पब्लिक लाइब्रेरी पर कितना खर्च करता है भारत?
बेंगलुरु: हाल ही में बेंगलुरु के दौरे पर, हमने पाया कि जस्टबुक की एक शाखा को, (जस्टबुक-एक निजी ऋण लाइब्रेरी श्रृखंला) एक एकांत जगह से स्थानांतरित कर उत्तरी बेंगलुरु के कल्याण नगर में पास ही के पार्क के सामने कर दिया गया है। पहले वाला स्थान बहुत ज्यादा लोगों को आकर्षित नहीं करता था। नई जगह पर हर आयु वर्ग के लोग आते हैं। उनमें से कई पार्क आने वाले लोग थे, जिनका ध्यान पहली बार लाइब्रेरी की ओर गया और वे लाइब्रेरी आने लगे।
यहां यह भी गौर करने की बात है कि ‘जस्टबुक’ जैसे मॉडल निजी निवेश के माध्यम से लाइब्रेरी की जिस संस्कृति को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं, उस संस्कृति को विस्तार देने के लिए सार्वजनिक लाइब्रेरियों से हमारी अपेक्षा थी कि सभी के लिए सूचना संसाधनों तक जानकारी और पहुंच प्रदान करने के लिए मुफ्त और खुला स्थान हो।
बदलते समय के साथ अपनी सुविधाओं को निरंतर उन्नत और बेहतर बनाने के लिए सार्वजनिक लाइब्रेरियों को अच्छी तरह से वित्त पोषित भी किया जाना था, जैसा कि हमने अपने 2018 के पेपर, ‘ए पॉलिसी रिव्यू ऑफ पब्लिक लाइब्रेरिज इन इंडिया’, में लिखा था। लाइब्रेरी उपकर या सार्वजनिक लाइब्रेरी कर, स्थानीय सरकार, नगर निगम या ग्राम पंचायत को दिए गए संपत्ति कर का अधिभार उन्हें वित्तपोषित करने के लिए था। लेकिन सवाल यह उठता है कि भारत वास्तव में अपने सार्वजनिक लाइब्रेरी पर कितना पैसा खर्च कर रहा है?
हमने सार्वजनिक लाइब्रेरी के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद, सूचना का अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के तहत एक आवेदन दायर किया तो सार्वजनिक लाइब्रेरी पर प्रति व्यक्ति व्यय पर कोई आधिकारिक दस्तावेज उपलब्ध नहीं था। आरटीआई को संस्कृति मंत्रालय से देश के कई केंद्रीय पुस्तकालयों के लिए पुनर्निदेशित किया गया, जिनमें कोलकाता के बेल्वदर इस्टेट में ‘नेशनल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया’, ‘दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी’, और कोलकाता का ‘राजा राममोहन रॉय लाइब्रेरी फाउंडेशन’ (आरआरआरएलएफ), शामिल है। हालांकि, कोई भी जानकारी उपलब्ध नहीं थी। जबकि कुछ लाइब्रेरी अपने व्यक्तिगत व्यय का विवरण प्रदान करने में सक्षम थे। वार्षिक राष्ट्रीय सार्वजनिक लाइब्रेरी व्यय पर कोई जानकारी नहीं थी।
भारत में सार्वजनिक लाइब्रेरी
पहला सार्वजनिक पुस्तकालय अधिनियम, ‘मद्रास पब्लिक लाइब्रेरी अधिनियम’ वर्ष 1948 में पारित किया गया था। इसका लक्ष्य सार्वजनिक पुस्तकालय सेवाओं की पेशकश के लिए, जनता के लिए और जनता द्वारा वित्त पोषित कानूनी प्रावधान पेश करना था।
भारत का सार्वजनिक लाइब्रेरी आंदोलन बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव तृतीय गायकवाड़, अमेरिकी पुस्तकालय प्रशासक विलियम एलानसन बोर्डेन, और गणितज्ञ और लाइब्रेरियन एस आर रंगनाथन द्वारा, 19 वीं सदी के अंत में शुरू हुआ था। यह आंदोलन केरल और आंध्र प्रदेश जैसे कई राज्यों में साक्षरता विकास के लिए पूर्व-स्वतंत्रता सामाजिक आंदोलनों का हिस्सा था और इसमें आंध्र प्रदेश में एक नाव-पुस्तकालय और तत्कालीन मद्रास राज्य में बैलगाड़ी पर किताबें जैसी पहल शामिल थीं।
