Guwahati

गुवाहाटी: असम में भीड़ द्वारा दो युवाओं की हत्या के खिलाफ लोगों का प्रदर्शन

मुंबई: 6 जुलाई 2018 को असम में दीमा हसओ और कर्नाटक के मंगलुरु से भीड़ द्वारा हिंसा की दो घटनाओं के सामने आने के बाद भीड़ हिंसा की घटनाओं की संख्या 61 हो गई है। साल के शुरुआत के बाद से सोशल मीडिया पर बच्चा चोरी करने की घटनाओं के उछाल के बाद इस तरह की हिंसा में बढ़ोतरी हुई है।

इस साल अब तक, इस तरह के भीड़ द्वारा किए गए हमलों में 24 लोग मारे गए हैं, जैसा कि देश भर से आई खबरों पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है। इस तरह के हमलों में 4.5 गुना वृद्धि हुई है और 2017 में इस तरह की घटनाओं से हुई मौत में दो गुना वृद्धि हुई है ।

1 जनवरी, 2017 और 5 जुलाई, 2018 के बीच, 69 मामलों में 33 लोगों की मौत हो गई है और कम से कम 99 घायल हो गए हैं। अकेले जुलाई के पहले छह दिनों में, बच्चा चुराने की अफवाहों के नौ मामले सामने आए हैं, जिनमें पांच लोगों की मौत हुई है, यानी हर दिन एक से अधिक हमले दर्ज किए गए।

बच्चा चोरी की अफवाह पर भीड़ द्वारा हिंसा

Source: IndiaSpend's database Child Lifting Rumours: Mob Violence In India based on media reports

सभी मामलों में, पीड़ितों पर केवल संदेह पर हमला किया गया था और बाद में बच्चा चुराने का कोई सबूत नहीं मिला था। छपी खबरों के मुताबिक, राज्यों में पुलिस ने 21 मामलों में कम से कम 181 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है।

5 जुलाई, 2018 को, केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सोशल मीडिया पर बच्चा चुराने की अफवाहों से जुड़ी भीड़-हिंसा पर नियंत्रण रखने का निर्देश दिया था। फिर भी, 6 जुलाई, 2018 को दो हमलों की सूचना मिली। कर्नाटक में एक पिता अपने ही बेटे के साथ यात्रा कर रहा था, और असम में तीन साधु यात्रा कर रहे थे।

राज्य अनुसार बच्चा चोरी की अफवाह पर भीड़ हिंसा

बच्चा चोरी की अफवाह के आधार पर भीड़ द्वारा की गई हत्या, 2017-2018

हमारे डेटाबेस के अनुसार, 2017 से पहले, एक भीड़ हिंसा की सूचना अगस्त 2012 में दर्ज की गई थी, जिसमें बिहार के पटना में एक नाबालिग के अपहरण के संदेह पर एक ड्राइवर की मौत हो गई थी।

पिछले वर्षों में इन लिंचिंग से गौ संबंधित हत्या में वृद्धि का हुई है, जैसा कि गाय से संबंधित नफरत अपराध पर इंडियास्पेंड के डेटाबेस में दर्ज किया गया है। गायों की हत्या करने के शक में कई लोगों पर भीड़ द्वारा हमलों की घटनाएं इस अवधि के दौरान घातक हो गई हैं, इन हमलों में अधिक मौतें हुई हैं।

सामाजिक और राजनीतिक टिप्पणीकारों ने इस हिंसा को सामाजिक-राजनीतिक और धार्मिक मतभेध में वृद्धि और हमलावरों के लिए बेखौफ माहौल को जिम्मेदार ठहराया है।

चंडीगढ़ में ‘इंस्टट्यूट ऑफ करेक्शनल एडमिनिस्ट्रेशन’ के उप निदेशक मनोवैज्ञानिक उपनीत लल्ली ने इंडियास्पेंड को बताया, "गाय से संबंधित सतर्कता के साथ हिंसा शुरू हुई, लेकिन अब यह अधिक हिंसक हो गया है। कोई छोटी-सी वजह भी हिंसा का कारण बन रहा है।"

