बेंगलुरु के घरों का गंदा पानी कैसे सूखाग्रस्त कोलार की मदद कर रहा है
बेंगलुरु: बैंगलोर वॉटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड (बीडब्ल्यूएसएसबी) में एग्ज़िक्यूटिव इंजीनियर, के धनंजय (57) ने अपने हाथ में साफ़ पानी का एक गिलास पकड़ा है। ये पीने लायक दिख रहा है, लेकिन इसमें सीवेज का पानी है जिसे पानी की रिसाइक्लिंग के एक अनूठे प्रयोग के हिस्से के तौर पर बेलानदुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में ट्रीट किया गया है।
एक दिन में 440 मिलियन लीटर (एमएलडी) के लक्ष्य में से 300 मिलियन एमएलडी -- मुंबई की पानी की मांग का लगभग 10 प्रतिशत या ओलंपिक साइज़ के 176 स्विमिंग पूल की क्षमता के बराबर -- घरों के सीवेज के पानी को ट्रीट कर बेंगलुरु के निकट के सूखाग्रस्त कोलार ज़िले और चिक्कामंगला के हिस्सों में कोरामंगला-चल्लाघाटी परियोजना के ज़रिए भेजा जाता है। इस पानी को कोलार के आसपास फैली 126 झीलों में डाला जाता है, इनमें से कई बारिश न होने के कारण सूख गई हैं।
इस परियोजना का उद्देश्य,
ट्रीट किए गए पानी से सूखाग्रस्त कोलार क्षेत्र में घट चुके भूजल का स्तर, इन झीलों और टैंकों के माध्यम से बढ़ाना है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे सिंचाई के लिए भूजल पर बहुत अधिक निर्भर रहने वाले किसानों को मदद मिलेगी और अगर यह परियोजना सफल रहती है तो इसे भारत के पानी की कमी वाले अन्य क्षेत्रों में भी लागू किया जा सकता है।
1,342 करोड़ रुपये (187 मिलियन डॉलर) की इस परियोजना की शुरुआत 2016 में हुई थी और इसका उद्घाटन जून 2018 में किया गया था। इंडियास्पेंड को मिले आंकड़ों के अनुसार, इससे अब तक 40 झीलें भरी जा चुकी हैं।
बेंगलुरु के जल संरक्षण विशेषज्ञ, एस विश्वनाथ ने इंडियास्पेंड को बताया, “इस तरह के पानी को खेती में इस्तेमाल के लिए ये परियोजना देशभर के लिए एक उदाहरण हो सकती है।”
कोलार में पहुंचने वाला पानी सीधे सिंचाई के लिए नहीं है क्योंकि एक झील में पहुंचने पर, ये पानी गुरुत्वाकर्षण-आधारित प्रवाह के ज़रिए ज़मीन के अंदर रिसता है, जिससे यह टैंकों को भर सके। इससे किसानों को सिर्फ़ ये फ़ायदा होगा कि ये क्षेत्र में भूजल का स्तर बढ़ाने में सहायक होगा।
यह प्रयोग ऐसे समय में हो रहा है जब भारत में 2025 तक पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1,341 क्यूबिक मीटर (1,700 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति से कम की उपलब्धता वाले क्षेत्र को पानी की कमी वाला, और 1,000 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति से कम वाले क्षेत्र को पानी के संकट वाला माना जाता है) होने का अनुमान है। इंडियास्पेंड ने जल संसाधन मंत्रालय के 2017 में किए गए आंकलन के हवाले से 30 दिसंबर, 2017 को एक रिपोर्ट में बताया था कि वर्तमान उपलब्धता साल 2050 में और गिरकर 1,140 क्यूबिक मीटर हो सकती है, जिससे भारत पानी के संकट वाली स्थिति के करीब पहुंच जाएगा। 2011 में समाप्त हुए दशक में भारत में पानी की उपलब्धता 15% घट गई थी।