बेंगलुरु के विजयनगर पब्लिक लाइब्रेरी में एक ‘लाइब्रेरी प्रदर्शनी’।
स्वतंत्रता के बाद, सार्वजनिक लाइब्रेरी के लिए कुछ सरकारी पहल हुई थीं, जैसे कि ‘नेशनल मिशन ऑन पब्लिक लाइब्रेरीज’,शिक्षा और सहायता के लिए पंचवर्षीय योजनाओं के हिस्से के रूप में स्कूल लाइब्रेरी सेवाओं में सुधार, प्रशिक्षण और विकास के उद्देश्य से पुस्तकालय कार्यक्रमों के लिए ‘आरआरआरएलएफ’ द्वारा अनुदान का प्रावधान। गांवों और तालुकों में कुछ सार्वजनिक लाइब्रेरियों को भी इमारतों के निर्माण और सुविधाओं के रखरखाव में वित्तीय सहायता दी गई है। हालांकि, इन कार्यक्रमों को संस्कृति मंत्रालय द्वारा ठोस प्रयासों के साथ नहीं अपनाया गया है, जो भारत के राष्ट्रीय पुस्तकालय और भारत के राष्ट्रीय अभिलेखागार का प्रबंधन करता है।
कई पुस्तकालय बिना किसी कार्यक्रम के खराब स्थिति में हैं,उदाहरण के लिए, लिव मिंट ने मई 2013 में बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में एक खराब कामकाजी जिला लाइब्रेरी पर रिपोर्ट किया था, जिसमें 12,000 फटी-पुरानी किताबें रखी गई थीं। वो किताबें एक लाइब्रेरियन द्वारा प्रबंधित की जाती थी, जिसे प्रति माह 700 रुपये का भुगतान किया जाता था, जो कि एक मध्यम रेस्त्रां में एक दिन खाना खाने की लागत के बराबर है। फिर भी, कई छात्र अपनी परीक्षा के लिए पढ़ाई करने के उद्धेश्य से रोजाना लाइब्रेरी जाते थे।
2011 की जनगणना के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में 70,817 लाइब्रेरी और शहरी क्षेत्रों में 4,580 लाइब्रेरी थे, जो क्रमशः 83 करोड़ और 37 करोड़ से अधिक की जनसंख्या के लिए थे, जहां पहली बार लाइब्रेरी को अधिसूचित (आधिकारिक रूप से पहचाना गया) किया गया था। इस संख्या पर लगभग 11,500 लोगों के लिए एक ग्रामीण लाइब्रेरी और 80,000 से अधिक लोगों के लिए एक शहरी लाइब्रेरी की स्थिति बनती है। हालांकि, इन लाइब्रेरी की कार्यक्षमता और सेवा क्षमताओं के स्तर पर कोई सटीक जानकारी नहीं है - ग्रामीण पुस्तकालय में कुछ पुस्तकों के साथ एक कमरा हो सकता है, जबकि अन्य निजी दाताओं या गैर सरकारी संगठनों के समर्थन से चल रहे हो सकते हैं।
Source: Census of India 2011, District Census Handbooks
2014 में ‘नेशनल मिशन ऑन लाइब्रेरी’ के शुभारंभ के बाद,जिसका उद्देश्य मॉडल लाइब्रेरी की स्थापना, क्षमता निर्माण और विस्तृत सर्वेक्षण का कार्य करके एक अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र का विकास करना था, संस्कृति मंत्रालय ने सार्वजनिक लाइब्रेरी प्रणाली की प्रथाओं और प्रदर्शन का अध्ययन करने के लिए पुस्तकालयों की एक और आधिकारिक जनगणना की। यह 'पुस्तकालय के गुणात्मक और मात्रात्मक सर्वेक्षण' के रूप में सामने आया और 5,000 पुस्तकालयों के आधारभूत डेटा की तैयारी के साथ शुरू हुआ। हालांकि, 2014 के बाद से निष्कर्षों पर कोई अपडेट नहीं हुआ है, और सर्वेक्षण के परिणाम स्पष्ट नहीं हैं। संख्याएं भी विरोधाभासी प्रतीत होती हैं, जैसा कि वर्तमान में ‘नेशनल मिशन ऑफ लाइब्रेरीज’ के रिकॉर्ड के अनुसार भारत के पंजीकृत लाइब्रेरी की कुल संख्या 5,478 है, लेकिन अन्य सर्वेक्षणों में यह संख्या बहुत अधिक है।
सार्वजनिक लाइब्रेरी का कामकाज
भारत में, सार्वजनिक लाइब्रेरी के लिए कोई समान, देशव्यापी प्रशासन प्रणाली नहीं है।