वह कहते हैं, "बंधे असहाय लोगों को पीटते हुए, छोड़ देने की मिन्न्तें करते हुए असहाय लोगों का वीडियो व्हाट्सएप समूह और अन्य सोशल मीडिया पर प्रसारित किया जा रहा है। ये वीडियो हर जगह लोगों को कई तरह से प्रभावित करते हैं। भीड़ हिस्टीरिया को नियंत्रित करना बेहद मुश्किल है। "

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में सोशल प्रोटेक्शन ऑफिस के डीन अपराधविज्ञानी विजय राघवन ने इंडियास्पेंड को बताया, " बढ़ती हिंसा निहित हितों द्वारा स्पष्ट रूप से व्यवस्थित किया जा रहा है"।

राघवन आगे कहते हैं, "एक अफवाह देश के एक हिस्से में शुरू होती है और जंगली आग की तरह फैलती है। पहले यह गोमांस था। अब यह बच्चा चुराना है।"

ज्यादातर मामलों में, पीड़ित और हमलावर अलग-अलग समुदायों से हैं, जहां नफरत है। वह आगे कहते हैं, "इस बदलती कथा में हिंसा का एक स्पष्ट पैटर्न है जो मूल रूप से पारंपरिक अंदरूनी बाहरी विचारधाराओं पर आधारित है।"

हमारा विश्लेषण

बच्चा चुराने के मामलों से संबंधित भीड़ हिंसा की घटनाओं का विश्लेषण करने के लिए हमारी टीम ने अंग्रेजी मीडिया में प्रिंट और ऑनलाइन समाचार रिपोर्टों को एकत्रित किया। उनका अध्ययन किया और उन खबरों की सच्चाई जानने की कोशिश की, जिनका 2010 से व्यापक रूप से राष्ट्रव्यापी कवरेज किया गया है।

इस प्रकार बनाए गए डेटासेट में भीड़ द्वारा हमलों की संख्या, प्रत्येक हमले की गंभीरता और पीड़ितों के विवरण शामिल हैं। अधिकांश घटनाओं में जिलों, कस्बों और गांवों के नाम शामिल हैं।

चूंकि प्रत्येक अवलोकन अपराध पर समाचार पत्र में आई रिपोर्ट पर आधारित है, अपराध की गंभीरता, पीड़ितों की संख्या और उनकी पहचान और जातियां जैसे विवरणों की उपलब्धता भिन्न होती है।

2017 से पहले, 2012 में केवल एक घटना की सूचना मिली थी।

झारखंड, महाराष्ट्र सबसे घातक

सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में, झारखंड और महाराष्ट्र ने, क्रमश: सात और पांच मौतों के साथ, सबसे ज्यादा मौत की सूचना दी। इन राज्यों में ऐसे हमलों में मौत की संभावना 350 फीसदी और 167 फीसदी थी, जिसका अर्थ है कि हर रिपोर्ट की गई घटनाओं में एक से अधिक मौतें हुईं है।

बिजू जनता दल सरकार के तहत ओडिशा ने सबसे अधिक हमलों की सूचना दी। मामलों की संख्या 15 रही है, जिसमें एक मौत हुई है। अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कझागम (एआईएडीएमके) द्वारा संचालित तमिलनाडु में नौ मामले और चार मौतें हुईं है।

भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित राज्यों से एक तिहाई या 30 फीसदी हमलों की सूचना मिली है।

राज्यवार 1 जनवरी, 2017 के बाद से भीड़ हिंसा और मौत का विवरण

जनवरी 2017 के 19 महीनों में, 16 राज्यों के 10 जिलों में भीड़ हिंसा के एक से अधिक मामले की सूचना मिली है। ओडिशा में जयपोर, मयूरभंज और रायगढ़ और आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम ने तीन अलग-अलग घटनाओं की सूचना दी है।

आक्रमण किए गए पीड़ितों में से आधे से अधिक या 56 फीसदी पुरुष थे, 22 फीसदी महिलाएं, 3 फीसदी ट्रांसजेंडर, और शेष 18 फीसदी के लिए समाचार रिपोर्टों में लिंग का उल्लेख नहीं किया गया था।

मारे गए लोगों में से 14 हिंदू थे, 3 मुसलमान थे, और 16 मामलों में धर्म या जाति की पहचान की सूचना नहीं मिली थी।

