |
इमेज क्रेडिट: फ्लीक्कर/बोबीन्सों के. बी.
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