बजट 2019 में आयुष्मान भारत को मिल सकती है अधिक राशि, लेकिन अन्य मुख्य स्वास्थ्य योजनाओं को हो सकता है नुकसान
नई दिल्ली: आम चुनावों के लिए एक साल से भी कम समय बचे होने के बावजूद सितंबर 2018 में प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना शुरु की गई है, जिसे ‘आयुष्मान भारत योजना’ के नाम से जाना जाता है। और इसी के साथ लगता है कि आखिरकार स्वास्थ्य भारत के राजनीतिक एजेंडे का हिस्सा बन गया है।
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि 50 करोड़ गरीब लोगों को 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान करने की यह महत्वाकांक्षी परियोजना सफल नहीं हो सकती, यदि भारत अपने आगामी बजट में स्वास्थ्य खर्च को बढ़ावा नहीं देता है।
जब केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस योजना की घोषणा की, तो इसे 'मोदीकेयर' करार दिया क्योंकि इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संचालित किया था। इसे 2018 के बजट में केवल 2000 करोड़ रुपये आवंटित किया गया था।
सरकार के अपने अनुमानों के अनुसार,यह अनुमानित लागत 10,000-12,000 करोड़ रुपये का केवल पांचवां हिस्सा था।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जे. पी. नड्डा ने मार्च 2018 में एक साक्षात्कार के दौरान इंडियास्पेंड को बताया, "धन की कोई कमी नहीं है। शुरुआती आवंटन, केवल एक टोकन राशि थी।"
यह भी चिंताएं हैं कि इस चुनावी वर्ष में आयुष्मान भारत ध्यान आकर्षित करेगा और पहले से संसाधनों की कमी से जूझ रही सरकार की मुख्य स्वास्थ्य योजनाओं की धनराशि कम हो सकती है।
इस प्रकार, "केंद्र सरकार के दृष्टिकोण से एक कम प्राथमिकता वाले कार्यक्रम को ज्यादा धन प्राप्त होगा और मुख्य गतिविधियां जिसके लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार हैं, उन्हें इस समय अलग रखा जाएगा," जैसा कि पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव और ‘डू वी केयर? इंडियाज हेल्थकेअर सिस्टम’ की लेखक के.सुजाता राव कहती हैं। आयुष्मान भारत के बाद, यह बजट “आपूर्ति और मांग की बाधाओं को दूर करने का एक ऐतिहासिक अवसर है,” जैसा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य पर काम कर रहे ‘ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन’ के फेलो ओमन कुरियन कहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि, यह देखते हुए कि स्वास्थ्य राज्य का विषय है, राज्यों को अधिक संसाधन और लचीलापन दिए जाने की जरूरत है। हालांकि, कई राज्यों में इस बात को लेकर नाराजगी है कि केंद्र इस योजना का श्रेय कैसे ले रहा है। उदाहरण के लिए, जब पश्चिम बंगाल में आयुष्मान भारत के लाभार्थियों को प्रधान मंत्री मोदी और विभिन्न अन्य सरकारी योजनाओं की विशेषता वाले पात्रता पत्र भेजे गए, तो राज्य ने इसकी शिकायत की कि इसकी सलाह नहीं ली गई।
क्या मायने रखता है स्वास्थ्य देखभाल बजट?