बच्चों का अपहरण और भीड़ हिंसा का रिश्ता

महाराष्ट्र छोड़कर, हिंसा की ये घटनाएं 2014 से 2016 तक राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों में दर्ज बाल अपहरण के मामलों में वृद्धि को प्रतिबिंबित नहीं करती हैं।

2014 से दो वर्षों में, भारत ने बच्चों में अपहरण में 41 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है ( 2014 में 38,555 से 2016 में 54,328 तक ) मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश (9,678), महाराष्ट्र (8,260) और दिल्ली (6,254) में वृद्धि हुई है, जैसा कि एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है।

2016 तक, महाराष्ट्र में ( भारत का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला राज्य ) बच्चों की अपहरण की दूसरी सबसे ज्यादा संख्या की सूचना दी गई है। इसने बच्चा चुराने वाली अफवाहों पर भीड़ लिंचिंग से दूसरे सबसे ज्यादा टोल की सूचना दी है।

हालांकि, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में ऐसा कोई संबंध नहीं था, जिसे एनसीआरबी ने बाल अपहरण की संख्या के लिए पहला और तीसरा स्थान दिया था (जिसे कानून में अलग-अलग परिभाषित किया गया है, लेकिन मूल रूप से बलपूर्वक और पीड़ित की इच्छा के खिलाफ पकड़ना करना शामिल है)।

झारखंड, जिसने भीड़ हिंसा में सबसे ज्यादा मौत की मौतों की सूचना दी है, एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में बाल अपहरण के लिए भारत भर में 19वें स्थान पर रहा है। त्रिपुरा, जहां पांच लोग मारे गए, 24 स्थान पर रहा है।

इससे साफ है कि बच्चा उठाने के डर निराधार और अतिरंजित हैं। राघवन कहते हैं, "कोई सहसंबंध नहीं है, क्योंकि इस तरह की हिंसा अपहरण के वास्तविक भय से प्रेरित नहीं होती।"

हालांकि, डेटा उन मामलों के लिए जिम्मेदार नहीं है, जो अप्रतिबंधित होते हैं ( परिवार पुलिस से संपर्क करने में संकोच करते हैं, जो असंतोषजनक और डरावने लगते हैं ) या राज्यों और एनसीआरबी के बीच संचार में खो गए मामलों को देखते हैं।

लल्ली कहते हैं, "हिंसा यह भी संकेत देती है कि कैसे बच्चों को उठाने के खिलाफ निर्णायक रूप से कार्य करने के लिए कानून प्रवर्तन और आपराधिक न्याय प्रणाली में विश्वास खो गया है, कानून में विश्वास खोना समाज के लिए एक गंभीर खतरा है।"

भीड़ का मनोविज्ञान व्यक्तिगत मानसिकता से अलग है। लल्ली कहते हैं, "जब कोई व्यक्ति कार्य करता है, तो जिम्मेदारी की भावना होती है, लेकिन एक भीड़ में, जिम्मेदारी और अपराध का फैलाव होता है। भीड़ समुदाय को उनकी पहचान, अपने बच्चों को बचाने के लिए आक्रामक हो जाने को उचित ठहराती है।"

बच्चा उठाने अफवाहों पर भीड़ हिंसा और बाल अपहरण पर आधिकारिक डेटा

Mob-Lynching Over Child Lifting Rumours And Official Data On Child Abductions
StateMob Violence Related To Child-Lifting RumoursDeaths In Mob Lynchings Related To Child-Lifting RumoursRanked As Per Number Of Child Abductions Recorded In NCRB Data
West Bengal435
Tripura3324
Telangana4415
Tamil Nadu12418
Rajasthan1110
Odisha15113
Manipur1027
Maharashtra452
Madhya Pradesh104
Kerala1022
Karnataka618
Jharkhand2719
Gujarat317
Chattisgarh109
Assam6311
Andhra Pradesh5016
Grand Total6933