दुनिया में भूजल का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल भारत में होता है। दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश चीन के मुक़ाबले भारत में दोगुना भूजल निकाला जाता है। भारत में 2010 में 250 क्यूबिक केएम भूजल निकाला गया -- दुनिया के सबसे बड़े बांध की क्षमता का 1.2 गुना – जिसमें से 89% का इस्तेमाल सिंचाई के लिए हुआ था।
रिसाइकिल किए हुए पानी के बेहतर उपयोग और कमी को दूर करने के लिए कोलार जैसे प्रयोग अन्य स्थानों पर भी हो रहे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने 12 जनवरी, 2019 को रिपोर्ट दी थी कि नागपुर म्युनिसिपल कॉरपोरेशन शहर से निकलने वाले 525 एमएलडी सीवेज के पानी में से 90% से अधिक को ट्रीट कर दोबारा इस्तेमाल करने वाला देश का पहला म्युनिसिपल कॉरपोरेशन बनने की ओर है। महाराष्ट्र स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी, इस पानी में से 190 एमएलडी का इस्तेमाल अपने थर्मल प्लांट्स के लिए करना चाहती है। उत्तर प्रदेश में नोएडा ने भी एक ‘शून्य-डिस्चार्ज’ शहर बनने के रास्ते पर चलने के लिए अपने सीवेज के पानी की 100% रिसाइक्लिंग के लिए अपनी ट्रीटमेंट क्षमता बढ़ाई है।
देश भर में निकलने वाले 61,754 एमएलडी सीवेज के पानी में से लगभग 63% का ट्रीटमेंट नहीं होता। सरकार की ओर से चलाए जाने वाले ईएनवीआईएस (एनवायरमेंटल इनफॉर्मेशन सिस्टम) सेंटर ऑन हाइजीन, सेनिटेशन, सीवेज ट्रीटमेंट सिस्टम्स एंड टेक्नोलॉजी के मई 2019 के आंकड़ों के अनुसार, देश में ट्रीटमेंट की क्षमता 22,963 एमएलडी है।
KC Valley Project Aims To Transfer 440 MLD Of Secondary Treated Domestic Sewage Water From Bengaluru | ||||
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Million Litres per day (Overall) | TMC Per Year | Quantum Of Water Pumped (million cubic feet) | Avg Quantum Of Daily Pumping In MLD | Tanks Filled |
440 | 5.67 | 2008 | 290 | 30 |
Source: Minor Irrigation and Ground Water Development Department (As on October 3, 2019)
लेकिन शहर के गंदे पानी के इस्तेमाल की कोशिश वाली कोलार परियोजना के सामने चुनौतियां भी हैं। रिसाइकिल किए हुए पानी में हैवी मेटल्स होने और भूजल संसाधनों पर इसके संभावित प्रभाव की रिपोर्टों के कारण हाई कोर्ट ने जनवरी 2019 में इस पर रोक लगा दी थी। अदालत ने अप्रैल 2019 में अपनी रोक हटा ली थी।
परियोजना को लेकर किसान क्या सोचते हैं, ये समझने के लिए हमने बेंगलुरु से लगभग 70 किलोमीटर पूर्व में बेलुर और नरसापुरा पंचायतों में किसानों से बात की। अपने कुओं में पानी के स्तरों में वृद्धि को देखने वाले कुछ किसान इसके प्रभाव से खुश थे। अन्यों को पानी की गुणवत्ता और इसके स्रोतों में मिलावट को लेकर संदेह था।
सूखे के समय में खेती
कर्नाटक में कोलार सब्ज़ियों के उत्पादन वाला सबसे बड़ा क्षेत्र है। इंडियास्पेंड ने 18 जनवरी, 2017 की अपनी रिपोर्ट में बताया था कि कोलार में एशिया की दूसरी सबसे बड़ी टमाटर मंडी है, और राज्य में आम का आधे से अधिक उत्पादन कोलार में होता है। लेकिन लगातार सूखा पड़ने के कारण यहां कृषि उत्पादन को नुकसान हुआ है।
बेंगलुरु में बेलानदुर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में सेकेंडरी ट्रीटमेंट के बाद घरों के सीवेज का पानी।