भारत अभी भी संक्रामक रोगों को नियंत्रित करने के लिए संघर्ष कर रहा है। दुनिया में टीबी और मल्टीरग प्रतिरोधी टीबी के रोगियों की सबसे अधिक संख्या यहां है। कुष्ठ रोग बढ़ रहे हैं, हालांकि रोग 'समाप्त' हो गया है । वैसे तो मलेरिया के मामले में गिरावट आई है लेकिन तीव्र एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम के मामले और मौतों की संख्या में वृद्धि हुई है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले अपनी रिपोर्ट में बताया है।
भारत में स्वास्थ्य संकट बढ़ने के साथ ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम - मातृ और बाल स्वास्थ्य पर भारत का सबसे बड़ा स्वास्थ्य कार्यक्रम ) की अव्ययित राशि, राज्यों के साथ पांच वर्षों से 2016 तक में 29 फीसदी की वृद्धि हुई है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने अगस्त 2018 की रिपोर्ट में बताया है। 40 वर्षीय पोषण कार्यक्रम ( एकीकृत बाल विकास योजना ) के बावजूद, दुनिया में हर तीसरा स्टंड बच्चा भारतीय है। कुपोषित बच्चे स्वस्थ रहने के लिए संघर्ष करते हैं और कक्षाओं में और कार्यस्थल पर अपने साथियों के बराबर पहुंचना मुश्किल होता है। आय के अवसरों की कमी के संदर्भ में कुपोषण के कारण भारत की लागत 3.2 लाख करोड़ रुपये तक हो सकती है, जो कि 2018-19 के केंद्रीय बजट में स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर भारत ने जो खर्च किया ( 1.38 लाख करोड़ रुपये ), उसका दोगुना है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 3 जनवरी, 2019 की रिपोर्ट में बताया है।
दुनिया में भारत कहां खड़ा है?
दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद, भारत के पास दुनिया में सबसे अधिक कमजोर स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली है।
2015 में, जब से नवीनतम सार्वजनिक व्यय आंकड़ा उपलब्ध है, भारत सरकार ने अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.02 फीसदी स्वास्थ्य सेवा पर खर्च किया। यह एक ऐसा आंकड़ा है,जो 2009 के बाद से छह वर्षों में लगभग अपरिवर्तित रहा है । यह आंकड़ा दुनिया में सबसे कम है, जैसा कि हमने पहले बताया है।
देशों के आय समूह के अनुसार स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च
Source: National Health Profile, 2018
जबकि भारत ने 2017-18 में अपने सकल घरेलू उत्पाद (बजट अनुमान) का 1.28 फीसदे खर्च करने की योजना बनाई थी, यह अभी भी अधिकांश अन्य निम्न आय वाले देशों द्वारा खर्च से नीचे है, जो स्वास्थ्य पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का औसत 1.4 फीसदी खर्च करते हैं।
2018 राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल में बताया गया है कि स्वास्थ्य पर भारत में प्रति व्यक्ति की तुलना में श्रीलंका चार गुना ज्यादा खर्च करता है, जबकि इंडोनेशिया दोगुना खर्च करता है। मालदीव में स्वास्थ्य पर खर्च किए जाने वाले सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात 9.4 फीसदी है, श्रीलंका में 1.6 फीसदी, भूटान में 2.5 फीसदी और थाईलैंड में 2.9 फीसदी।
स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च, दक्षिण-पूर्वी एशिया
सरकारी सेवाओं के लिए पर्याप्त धन के बिना, अधिकांश भारतीय निजी स्वास्थ्य सेवाओं की ओर जाते हैं। यही कारण है कि भारतीय विश्व स्तर पर निजी स्वास्थ्य सेवा पर छठा सबसे ज्यादा खर्च करने वाले लोग हैं और यही वजह है कि हर साल 5.5 करोड़ भारतीय गरीबी की ओर जाते हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जुलाई 2018 की रिपोर्ट में बताया था।
स्वास्थ्य पर खर्च: एनडीए-2 बनाम यूपीए-2
2010 से 2018 तक स्वास्थ्य सेवा खर्च में लगातार बढ़ोतरी हुई है। 2010 की तुलना में 2018 में स्वास्थ्य बजट दोगुना है।हालांकि, वास्तविक तस्वीर तब स्पष्ट हो जाती है जब हम कुल सरकारी खर्च के हिस्से के रूप में स्वास्थ्य देखभाल खर्च को देखते हैं ।जबकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन -2 (यूपीए -2) सरकार ने 2010 और 2014 के बीच स्वास्थ्य बजट की हिस्सेदारी में लगातार वृद्धि की, 2010 में शिखर पर था, और 2012 और 2011 में गिरावट आई। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के तहत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन -2 (एनडीए -2) पिछले चार वर्षों में कुल खर्च का 2 फीसदी से अधिक स्वास्थ्य बजट का हिस्सा लाई है। यूपीए-2 के दौरान स्वास्थ्य बजट की औसत हिस्सेदारी 1.83 फीसदी थी और एनडीए-2 के दौरान 1.99 फीसदी थी।
भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च, 2010-11 से 2011-19
Source: Union budget (2010-11, 2011-12, 2012-13, 2013-14, 2014-15, 2015-16, 2016-17, 2017-18)
Note: *Revised estimate, **Budget estimate
बजट 2019 की प्राथमिकताएं क्या हो?
