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7 दिसंबर, 2016 । इंदौर के फूल बाजार में एक फुटकर बिक्रेता को अपना सामान बेचते फूल और सब्जी किसान केशु सिंह पटेल। पटेल मध्यप्रदेश में मिर्जापुर के रहने वाले हैं। नोटबंदी के कारण इस फसल के मौसम में पटेल की कमाई में 70 फीसदी की गुरावट हुई है।

मिर्जापुर और इंदौर (मध्य प्रदेश) : केशु सिंह पटेल पश्चिमी मध्य प्रदेश के एक गांव मिर्जापुर के रहने वाले हैं। गांव में इनकी 2.5 एकड़ की जमीन है, जिस पर वह गुलादाऊदी के फूलों की खेती करते हैं। सर्दियों में हर रोज 55 वर्षीय केशु पटेल अपनी मोटरसाईकल पर 70 किलो फूल बांध पर बेचने के लिए बाजार ले जाते हैं। फूलों का बाजार 15 किमी की दूरी पर है।

पटेल कहते हैं, “मुझे पता नहीं, इस मौसम में फूलों के फसल पर लगाई पूंजी भी वापस मिल पाएगी कि नहीं।”अक्टूबर से जनवरी के बीच जब फूलों का मौसम होता है, पटेल की कमाई में 70 फीसदी की गिरावट हुई है।

इंडियास्पेंड से बात करते हुए पटेल कहते हैं, “नोटबंदी से चार दिन पहले और कुछ दिन बाद तक मैं गुलदाऊदी के फूल 30 से 40 रुपए प्रति किलो बेच रहा था। और अब 4 से 6 रुपए प्रति किलो बेच रहा हूं।”

पटेल देश के 11.86 करोड़ भारतीय किसानों में से एक हैं। किसानों की यह संख्या वर्ष 2011 की जनगणना में दर्ज है। हम बता दें कि ये आंकड़े फिलीपींस की आबादी के बराबर है। भारत के गरीब राज्यों में से एक मध्यप्रदेश में कम से कम 9.8 लाख किसान रहते हैं। पटेल एक छोटे किसान हैं। उनके पास 2.5 एकड़ जमीन है, जो कि एक भारतीय किसान द्वारा संघटित औसत भूमि से कम है। वित्त वर्ष 2010-11 की कृषि जनगणना के अनुसार, एक भारतीय किसान द्वारा संघटित औसत भूमि 2.84 एकड़ है।

8 नवंबर 2016 की मध्य रात्रि से प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी द्वारा 500 और 1,000 रुपए के नोट बंद करने की घोषणा के बाद 14 लाख करोड़ रुपए अमान्य किए गए। इसका सबसे बड़ा प्रभाव अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर सामने आया है, जो भारत के 50 करोड़ श्रमिकों के साथ 82 फीसदी लोगों को रोजगार प्रदान करता है। साथ ही भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में आधे का योगदान करती है। लाइव मिंट के 7 दिसम्बर, 2016 के इस रिपोर्ट के अनुसार, पर्यटन से लेकर खुदरा और बुनियादी ढांचे में कारोबार पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

अर्थव्यवस्था में नोटों की कमी का मुकाबला करने के लिए सरकार ने डिजिटल भुगतान की ओर जोर दिया है, लेकिन इसके सामने भी मोबाईल फोन कनेक्टिविटी और इंटरनेट के कम उपयोग की चुनोतियां है। विशेष रुप से ग्रामीण इलाकों में, जहां 15 फीसदी से भी कम इंटरनेट का उपयोग होता है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 10 दिसंबर 2016 को विस्तार से बताया है। बातचीत के दौरान कई किसानों ने बताया है कि बैंकों के लिए इंटरनेट का उपयोग किस प्रकार किया जाता है, इसकी उन्हें कोई जानकारी नहीं है। या फिर उनके खातों में इतनी राशि नहीं है कि वे इसका इस्तेमाल रोजमर्रा के लेन-देन में कर पाएं।

शादी का मौसम है, फूलों के बिकने का मौसम, फिर भी पटेल की कमाई प्रति दिन 2,600 रुपए से गिर कर 543 रुपए हुई

एक बीघा खेत (0.4 एकड़) में गुलदाऊदी की फसल के लिए पटेल को तीन महीनों में बीज पर 3,000 रुपए, उर्वरक और कीटनाशकों पर 15,000 रुपए और श्रम के लिए 7,800 रुपए का खर्च करना पड़ता है। करीब 0.4 एकड़ पर 0-12 क्विंटल फूलों का उत्पादन होना चाहिए। पटेल के खेत पर उसका पूरा परिवार (पत्नी, बेटा, बेटी और बहू) 9 बजे सुबह से शाम के 6 बजे तक बजे तक काम करते हैं।

अगर फसल अच्छी होती है तो शादी के मौसम ( 15 नवंबर से 15 दिसंबर ) के दौरान फूलों की बिक्री अच्छी होती है। इस मौसम में प्रतिदिन 26,00 रुपए की कमाई हो सकती है। 7 दिसंबर, 2016 को जब इंडियास्पेंड की टीम जब पटेल के साथ फूल के बाजार तक गई तो उस दिन उनकी कमाई 543 रुपए थी।