Source: Child Lifting Rumours: Mob Violence in India,

National Crime Records Bureau

2016 में अपहरण किए गए बच्चों में से 73 फीसदी लड़कियां और 27 फीसदी लड़के थे, जैसा कि एनसीआरबी आंकड़ों से पता चलता है। कुल बाल पीड़ितों में से, शादी के उद्देश्य के लिए 31 फीसदी (16, 938) का अपहरण किया गया था, जिनमें से केवल एक शिकार पुरुष था; अवैध संभोग के लिए 3 फीसदी (1,562 महिला और 26 पुरुष); और अन्य गैरकानूनी गतिविधि और गोद लेने के लिए 1-1 फीसदी का आंकड़ा रहा है। 62 फीसदी मामलों में किसी उद्देश्य का उल्लेख नहीं किया गया था।

77 फीसदी हमलों के लिए नकली खबरें जिम्मेदार

बच्चा उठाने की अफवाहों से संबंधित 69 भीड़ हिंसा के मामलों में से, 77 फीसदी के लिए अंततः सोशल मीडिया के माध्यम से नकली खबरों को जिम्मेदार ठहराया गया है। मोबाइल मैसेंजर एप्लिकेशन व्हाट्सएप को विशेष रूप से, 28 फीसदी या 19 मामलों के लिए अफवाह स्रोत के रूप में दिखाया गया है।

2 जुलाई, 2018 को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने व्हाट्सएप को चेतावनी जारी की, जिसमें कहा गया था कि, “अफवाहों और उत्तेजना से भरे गैर-जिम्मेदार और विस्फोटक संदेशों की बड़ी संख्या के कारण निर्दोष लोगों की हत्या के विवरण व्हाट्सएप पर प्रसारित किया जा रहे हैं”।मंत्रालय ने 3 जुलाई, 2018 को एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, "इस तरह का एक प्लेटफार्म उत्तरदायित्व और जिम्मेदारी से बच नहीं सकता है, विशेष रूप से जब तकनीक का दुरुपयोग होता है, जहां लोग नफरत भरे संदेशों का सहारा लेते हैं, जिससे हिंसा फैलती हैं।" व्हाट्सएप को इस खतरे को खत्म करने के लिए तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके प्लेटफॉर्म का उपयोग ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण गतिविधियों के लिए नहीं किया जाता है "।

व्हाट्सएप के 1.5 बिलियन उपयोगकर्ताओं में से 13 फीसदी या 200 मिलियन भारतीय हैं, जैसा कि ‘द फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ ने 1 फरवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया है। यह दिसंबर 2017 तक भारत के 481 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का 42 फीसदी है।

मंत्रालय को लिखे एक पत्र में, व्हाट्सएप प्रबंधन ने कहा कि "हिंसा के इन भयानक कृत्यों से वे लोग डरे हुए हैं और नकली खबरों के फैलाव को रोकने के लिए किए गए कदमों को सूचीबद्ध रूप में प्रस्तुत किया, लेकिन जोर दिया कि इस चुनौती भरे समय में ‘सरकार, नागरिक समाज और प्रौद्योगिकी कंपनियों’ को एक साथ काम करने की आवश्यकता’ है।

हालांकि, यह बनाए रखा गया कि संदेशों को उपयोगकर्ताओं की गोपनीयता और सुरक्षा की रक्षा करने के लिए एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन जारी रहेगा, व्हाट्सएप की मैसेजिंग सेवा के लिए एन्क्रिप्शन महत्वपूर्ण है। इसमें कहा गया है कि व्हाट्सएप उपयोगकर्ताओं में एक चौथाई से अधिक समूह का हिस्सा नहीं हैं। या अधिकांश समूह छोटे हैं (10 से कम सदस्यों के साथ) और 10 में से 9 संदेशों को सिर्फ एक व्यक्ति दूसरे को भेजता है।

साइबर गोपनीयता विशेषज्ञों ने व्हाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर ओवररेक्टिंग के खिलाफ सावधानी बरतने, मुक्त भाषण और गोपनीयता के पक्ष में बहस की है।

जून में, त्रिपुरा में भीड़ लीचिंग के दो मामलों के बाद, सरकार ने क्षेत्र में इंटरनेट को बंद करके स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की, जैसा कि हमारे डेटाबेस में शामिल रिपोर्ट में कहा गया है।