सार्वजनिक लाइब्रेरी स्थानीय प्रशासनिक निकायों, जैसे नगर निगमों या ग्राम परिषदों के करों का उपयोग करके राज्य सरकारों द्वारा चलाए जाते हैं। भारत के 29 राज्यों और सात केंद्र शासित प्रदेशों में से 19 राज्यों ने ‘राज्य लाइब्रेरी कानून’ पारित किया है, जिनमें से केवल पांच में लाइब्रेरी उपकर या कर लगाने का प्रावधान है।
Source: Respective state library acts
कम साक्षरता दर वाले राज्यों में हाल के वर्षों तक लाइब्रेरी कानून नहीं था-बिहार और छत्तीसगढ़ ने 2008 में और अरुणाचल प्रदेश में 2009 में कानून पारित किया, फिर भी दोनों अभी भी बिना पुस्तकालय उपकर के हैं।
राज्य स्तर पर, सार्वजनिक लाइब्रेरी का प्रबंधन करने वाले कई विभाग हैं - तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में, लाइब्रेरी को सार्वजनिक लाइब्रेरी के विभाग द्वारा विनियमित किया जाता है; त्रिपुरा और हरियाणा में, लाइब्रेरियो का प्रबंधन शिक्षा विभाग द्वारा किया जाता है, जबकि मिज़ोरम और गोवा में वे कला और संस्कृति विभाग की जिम्मेदारी है।
स्थानीय लाइब्रेरी अधिकारियों को जनता के लिए उपलब्ध पुस्तकालय सेवाओं के खर्च और प्रावधान को रिकॉर्ड करना और प्रकाशित करना है, लेकिन हमने पाया कि अधिकांश ऐसा नहीं करते हैं।
कुछ जिले, जैसे तमिलनाडु में वेल्लोर, अपनी जिला सांख्यिकीय पुस्तिका में सालाना सार्वजनिक लाइब्रेरी के बारे में आंकड़े प्रकाशित करते हैं, जो इन जिलों की वेबसाइटों पर भी उपलब्ध है। यदि सभी जिलों के लिए ऐसी जानकारी उपलब्ध थी, तो यह इस महत्वपूर्ण सेवा के बारे में जनता को सूचित करने में एक लंबा रास्ता तय करना होगा।
सार्वजनिक लाइब्रेरी की समुचित कार्य के लिए वित्तीय स्वायत्तता अनिवार्य है। लाइब्रेरी कर आंकड़े एकत्र करने वाले पांच राज्यों को छोड़कर ( तमिलनाडु, संयुक्त आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल और गोवा (मानचित्र देखें) ) अन्य 14 राज्य कानूनों में सार्वजनिक लाइब्रेरियों के लिए वित्तीय सुरक्षा के लिए कोई उपाय नहीं है। इससे पुस्तकालयों के लिए अपनी सेवाओं का विस्तार करना मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, कई राज्यों में कम खर्च बनाम उच्च आबादी का मतलब है कि पुस्तकालयों की संख्या पूरी आबादी को कवर करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जैसा कि द इंडियन एक्सप्रेस ने 31 मई, 2017 को बताया था। स्रोत: वेल्लोर डिस्ट्रिक्ट स्टैटिस्टिकल हैंडबुक, 2016-2017
साक्षरता और सार्वजनिक लाइब्रेरियों का विकास
साक्षरता विकास कला, संस्कृति और लाइब्रेरियों पर सार्वजनिक खर्च से जुड़ा हुआ है। भारत में, 1951 से साक्षरता दर लगातार बढ़ी है; हालांकि, सार्वजनिक लाइब्रेरी की संख्या, उनका विस्तार और कवरेज साथ-साथ विकसित नहीं हुआ है।
Source: Census of India, 2011
अध्ययनों से पता चला है कि लाइब्रेरियों पर खर्च करने की राज्य की क्षमता और ऐसा करने की इच्छा के बीच कोई संबंध नहीं है।