भारत में 24 सबसे अधिक सूखाग्रस्त में से 16 ज़िले कर्नाटक में हैं, इनमें से कोलार, छह स्थायी सूखे वाले ज़िलों में से एक है, राज्य सरकार ने दिसंबर 2018 में विधानसभा में यह
जानकारी दी थी। 2019 में कोलार सहित 13 ज़िलों के 30 तालुकों [प्रशासनिक इकाई] को सूखाग्रस्त घोषित किया गया है।
2015 तक 15 साल में कर्नाटक में केवल तीन साल -- 2005, 2007 और 2010 -- में सूखा नहीं पड़ा था। इंडियास्पेंड ने 8 मई, 2018 की अपनी रिपोर्ट में, कर्नाटक स्टेट डिज़ास्टर मैनेजमेंट मॉनिटरिंग सेंटर की सूखे पर एक रिपोर्ट के हवाले से ये जानकारी दी थी। डायनामिक ग्राउंडवॉटर रिसोर्सेज़ असेसमेंट ऑफ इंडिया ने 2017 में बताया था कि इस ज़िले में भविष्य में इस्तेमाल के लिए कुल शून्य भूजल है और यहां राज्य में सबसे अधिक भूजल निकाला -- 211% -- गया है।
बेंगलुरु के बेलानदुर का सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, जहां घरों के गंदे पानी को एक सेकेंडरी लेवल पर ट्रीट किया जाता है।
ज़िले में किसान, सिंचाई के लिए ड्रिप और माइक्रो इरिगेशन जैसे आधुनिक तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन कोलार के डिप्टी कमिश्नर जे मंजूनाथ का कहना है कि केसी वैली परियोजना एक “बड़ा बदलाव” ला रही है। उन्होंने बताया, “बोरवेल (कोलार में जिनकी औसत गहराई लगभग 1,500 फ़ीट है) की असफ़लता की दर 30% से अधिक है और गर्मी के दौरान कुछ जगहों पर यह 50% थी। किसानों को मोटर, पाइपिंग और अन्य चीज़ों सहित एक नए बोरवेल की खुदाई पर एक लाख रुपये के आसपास खर्च करने पड़ते हैं।”
माइनर इरिगेशन डिपार्टमेंट के सचिव सी मृत्युंजय स्वामी ने 12 नवंबर, 2019 को द हिंदू को बताया था कि अभी तक माइनर इरिगेशन डिपार्टमेंट ने ट्रीट किए गए पानी का 2.5 टीएमसीएफ़टी पंप किया है और लक्ष्य साल भर के अंदर 5.5 टीएमसीएफ़टी को पंप करने का है। उनका कहना था, “बीडब्ल्यूएसएसबी से ट्रीट किए गए पानी का प्रति दिन 310 एमएलडी डिस्चार्ज परियोजना में पंप किया जा रहा है, जिसमें लक्ष्मीसागर झील डिस्चार्ज का पहला पड़ाव है।” (स्वामी ने इंडियास्पेंड की ओर से इंटरव्यू के लिए कई निवेदनों का उत्तर नहीं दिया।)
प्रशासन इसे लेकर स्पष्ट है कि यह सेकेंडरी ट्रीटमेंट वाला पानी सीधे सिंचाई के लिए नहीं है और सीधे उपयोग के लिए फिट नहीं है। बीडब्ल्यूएसएसबी के धनंजय ने इंडियास्पेंड को बताया, “बीडब्ल्यूएसएसबी केवल घरों का सीवेज एकत्र करता है और एसटीपी ऐसे ट्रीटमेंट के लिए बनाए गए हैं।”
अधिकारियों ने इंडियास्पेंड को बताया कि इस पानी को निकालने के लिए वाटर पंप का इस्तेमाल करने वाले किसानों पर जुर्माना लगाया जाता है।
गंदे पानी के ट्रीटमेंट पर फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइज़ेशन ने बताया कि गंदे पानी से सिंचाई के लिए प्राइमरी ट्रीटमेंट के न्यूनतम स्तर की ज़रूरत है। ऑर्गनाइज़ेशन के अनुसार, “अगर गंदे पानी का इस्तेमाल ऐसी फ़सलों की सिंचाई के लिए किया जा रहा है जिसकी मनुष्य खपत नहीं करते या इससे बागों, अंगूर की खेती में या कुछ प्रोसेस्ड फ़ूड की फ़सलों की सिंचाई हो रही है, तो इसे पर्याप्त ट्रीटमेंट माना जा सकता है।” सेकेंडरी ट्रीटमेंट में बचे हुए जैविक तत्वों को हटाने के लिए और ट्रीट किया जाता है।