बेंगलुरू स्थित गैर-लाभकारी केंद्र, सेंटर एंड इंटरनेट सोसाइटी के निदेशक स्वराज बरूआ कहते हैं, "यह असंतोष छेड़छाड़ करने के लिए एक फिसलन भरी ढलान है। ऐसे संकेत हैं कि इंटरनेट शटडाउन होने पर अन्य की तुलना में हाशिए वाले समूहों को अधिक दृढ़ता से प्रभावित किया जाता है। "

विशेषज्ञों ने कहा कि लिंचिंग सोशल मीडिया की सर्वव्यापी उपस्थिति की तुलना में एक बहुत बड़ा मुद्दा इंगित करती है। बरुआ कहते हैं, "हर कोई इन अफवाहों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और निश्चित रूप से इन प्लेटफार्म की गति और पहुंच की क्षमता बहुत ही प्रासंगिक है।"

प्रोफेसर राघवन ने कहा, "मूल समस्या उन समुदायों के बीच ऐतिहासिक नफरत है। हमें राष्ट्रीय स्तर पर उचित जांच की जरूरत है। केवल गिरफ्तार करना काफी नहीं हैं। "

बारूआ ने व्हाट्सएप को डिक्रिप्ट किए गए आंकड़ों के साथ सुरक्षा एजेंसियों को प्रदान करने के प्रयासों के खिलाफ चेतावनी दी, जैसा कि सरकार ने 2013 में कनाडाई स्मार्टफोन निर्माता ब्लैकबेरी को मजबूर कर दिया था।

बरुआ ने कहा, " व्हाट्सएप सरकार के साथ डेटा साझा करता है, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि इसकी एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन सुविधा कमजोर न हो। सभी तरह नुकसानों पर सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए। गोपनीयता कानून की कमी के साथ-साथ खुलेआम नफरत फैलाने वाले संदेशों के प्रभाव को शांत करने की चिंताओं को देखते हुएयह भारत में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। "

उनके सुझाए गए कुछ समाधानों में एक यह भी है कि व्हाट्सएप उपयोगकर्ता के लिए अंत में ‘तथ्य की जांच करें’ विकल्प डाला जा सकता है, ताकि संदेश को डिक्रिप्ट किया जा सके। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि 'रिपोर्ट किए गए हैंश' का डेटाबेस बनाया जाएगा, जो सभी उपयोगकर्ता डाउनलोड कर सकते हैं, और जो स्वचालित रूप से 'भरोसे' पर संदेशों को रेट कर देगा।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में कम साक्षरता और शिक्षा के स्तर होने पर लोगों को नकली खबरों की पहचान करने और उन सूचनाओं पर सवाल उठाने में मदद करना भी महत्वपूर्ण है, जबकि उच्च साक्षरता भी पुष्टि पूर्वाग्रह से मुक्त नहीं हैं।

लल्ली ने कहा, "हमें वास्तव में लोगों को शिक्षित करने की ज़रूरत है।लोग जो कुछ भी सच मानते हैं, वे विश्वास करते हैं। हम गंभीर सोच और आलोचनात्मक जांच के बारे में कुछ नहीं कर रहे हैं - हमने सवाल पूछना बंद कर दिया है और नकली खबरों का मुकाबला करने के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, हम सूचना का भी जवाब नहीं देते हैं, हम केवल प्रतिक्रिया दे रहे हैं।"

गाय से जुड़ी हिंसा

इंडियास्पेन्ड ने 2010 से गाय से संबंधित हिंसा का डेटाबेस बनाया है, जो हिंसा में बढ़ोतरी दिखाता है। तब से, जब से बीजेपी और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने मई 2014 में सत्ता संभाली थी।

मई 2014 के बाद से, गाय से संबंधित नफरत भरे अपराधों में वृद्धि ( 85 घटनाओं में से 98 फीसदी ) हुई है, जैसा कि हमारे डेटाबेस से पता चलता है। 2012 और 2013 में प्रत्येक वर्ष एक घटना की सूचना मिली थी।

