बिहार में महिला समूहों की बैठकों से गर्भवती माओं की जांच और पोषण में सुधार
नई दिल्ली: सात महीने पहले 22 साल की उम्र में जूली देवी दूसरी बार मां बनी थी। जूली लगभग 18 साल की थी जब उसने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया। पहले बच्चे का प्रसव घर में ही गांव की एक दाई की सहायता से हुआ।
"मैं दो दिन तक दर्द में थी, प्रसव के दौरान बहुत दिक्कत हुई पर नॉर्मल डिलीवरी हो गई," बिहार के पूर्णिया ज़िले की रहने वाली जूली ने बताया। जन्म के समय इस बच्चे का वज़न दो किलो था, जबकि सामान्य बच्चे का वज़न 2.5 किलो होना जाहिए। इस बच्चे के जन्म के दौरान ख़ुद जूली का वज़न भी काफ़ी कम था और वो काफ़ी दुबली थी। इस दौरान जूली ने ना आयरन की गोलियां खाईं ना खान-पान का ध्यान रखा। जूली को पोषण के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। वो महज़ तीसरी क्लास तक पढ़ी थी और बिहार के अररिया ज़िले में रहने वाले उसके माता-पिता ने 17 साल की उम्र में उसकी शादी कर दी थी।
जूली का दूसरा बच्चा स्वस्थ है। दूसरे बच्चे के प्रसव के दौरान जूली ने चार जांचें करवाईं। उसे आंगनबाड़ी से हर महीने आयरन-फ़ालिक एसिड और कैल्शियम की गोलियां दी गईं और दो इंजेक्शन भी लगाए गए। "मैं हरी सब्ज़ियां, साग और रोज़ एक अंडा खाती थी," जूली ने बताया। दूसरा बच्चा अस्पताल में पैदा हुआ जिसका वज़न जन्म के समय 4.5 किलो था। जूली अब जानती है कि इस बच्चे को छः महीने तक सिर्फ़ अपना दूध पिलाना है। इस बच्चे का टीकाकरण कार्ड भी जूली ने बनवा लिया है।
जूली की दोनो गर्भावस्थाओं और शिशुओं के स्वास्थ्य में इतना अंतर इसलिए रहा क्योंकि दूसरा बच्चा होने से पहले जूली ने गांव में होने वाली बैठक में जाना शुरू कर दिया था। महिला समूह की हर पंद्रह दिन पर होने वाली इस बैठक में जूली को स्वच्छता और पोषण जैसे मुद्दों पर जानकारी मिलती रही।
ये बैठकें गांवों में बिहार सरकार के राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, जीविका के तहत करवाई जाती हैं जो स्वाभिमान कार्यक्रम का एक हिस्सा है। यह कार्यक्रम तीन राज्यों--बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा--में सक्रिय है और 356 गांवों के 1,25,097 घरों तक पहुंचता है।
स्वाभिमान कार्यक्रम किशोरियों, नव-विवाहित महिलाओं, गर्भवती माओं और दो साल से कम उम्र के बच्चों की माओं पर केंद्रित है। किसी भी उम्र की गर्भवती महिला के लिए दो सबसे ज़रूरी बिंदु हैं पोषक आहार, सही जांच और देखभाल। इन दोनों में किसी भी तरह की कमी या असंतुलन जच्चा-बच्चा दोनो पर बुरा असर डालता है और बच्चे को जन्म से पहले ही कुपोषित कर सकता है। बिहार की गर्भवती महिलाओं के लिए इन दोनो पहलुओं से जुड़े आंकड़े ख़राब हैं।
गर्भावस्था के दौरान देखभाल या जांच कम से कम चार बार यानी हर तिमाही में एक बार होनी चाहिए। लेकिन साल 2015-16 में आए सर्वेय के अनुसार 44% महिलाओं की 2005-06 के बाद से उनकी आख़िरी गर्भावस्था के दौरान देखभाल या जांच (एएनसी) एक बार भी नहीं की गई।इसके साथ ही, एक टीटी इंजेक्शन और कम से कम सौ दिन आयरन-फ़ालिक एसिड की गोली का सेवन ज़रूरी है। बिहार में सिर्फ़ 3% महिलाओं को ही अपने आख़िरी बच्चे के दौरान पूरी एएनसी मिल पाई, नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे 2015-16 (एनएफ़एचएस-4) के आंकड़े दिखाते हैं।
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फ़ॉर पॉपुलेशन साइंसेज़ (आईआईपीएस) और यूनिसेफ़ ने बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्यों की सरकारों की सहायता से जून 2019 में किशोरियों, गर्भवती महिलाओं और दो साल से कम उम्र के बच्चों की मांओं और उनके खान-पान और पोषण पर सर्वे किया। इस सर्वे में 17,680 किशोरियां और महिलाएं शामिल थीं।
सर्वे में पाया गया कि तीनों राज्यों में सभी श्रेणियों की महिलाओं का खान-पान सबसे ज़्यादा ख़राब या असंतुलित बिहार में है। डाइटरी डाइवर्सिटी स्कोर यानी खान-पान में तरह-तरह के पोषक तत्व शामिल हैं या नहीं, इस मामले में बिहार का औसत किशोरियों के लिए 10 में से 3.98 अंक, गर्भवती माओं के लिए 4.05 अंक और दो साल से कम उम्र के बच्चों की माओं के लिए 3.76 अंक था।
इस सर्वे के लगभग 6 महीने बाद, दिसम्बर 2019 में आईआईपीएस, यूनिसेफ़ और तीनों राज्यों की सरकारों ने गर्भावस्था के दौरान जांच और देखभाल को लेकर सर्वे किया। सर्वे में 15 से 49 साल की कुल 2,573 गर्भवती महिलाएं शामिल थीं जिनमें से 10% 15 से 19 साल की किशोरियां थीं और बाक़ी वयस्क। सर्वे में बिहार के पूर्णिया ज़िले के कसबा और जलालगढ़ ब्लॉक में 27, 41 और 36 गांवों के 3 ग्रुप से 936 गर्भवती महिलाएं शामिल की गईं, जिसमें 75 किशोरियां थीं। पूर्णिया, बिहार में सबसे कम साक्षरता वाला ज़िला है, यहां एनीमिक महिलाओं की संख्या भी राज्य में सबसे ज़्यादा (70% से अधिक) है।
इस सर्वे में भी बिहार ज़्यादतर पैमानों पर बाक़ी दोनों राज्यों से पीछे नज़र आया। सर्वे में सुझाव दिया गया है कि बिहार में पोषण पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है। ये ज़रूरत स्वाभिमान के तहत बनाए गए महिला समूह पूरी करते दिखाई दे रहे हैं। जिन गांवों में ये समूह चालए जा रहे हैं वहां की ज़्यादातर किशोरियां और महिलाएं पहले से ज़्यादा जागरूक हैं और अपने और अपने परिवार के पोषण और स्वास्थ की बेहतर देखभाल कर पा रही हैं।
(साधिका, इंडियास्पेंड के साथ प्रिन्सिपल कॉरेस्पॉंडेंट है।)
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