प्राइवेट सेक्टिर से रिटायर हुए 10 में से 9 लोगों के पास न पेंशन है, न हेल्थक इंश्योोरेंस
इंडियास्पेंड ने भारत के सामने युवाओं और बुजुर्गों दोनों से जुड़ी जनसांख्यिकीय चुनौतियों के बारे में पहले बताया था। हमने विस्तार से जानकारी दी थी कि किस प्रकार भारत की उम्रदराज होती जनसंख्या नीति निर्माताओं के लिए चिंता का विषय है और विश्लेषण किया था कि भारत के कुछ राज्यों में किस प्रकार प्रजनन दर गिरी है जिससे आनुपातिक तौर पर बुजुर्गों की जनसंख्या में बढ़ोतरी हुई है। परिणामस्वरूप कामकाजी जनसंख्या पर बोझ बढ़ा है।
हमने देश में युवाओं के भविष्य को लेकर भी चिंता व्यक्त की थी कि रोजगार का स्तर घट रहा है। बेहतर और ज्यादा रोजगार तथा कौशल विकास के अलावा सरकार को वर्तमान युवा पीढ़ी की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। प्रजनन दर घटने से आने वाले दशक में बुजुर्गों की निर्भरता का अनुपात बढ़ेगा और उनकी देख-रेख करना वित्तीय बोझ जैसा होगा।
क्रिसिल की रिपोर्ट ने भविष्य के दशकों में भारत की विरत जनसंख्या की पेंशन परिस्थितियों का खाका तैयार किया है। उनकी गणना के अनुसार, भारत के लिए सबसे बेहतर यह रहेगा कि वह वित्तीय बोझ का परित्याग करे।
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प्राइवेट पेंशन बनाने की सबसे अच्छी परिस्थिति: क्रिसिल (60 से अधिक उम्र के भारतीय, 10 लाख में)
Source: Crisil
उपरोक्त परिस्थितियों में किया गया आकलन सरकारी क्षेत्र की पेंश न देनदारियों, रिटायरमेंट कॉर्पस और जनसांख्यिकीय उम्मीदों के अनुमानों के आधार पर किया गया है। यह परिस्थिति सिर्फ तभी व्यवहार्य होगी जब प्राइवेट पेंशन कवर में इजाफा किया जाता है।
प्राइवेट कवर सिर्फ 8 प्रतिशत होने से भारत की बुजुर्ग-जनसंख्या रिटायरमेंट के बाद संकट में आ जाएगी। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि हमें प्राइवेट पेंशन सेक्टर में निवेश बढ़ाने की जरूरत है।
उम्रदराज होती जनसंख्या वित्तीय लागत में बढ़ोतरी करती है। वर्तमान में यह भारतकी जीडीपी का 2.2 फीसदी है। और चूंकि हम जानते हैं कि भविष्य में भारत की जनसंख्या में बुजुर्गों का अनुपात बढ़ेगा, इसलिए नीति की मांग है कि बोझ में बढ़ोतरी नहीं होनी चाहिए। क्रिसिल की गणना के अनुसार, 2030 में यह जीडीपी का 3.4 फीसदी और 2050 में जीडीपी का 2.6 फीसदी बनता है।
अपनी पिछली रिपोर्ट में हमने देखा कि 2026 तक भारत की जनसंख्या स्थिर हो जाएगी। जिसका मतलब है कि कम बच्चे पैदा होंगे। इसलिए जैसे-जैसे साल गुजरेंगे, कामकाजी उम्र समूह (15-59 साल) में लाग पिछली दशकों के तुलना में कम होंगे। इस समूह का योगदान अर्थव्यवस्था में धन जोड़ने का है जबकि बुजुर्ग जनसंख्या इन पर निर्भर करती है, इससे एक आर्थिक असंतुलन पैदा होगा।
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भारत में प्रति 100 कामकाजी लोगों पर निर्भर 60 साल से अधिक उम्र के लोग, 2015-2050
Source: Crisil
2050 तक भारत में दूसरों के ऊपर निभर्र लोगों की जनसंख्या का अनुपात वर्तमान स्तर के दोगुने से अधिक हो जाएगा। स्कैंडिनैवियन और पश्चिमी यूरोपीय देशों के सामने सबसे पहले ऐसी चुनौतियां आईं। उदाहरण के लिए, स्वीडेन में बुजुर्गों के निर्भरता का अनुपात वर्तमान में 27.9 फीसदी और जर्मनी में 31.6 फीसदी जितनी अधिक है।
विश्व भर में बजुर्गों के अधिकार और चुनौतियों के लिए समर्पित एनजीओ हेल्पेज इंटरनेशनल द्वारा प्रकाशित ग्लोबलएज वाच इंडेक्स पिछले साल के कुछ अंतरराष्ट्रीय तुला उपलब्ध कराता है।
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ग्लोबल एज वाच इंडेक्स 2014 के अनुसार शीर्ष पांच देशों की रैंकिंग
Source: HelpAge International, UN Population Division
नॉर्वे इस सूची में सबसे ऊपर है क्योंकि यह देश बुजुर्गों को उच्च आय की सुरक्षा देता है जबकि जापान अपने बुजुर्ग नागरिकों को सबसे अच्छा हेल्थकेयर उपलब्ध कराता है।
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ग्लोबल एज वाच इंडेक्स 2014 के अनुसार शीर्ष पांच ब्रिक्स देशों की रैंकिंग
Source: HelpAge International, UN Population Division
जब कभी भारत की तुलना ब्रिक्स देशों से की जाती है तो सरकार को निश्चित रूप से उनकी सबसे अच्छी प्रैक्टिस पर गौर करना चाहिए और विवेकपूर्ण वित्तीय प्रबंधन के एक हिस्से के तौर पर बुजुर्गों के लिए ऐसे ही प्रोग्राम विकसित करने चाहिए।
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