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मुंबई: एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, 80 फीसदी भारतीयों के पास अब बैंक खाता है। मोबाइल फोन वाले भारतीयों का अनुपात भी समान है, लेकिन वित्तीय समावेश का स्तर अब भी दुनिया में सबसे बदतर, उप-सहारा अफ्रीका से कम हैं।

मोबाइल-बैंकिंग सेवाओं की उपलब्धता और खाता स्वामित्व में लिंग, धन और शिक्षा अंतराल के संकुचन के बावजूद कुछ ही खाता धारक उनके लिए उपलब्ध सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं, जो वित्तीय समावेशन के लिए सुधार के संबंध में सवाल पैदा करता है, जैसा कि अप्रैल 2018 में विश्व बैंक द्वारा जारी किए गए नवीनतम ग्लोबल फाइंडेक्स सर्वेक्षण से पता चलता है।

वर्ष 2014 में शुरु किए गए सरकार की प्रमुख प्रधान मंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) का लक्ष्य भारत में बिना बैंक खाता वाली आबादी रही है। ग्लोबल फाइंडेक्स की रिपोर्ट के मुताबिक, नए खातों में तेजी से वृद्धि इस योजना का नतीजा है।

पीएमजेडीवाई खाता धारकों में से 1 फीसदी ( 3.1 मिलियन लाभार्थियों ) से अधिक उनके लिए उपलब्ध ओवरड्राफ्ट सुविधाओं का उपयोग नहीं कर रहे हैं और पीएमजेडीवाई खातों में से 17 फीसदी खातों में ‘शून्य-बैलेंस’ है, जिसका अर्थ है कि उनका उपयोग नहीं किया जाता है, जैसा कि हालिया आंकड़ों से पता चलता है। हालांकि यह 2016 के 25 फीसदी और 2014 के 75 फीसदी से नीचे है।

औपचारिक क्रेडिट तक पहुंच में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं है, और 38 फीसदी भारतीय खाते निष्क्रिय हैं, अर्थात्, एक वर्ष के दौरान कोई निकासी या जमा नहीं थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय सेवाओं में भागीदारी और प्रभावी उपयोग से शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश, वित्तीय आपात स्थिति का प्रबंधन करने और नकदी पर निर्भरता को कम करने में सहायता करके विकास लक्ष्यों को चलाने में मदद मिल सकती है।

भारत अभी तक मोबाइल बैंकिंग से नहीं उठा रहा है लाभ

डिजिटल भुगतान करने या मोबाइल मनी वॉलेट का उपयोग करके अपने फोन या इंटरनेट से वित्तीय संस्थानों तक पहुंचने वाली भारतीय आबादी का अनुपात अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में काफी कम है।

2017 में, 5 फीसदी भारतीयों ने अपने फोन या इंटरनेट से वित्तीय संस्थान के खाते का उपयोग किया, और 2 फीसदी आबादी के पास मोबाइल मनी अकाउंट था, जैसा कि ग्लोबल फाइंडेक्स के आंकड़ों से पता चलता है।

यदि इसकी तुलना उप-सहारा अफ्रीका से करें, तो पता चलता है कि वहां 2017 में 21 फीसदी वयस्कों के पास मोबाइल मनी खाता था, जो दुनिया में किसी की जगह से सबसे ज्यादा है और 2014 से 50 फीसदी की वृद्धि हुई है। डिजिटल भुगतान भी अधिक व्यापक है। 2017 में, केन्या में 97 फीसदी वयस्कों ने डिजिटल लेन-देन किया, जबकि दक्षिण अफ्रीका में यह आंकड़ा 60 फीसदी और भारत में 29 फीसदी रहा है।

भारत और उप-सहारा अफ्रीका में डिजिटल / मोबाइल भुगतान तक पहुंच

इन देशों में व्यस्क पारंपरिक वित्तीय लेनदेन को छोड़कर नए वित्तीय तौर-तरीकों की ओर बढ़ रहे हैं और डिजिटल वित्त के विकास में योगदान दे रहे हैं। भारत के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है।

भौतिक रूप से बैंक शाखाओं तक पहुंचने और विशिष्ट दस्तावेज प्रस्तुत करने की आवश्यकता के बारे में समस्याओं को हल करने के बावजूद, जिन्हें अब तक बाधाओं के रूप में देखा जाता था, अधिकांश भारतीयों को अभी तक मोबाइल बैंकिंग के लाभ का अनुभव नहीं हो रहा है।

‘फाइनैन्शल सिस्टम पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूशन’ में वरिष्ठ शोध सहयोगी निशांत के. ने कहा, "आम तौर पर लोग अभी भी बैंकिंग के लिए अपने फोन का उपयोग करने में पूरी तरह से सहज नहीं हैं। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में लेनदेन के लिए फोन या डिजिटल मोड का उपयोग करने के बारे में गलत धारणाएं हैं।"

