असम में प्रवास के तनाव को दिखाते 65 साल पुराने नागरिकता के मुद्दे का कोई परिणाम नहीं निकला है और दुनिया की सबसे बड़ी भारत की बायोमेट्रिक्स आधारित विशिष्ट पहचान प्रणाली के तहत 3.2% से अधिक लोगों के नाम ही दर्ज हो सके हैं।

असम में मतदान की प्रक्रिया समाप्त हो गई है (नतीजे 19 मई को जारी होने हैं), और नई सरकार ऐसे राज्य का जो भारत के सबसे कम विकास संकेतकों- देश में सर्वोच्च मातृ मृत्यु दर, सबसे ज्यादा शिशु मृत्यु दर; कम साक्षरता रैंकिंग (35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 26वीं)- और बढ़ रही आंकक्षाओं के बीच उत्तराधिकार संभालेगी।

7 दिसंबर 2015 तक असम में 29 लाख एलपीजी उपभोक्ताओं में से सिर्फ 0.3 (8,994) को ही आधार से जोड़ा गया, (राष्ट्रीय औसत 61% है), विशेष पहचान का अभाव संबंधित सामाजिक सुरक्षा लाभ और कार्यक्रमों के लाभ के प्रसार को रोकेगा।

कार्यक्रम शुरू होने के साढ़े पाँच साल बाद, 100 करोड़ भारतीयों (93%) को अब 12 अंकों वाला पहचान नंबर जिसे आधार कहा जाता है, जारी कर दिया गया है, और रोजाना 5,00,000 से अधिक लोगों के नामांकन हो रहे हैं। भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के अनुसार 4 अप्रैल 2016 तक 1,000,856,739 भारतीयों (जरूरी नहीं कि नागरिकों) को आधार पहचान पत्र मिल चुके थे।

आधार पहचान के लगातार सरकार के कई भुगतान योजनाओं से जुड़ने के कारण, असम के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तकनीकी आधारित सामाजिक सुधार कार्यक्रमों को लागू कर पाना मुश्किल हो जाएगा।

नागरिकता के विवाद और बांग्लादेश से पलायन की व्यग्रता के बीच, असम, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर देशभर में आधार के फैलाव की रफ्तार को प्रतिबिंबित नहीं करते। असम में 31 मार्च 2016 तक 3.2 करोड़ में से सिर्फ 10.4 लाख लोगों के पास ही आधार नंबर था, वहीँ मेघालय में सिर्फ 3.5% लोगों के पास आधार नंबर था।

आवंटित आधार, निम्नतम पांच राज्य/केंद्र शासित प्रदेश

भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के गुवाहाटी क्षेत्रीय कार्यालय के उप महानिदेशक एल के पेगु ने इंडियास्पेंड को बताया, “असम में नामांकन सिर्फ़ तीन जिलों- गोलाघाट, नागांव और सोनितपुर में शुरू हुआ है- इसकी वजह संभवत राज्य में नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (एनसआरसी) मुद्दा है, इस कारण राज्य में आधार की प्रक्रिया अभी पूरी रफ़्तार से शुरू नहीं हुई है। इसीलिए पैठ अभी कम है।”

एनआरसी सभी भारतीयों की सूचनाओं का एक रजिस्टर है, जिसे पहली बार 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। इसमें नागरिकों के नाम हैं जो 1971 की मतदाता सूची और 1951 के एनआरसी पर आधारित हैं।

1971 में बांग्लादेश के निर्माण (पूर्व में पूर्वी पाकिस्तान) के बाद, असम में अवैध रूप से घुसने के मुद्दे पर 1970 के दशक से हिंसक प्रदर्शनों की घटनाएं तेज़ी से बढ़ीं। इसलिए, एनआरसी में नागरिकों के नाम दर्ज नहीं करने के कारण, आधार नामांकन की प्रक्रिया धीमी है- हालाँकि आधार का मतलब नागरिकता की पुष्टि होना नहीं है।

प्रवासन और नागरिकता- असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के लिए बाधा

एनआरसी को असम में अपडेट किया गया है, और सिर्फ उनके नाम जिनके नाम एनआरसी (1951) में थे और 24 मार्च 1971 की मध्य रात्रि तक मतदाता सूची में थे- और वो जो 1 जनवरी 1966 को या इसके बाद, लेकिन 25 मार्च 1971 से पहले असम आए और खुद को सरकार के पास पंजीकृत कराया और जिन्हें अवैध शरणार्थी या विदेशी घोषित नहीं किया गया- को इसमें शामिल किया गया।

पेगु ने कहा, “आधार पूर्वोत्तर के छह राज्यों में चल रहा है- असम, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर- इसे जनगणना निदेशालय के तहत भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा किया जा रहा है। त्रिपुरा और सिक्किम में इसका संचालन यूआईडीएआई कर रहा है।”

31 मार्च 2016 तक त्रिपुरा में, 91.5% आबादी के पास अब आधार नंबर है; सिक्किम में 90% लोगों के पास आधार नंबर है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अध्यक्ष अमित शाह ने वादा किया है कि अगर भाजपा असम में सत्ता में आई तो अवैध प्रवासन को रोकेगी।

If the Bharatiya Janata Party coalition government comes to power in the state, infiltration along the states bordering Bangladesh will be stopped and borders will be completely sealed.