लाइब्रेरियों पर खर्च करने की राज्य की क्षमता और इसे प्राप्त होने वाले धन और लाइब्रेरियों पर खर्च करने की उसकी इच्छा के बीच सीधा संबंध नहीं हो सकता है, जैसा कि लाइब्रेरी राज्य की शिक्षा और साक्षरता नीतियों पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, दक्षिणी राज्यों, विशेष रूप से तमिलनाडु और कर्नाटक में, हमेशा सार्वजनिक लाइब्रेरी के विकास का उच्च स्तर रहा है, प्रत्येक में लगभग 2,000 लाइब्रेरी हैं (नीचे डेटा देखें), जो कि बिहार में पुस्तकालयों की संख्या से बहुत अधिक है, जबकि बिहार की आबादी अधिक है।लेकिन इन राज्यों को इस उद्देश्य के लिए हमेशा केंद्र सरकार की बड़ी सहायता नहीं मिली है। दूसरी ओर, कई राज्य सार्वजनिक लाइब्रेरी के विकास के लिए केंद्र से धन प्राप्त करने में भी असफल रहे हैं।
Source: IndiaStat, 2012
अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य यूरोपीय देशों में सार्वजनिक लाइब्रेरी बड़ी आबादी को कवर करने के लिए लाइब्रेरी संसाधनों का उपयोग करते हैं।अमेरिका में, उदाहरण के लिए, सार्वजनिक लाइब्रेरी प्रणाली कुल आबादी का 95.6 फीसदी तक सेवाएं प्रदान करती है और प्रति व्यक्ति $ 35.96 प्रति वर्ष खर्च करती है, जबकि भारत में सार्वजनिक पुस्तकालयों के विकास पर प्रति व्यक्ति व्यय 7 पैसे है।अमेरिका में पुस्तकालयों के लिए वित्त पोषण मुख्य रूप से स्थानीय है - 80 फीसदी धन राष्ट्रीय परिषद के बजाय स्थानीय परिषदों से आता है।
425 पुस्तकालयों के सर्वेक्षण के अनुसार, यूरोप में सार्वजनिक पुस्तकालयों के लिए बजट का 83 फीसदी स्थानीय नगर पालिकाओं से आता है। अफ्रीका, एशिया और दक्षिण अमेरिका के कई विकासशील देश कम खर्च करते हैं या सार्वजनिक लाइब्रेरी पर उनके प्रति व्यक्ति खर्च पर कम आंकड़े हैं।
उदाहरण के लिए, 2008 में जारी किए गए ‘उन्नुमा ओपारा’ के एक अध्ययन के अनुसार, नाइजीरिया में, सार्वजनिक पुस्तकालयों पर खर्च लगभग एनजीएन 5.00 (अमेरिका में लगभग 4 सेंट) है।
Source: Susannah et al. 2013; ALIA, 2016; ILMS, 2016; The Legislative Council Commission, 2016; Sethumadhavrao, 2016Public libraries are regarded by scholars as far more than a repository for books. They are seen as a landmark, a catalyst for urban development, a space for social interaction and a vital hub of the public domain as an experience. In today’s information age, libraries in many countries are exploring, along with traditional library services, a range of activities such as hosting of events, digital services, engagement with the public especially with neglected communities that need support, and creating a knowledge economy that can give access to education.
भारत में लाइब्रेरियों के व्यापक रुप से कार्य करने के लिए,सार्वजनिक लाइब्रेरी में निवेश को बढ़ाया जाना चाहिए, जबकि लाइब्रेरियो द्वारा प्रदान की जाने वाली कार्यप्रणाली और सेवाओं को व्यवस्थित रूप से बेहतर बनाने के लिए ठोस प्रयास करना चाहिए।
( ‘ए पॉलिसी रिव्यू ऑफ पब्लिक लाइब्रेरिज इन इंडिया’ में इस लेख के लेखकों द्वारा इसी विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट लिखा गया था। )
(बालाजी और विनय बेंगलुरु में ‘आईआईएचएस लाइब्रेरी टीम’ के सदस्य हैं। मोहन राजू आईआईएचएस में एक्सटर्नल कंस्लटेंट हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 22 जून 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है
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