इंटरनेट कनेक्टिविटी, डिजिटल साक्षरता और देश के प्रौद्योगिकी आधारभूत संरचना में सुधार के लिए 2015 में लॉन्च की गई एक सरकारी पहल, डिजिटल इंडिया अर्थव्यवस्था में भागीदारी बढ़ाने का लक्ष्य रखती है। मोबाइल बैंकिंग प्लेटफार्मों के माध्यम से, नकद रहित सरकार लाभ हस्तांतरण और इन सेवाओं के बारे में जागरूकता में वृद्धि करता है। ऐसा मानना है कि इससे वित्तीय समावेशन में सुधार किया जा सकता है।

हालांकि, बिजली और इंटरनेट तक खराब पहुंच भारत में कनेक्टिविटी में बाधा डालती है, और मोबाइल बैंकिंग को अपनाने के बारे में लोग संशय में रहते हैं।

इंटरनेट तक पहुंच में अभी लोग ग्रामीण-शहरी विभाजन का सामना कर रहे हैं। ‘इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ द्वारा जारी 2017 की एक रिपोर्ट के मुताबिक दिसंबर 2017 में, 65 फीसदी शहरी परिवारों के पास इंटरनेट कनेक्शन था, जबकि ग्रामीण भारत के लिए यह आंकड़ा 20 फीसदी रहा है।

2019 तक 150,000 गांवों में हाई-स्पीड इंटरनेट प्रदान करने के लिए 77 बिलियन डॉलर (34,000 करोड़ रुपये) खर्च करने के लिए एक सरकारी योजना, भारत नेट कार्यक्रम को अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अगले वर्ष तक अपने प्रयासों को दोगुना करना चाहिए। वर्तमान में 67,271 गांव जुड़े हुए हैं, जैसा कि Your Story ने मार्च 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

समान रूप से, जबकि मोबाइल फोन स्वामित्व बढ़ रहा है, फिर भी कई ग्रामीण निवासी अभी भी साधारण दैनिक कार्यों के लिए बिजली तक पहुंचने के लिए संघर्ष करते हैं, जैसे फोन चार्ज करना।

‘ग्रामीण विद्युतीकरण निगम लिमिटेड’ (आरईसी) द्वारा किए गए 99.8 फीसदी गांवों में विद्युतीकरण दावों के बावजूद 31 मिलियन परिवारों में वर्तमान में बिजली नहीं है। यह दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण ज्योति योजना या 'पावर फॉर ऑल' कार्यक्रम को निष्पादित करने के लिए नियुक्त एजेंसी है।

ऐप और ऑनलाइन बैंकिंग वेबसाइटों का उपयोग करने के लिए तकनीकी साक्षरता और आत्मविश्वास का स्तर आवश्यक है, जो ग्रामीण और निम्न आय वाले क्षेत्रों में भारतीयों के पास अक्सर नहीं होता है।

मोबाइल खाता पहुंच और डिजिटल भुगतान के संबंध में शिक्षा का अंतर भी बाधा है। उदाहरण के लिए, प्राथमिक शिक्षा या उससे कम लोगों में से 2 फीसदी ने 2017 में किसी खाते का उपयोग करने के लिए मोबाइल फोन या इंटरनेट का उपयोग किया है, जबकि माध्यमिक शिक्षा या उससे कम के लिए यह आंकड़े 9 फीसदी है, जैसा कि ‘ग्लोबल फाइंडेक्स’ के आंकड़ों से पता चलता है।

निशांत के. का मानना ​​है कि औपचारिक बैंकिंग सेवाओं से बाहर निकलने के लिए भारत अकेले प्रौद्योगिकी पर भरोसा नहीं कर सकता है।

वित्तीय साक्षरता और लिंग अंतर

वर्ष 2014 और 2017 के बीच महिला बैंक खाता स्वामित्व 79 फीसदी की वृद्धि हुई। लिंग अंतर यानी पुरुष और और महिला खाता स्वामित्व के बीच का अंतर भी कम, अब महज 6 प्रतिशत अंक हो गया है, जो कि तीन साल पहले 20 प्रतिशत था।

धन और शिक्षा, प्रत्येक का 10 प्रतिशत अंक से संकुचन के साथ, ये आंकड़े सुझाव देते हैं कि पारंपरिक सामाजिक-आर्थिक और लिंग बाधाएं अब कारक नहीं हैं जो वित्तीय सेवाओं तक सफल पहुंच पर असर डालती हैं।

भारत में बैंक खाता स्वामित्व, 2014 और 2017

हालांकि, भारत में सभी महिलाओं में से 77 फीसदी के शामिल होने के बाद महिला खाता स्वामित्व में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, लेकिन वित्तीय सेवाओं और वित्तीय साक्षरता में महिला भागीदारी अभी तक समान स्तर तक नहीं पहुंच पाई है।