23 अप्रैल 2015 को लोकसभा में दिए गए जवाब के अनुसार चुनाव आयोग द्वारा पिछले साल अप्रैल में असम में 1,41,733 संदिग्ध/विवादित मतदाता पाए गए। वे लोग जो राष्ट्रीयता का प्रमाण नहीं दे सकते उन्हें चुनाव आयोग ने ‘विवादित’ या ‘डी’ वोटर चिन्हित किया।

असम में आधार नामांकन की धीमी गति इसकी आबादी को आर्थिक लाभों से वंचित कर सकती है

आधार नामांकन की धीमी गति से पता चलता है कि असम में 3.1 करोड़ से अधिक लोग भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार द्वारा फरवरी 2015 में शुरू की गई सामाजिक सुरक्षा योजना लाभ के सीधे बैंक खाते में जाने वाली जेएएम (जनधन आधार मोबाइल) योजना का लाभ नहीं उठा सकेंगे।

सरकार का उद्देश्य डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर (डीबीटी) को जेएएम से लागू करना है, जो भारत लाभ में होने वाली लीकेज और विकृति को कम कर भारत के गरीबों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाएगी।

असम में 7,24,6130 जनधन खाते खोले गए हैं, जिनमें से 30 मार्च 2016 तक देश भर के 44% की तुलना में सिर्फ 4% ही आधार से जोड़े गए।

आधार को जन धन से जोड़ने के मामले में 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में असम का स्थान 34वां है. मिज़ोरम (1.8%) और मेघालय (1.6%) सबसे निचली पायदान पर हैं।

इसी तरह, लोगों के पास मोबाइल पहुंच के मामले में भी असम काफी नीचे है और 56% लोगों के पास ही मोबाइल है। सिर्फ बिहार (54%) ही ऐसा राज्य है जहाँ 60% से कम लोगों के पास मोबाइल है, ये भी जेएएम के लिए एक और बाधा है।

2014-15 में 29.6 करोड़ लोगों को जेएएम का लाभ मिल रहा था, जिसमें से 57% को आधार व्यवस्था से जोड़ा गया था।

पूर्व में रीबूटिंग इंडिया के सह लेखक और आधार योजना से जुड़े विरल शाह ने इंडियास्पेंड को बताया था, “2016 में लगभग 12 करोड़ परिवारों को एलपीजी सब्सिडी का लाभ सीधे उनके बैंक खातों में मिलेगा, जिसे आधार पेमेंट ब्रिज (एपीबी) कहा गया है, जो कि बैंक, गैस कंपनियों, यूआईडीएआई और उपभोक्ताओं के बीच एक अंतरफलक है।”

शाह ने कहा, “मैं उम्मीद करता हूँ कि कई और योजनाएं धन भेजने के लिए आधार पेमेंट ब्रिज को अपनाएंगी। जिसमें आधार नंबर को जन धन खाते की तरह वित्तीय पते के रूप में उपयोग किया जाएगा।”

भारत भर में आधार के लाभार्थी (मिलियन में)

31 मई 2016 तक 28,363 करोड़ रुपये के 94.7 करोड़ लेनदेन आधार पेमेंट ब्रिज के जरिये हुए। 31 मई 2014 तक सिर्फ 4,474 करोड़ रुपये के 7.13 करोड़ लेनदेन इस तरह से हुए थे।

4 अप्रैल 2016 को जारी एक आधिकारिक विज्ञप्ति के अनुसार, “23 करोड़ से अधिक लोगों ने अपने बैंक खाते को आधार पेमेंट ब्रिज में अपने आधार से जोड़ा है।”

हर दिन 15 लाख आधार नंबर जारी हो सकते हैं

यूआईडीएआई हर दिन 15 लाख से अधिक आधार नंबर जारी करने की क्षमता रखता है. देशभर में इसके 37,304 नामांकन केंद्र हैं और इनमें 376543 प्रमाणिक ऑपरेटर्स काम कर रहे हैं।

एक आधिकारिक विज्ञप्ति में बताया गया है कि 4 अप्रैल 2016 तक 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 90% आबादी के पास आधार नंबर हैं, जबकि अन्य 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 75-90% वयस्कों का नामांकन हो चुका है।

इस सूची में दिल्ली शीर्ष पर है इसकी 110.2% आबादी के पास आधार नंबर है, इसके बाद तेलंगाना (100.4%) और हरियाणा (97.3%) हैं। 100% से अधिक नामांकन पड़ोसी राज्यों से आए लोगों के नामांकन दिखाता है।

आधार आवंटन, पांच शीर्ष राज्य/केंद्र शासित प्रदेश

वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्ष्य रखते हुए संसद ने पिछले महीने आधार अधिनियम 2016 पारित किया। इसके साथ ही सरकार ने आधार कार्यक्रम को विधायी शक्ति दे दी, जिसका कि अभाव था।

यह लेख मूलतः अंग्रेजी में 21 अप्रैल 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

(मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ एक विश्लेषक हैं)

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