बिहार में कमज़ोर समुदायों के खिलाफ अपराध में वृद्धि
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बिहार में अपराध की स्थिति किसी से छुपी नहीं है। राज्य पुलिस दिन-रात कमज़ोर समुदायों के खिलाफ अपराध के बढ़ते ग्राफ को कम करने की कोशिश में जुटी हुई है लेकिन एक सच यह भी है कि बिहार में पुलिस बल की भी भारी कमी है।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारी जारी की गई आंकड़ों के अनुसार पिछले दस वर्षों में बच्चों के खिलाफ अपराध में 20 गुना वृद्धि हुई है। वर्ष 2005 में जहां यह आंकड़े 115 थे वहीं 2014 में यह बढ़ कर 2255 दर्ज किए गए हैं।
यदि राष्ट्रीय औसत से तुलना की जाए तो बिहार देश के उन राज्यों में से एक है जहां बच्चों के खिलाफ अपराध दर बहुत कम किया गया है। आंकड़ों को देखें तो बिहार में 100,1000 प्रति पांच बच्चे के आंकड़े दर्ज है जबकि राष्ट्रीय औसत 20.1 है। यह आंकड़े साफ संकेत है कि बिहार में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले भले ही रिपोर्ट कीये जा रहे हैं लेकिन शायद इन मामलों को पंजीकृत नहीं किया जा रहा है।
वर्ष 2005 से 2014 के बीच महिलाओं के खिलाफ हुए अपराध की संख्या दोगुनी हुई है।महिलाओं के अपहरण एवं पति या रिश्तेदार द्वारा किया गया अत्याचार मुख्य रुप से रिपोर्ट होने वाले अपराध हैं।
महिलाओं के खिलाफ अपराध, 2005-2014
Source: NCRB 1, 2; Note: 2014 crime rate was calculated by NCRB against female population alone while 2005 crime rate was calculated against the whole population, so the 2005 rate was multiplied by 2 to allow for comparison.
वर्ष 2014 के आंकड़ों के देखें तो बिहार में दहेज हत्या के मामले भी सबसे अधिक दर्ज की गई है।
इसी अवधि के दौरान अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध मामले में चार गुना वृद्धि दर्ज की गई है। राष्ट्रीय औसत की तुलना में बिहार में में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध मामले में दोगुना से भी अधिक वृद्धि दर्ज की गई है।
वर्ष 2014 के आंकड़ों के अनुसार बिहार में अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध दर भी काफी अधिक दर्ज की गई है। इस मामले में बिहार से अधिक अपराध दर गोवा, राजस्थान एवं आंध्र प्रदेश में दर्ज की गई है।
पुलिस बल की संख्या कम
हालांकि बिहार में पुलिस बल की वास्तविक ताकत 54.8 ही है। यह आंकड़े राष्ट्रीय औसत ( 109.35 ) की तुलना में आधी है।
प्रति 100,000 लोगों पर सिविल पुलिस, अनुमोदित एवं वास्तविक संख्या
प्रति वर्ग किमी पर सिविल पुलिस, अनुमोदित एवं वास्तविक संख्या
Source: NCRB 1, 2; Note: Figures as on April 1, 2014
इसी समय में राज्य में प्रति वर्ग किमी. पर अनुमोदित सिविल पुलिस की संख्या 91 है जबकि राष्ट्रीय औसत 58 है। हालांकि बिहार में वास्तविक प्रति वर्ग किमी. पर केवल 58.7 पुलिस ही है जबकि राष्ट्रीय औसत 42.6 है।
बिहार में ‘टीथ-टू-नेल’ अनुपात भी सबसे कम है। ‘टीथ-टू-नेल’ असिसटेंट सब इंस्पेक्टर से लेकर कॉंस्टेबल एवं हेड कांस्टेबल तक के पद का अनुपात होता है।
बिहार के अलावा सबसे कम ‘टीथ-टू-नेल’ अनुपात वाले राज्य ओडिसा एवं पश्चिम बंगाल है।
बिहार पुलिस में समुदाय प्रतिनिधित्व कम
जहां तक पुलिस बल में विभिन्न समुदायों के प्रतिनिधित्व का सवाल है बिहार में सभी वर्गों में प्रतिनिधित्व की संख्या कम है।
बिहार पुलिस बल में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के प्रतिनिधित्व, 2014
Source: Bureau of Police Research and Development; Note: Figures as on Jan 1, 2014
प्रदान किए गए 16 फीसदी आरक्षण की तुलना में कुल पुलिस श्रमबल में अनुसूचित जाति का प्रतिशत 10.3 फीसदी है। केवल छत्तीसगढ़, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पूरित एवं आरक्षित कार्यबल कर्मियों के बीच बड़ा विचलन है।
33 फीसदी आरक्षण की तुलना में, कुल कर्मचारियों की संख्या मेंअन्य पिछड़ी जातियों ( ओबीसी ) का प्रतिशत केवल 22.1 फीसदी है। ओबीसी के आरक्षित पदों को भरने के मामले में बिहार से बद्तर स्थिति गोवा, गुजरात, हरियाणा और तमिलनाडु राज्यों की है।
अनिवार्य चौकियों के अलावा,बिहारमें विशेष प्रयोजन पुलिस स्टेशन है– 40 अनुसूचित जाति एवं जनजाति के खिलाफ हो रहे अपराध से निपटने के लिए एवं 44 शिशुओं के खिलाफ होते अपराध से निपटने के लिए।
राज्य में कानून और व्यवस्था मामलों में कुछ पूर्वाग्रह मौजूद है क्योंकि यह काफी हद तक मामलों की रिपोर्टिंग होने पर निर्भर करता है। लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि कमज़ोर समुदायों के खिलाफ अपराध के मामलों में वृद्धि हुई है। शायद चुनाव में यह दिखाई दे सकते हैं?
( किरण स्वनीति के साथ अनुसंधान लीड हैं। स्वनीति एक गैर लाभकारी संस्था है जो विकास से जुड़े मुद्दों पर काम करती है। )
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 22 अक्टूबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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