वर्ष 2017 में 22 फीसदी से अधिक महिलाओं के पास डेबिट कार्ड का स्वामित्व नहीं था, जबकि पुरुषों के लिए यह आंकड़े 43 फीसदी रहे हैं, जैसा कि ‘ग्लोबल फाइंडेक्स’ के आंकड़ों से पता चलता है। इसी प्रकार, 35 फीसदी पुरुषों ने कहा कि 2017 में उन्होंने डिजिटल भुगदान किया है या पाया है, जबकि महिलाओं के लिए यह आंकड़े 22 फीसदी रहे हैं।

बहुत सरल ढंग से जमा और निकासी की व्यवस्था से परे, महिलाओं और समाज के हाशिए वाले वर्गों का औपचारिक बैंकिंग क्षेत्र के साथ जुड़ाव के निम्न स्तर यह बताते हैं कि सार्वभौमिक खाता स्वामित्व आवश्यक रूप से वित्तीय समावेशन या बैंकिंग सेवाओं का प्रभावी ढंग से उपयोग करने की क्षमता के बराबर नहीं है।

चौथे राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण आंकड़ों के मुताबिक, 2015-16 में, 53 फीसदी महिलाएं अपने नाम पर बैंक खाते का इस्तेमाल करती थीं।

वित्तीय साक्षरता ओईसीडी, एक अंतर सरकारी आर्थिक संगठन, "जागरूकता, ज्ञान, कौशल, दृष्टिकोण और व्यवहार को अच्छे वित्तीय निर्णय लेने के लिए आवश्यक व्यवहार" के रूप में परिभाषित किया गया है।

विशेष रूप से ग्रामीण महिलाओं के लिए, उच्च शिक्षा और पुरुष वर्चस्व वाली सामाजिक संरचनाओं की कमी जैसे वित्तीय साक्षरता में बाधाएं अभी भी बनी हुई हैं।

तमिलनाडु में ग्रामीण महिलाओं के 2017 के अध्ययन के मुताबिक कोर बैंकिंग सेवाओं, ऑनलाइन बैंकिंग और बैंकों की क्रेडिट सुविधाओं के ज्ञान को समझने के स्तर बहुत कम थे। हालांकि सर्वेक्षण की गई महिलाओं ने विभिन्न बैंक खाता प्रकारों और उनके द्वारा प्रदान की जाने वाली ब्याज दर को बेहतर ढंग से समझा। इन वाणिज्यिक सेवाओं की समझ की कमी के कारण अधिकांश किसी भी बचत या निवेश की तुलना में सोने में निवेश करना चाहती हैं।

निशांत के. कहते हैं, "महिला भागीदारी में सुधार करने का एक दिलचस्प समाधान ग्रामीण क्षेत्रों में बैंकिंग एजेंटों के रूप में अधिक महिलाओं की भागीदारी हो सकती है।"

एक वित्तीय समावेशन परामर्श फर्म ‘माइक्रोसेव’ द्वारा मई 2018 के अध्ययन का हवाला देते हुए निशांत के. ने कहा, "वर्तमान में, 8 फीसदी बैंकिंग एजेंट महिलाएं हैं और तीन क्षेत्रों में ग्रामीण इलाकों में काम करती हैं; यह शायद इंगित करता है कि वे वित्तीय सेवाओं में भागीदारी के आसपास लिंग असंतुलन को कम करने में सक्षम हैं।"

वित्तीय सेवाओं का उपयोग करने की क्षमता और वित्तीय जोखिम के प्रबंधन के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाया जा सकता है और शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल खर्च के लिए बचत में वृद्धि हो सकती है।

हालांकि, अकेले खाता स्वामित्व वित्तीय समावेशन के बराबर नहीं है। पहले से ही जिन महिलाओं के पास बैंक खाते नहीं थे, उनका एकांउट खुल जाने के बाद भी उनके जीवन में बहुत सुधार नहीं दिखा है।

हालांकि आंकड़ों से पता चलता है कि खाता स्वामित्व 2014 से 79 फीसदी बढ़ गया है लेकिन घरेलू सशक्तिकरण संकेतक, जैसे घरेलू दुर्व्यवहार के स्तर या प्रजनन स्वास्थ्य तक पहुंच में सुधार नहीं हुआ है।

कई संकेतकों में गिरावट देखी गई है। इसका सीधा मतलब है कि महिलाओं के सशक्तिकरण के स्तर में सुधार नहीं हुआ है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक, प्रजनन आयु वर्ग में केवल 53.5 फीसदी महिलाएं 2015-16 में गर्भनिरोधक के आधुनिक तरीकों का उपयोग करती हैं। 2005-06 में यह आंकड़े 56.3 फीसदी थे, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जनवरी 2018 की रिपोर्ट में बताया है। 2015-16 में, 28.8 फीसदी विवाहित महिलाओं को पारस्परिक हिंसा का सामना करना पड़ा है। ग्रामीण इलाकों में यह आंकड़ा 31.1 फीसदी है।

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( संघेरा लंदन के किंग्स कॉलेज से स्नातक हैं और इंडियास्पेंड के साथ इंटर्न हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 17 मई, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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