इन मामलों में समूहों द्वारा हमला किया गए पीड़ितों में लगभग 56 फीसदी व्यक्ति मुसलमान थे, जो इस हिंसा में मारे गए 88 फीसदी लोगों के लिए जिम्मेदार रहे हैं। 2018 में, इन हमले किए गए घृणित अपराधों में 100 पीड़ित मुस्लिम थे।

लल्ली ने कहा, "एक समूह के खिलाफ एक समूह द्वारा आक्रामकता में स्पष्ट वृद्धि हुई है और खुद को अलग करने और समझने में असमर्थता में वृद्धि हुई है। इसने अनिवार्य रूप से हमें पशुवादी प्रवृत्तियों वाले समाजों की तरह व्यवहार करने की ओर वापस कर भेज दिया है, जहां, कभी आप जीवित रहने के लिए जानवरों को मारते थे, तो और अब आप इंसानों पर हमला कर रहे हैं। "

भीड़ द्वारा हिंसा के एक तिहाई ( 85 घटनाओं में से 28 ) मामलों में सिर्फ गाय वध के संदेह पर हिंसा में बढ़ गई थी।

हमारा डेटाबेस यह भी दिखाता है कि हमले घातक हो गए हैं । 2010 के बाद से 2017 सबसे घातक वर्ष के रूप में माना जाता है (37 मामलों में 11 मौतें)। 2018 में 66 फीसदी (छह मामलों में चार मौतों) का आंकड़ा रहा है।

लल्ली कहते हैं, "समाज में हिंसा के लिए सहज क्षमता है और इसे प्रोत्साहित करना बहुत आसान है। ट्विटर ट्रोलिंग से हम विभिन्न तरीकों और संदर्भों में हिंसा को उजागर और प्रोत्साहित कर रहे हैं। "

सरकार क्या कहती है?

कई लोगों का मानना है कि सरकार से सख्त और त्वरित प्रतिक्रिया की अनुपस्थिति ने ऐसी हिंसा को प्रोत्साहित किया है। राघवन ने कहा, "इस तरह की हिंसा की निरंतरता पर क्या कार्रवाई की जाती है। सख्त कार्रवाई न करके, राज्यों ने अपनी उदासीनता ही दिखाई है। "

लल्ली सहमत होते हुए कहते हैं, " हम हिंसा की इन घटनाओं पर अभी तक महत्वपूर्ण नेताओं से पूर्ण मान्यता या निंदा सुनना नहीं चाहते हैं। सख्त कार्रवाई की जरूरत है। इस तरह के संदेश भेजे जाते हैं, जिससे भीड़ को कोई फर्क ही नहीं पड़ता है। क्यों कोई भी दंडित नहीं होता है? "

गृह मंत्रालय ने 13 मार्च, 2018 को संसद को बताया, एनसीआरबी "देश में इस तरह की घटनाओं पर विशिष्ट डेटा को बनाए नहीं रखता है।"

मंत्रालय ने 2014 से 2017 तक राज्यों द्वारा दर्ज किए गए भीड़ लिंचिंग पर कुछ डेटा प्रस्तुत किया, लेकिन इसके कारणों पर जानकारी प्रदान नहीं की गई- कि क्या गाय सतर्कता, सांप्रदायिक या जाति नफरत, या बाल उठाने की अफवाह पर हिंसा हुई आदि। डेटा ने पीड़ितों की पहचान का खुलासा नहीं किया है।

इन आंकड़ों में कहा गया है कि 2014 और 3 मार्च, 2018 के बीच नौ राज्यों में भीड़ हिंसा के 40 मामलों में 45 लोग मारे गए थे। कम से कम 217 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है।

इसके विपरीत, भीड़ हिंसा पर इंडियास्पेंड के दो डेटाबेस में ( बच्चे उठाने की अफवाहें और गौ से संबंधित घृणा हिंसा के कारण ) इसी अवधि के दौरान 80 मामलों और 41 मौतें दर्ज की गई हैं।

(सलदानहा इंडियास्पेंड में सहायक संपादक हैं। राजपूत, मुंबई विश्वविद्यालय में पत्रकारिता में मास्टर के छात्र हैं। हजारे इकोनोमिक्स में ग्रैजुएट हैं। दोनों इंडियास्पेंड में इंटर्न हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 9 जुलाई, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।

__________________________________________________________________

"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :