बच्चों के सही पोषण के लिए, परिवार के धन से ज्यादा मां की शिक्षा जरुरी
नई दिल्ली: हाल ही में एक बच्चों के पोषण को लेकर धन सीमा के आधार पर एक सर्वेक्षण किया गया है। अध्ययन में पता चला कि इस सर्वेक्षण में शामिल किए गए दो वर्ष की आयु से कम करीब एक चौथाई बच्चों ने अलग-अलग किस्म का आहार नहीं खाया था। अध्ययन में पाया गया कि बच्चों के पौष्टिक आहार मिलने में परिवार की संपत्ति के ज्यादा मां की शिक्षा की बड़ी भूमिका होती है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के ‘हार्वर्ड सेंटर फॉर पॉपुलेशन एंड डेवलपमेंट स्टडीज’ से रॉकली किम और एस वी सुब्रह्मण्यम और टाटा ट्रस्ट से सुतापा अग्रवाल द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार 6-23 महीने की आयु के केवल 23 फीसदी बच्चों को पर्याप्त रूप से विविध आहार मिल पाया था। इस अध्ययन की रिपोर्ट फरवरी 2019 में ‘यूरोपियन जर्नल ऑफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन’ में प्रकाशित हुआ है।
सबसे अमीर घरों के 28 फीसदी बच्चों की तुलना में सबसे गरीब घरों के 18 फीसदी बच्चों को पर्याप्त विविध आहार मिला था। दोनों में 10 प्रतिशत अंकों का अंतर था। उसी समय, बिना शिक्षा के माताओं के 17 फीसदी बच्चों ने पर्याप्त रूप से विविध आहार खाया, वहीं हाई स्कूल या अधिक शिक्षा प्राप्त माताओं के 30 फीसदी बच्चों ने विविध आहार खाया है। यानी अध्ययन में दोनों के बीच13 प्रतिशत अंकों का अंतर पाया गया।
अध्ययन की प्रक्रिया में ‘पर्याप्त रूप से विविधतापूर्ण आहार’ का मतलब था, सात खाद्य समूहों से कम से कम चार वस्तुओं के उपभोग में सक्षमता। खाद्य समूहों में अनाज,जड़ों और कंद, फलियां और नट्स, डेयरी उत्पाद, मांस खाद्य पदार्थ (मांस), विटामिन ए से समृद्ध फल और सब्जियां, और अन्य फल और सब्जियों को रखा गया था।
पोषण की मात्रा और गुणवत्ता की तरह ही महत्वपूर्ण है विविध आहार लेना।अध्ययन में, अधिकांश बच्चों में अनाज की अधिक खपत और फलों और सब्जियों, नट्स और फलियां, अंडे और मांस की खराब खपत देखी गई।
अध्ययन के सह-लेखकों में से एक, सुब्रह्मण्यम ने ई-मेल के जरिए बताया है कि "मांसाहार बनाम शाकाहार से ज्यादा-हमें वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट के बीच संतुलन से संबंधित मैक्रो पोषक तत्वों के बारे में सोचने की जरूरत है। छोटे बच्चों के लिए वसा का सेवन महत्वपूर्ण है। प्रोटीन पर ध्यान केंद्रित करने की प्रवृति बढ़ी है, लेकिन बहुत छोटे बच्चों के बीच वसा का सेवन पर्याप्त नहीं है। और यहीं पर दूध सहित डेयरी उत्पादों की खपत - बच्चे के कुपोषण के बोझ को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण है।"
धन और शिक्षा का अंतर
सुब्रह्मण्यम ने अध्ययन के निष्कर्षों के बारे बताया, ''गरीब तबके के लिए यह सामर्थ्य और सुलभता का मामला है, जबकि बेहतर समृद्ध तबके के लिए यह ज्ञान की कमी हो सकती है। खाद्य अब एक उद्योग है।अच्छी तरह से समृद्ध लोगों के बीच आहार संबंधी वरीयताएं और समरूप भोजन के प्रति वैश्विक रुझानों का बड़े संदर्भ में व्याख्या करने की आवश्यकता है।