धनंजय ने बताया कि बेलानदुर में घरों के सीवेज के पानी को सरकारी एजेंसियों की ओर से तय मापदंडों पर ट्रीट किया जाता है। विश्वनाथ ने इससे जुड़ी कई एजेंसियों का ज़िक्र करते हुए कहा, “यह एक जटिल संस्थागत व्यवस्था है।” ट्रीटमेंट का काम बीडब्ल्यूएसएसबी के पास है और ट्रांसपोर्टेशन, माइनर इरिगेशन डिपार्टमेंट करता है। झीलें पंचायतों से संबंधित हैं, भूजल का नियंत्रण भूजल प्राधिकरण के पास है, और नियामक की ज़िम्मेदारी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड निभाता है।
विश्वनाथ ने कहा, “यह कृषि परियोजना के लिए गंदे पानी के सबसे बड़े इस्तेमाल में से एक है। किसान इसका इस्तेमाल खुशी-खुशी कर रहे हैं।”
‘उत्पादन में वृद्धि’
बेल्लुर पंचायत के एक किसान सुधा रामलिंगइय्या (32) लक्ष्मीसागर झील (बेंगलुरु से रिसाइकिल किए गए पानी का पहला पड़ाव) से, एक किलोमीटर दूर अपने परिवार के दो एकड़ के खेत पर अक्टूबर के महीने में कड़ी मेहनत कर रही हैं। सुधा का परिवार सिंचाई की कम ज़रूरत वाली रागी, और दूसरी कुछ सब्ज़ियां उगाता है।
सुधा ने इंडियास्पेंड को बताया, “कुओं में पानी बढ़ गया है। शुरुआत में इससे बदबू आती थी, पर अब यह साफ़ दिखता है। लेकिन यहां मच्छर हैं।” उन्होंने कहा कि उनके खेत के नज़दीक एक कुआं जो लगभग सूख गया था अब उसमें पानी दिखता है।
कोलार में बेल्लुर पंचायत की 32 वर्षीय किसान, सुधा रामलिंगइय्या का कहना है कि पानी के स्तर में सुधार हुआ है और पानी की उपलब्धता बढ़ने के कारण वो अधिक फसलें उगा पा रही हैं।
सुधा ने बताया, “हमें यहां आमतौर पर 1,800 फ़ीट पर भी पानी नहीं मिलता, लेकिन इस साल हम दो फसलें उगाने में कामयाब हुए हैं और हमें अन्य लोगों के खेतों में मज़दूरी नहीं करनी पड़ी।” उन्होंने कहा कि पानी की उपलब्धता से अब वह अधिक सब्ज़ियां उगा सकेंगी। इस वर्ष उत्पादन बढ़ने से खेती से उनकी आमदनी में 50,000 रुपये की वृद्धि हुई है। लेकिन यह दूसरे खेतों में भी हो रहा है जिससे क्षेत्र में मज़दूरों की कमी हो गई है।
बेल्लुर के एक अन्य किसान उदय कुमार को भी इस परियोजना से फ़ायदा हुआ है। उनके पास 3.5 एकड़ का खेत है और वह टमाटर, बैंगन, मिर्च, गाजर और गुलाब (सभी बारिश पर निर्भर) की खेती करते हैं। उन्होंने कहा, “पहले कोलार में झीलें केवल बारिश के दौरान ही भर पाती थीं, लेकिन अब हर समय उनमें पानी रहता है। हमें अब 1,000 फ़ीट पर भी पानी मिल रहा है, पहले ऐसा नहीं था और हमें इस गहराई पर बमुश्किल पानी मिल पाता था।”
उन्होंने कहा कि जो किसान अब तक फ़सल बेचकर 30,000 रुपये कमाते थे वे अब 1 लाख रुपये तक कमा सकते हैं।
बोरवेल में पानी बढ़ने से फ़सल के आधार पर किसानों की आमदनी में वृद्धि हुई है। कोलार में सब्ज़ियों की खेती करने वाले एक छोटे किसान उदय कुमार का कहना है कि अब उन्हें 1,000 फ़ीट पर पानी मिल रहा है, पहले ऐसा नहीं था।
‘इसमें बदबू आती है, ज़्यादा इस्तेमाल नहीं हो सकता’
लेकिन होसाकेर झील के निकट एक एकड़ के खेत के मालिक 46 वर्षीय नारायणस्वामी ट्रीट हुए पानी से खुश नहीं हैं, उनका दावा है कि इससे उनके गांव में मच्छरों से होने वाली बीमारियां आ रही हैं। उन्होंने कहा, “शुरुआत में हम झील भरने से खुश थे लेकिन इसमें बदबू आती है। यहां तक कि जानवर भी इससे दूर रहते हैं।”
