प्रोविडेंट फंड पर 10,932 कंपनियां डिफॉल्टर
कानूनी तौर पर प्रोविडेंट फंड यानि भविष्य निधि के भुगतान के लिए 30 दिनों का प्रावधान दिया गया है। संजय कुमार 40,000 रुपयों के लिए 1,800 से अधिक दिनों – 5 वर्षों - से इंतजार कर रहे हैं जो कि उनके मृत पिता का, ओडिशा की एक कंपनी पर बकाया है। प्रोविडेंट फंड देय राशि संगठित एवं अग्रेषित करने वाली सरकारी संगठनों को कई ई-मेल भेजी गई, कई शिकायतें की गई हैं लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला है। देश भर में कुमार के जैसी कई लोगों की स्थिति है।
ओडिशा के रहने वाले 27 वर्षीय संजय कुमार को अपने पिता की 40,000 रुपए की भविष्य निधि, सेवानिवृत्ति कोष जों कंपनियों के वेतन से घटाना अनिवार्य है, वापस लेने के लिए 30 दिनों का समय लगना चाहिए था।
2011 में कुमार के पिता कृष्णा चंद्र (53) की मृत्यु हुई थी यानि कि 1,825 दिन गुज़र चुके हैं। संजय ने ऑनलाइन मंच पर शिकायत दर्ज करते हुए कहा है कि, “पीएफ के पैसे वापस दिलाने में मदद कीजिए..मेरी मां चिंतित है कि कहीं हम इसे खो न दें।”
पांच साल और तीन लिखित शिकायत के बाद भी कुमार को कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ), एक सरकारी निकाय जो कंपनियों से प्रोविडेंट फंड कटौती प्राप्त करता है और 50 मिलियन भविष्य निधि खातों का राष्ट्र स्तर पर प्रशासन करता, उससे कोई जवाब प्राप्त नहीं हुआ है।
चंद्र भुवनेश्वर, ओडिशा में स्थित टारगेट एलाइड सिक्योरिटीज प्राइवेट लिमिटेड नामक कंपनी के साथ काम करते थे और हालांकि उनके सहयोगियों को उनका भविष्य निधि प्राप्त हो गया है लेकिन चंद्रा के परिवार को प्राप्त नहीं हुआ है। हैदराबाद में बसे कुमार कहते हैं, “उन्होंने पिता के कार्यालय और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन को अनगिनत ई-मेल किया है।”
टारगेट एलाइड सिक्योरिटीज प्राइवेट लिमिटेड ने ई-मेल के ज़रिए इंडियास्पेंड को बताया है कि उन्होंने ईपीएफओ के साथ चंद्रा की भविष्य निधि जमा कर दिया है। चंद्रा के परिवार ने "आवश्यक दस्तावेज" जमा नहीं किए हैं जो कि देरी का कारण हो सकती है।
कुमार कहते हैं कि, “वे हमारी मदद नहीं कर रहें हैं। हमारे लिए बार-बार हैदराबाद से ओडिशा जाना आसान नहीं है। मेरी मां कभी-कभी इस बारे में कहती है लेकिन मैंने अब इसका अनुसरण करना लगभग छोड़ दिया है।”
राष्ट्र भर में, 10,000 से अधिक कंपनियां - 1,195 राज्य के स्वामित्व वाली सहित - प्रोविडेंट फंड के भुगतान पर चूक कर रहे हैं: 2,200 कंपनियों का ईपीएफओ के लिए कम से कम 2,200 करोड़ रुपए बकाया है, वह रुपए जो कर्मचारी वेतन का हिस्सा जिसे जमा किया जाना चाहिए था।
दोषी कंपनियों की सूची
NOTE: Figures in Rs. lakhs
दोषी कंपनियों और संस्थाओं की संख्या बढ़ रही है। 2014-15 में 10,091 बकाएदार थे, दिसंबर 2015 तक यह बढ़ कर 10,932 हुए हैं।
ऑनलाइन उपभोक्ता मंचों, कुमार की ही तरह लोगों की शिकायतों से भरे हुए हैं क्योंकि सैंकड़ों ऐसे लोगों हैं जिन्हें नौकरी छोड़ने या रिटायर होने के बाद भी प्रॉविडेंट फंड नहीं मिला है।
विनोद आर, OnlineRTI.com , एक बेंगलुरु स्थित संस्था जो लोगों को ईपीएफओ से सवाल करने में मदद करता है, उसके सह संस्थापक कहते हैं, “पिछले डेढ़ साल में हमें 2,000 से अधिक RTIs प्राप्त हुए हैं जिसमें प्रॉविडेंट फंड - रिफंड और कारणों का दर्जा की मांग की गई हैं।”
ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के सचिव और ईपीएफओ ट्रस्टी डी.एल. सचदेव कहते हैं, “हमें कई कर्मचारियों से शिकायतें प्राप्त हुई हैं जिन्हें भविष्य निधि नहीं दिया गया है और साथ ही ईपीएफओ के अधिकारियों और नियोक्ताओं के बीच मिलीभगत की शिकायत भी मिली है।”