शादी के मौसम के दौरान, पटेल का परिवार, 74,000 रुपए का मुनाफा कमाते हुए 1,00,000 रुपए कमा सकता है। इस साल उनकी कमाई 30,000 रुपए हुई है। यानी कि 4,000 रुपए का मुनाफा । दूसरे शब्दों में कहें तो 94.5 फीसदी कम लाभ हुआ है। नोट पर प्रतिबंध लगने के बाद पटेल की कमाई केवल 7,000 रुपए की हुई है।

पटेल कम दामों में फूल बेचने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि गुलदाऊदी के फूल जल्दी मुरझा जाते हैं और इनकी कीमत कम हो जाती है। वह बता रहे थे, “कल मुझे 35 किलो फूल फेंकने पड़े हैं, क्योंकि इनके लिए खरीददार नहीं थे।”

किसानों की कमाई में 50 से 80 फीसदी कमी

अपने मोटरसाईलक पर लाल, पीले और हरे कपड़ों में फूलों के ढेर बांधे पटेल सुबह 7 बजे इंदौर के फूल बाजार पहुंचते हैं। इंदौर को मध्य प्रदेश की वाणिज्यिक राजधानी माना जाता है।

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अपने खेत पर कपड़े के फूल भरते केशु सिंह पटेल और उनका बेटा, कांतिलाल। नोटबंदी के कारण इन्हें कम दामों में फूल बेचने पड़ रहे हैं।

पिछले 25 दिनों में नोटों की कमी के कारण, बाजार में अन्य किसानों की भी आय में 50 से 80 फीसदी का नुकसान हुआ है।

39 वर्षीय अनिल दवली, बाजार में आलू, चना, मेथी और बैंगन बेचते हैं। उन्होंने बताया कि हर रोज उनकी कमाई 80 रुपए से 100 रुपए के बीच हो रही है। जबकि नोटबंदी से पहले यही कमाई 500 रुपए से 1,000 रुपए के बीच हो रही थी।

हरे पत्तों के ढेर के बीच बैठे दवली कहते हैं, “मेथी के कीमत गिर पर प्रति किलो 2 से 5 रुपए हो गई है। जबकि नोटबंदी से पहले यह 10 रुपए प्रति किलो थी।” अब उनके पास कम दामों पर सब्जियां बेचने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि खराब हो जाने का खतरा होता है।

36 वर्षीय मुकेश मुकातिल बाजार में 90 किलो फूल के साथ आए हैं। वह कहते हैं, “मेरी गुलदाऊदी 7 रुपए प्रति किलो बिक रही है। यह शादी का मौसम है। इस मौसम में यह कम से कम 35 से 40 रुपए प्रति किलो बिकनी चाहिए थी।”

स्थानीय स्तर पर विकसित लाल ग्लैडीओलस फूलों के बंडल की कीमत भी आधी हुई है। पहले 10 छड़े 225 रुपए की बेची जा रही थी, लेकिन अब 120 रुपए में ही बेचे जा रहे हैं।

नोटबंदी के बाद इंदौर के बाजार में कीमतों में गिरावट

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Note: Prices based on farmer estimates in Indore mandi, December 5 and December 11, 2016.

पटेल तोड़ रहे हैं कम गुलदाऊदी, संभालकर रखना है महंगा

दिन में 12:30 बजे के आसपास पटेल बाजार से अपने खेत वापस आते हैं जहां तीन मजदूर नीचे गुलदाउदी के डंठल काट रहे थे। पटेल के परिवार ने पा दिन अन्य फूलों तोड़ा है। पटेल के पास पूरे हफ्ते के लिए पर्याप्त फूल है।

उसके 2.5 एकड़ जमीन का करीब एक चौथाई हिस्सा पर्याप्त पानी न होने के कारण बंजर है।

एक मौसम के फूल बेचने के बाद, पौधों में फूलों की दूसरी खेप लगने के लिए पटेल को इंतजार करना होगा। पटेल कहते हैं, “कीमतें कम होने के कारण देख-रेख मुश्किल है।” नियमित रूप से जनवरी के अंत या फरवरी में पौधों कटाई हो जाती है।

61 वर्षीय शरद कुसुमाकर की फूलों के बाजार में एक दुकान है। वह कहते हैं, “ बाजार में अधिक मात्रा में फूल आ रहे हैं, जिससे कीमतें और गिरी हैं।”

13 दिसंबर, 2016 को जब इंडियास्पेंड ने पटेल के बेटे कांतिलाल से बात की तो उन्होंने बताया कि गुलाऊदी के फूलों के 20 से 30 रुपए प्रति किलो बेचने के साथ बाजार में थोड़ा ऊछाल आया है। उन्होंने बताया कि लागत की वसूली हो जाए, यही काफी है। इस बार उन्होंने मुनाफे की उम्मीद छोड़ दी है।

