बिहार के सबसे गरीब लोगों की प्राथमिकता सार्वजनिक स्वास्थ्य
मुंबई: पिछले 19 दिनों से 21 जून, 2019 तक बिहार में चमकी बुखार (इंसेफेलाइटिस) से 128 बच्चों की मौत हो गई है। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि राज्य की ग्रामीण आबादी सड़क, नौकरी और नकदी हस्तांतरण की बजाय सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में सरकारी निवेश को प्राथमिकता देती है।
एक अमेरिकी रिसर्च ग्रूप, ‘ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन’ द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में, बिहार के एक प्रशासनिक ब्लॉक में, 3,800 उत्तरदाताओं ( जिनमें गरीब, कम-शिक्षित और वंचित जाति समूह शामिल हैं ) को एक विकल्प के बारे में पूछा गया था। उनके ब्लॉक के लिए इन्क्रमेन्टल (और काल्पनिक) बजट उन्हें सीधे नकद हस्तांतरण (डीसीटी) के रूप में हस्तांतरित किया जाए या बेहतर कल्याण सेवाओं के लिए बजटीय आवंटन का रूप क्या होगा।
उसमें से केवल13 फीसदी चाहते थे कि फंड डीसीटी के जरिए आए। बहुमत (86 फीसदी) चाहता था कि इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा में निवेश किया जाए, शेष 1 फीसदी की इस मामले में कोई राय नहीं थी। अध्ययन में पाया गया कि लगभग 63 फीसदी उत्तरदाताओं ने डीसीटी योजना के बजाय बजट को नई सड़कों पर खर्च करना चाहा।
73 फीसदी उत्तरदाताओं ने रोजगार सृजन और 79 फीसदी उत्तरदाताओं ने सड़क निर्माण की बजाय सार्वजनिक स्वास्थ्य में निवेश करना पसंद किया।
रिपोर्ट की एक सह-लेखक और वर्ल्ड बैंक डेवलपमेंट रिसर्च ग्रुप से जुड़ीं एक वरिष्ठ अर्थशास्त्री, स्तुति खेमानी कहती हैं, "इन प्रतिक्रियाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में सबसे आर्थिक रूप से अविकसित हिस्सों में से सबसे गरीब नागरिक नौकरी सृजन कार्यक्रमों और सड़कों की बजाय सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देते हैं।"
गरीब और तीसरे सबसे अधिक आबादी वाले राज्य, बिहार को ट्रांसफर फंड का 1 फीसदी मिलता है
केंद्र सरकार ने 1 जनवरी, 2013 को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) कार्यक्रम शुरू किया, जिसके उदेश्य सूचना / धन के सरल और तेज प्रवाह के लिए कल्याणकारी योजनाओं में मौजूदा प्रक्रिया को फिर से इंजीनियरिंग करके ‘सरकारी वितरण प्रणाली में सुधार और लाभार्थियों के सट%E