29 जून, 2016 और 1 अगस्त 16 को केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त और ईपीएफओ के केंद्रीय सतर्कता अधिकारी को विस्तृत प्रश्नावली भेजा गया था जिसका कोई जवाब नहीं मिला है।
बजट 2015-16 में सरकार ने भविष्य निधि का एक हिस्से को टैक्स के रुप में लेने का फैसला किया है। लेकिन व्यापक राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन - कुछ हिंसक, विशेष रूप से बंगलौर में – सरकार को निर्णय रद्द करने के लिए मजबूर किया है।
रिटायरमेंट के बाद का समाधान, दोषी कंपनियों द्वारा अटकाया गया
भविष्य निधि वेतनभोगी कर्मचारियों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करने के लिए होती हैं, जिन्हें नियोक्ता के 13.6 फीसदी योगदान के साथ अपने मासिक वेतन का 12 फीसदी योगदान करना चाहिए।
19 से अधिक कर्मचारियों के साथ संस्थानों या कंपनियों को ईपीएफओ के साथ प्रत्ये कर्मचारी की भविष्य निधि जमा करनी चाहिए जो बदले में कर्मचारी के खाते में पैसे जमा कराती है, जो सरकार की ओर से 8.8 फीसदी का ब्याज कमाता है, जो सरकारी प्रतिभूतियों और कॉरपोरेट बॉन्ड में उसे भविष्य निधि निवेश करता है।
हालांकि, कर्मचारी सेवानिवृत्ति या नौकरी से इस्तीफा देने के दो महीने के बाद पूरी राशि वापस ले सकता है, ईपीएफओ घर, शिक्षा, विवाह या किसी बीमारी के लिए भुगतान करने के लिए आंशिक निकासी की अनुमति देता है।
प्रतिष्ठान जो कर्मचारियों के वेतन से योगदान घटाते हैं लेकिन ईपीएफओ के साथ इसे जमा नहीं करते हैं उन्हें दोषी या डिफॉल्टर कहा जाता है।
पांडिचेरी सहित तमिलनाडु में चूककर्ता या डिफॉल्टर कंपनियों (2,644) की संख्या सबसे अधिक है। इस संबंध में महाराष्ट्र (1,692) और लक्षद्वीप सहित केरल (1,118) का स्थान है।
डिफॉल्टर प्रतिष्ठानों की संख्या
NOTE: Figures for 2015-16* are up to December 2015
192 करोड़ डिफ़ॉल्ट के साथ भारत के विमानपत्तन प्राधिकरण दोषी संस्थानों की सूची में सबसे ऊपर है। इसके बाद 64.5 करोड़ रुपए और 54.5 करोड़ रुपए के साथ एचबीएल ग्लोबल, मुंबई, और अहलूवालिया कॉन्ट्रैक्ट्स इंडिया लिमिटेड, दिल्ली का स्थान है।
उच्चतम डिफॉल्टर कंपनियां
NOTE: Figures in Rs. lakhs
राजेश भंडारी, कार्यकारी निदेशक (वित्त), भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण, ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि, “एएआई ने सितंबर 2007 से मासिक अंशदान जमा करना शुरू कर दिया था। पूर्वव्यापी अवधि के लिए अर्थात 1 अप्रैल 1995 (एएआई के गठन की तारीख) से 22 अगस्त, 2007 तकएएआई के ब्याज के साथ-साथ कर्मचारियों के संबंध में पेंशन अंशदान प्रेषित किया है।”
"क्षेत्रीय भविष्य निधि कार्यालय, दिल्ली ने इस अवधि को चूक की अवधि माना है, और अप्रैल, 1995 से फरवरी 2006 तक 192 करोड़ रुपये के आरोप लगाए हैं। मामला केंद्रीय कार्यालय और क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा यह कहते हुए उठाया गया था कि यह आरोप एएआई द्वारा देय नहीं हैं क्योंकि यह अवधि की खोज के लिए पूर्व से संबंधित है। हालांकि, सीपीएफसी / आरपीएफसी एएआई के तर्क को स्वीकार नहीं किया और उन आरोपों माफ नहीं किया है। कोई अन्य विकल्प न रहने के बाद, एएआई ने स्थगन आदेश प्राप्त करने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में एक मामला दायर किया है। मामले में सुनवाई की अगली तारीख 30 सितंबर, 2016 है"
क्षेत्र अनुसार, 247 बकाएदारों के साथ तिरुवनंतपुरम सबसे आगे है। इसके बाद 173 के साथ कोलकाता और 115 के साथ भुवनेश्वर का स्थान है।
क्षेत्रवार डिफॉल्टरों की सूची
कंपनियां जो कर्मचारियों के लिए अपने स्वयं के प्रॉविडेंट फंड ट्रस्टों का निर्माण करती हैं उन्हें ईपीएफओ के साथ हस्ताक्षर करने से छूट दी गई है । ऐसे मामलों में, ट्रस्टी कंपनी के कर्मचारियों से चुने गए हैं ।
