बुंदेलखंड में कोरोनावायरस से बड़ी है पानी की लड़ाई
बांदा (उत्तर प्रदेश): “गगरी न फूटे, चाहे बलम मर जाए”, बुंदेलखंड में पानी का संकट कितना विकराल है इसका अंदाज़ा इस एक कहावत से लगाया जा सकता है जो बुंदेलखंड के इलाक़ों में कही जाती है। उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड वह इलाक़ा है जहां हर साल या एक साल के अंतराल बाद सूखा पड़ता है। ऐसे में कोरोनावायरस के संक्रमण के दौर में यहां के लोगों के लिए दोहरी चुनौती पैदा हो गई है। अब या तो यह पीने के लिए पानी का इंतज़ाम करें या फिर उसे हाथ धोने के काम में लाएं।
“हम कोरोनावारस से बचें या प्यासे मर जाएं,” बुंदेलखंड के गाल्हापुरवा गांव के एक सरकारी नल पर पानी भरने के लिए जमा ढेर सारी महिलाओं में से एक ने कहा। गाल्हापुरवा गांव उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड इलाक़े के बांदा ज़िले में पड़ता है। इस सरकारी नल पर जमा एक-एक महिला के पास छह से सात पानी के डिब्बे हैं।
उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड में 7 ज़िले--झांसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, चित्रकूट, बांदा और महोबा-- हैं। इन सभी ज़िलों का संकट एक ही है और वो है पानी की भीषण कमी। वैसे तो यहां पानी का संकट हमेशा बना रहता है मगर अप्रैल-मई आते-आते यहां के तालाब, कुएं और हैंडपम्प सूखने लगते हैं। हर जगह लोग सुबह उठकर अपने काम-धंधे पर जाते हैं मगर बुंदेलखंड के लोग सुबह उठकर पानी की तलाश में निकल पड़ते हैं। हालात इतने ख़राब हैं कि लोग ऐसे गांवों में अपनी बेटियों की शादी नहीं करते हैं जहां पानी का संकट हो।
पानी के लिए हैंडपम्प पर निर्भरता
बुंदेलखंड के लोग पीने के पानी के लिए हैण्डपंप पर निर्भर हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक, महोबा के 71.3%, बांदा में 76.1%, जालौन में 76.6%, चित्रकूट में 72.1%, हमीरपुर में 75.2%, झांसी में 60% और ललितपुर में 74% परिवार पानी के लिए हैंडपम्प पर निर्भर हैं।
“मेरे पास पीने को पानी नहीं रहता, हाथ कहां से धोऊं? मुझे पता है कि कोरोनावायरस से बचने के लिए दिन में कई-कई बार हाथ धोने हैं, लेकिन मैं बच्चों की प्यास देखूं या कोरोनावायरस से बचूं,” गाल्हापुरवा गांव की रानी (38) इस संवाददाता से सवाल पूछती हैं। रानी के पांच बच्चे हैं। वह रोज़ दो बार (सुबह-शाम) घर से क़रीब एक किलोमीटर दूर से पानी ढोकर लाती है।
कोरोनावायरस से बचाव के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो सुझाव दिए हैं उसमें दिन में कई बार हाथ धोना प्रमुख है। लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में रानी जैसे पांच करोड़ से ज़्यादा लोग हैं जिनके पास हाथ धोने की समुचित व्यवस्था (साबुन और पानी) नहीं है। पूरी दुनिया में ऐसे लोगों की संख्या क़रीब 200 करोड़ है। यह अध्ययन अमेरिका के वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के 'इंस्टीट्यूट फ़ॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन' के शोधकर्ताओं ने किया है।
Source: Institute for Health Metrics and Evaluation, University of Washington, Seattle, Washington, USA
इस अध्ययन के आंकड़े, भारत सरकार के आंकड़ों से मेल खाते हैं। “राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से 1 अप्रैल 2019 तक की रिपोर्ट के मुताबिक, देश के 17.87 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से 3.27 करोड़ ग्रामीण परिवारों तक ही नल से पानी पहुंचता है,” केंद्रीय जल शक्ति राज्य मंत्री रतन लाल कटारिया ने लोकसभा में 12 मार्च 2020 को बताया। यानी देश के क़रीब 82% ग्रामीण परिवारों तक नल से पानी नहीं पहुंच रहा है।
''बुंदेलखंड में शहरों में टैंकर से पानी की सप्लाई होती है तो गांव में औरतें घरों से दूर जाकर पानी लाने को मजबूर हैं। अब जब पानी इतनी किल्लत से मिलेगा तो लोग उसे हाथ धोने जैसे काम के लिए कम ही खर्च करेंगे,'' बुंदेलखंड में ग्रामीण विकास के क्षेत्र में काम करने वाले एक एनजीओ से जुड़े राजा भैया ने दलील दी।
यह अकेले बुंदेलखंड का मामला नहीं जहां लोग घर से दूर जाकर पानी लाने को मजबूर हैं। नीति आयोग की 'कम्पोज़िट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स' रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 75% ऐसे परिवार हैं जिनके घर में पानी की सुविधा नहीं है। ऐसा ही हाल बुंदेलखंड के महोबा और बांदा ज़िलों का भी है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, महोबा में सिर्फ 7%, बांदा में 13.3%, जालौन में 26.6%, चित्रकूट में 11.4%, हमीरपुर में 13.2%, झांसी में 20.1% और ललितपुर में 10.3% ग्रामीण परिवारों के घर में पानी की सुविधा है।
Source: Composite Water Management Index
पानी की कमी का असर हाथ धोने पर
इन आंकड़ों से समझा जा सकता है कि पानी को लेकर बुंदेलखंड के लोग कितनी दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। यह दिक्कतें उनके रहन-सहन और आदतों पर भी असर डालती हैं। जैसे- हाथ धोना एक आदत है, लेकिन जब पानी की कमी होगी तो व्यक्ति हाथ धोने को महत्व नहीं देता, ऐसे में उसकी रोज़मर्रा की आदत में यह शुमार नहीं है।
“मैं सिर्फ शौच जाने के बाद और खाना खाने से पहले हाथ धोता हूं। हमारे यहां इतना पानी नहीं रहता कि बार-बार हाथ धोए जाएं। कई लोग तो दो-दो दिन में एक बार नहाते हैं ताकि पानी ज़्यादा ख़र्च न हो। हैंडपंप आधा किलोमीटर दूर है, वहां से पानी लाना होता है तो बार-बार हाथ कैसे धोएंगे,” महोबा ज़िले के पनवारी कस्बे के रहने वाले उदयभान सिंह राजपूत (58) ने कहा।
भारत के ग्रामीण क्षेत्र में हाथ धोने की आदत को और बेहतर तरीके से समझने के लिए भारत सरकार की एक रिपोर्ट के आंकड़ों को भी देखना चाहिए। नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस) की रिपोर्ट में बताया गया है कि ग्रामीण भारत के 69.9% परिवार खाना खाने से पहले सिर्फ पानी से हाथ धोते हैं। वहीं, शौच के बाद 15.2% ग्रामीण परिवार सिर्फ पानी से हाथ धोते हैं और 17.9% ग्रामीण परिवार हाथ धोने के लिए राख, मिट्टी और पानी का इस्तेमाल करते हैं।
Source: National Sample Survey
पानी की समस्या और सोशल डिस्टेंसिंग
बुंदेलखंड में पानी की समस्या सोशल डिस्टेंसिंग पर भी बुरा असर डाल रही है। पानी के लिए एक जगह भीड़ जुटती हैं, एक हैंडपम्प से पानी लेते हैं। पानी के लिए यहां अकसर झगड़े और मारपीट भी हो जाया करती है। इसकी वजह है पानी के लिए एक हैंडपम्प पर कई परिवारों की निर्भरता। बांदा ज़िले के खुम्भौरा गांव में अकसर ऐसी घटनाएं होती हैं। इसकी वजह है एक हैंडपम्प पर 22 परिवारों की निर्भरता
“मैं पानी भरने गया था तो गांव के ही एक लड़के ने मुझे लाठी से मारा, अभी तक घाव है। यहां आये दिन ऐसा ही होता है। रोज़ किसी न किसी से झगड़ा होना तय है। पानी के लिए लोग एक दूसरे पर चढ़ जाते हैं,” गांव के लक्ष्मीचंद (42) ने बताया।
बांदा ज़िले के एक गांव में हैंडपम्प के पास जुटी भीड़। फ़ोटो: रणविजय सिंह
पानी पर कोरोनावायरस का साया
बुंदेलखंड के शहरों में भी पानी और कोरोनावायरस के बीच लोग जूझ रहे हैं। लॉकडाउन से पहले महोबा के पनवारी कस्बे के कोटपुरवा मौहल्ले के 30 परिवार दूसरी गली में जाकर पानी भरते थे, क्योंकि उनके यहां लगा सरकारी हैंडपम्प खारा पानी देने लगा था। लॉकडाउन की शुरुआत और फिर कोरोनावायरस के डर की वजह से दूसरी गली के लोगों ने इन्हें पानी भरने से रोक दिया, अब इन परिवारों को खारा पानी पीना पड़ रहा है।
“हम इस पानी से कुछ बना भी नहीं सकते, बिल्कुल खारा है। जबसे लॉकडाउन लगा दूसरी गली के लोगों ने पानी देने से मना कर दिया। अब जैसे-तैसे इसी खारे पानी से काम चला रहे हैं,” उर्मिला राजपूत (45) कहती हैं।
जब उर्मिला से कहा गया कि आप इस पानी से हाथ तो धो सकती हैं। “इस एक हैंडपम्प से 30 परिवार पानी भरते हैं, मेरे हिस्से में तीन बाल्टी भी आ जाए तो बहुत है। अब इससे मैं घर की ज़रूरतें पूरी करूं या फिर हाथ धोने के काम में लाऊं,” उर्मिला ने कहा।
महिलाओं पर बढ़ा पानी ढोने का बोझ
बुंदेलखंड में आम तौर पर हैंडपम्प पर महिलाएं ज़्यादा नज़र आती हैं। घर की ज़रूरतों के लिए पानी का प्रबंध करने की ज़िम्मेदारी उन्हीं की होती है। “लॉकडाउन की वजह से प्रवासी लोग गांव लौटे हैं। ऐसे में घरों में पानी की खपत भी ज़्यादा होगी। इसकी वजह से महिलाओं के ऊपर पानी ढोने का बोझ और बढ़ेगा,” 'जल-जन जोड़ो अभियान' के नेशनल कन्वीनर संजय सिंह ने कहा।
बांदा ज़िले के गाल्हापुरवा गांव में पानी लेने जाती महिलाएं। फ़ोटो: रणविजय सिंह
उत्तर प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, 31 मई 2020 तक प्रदेश में 24.71 लाख से ज़्यादा लोगों को अन्य राज्यों से वापस लाया गया है। इनमें से यूपी के बुंदेलखंड इलाक़े में भी बड़ी संख्या में लोग आए हैं। इन लोगों की वापसी से गांव में पानी की खपत पर भी असर पड़ा है।
“लॉकडाउन के बाद से हमारे घर दो लोग दिल्ली से लौटे हैं। अब उनके लिए अलग से पानी ढोना पड़ता है। कई बार हैंडपम्प पर इतनी भीड़ जुट जाती है कि पानी नहीं मिल पाता, ऐसे में दिन में जाकर पानी लाती हूं,” बांदा ज़िले के छिछन गांव की गुडिया (28) ने बताया।
लेकिन जब गुडिया से पूछा गया कि क्या आप इस पानी से हाथ धोती हैं? इसपर गुडिया ने पूछा, “सुबह का भरा पानी दोपहर तक ख़त्म हो जाता है, हाथ कहां से धोएं?”
(रणविजय, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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