लक्ष्मीसागर से लगभग 10 किलोमीटर दूर नरसापुरा में, नरसापुरा झील के पास खेतों के मालिक राजा राव (71) और वेंकटेश वी. (48) भी नाखुश हैं।
वेंकटेश ने बताया, “पानी साफ़ नहीं है और इसे फ़िल्टर करने की ज़रूरत है। इससे हमें बिल्कुल मदद नहीं मिली है।” वेंकटेश के पास एक एकड़ का खेत है जिसमें वो गाजर, फलियां और चुकंदर उगाते हैं। राव के पास एक एकड़ और दो गुंटा (0.05 एकड़) का खेत है जिसमें वो मूली, गाजर, खीरा और रागी उगाते हैं। उन्होंने बताया, “पानी हमें खेती के लिए नहीं दिया गया है और इस वजह से यह हमारे किसी काम का नहीं है।”
वेंकटेश ने कहा कि अगर उद्देश्य भूजल में सुधार करना है तो झील को और गहरा करने और पानी के ज़रियों को खोलने की ज़रूरत है।
कोलार के नरसापुरा गांव में सब्ज़ियां उगाने वाले किसान राजा राव (71) “गंदे पानी” को छोड़े जाने से खुश नहीं हैं। नरसापुरा झील में छोड़े जाने से पहले इसे और “फिल्टर” करना होगा। इस झील के पानी का इस्तेमाल वे अपनी रोज़ाना की ज़रूरतों के लिए करते हैं।
नरसापुरा ग्राम पंचायत ने जुलाई 2018 में स्थानीय झील के किनारे मौजूद बोरवेल से पानी का इस्तेमाल न करने की चेतावनी वाले पर्चे बंटवाए थे क्योंकि पानी दूषित था और उससे बहुत दुर्गंध आ रही थी।
राव ने बताया, “अपने परिवार की ज़रूरतों के लिए हमने बारिश के दौरान भरे, झील के पानी का इस्तेमाल किया था। अब कोई व्यक्ति झील से पकड़ी हुई मछली भी नहीं खाता, हम इसमें अपने पैर भी नहीं डालते।” उन्होंने कहा कि रिसाइकिल किया हुआ पानी गांव में भूजल में सुधार नहीं कर सका है क्योंकि मिट्टी ने इसे रिसने नहीं दिया।
जैसा हमने पहले बताया था कि किसानों को झीलों से रिसाइकिल किया हुआ पानी पंप से खींचने की अनुमति नहीं है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि बाद की झीलों को पर्याप्त पानी मिल रहा है। इससे क्षेत्र में परियोजना को लेकर कुछ नाराज़गी है। वेंकटेश ने बताया,
“अगर हम पानी खींचने की कोशिश करते हैं तो अधिकारी हमारे पंप ज़ब्त कर लेते हैं। तो ये पानी हमारे लिए कैसे उपयोगी है?”
इस पानी को सीधे खींचने की कोशिश करने वाले किसानों के लगभग 30 मामले हैं। डिप्टी कमिश्नर मंजूनाथ ने बताया, “छापे मारे गए हैं जिनमें हमने किसानों को चेतावनी दी है और बाद में उनके पंप या मोटर ज़ब्त किए हैं। हमने अधिकारियों से दोबारा उल्लंघन करने वालों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज करने को कहा है। माइनर इरिगेशन डिपार्टमेंट झीलों की निगरानी के लिए अब युवाओं या होम गार्ड की नियुक्ति कर रहा है।”
व्यवस्था कैसे अधिक प्रभावी तरीके से कार्य कर सकती है? विश्वनाथ ने कहा, “एक तरीका पानी के ट्रीटमेंट की निगरानी और पानी की गुणवत्ता में सुधार में मदद के लिए सरकार के साथ काम करने का है। दूसरा किसानों को पानी के सही उपयोग में मदद करने का है। इसमें आर्थिक उत्थान की काफ़ी संभावना है।”
एक क़ानूनी चुनौती