दुनिया के पांच वर्ष से कम आयु के लगभग एक तिहाई स्टंट बच्चों ( 4.66 करोड़ ) का घर, भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2025 वैश्विक पोषण लक्ष्यों तक पहुंचने के लिए ट्रैक पर नहीं है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जनवरी 2019 की रिपोर्ट में बताया है।
दो वर्ष की आयु से कम के भारतीय बच्चों में से 90.4 फीसदी को पर्याप्त आहार नहीं मिला, जैसा कि 2015-16 में ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4’ (एनएफएचएस-4) में बताया गया है। 6-23 महीने की आयु के लगभग18 फीसदी बच्चों ने आयरन युक्त खाद्य पदार्थ खाए, और इस आयु वर्ग के आधे से अधिक बच्चे एनेमिक थे। लगभग 54 फीसदी ने विटामिन ए से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन किया, जिसकी कमी से बचपन में अंधापन और खराब प्रतिरोधक शक्ति हो सकती है।
आहार विविधता पर वर्तमान अध्ययन में ‘एनएफएचएस-4’ डेटा का भी उपयोग किया गया, जिसमें माताओं को उन 21 खाद्य पदार्थों की सूची में से चुनने के लिए कहा गया था, जो उन्होंने अपने बच्चों को ठीक 24 घंटे पहले दिए थे।
वस्तुओं को तब सात खाद्य समूहों में विभाजित किया गया था: अनाज, जड़ें और कंद, फलियां और नट्स, डेयरी उत्पाद, मांस खाद्य पदार्थ, विटामिन ए-समृद्ध फल और सब्जियां, और अन्य फल और सब्जियां।
भारतीय बच्चों की आहार विविधता का औसत स्कोर एक 0-4 के पैमाने पर 2.26 पाया गया, जहां 0 का मतलब है कि बच्चों को 21 खाद्य पदार्थों में से कोई भी नहीं मिला है और 7 का मतलब है कि उन्हें सभी सात समूहों में से कम से कम एक खिलाया जाता है।
विभिन्न धन समूहों के बच्चों के बीच सबसे बड़ा अंतर डेयरी उत्पादों की खपत में था। सबसे गरीब परिवारों के बच्चों की तुलना में सबसे अमीर घरों में बच्चों का डेयरी उत्पादों का उपभोग करने की तीन गुना ज्यादा संभावना थी।
इस तरह, हाई स्कूल या उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाली माताओं के बच्चों को सभी खाद्य समूहों के सेवन की अधिक संभावना थी और बिना किसी शिक्षा के साथ वाली माताओं की तुलना में दो बार पर्याप्त रूप से विविध आहार खाने के आसार थे।
अनाज का सबसे अधिक सेवन
सात खाद्य समूहों में, बच्चों ने ज्यादातर अनाज खाया है-74 फीसदी बच्चों ने जड़ों और कंदों, 55 फीसदी ने डेयरी उत्पादों, 37 फीसदी ने अन्य फलों और सब्जियों और 29 फीसदी ने विटामिन ए-समृद्ध फलों और सब्जियों के सेवन की सूचना दी थी।
अध्ययन में पाया गया कि बच्चों में अंडे ( 14 फीसदी उत्तरदाताओं ), फलियां और नट्स (13 फीसदी), और मांस खाद्य पदार्थ (10 फीसदी) की खपत सबसे कम थी।
सबसे अमीर और सबसे गरीब घरों के बीच, डेयरी उत्पादों की खपत में अंतर सबसे अधिक था।सबसे गरीब घरों में 39 फीसदी, जबकि सबसे अमीर घरों में 72 फीसदी। इसके बाद विटामिन ए से भरपूर फल और सब्जियां -26 फीसदी बनाम 33 फीसदी थे और अन्य फल और सब्जियां में यह अंतर 34फीसदी बनाम 40 फीसदी था।