पटेल को अब राज्य वितरण प्रणाली से कुच नहीं मिल पाएगा

पटेल और उनका परिवार कुछ साल पहले ही ग्रामीण गरीबी रेखा के स्तर से ऊपर चले गए हैं। यह स्तर ‘816 रुपए प्रति माह प्रति व्यक्ति’ का है। इसलिए अब पटेल परिवार गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को सरकार की सार्वजनिक वितरण प्रणाली से कम कीमतों पर प्राप्त होने वाले गेहूं, चावल, चीनी और तेल का उपयोग नहीं कर सकता है।

पटेल खुशकिस्मत हैं कि उन्हें उनके गांव और फूल बाजार में सब जानते हैं। पटेल कहते हैं कि गांव का स्थानीय दुकानदार उन्हें उधार पर तेल, चीनी और यहां तक ​​कि बीज देने के लिए तैयार है। फूल बाजार में दुकान के मालिक उन्हें बिकने वाले फूलों के लिए अग्रिम भुगतान के लिए भी तैयार हैं।

डिजिटल और कैशलेस होना पटेल के लिए क्यों है मुश्किल

नोटबंदी के बाद से सरकार डिजिटल भुगतान के लिए जोर दे रही है, लेकिन अब भी ज्यादातर लेन-देन नकद में ही होता है।

इंडियास्पेंड ने जिन किसानों और व्यापारियों से बात की, उनमें से ज्यादातर के पास बैंक खाते तो थे। फिर भी वे नकद का उपयोग कर रहे थे। उन्होंने बताया कि या तो बैंक खाते में डालने के लिए उनके पास बहुत कम पैसे थे या फिर उन्होंने नियमित रूप से डेबिट या क्रेडिट कार्ड का उपयोग नहीं किया है। दिन भर में पटेल ने अपने सारे लेन-देन नकद में ही किए। उन्होंने सुबह में अपनी मोटर साइकिल में 50 रुपए का पेट्रोल भरवाया और दोपहर में 40 रुपए के एक दर्जन केले खरीदे।

ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी कम

Source: Telecom Regulatory Authority of India

पटेल की मानें तो “नोटबंदी के बाद 500 और 1,000 रुपए नोट बैंक खाते में उन्होंने जमा करवाए थे। इससे दो साल पहले उनहोंने खाते का इस्तेमाल किया था। बीच में कभी उन्हें बैंक खाते का ख्याल नहीं आया।

पटेल के पुत्र कांतिलाल के पास एटीएम कार्ड है, लेकिन खाते में पैसे कम होने के कारण वह 5-6 महीनों में एक बार ही इस्तेमाल करते हैं। उनके गांव से निकटतम एटीएम सेंटर और उनका बैंक शाखा 15 मिनट की दूरी पर है।

पटेल परिवार के पास एक बुनियादी मोबाईल फोन है, जिससे वे रिश्तेदारों को फोन करते हैं। हालांकि, कांतिलाल ने पहले इंटरनेट का इस्तेमाल किया है, लेकिन वर्तमान में पिता-पुत्र के पास इंटरनेट की पहुंच नहीं है। स्मार्टफोन महंगा होने के कारण वे वहन नहीं कर सकते हैं।

पिछले वर्ष चार महीने के लिए परिवार के पास सैमसंग का एक स्मार्टफोन था, जिसे उन्होंने 8,000 रुपए में खरीदा था। कांतिलाल बताते हैं, “वह फोन चोरी हो गया ।” कांतिलाल ने इंटरनेट का उपयोग केवल फेसबुक के लिए किया है। वह बताते है कि अब वे स्मार्टफोन नहीं खरीद सकते हैं, क्योंकि इसक कीमत बहुत ज्यादा है। लगभग इस मौसम के मुनाफे के बराबर है। पटेल का परिवार, हर महीने घरेलू वस्तुओं पर 1500 से 2,000 रुपए खर्च करता है।

लेकिन पटेल की तरह हर किसी के पास बैंक खाता नहीं है। 66 वर्षीय जगन्नाथ महादेव भुय्यर एक व्यापारी हैं। वह कहते हैं कि बैंक खाता खुलवाने की उनकी कोई योजना नहीं है। यह पूछने पर कि वे खाता क्यों नहीं खुलवाना चाहते हैं, वह कहते हैं, “दो वक्त की रोटी खाने के लिए मैं पर्याप्त कमा लेता हूं, फिर इस झमेले की क्या जरुरत है। अगर मेरा कारोबार बड़ा होता तो मैं बैंक खाता खुलवा चुका होता।” उधर पटेल के लिए फूलों की कीमत गिरने का मतलब है, खेत पर काम करने वाले मजदूरों को प्रतिदिन 130 रुपए के भुगतान के लिए अपनी अब तक की बचत में हाथ लगाना।पटेल कहते हैं, “हम हमेशा पानी और बिजली की कमी से जूझते हैं। इस साल नोटबंदी ने हमारा पूरा साल बिगाड़ दिया है।”

(शाह रिपोर्टर/संपादक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 17 दिसंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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