कर्नाटक हाई कोर्ट ने जुलाई 2018 में चिक्काबल्लापुर के एक निवासी और शाश्वत नीरावरी होराता समिति (या स्थायी सिंचाई आंदोलन समिति) के अध्यक्ष, अंजनेया रेड्डी की विशेष अनुमति याचिका के बाद सरकार को कोलार में सेकेंडरी ट्रीटमेंट वाले पानी की पंपिंग से रोक दिया था। इस याचिका में पानी की गुणवत्ता पर सवाल उठाए गए थे। सितंबर 2018 में हाई कोर्ट ने एक नया आदेश जारी कर पानी की पंपिंग की इजाज़त दे दी थी।
अप्रैल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने उस आदेश को वापस ले लिया जिसमें उसने हाई कोर्ट के फ़ैसले पर जनवरी 2019 में रोक लगा दी थी, जिससे पानी की पंपिंग की इजाज़त मिली थी। अदालत ने कहा था कि पानी की पंपिंग दुनिया भर के समान प्रचलनों के अनुसार की जा रही है। अदालत ने याचिकाकर्ता को हाई कोर्ट जाने के लिए कहा था।
मंजूनाथ ने बताया, “इस रुकावट के कारण हमें 175 दिनों का नुकसान हुआ है।”
लेकिन मामला दायर करने वाले याचिकाकर्ता इसे ग़लत नहीं मानते। रेड्डी ने इंडियास्पेंड को बताया, “कोलार क्षेत्र में पहले से पानी की गुणवत्ता को लेकर समस्याएं हैं, और इस पानी से भूजल दूषित हो सकता है।”
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज की सितंबर 2019 की रिपोर्ट में बताया गया था कि एकत्र किए गए पानी के नमूनों में हैवी मेटल्स (कैडमियम, क्रोमियम, कॉपर, लेड, कोबाल्ट और ज़िंक) की मात्रा मानक स्तरों से अधिक थी और ट्रीट किए गए पानी में ऑर्थो-फ़ॉस्फ़ेट (प्रदूषण का संकेत), नाइट्रेट और जैविक तत्व अधिक थे।
सेंटर फॉर इकोलॉजिकल साइंसेज़ के वरिष्ठ वैज्ञानिक और रिपोर्ट के प्रमुख लेखक टी वी रामचंद्र ने बताया कि पानी के दूषित होने का कारण एसटीपी के पास इसे हटाने की क्षमता का नहीं होना है। उन्होंने कहा, “सैद्धांतिक तौर पर मैं परियोजना के ख़िलाफ़ नहीं हूं। मैं सीवेज के पानी का अनुप्युक्त ट्रीटमेंट कर रही सरकारी एजेंसियों के ख़िलाफ़ हूं।”
लेकिन बीडब्ल्यूएसएसपी इस आलोचना को ग़लत बताता है। बीडब्ल्यूएसएसबी के चीफ़ इंजीनियर (वेस्टवॉटर मैनेजमेंट), ई नित्यानंद कुमार ने इंडियास्पेंड से कहा, “पानी को ट्रीट किए बिना छोड़ने का प्रश्न ही नहीं है। पीने के अलावा, इस पानी का (सेकेंडरी ट्रीटमेंट वाले पानी) किसी भी चीज़ के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।”
रेड्डी के वकील प्रिंस इसाक ने इसका विरोध करते हुए कहा कि चिंता यह है कि पानी भूजल के स्रोतों में रिसकर जाएगा और भूजल को दूषित करेगा। उनका कहना था, “यह अभी या फिर कुछ वर्षों में हो सकता है।”
द हिंदू की 12 नवंबर, 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार ने हाई कोर्ट को बताया है कि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से केसी वैली परियोजना के पर्यावरण पर प्रभावों का अध्ययन करने का निवेदन किया गया है।
विश्वनाथ ने कहा, “ऐसे पहलू हैं जिनमें सुधार की ज़रूरत है, लेकिन खेती में गंदे पानी के इस्तेमाल पर ये परियोजना देश के लिए एक उदाहरण हो सकती है। वर्तमान कल्पना शहर में इसके इस्तेमाल की है, लेकिन भारत के लिए यह एक प्रासंगिक मॉडल है।”
(श्रीहरि इंडियास्पेंड के साथ एक एनालिस्ट हैं। सचिन बेंगलुरु में एक स्वतंत्र शोधकर्ता हैं।)
ये रिपोर्ट मूलत: अंग्रेज़ी में 22 नवंबर 2019 को IndiaSpend पर प्रकाशित हुई है।
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