डेयरी उत्पादों के उपभोग में माताओं की शिक्षा के स्तर के अनुसार भिन्नता है।अशिक्षित माताओंके लिए आंकड़े 73 फीसदी हैं, जबकि शिक्षित माताओं के लिए आंकड़े 44 फीसदी हैं। इसके बाद विटामिन ए से भरपूर फल और सब्जियां (25 फीसदी बनाम 34 फीसदी), और अन्य फल और सब्जियों (32 फीसदी बनाम 43 फीसदी) में भिन्नता है।
हालांकि 2006 की तुलना में 2016 में आहार विविधता में वृद्धि हुई है , पर वास्तव में ऊपरी दो धन समूहों (पांच में से) में कम हो गया। कम अंतर के बावजूद, ऊपरी समूहों ने निचले समूहों की तुलना में 2-4 गुना अधिक विविध आहार का सेवन किया।
कुछ खाद्य पदार्थों का उपभोग घरेलू संपत्ति की तुलना में मातृ शिक्षा से अधिक प्रभावित था। इनमें शामिल थे: कद्दू, गाजर, स्क्वैश, गहरे हरे पत्ते वाली सब्जियां, मांस, हृदय, अंग मांस, मछली, शंख, फलियां और नट्स, और मांस भोजन।
डिब्बाबंद जूस और पैकेज्ड आइटम्स का उपभोग धन और मां की शिक्षा के साथ बढ़ा, जिसे शोधकर्ताओं ने ‘खतरनाक’ बताया है।
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि भारत में जो खाद्य पदार्थ सस्ते हैं... जैसे कद्दू, गाजर और गहरे हरे पत्ते वाली सब्जियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
क्या अधिक मांसाहार कर सकता है मदद?
आहार विविधता में सुधार करने के लिए, बच्चों को अधिक मांसाहार पदार्थ खाने चाहिए।
जनवरी 2019 में ‘लाइवमिंट’ में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, ग्रामीण और शहरी इलाकों में भारतीयों ने एक दिन में क्रमशः 194 ग्राम और 242 ग्राम प्रोटीन का सेवन किया।
हालांकि कुछ कम और मध्यम आय वाले देशों की तुलना में भारत में डेयरी और पोल्ट्री खाद्य पदार्थ सस्ते हैं, लेकिन यहां भी वे बहुत लोगों की पहुंच से परे हैं। यहां, नकद हस्तांतरण एक भूमिका निभा सकता है, जैसा कि चाइल्ड फीडिंग प्रैक्टिस गल 2006 एंड 2016 नामक अध्ययन में कहा गया है। यह अध्ययन कृषि अनुसंधान समूह अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) द्वारा आयोजित किया गया था और ‘जर्नल मैटरनल एंड चाइल्ड न्यूट्रिशन’ में प्रकाशित हुआ था।
अध्ययन में कहा गया है कि छोटे बच्चों में मांस की खपत के लिए सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करना भी महत्वपूर्ण होगा। आईएफपीआरआई अध्ययन के सह-लेखक फुओंग नगुयेन ने ईमेल पर कहा कि जिन एक तिहाई घरों में पशु प्रोटीन का सेवन नहीं किया गया, वहां फलियों / नट्स और फलों और सब्जियों की खपत में सुधार किया जा सकता है।
आईएफपीआरआई के एक अन्य अध्ययन में पाया गया था कि स्वास्थ्य और पोषण शिक्षा में तीन गुना वृद्धि हुई है। 2006 में 3.2 फीसदी से बढ़कर 2016 में 21 फीसदी हुआ है, सबसे गरीब माताओं के पास स्वास्थ्य और पोषण सेवाओं (सबसे अमीर समूह के बाद) की दूसरी सबसे खराब कवरेज थी, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मार्च 2019 में एक रिपोर्ट में बताया है।
( यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )
यह आलेख मूलत: अंग्रेजी में 15 जून 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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