डिफॉल्टर कंपनियों में 17 फीसदी से 37 फीसदी के बीच, डिफ़ॉल्ट की अवधि पर निर्भर करते हुए, की ब्याज दर के साथ एक दंड का भुगतान करना होगा।
ईपीएफओ 33 करोड़ रुपए के साथ छवि बदलाव के लिए तैयार है लेकिन समस्या गहरी है
ईपीएफओ, 33 करोड़ रुपए के छवि बदलाव के लिए तैयार है पेशेवर सामाजिक मीडिया प्रबंधन और प्रिंट और प्रसारण मीडिया में विज्ञापन भी शामिल है, जैसा कि मिंट की जुलाई की इस रिपोर्ट में बताया गया है।
लेकिन ईपीएफओ की कर्मचारी बचत का एक संरक्षक के भूमिका के रुप में समस्याएं गहरी हैं : यह कर्मचारियों को तब तक कंपनी के चूककर्ता होने के बारे में नहीं बताता जब तक कि कर्मचारी इसे निपटाने नहीं आते हैं ; निपटान के लिए इंतज़ार कर रहे मामलों में वृद्धि हो रही है और और संगठन के साथ भ्रष्टाचार चालू है।
पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2015-16 में, ईपीएफ मामले लंबित निपटान की संख्या में 23 फीसदी की वृद्धि हुई है। हालांकि 228 पुलिस मामले दर्ज किए गए थे, 14,000 पूछताछ दोषी प्रतिष्ठानों के खिलाफ शुरू किया गया और 2014-15 में चूककर्ताओं से 3,240 करोड़ रुपए बरामाद किए गए, 31 मार्च 2015 को ईपीएफओ को 6,000 कर्मचारियों की कमी थी। प्रोविडेंट फंड नियमों को लागू करने की क्षमता, कम ही कर्मचारी संगठन प्रभावित करते हैं।
ईपीएफओ ट्रस्टी सचदेव कहते हैं शिकायतों को निपटाने की संस्था की " बहुत ही धीमी गति" है। उन्होंने आगे कहा कि, “जब कोई कर्मचारी ईपीएफओ के साथ उसका खाता निपटाने जाता है तब ही उसे पता चलता है कि कंपनि ने राशि जमा नहीं कराई है।”
चार वर्षों में ईपीएफओ की ओर से दायर की गई मामलों में चार गुना वृद्धि हुई है, वर्ष 2012-13 में 317 से 2014-15 में 1491 हुआ है।
दोषी नियोक्ताओं के खिलाफ दायर मामले
NOTE: Figures for 2015-2016* are up to September 2015
2012 से फरवरी 2015 के बीच ईपीएफओ के गलती करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कम से कम 322 भ्रष्टाचार के मामले या तो चल रहे हैं या निपटाए गए हैं। तब से, भ्रष्टाचार के मामलों में गिरावट हुई है: 2012 में 167, 2013 में 75, 2014 में 72 और फरवरी 2015 तक 8।
एक कारण यह हो सकता है कि यह सुनिश्चित करने के अधिकार क्षेत्र में नियोक्ता चूक न करें, एक ईपीएफओ कार्यकारी अधिकारी पहले एक क्षेत्र का प्रभार दिया गया था।
विवेक कुमार, पूर्व विजिलेंस निदेशक, ईपीएफओ कहते हैं, “अब चूककर्ताओं को नोटिस प्रधान कार्यालय से भेजा जाता है और यदि कंपनी भुगतान में चूक करती है तो वहां इसके लिए ज़िम्मेदार ठहराने के लिए कोई अधिकारी नहीं होता है।”
यदि हम हैदराबाद के कुमार की बात करें तो उनके लिए यह सारे तर्क कोई मायने नहीं रखते हैं।
ईपीएफओ श्रम मंत्रालय द्वारा चलाया जाता है जो तीन सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को संभालती है: भविष्य निधि, पेंशन और बीमा कर्मचारी। यह योजनाएं कर्मचारी भविष्य निधि योजना, 1952 (ईपीएफ), कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस), 1995, और कर्मचारी जमा बीमा योजना , 1976 (EDLI ), के माध्यम से प्रशासित होता है जिसके तहत यदि कार्यकर्ता की मृत्यु इसके सदस्य रहते होती है तो उसका परिवार लाभ पर नकद कर सकते हैं
(बाबू दिल्ली स्थित स्वतंत्र पत्रकार और 101Reporters के एक सदस्य हैं जो, जमीनी स्तर पर पत्रकारों का एक अखिल भारतीय नेटवर्क है।)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 09 अगस्त 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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