चुनावी साल होने के नाते, आयुष्मान भारत के लिए आवंटन नाटकीय रूप से बढ़ने की उम्मीद है। कुरियन ने कहा कि यह योजना "एनडीए का मनरेगा" (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना, यूपीए का प्रमुख गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम) बन सकती है। नई पहल कम से कम आंशिक रूप से मौजूदा स्वास्थ्य संसाधनों को वास्तविक रूप से समर्थित करने के लिए होगी। उन्होंने कहा कि एनएचएम विशेष रूप से प्रमुख क्षेत्रों से धन ले रही है।
फंडिंग के अलावा, ऐसी आशंकाएं भी हैं कि मोदीकेयर निजी स्वास्थ्य सेवा को समाप्त कर देगा। नवंबर 2018 में, सरकार ने निजी कंपनियों को टियर -1 और टियर 2 शहरों में भूमि आवंटन, फंडिंग और फास्ट-ट्रैक मंजूरी के माध्यम से अस्पतालों को स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करने के बारे में एक नोट जारी किया, जैसा कि ‘द वायर’ ने जनवरी 2019 में रिपोर्ट किया है।
राज्यों को चिंता है कि केंद्र चुनावी वर्ष में इस योजना का श्रेय लेगा, जैसा कि हमने पहले कहा, इससे वे बाहर निकल रहे हैं - ओडिशा, नई दिल्ली, तेलंगाना ने इस योजना के लिए साइन अप नहीं किया, जबकि पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ ने जनवरी 2019 में निकाला है।
कुरियन ने कहा, "केंद्र को राज्यों के साथ कम से कम प्रारंभिक वर्षों में इस योजना की सह-ब्रांडिंग करनी चाहिए, ताकि इस तरह की जटिल योजना को चलाने के लिए राज्य स्तर पर क्षमता का निर्माण हो सके।"
उन्होंने कहा कि, एक अन्य समस्या यह थी कि 2018-19 में निर्मित आधे से अधिक स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र ( ये योजना के हिस्से के रूप में गैर-संचारी रोगों सहित व्यापक प्राथमिक देखभाल प्रदान करने वाले थे ) गैर-उच्च फोकस राज्यों में हैं, अर्थात जो पहले से ही आर्थिक रूप से समृद्ध हैं। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में केंद्रों को पहले रोल आउट किया जाना चाहिए, जो उच्च प्राथमिकता वाले जिलों, उच्च फोकस वाले राज्यों और अंतिम रूप से गैर-उच्च फोकस वाले राज्यों में हैं। सुजाता राव कहती हैं कि आईसीडीएस, ग्रामीण और शहरी जल और स्वच्छता, वायु प्रदूषण, स्वास्थ्य और कल्याण क्लीनिकों और टीबी जैसे रोग नियंत्रण कार्यक्रमों के लिए बजट की दोहरीकरण की आवश्यकता है। उन्होंने सुझाव दिया कि दवाओं, चिकित्सा उपकरणों और अस्पतालों पर गुड्स एंड सर्विस टैक्स को छोड़ दिया जाना चाहिए। वह कहती हैं: “आप स्वास्थ्य सेवाओं पर 18 फीसदी कर कैसे लगा सकते हैं? वे इसे मरीज से लेते हैं और स्वास्थ्य सेवा महंगी हो जाती है। ”
इसके अलावा, विदेशी खरीदारों द्वारा अस्पतालों और दवा कंपनियों के अधिग्रहण को रोकने के लिए एक नीति होनी चाहिए और खराब सेवाओं और छोटे और मध्यम गैर-लाभकारी अस्पतालों के समर्थन वाले क्षेत्रों में स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के लिए अधिक धन होना चाहिए।
( यदवार प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 26 जनवरी 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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