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सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अक्टूबर 2013 को निर्वाचन आयोग ने चुनाव में मतदाताओं के लिए एक और विकल्प, नन ऑफ द अबव ( नोटा ) यानि कि किसी भी उम्मीदवार को न चुनने का अधिकार भी आरंभ किया है। हालांकि बाद में हुए राज्य विधानसभा चुनाव और 2014 में हुए आम चुनाव के दौरान भी यह विकल्प मौजूद था लेकिन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में नोटा चिन्ह पेश होने के बाद हाल ही में बिहार विधानसभा चुनाव पहला चुनाव रहा है।

Factly.in , एक डेटा पत्रकारिता पोर्टल द्वारा बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों पर किए गए एक विश्लेषण के अनुसार सबके उम्मीद के विपरीत, कुल वोट में से नोटा के खाते में 2.5 फीसदी वोटिंग हुई है एवं 23 निर्वाचन क्षेत्रों में जीत के अंतर की तुलना में नोटा की गिनती अधिक है।

जीत का अंतर

हालांकि बिहार विधानसभा चुनाव एक काफी करीब प्रतियोगिता के रुप में होने की उम्मीद की जा रही थी लेकिन जीत के अंतर कुछ और ही कहते हैं। 1,000 वोटों के कम के अंतर से केवल 8 सीटों पर जीत हासिल की जा सकी है। लगभग 87 फीसदी सीटों पर जीत 5,000 वोटों के अंतर से अधिक पर मिली है एवं 70 फीसदी सीटों पर 10,000 वोटों के अंतर से जीत हासिल हुई है। करीब 19 फीसदी सीटों पर 30,000 वोटों से अधिक के अंतर पर जीत मिली है एवं छह सीटों पर 50,000 से अधिक वोटों के अंतर से जीत मिली है। यदि देखा जाए तो सभी छह सीटों पर जहां 50,000 से अधिक वोटों के अंतर से जीत मिली है, सभी महागठबंधन के खाते में गए हैं। एनडीए के खाते में 30,000 से अधिक वोटों के अंतर से जीते केवल तीन सीट आए हैं जबकि महागठबंधन ने 30,000 से अधिक वोटों के अंतर से 41 सीटों पर कब्ज़ा किया है।

जीत का अंतर

गठबंधन की जीत का अंतर

महागठबंधन की जीत का पैमाना भी जीत के अंतर से स्पष्ट था । महागठबंधन की जीत का अंतर औसतन प्रति सीट 19,933 वोट था जबकि एनडीए का औसत प्रति सीट 12,360 वोट ही था। लोजपा एवं एचएएम के जीत का अंतर उच्च हैं क्योंकि लोजपा ने 2 एवं एचएएम ने 1 सीट पर ही जीत हासिल की है। कुल मिलाकर महागठबंधन का औसत जीत का अंतर एनडीए के औसत से करीब 7,500 वोट अधिक है।

175 सीटों के साथ एनडीए दूसरे स्थान पर है एवं इसकी हार का अंतर महगठबंधन के जीत के अंतर के करीब है। एनडीए की औसत हार का अंतर 19,538 है जबकि महागठबंधन की औसत हार का अंतर 12,583 है। 59 सीटों पर महागठबंधन दूसरे स्थान पर रहा है। महागठबंध की जीत का अंतर औसत से अधिक है जबकि इसकी हार का अंतर औसत से कम है।

जीत और हार का औसत अंतर

जीतने और हारने का औसत अंतर

भाजपा ने 10,000 वोटों के अंतर के साथ आधी सीटें जीती

53 में 30 सीटों पर भाजपा ने 10,000 से कम वोटों के अंतर से जीत हासिल की है या अधिकतर निर्वचन क्षेत्रों में 5 फीसदी से कम वोट शामिल हुए हैं। भाजपा के विपरीत महागठबंधन में शामिल सभी पार्टियों ने 70 फीसदी सीटों पर 10,000 से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की है। वास्तविकता में जनत दल ( यू ) ने 47 फीसदी सीटों पर 20,000 से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की है।

अलग-अलग पार्टियों की जीत का अंतर

पार्टी अनुसार सीटों की जीत का अंतर

नोटा का प्रभाव

भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) द्वारा नोटा चिन्ह आरंभ करने के बाद यह पहला चुनाव है। ईवीएम में चुनाव लड़ रहे सभी दलों और निर्दलीयों के चुनाव चिन्ह के साथ -साथ एक नोटा का चिन्ह भी था। बिहार में हुए चुनाव में नोटा का काफी प्रभाव रहा है। बिहार विधानसबा चुनाव में करीब 9.5 लाख मतदाताओं ने नोटा चिन्ह दबाया है जोकि कुल वोट का 2.5 फीसदी है। यह आंकड़े एचएएम को मिले वोट से अधिक है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब नोट का चिन्ह नहीं था, केवल 1 फीसदी मददाताओं ने नोटा का विकल्प चुना था।

The NOTA symbol

23 सीटों पर जीत का अंतर नोटा गिनती से भी कम था

एक और दिलचस्प बात यह रही कि नोटा के तहत गिराए गए वोटों की संख्या 23 सीटों पर मिली जीत के अंतर से अधिक या सभी सीटों के 10 फीसदी करीब है।

अलग-अलग पार्टियों की जीत का अंतर

भाजपा के खाते में ऐसी 8 सीटें आई हैं जबकि जनता दल ( यू ) एवं आरजेडी के हिस्से में 6 सीटें आई हैं। सबसे अधिक नोटा की गिनती वारसीनगर निर्वाचन क्षेत्र में हुई है जहां नोट विकल्प पर 9,551 वोट मिले हैं ( जीत का अंतर यहां 50,000 मतों से अधिक था)। औसतन सभी निर्वाचन क्षेत्रों में नोटा विकल्प पर 4,000 वोट मिले हैं एवं 72 क्षेत्रों में 5,000 से अधिक वोट मिले हैं।

नीचे उन 23 विधानसभा क्षेत्रों की सूची दी गई हैं है जहां नोटा की गिनती जीत के अंतर की तुलना में अधिक है।

आंकड़े भारत की निर्वाचन आयोग की वेबसाइट से ली गई है।

( दुब्बदु पिछले एक दशक से सूचना के अधिकार से संबंधित मुद्दों पर काम कर रहे हैं । Factly.in सार्वजनिक डेटा सार्थक बनाने के लिए समर्पित है। )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 17 नवम्बर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।


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