भारत की दौलत बढ़ रही है, साथ में गैर-बराबरी भी
“पूरी दुनिया में लोगों की दौलत के बीच भयंकर असमानता है। वर्ष 2014 की शुरुआत में ऑक्सफैम ने अनुमान लगाया कि इस ग्रह के 85 सबसे धनी लोगों के पास दुनिया की आधी सबसे गरीब आबादी के बराबर संपत्ति है। मार्च 2013 से मार्च 2014 के दौरान ये 85 लोग रोजाना 668 मिलियन डॉलर धनी हुए।”
भारत की स्थिति भी कुछ अलग नहीं है।
एशियाई विकास बैंक के एक अध्ययन के मुताबिक, गैर-बराबरी को मापने में इस्तेमाल होने वाला Gini coefficient सन 1993 से 2009-10 के दौरान 33 से बढ़कर 37 पर पहुंच गया है। इस गुणांक की संख्या जितनी बड़ी, आमदनी के बीच फासला भी उतनी ही ज्यादा होता है।
सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के तहत नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) द्वारा इकट्ठा किए जाने परिवारों के उपभोग पर खर्च के आंकड़ों के जरिए भी आय में असमानता को समझा जा सकता है। नीचे दी गई सारणी वर्ष 2004-05 से 2011-12 के दौरान ग्रामीण और शहरी आय में अंतर को दर्शाती है।
Source: Lok Sabha
भारत में गैर-बराबरी बढ़ रही है। न केवल शहरी और ग्रामीण इलाकों में बल्कि इनके भीतर भी।
निम्नतम 10 फीसदी आबादी की आय वर्ष 2004-05 में 227.8 रुपये से बढ़कर 2011-12 में 503.5 रुपये हुई। इसी अवधि में टॉप 10 फीसदी लोगों की आय 1,478 रुपये से बढ़कर 3,460 रुपये तक पहुंच गई।
शहरी क्षेत्रों में भी यही स्थिति है।
सबसे निचले तबके के पास गैर-बराबरी के दुष्परिणामों से बचाव के लिए सामाजिक सुरक्षा का ही सहारा है। गरीबी और असमानता दूर करने में सामाजिक सुरक्षा की योजनाएं अहम भूमिका अदा करती हैं। ऐसी योजनाएं उत्पादकता और पूंजी को बढ़ावा देकर समावेशी विकास में मददगार होती है, घरेलू मांग को बढ़ाती हैं और देश की अर्थव्यवस्था में बदलाव में सहायक होती हैं।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की एक रिपोर्ट के अनुसार अभी विश्व की सिर्फ 27 फीसदी आबादी तक व्यापक सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था की पहुंच है जबकि 73 फीसदी आबादी आंशिक तौर पर इसके दायरे में आती है।
इस मामले में भारत का प्रदर्शन और भी खराब है।
Source: ILO
सामाजिक खर्च पर ग्लोबल औसत जीडीपी का 8.8 फीसदी है। ब्रिक्स देशों में भारत सरकारी खर्च का सबसे कम 2.5 फीसदी हिस्सा सामाजिक सुरक्षा पर खर्च करता है जबकि ब्राजील 2010 तक सबसे ज्यादा 21.2 फीसदी खर्च करता है। भारत से ज्यादा आबादी वाला चीन अपने कुल खर्च का 6.5 फीसदी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर खर्च करता है।
आइए देखते है कि केंद्र और राज्य स्तर पर भारत में सामाजिक सुरक्षा किस तरह खर्च हो रहा है।
अच्छी खबर यह है कि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर केंद्र और राज्यों का खर्च 1995-96 से 2010-11 के बीच 4.42 फीसदी से बढ़कर 5.25 फीसदी तक पहुंच गया है। इन आंकड़ों में सामाजिक सुरक्षा पर होने वाले पूरे खर्च को केंद्र व राज्यों की जीडीपी के प्रतिशत के तौर पर दर्ज किया गया है।
केंद्र सरकार जीडीपी का सिर्फ 1.72 फीसदी सामाजिक सुरक्षा पर खर्च करती है जबकि राज्य अपनी जीडीपी का 3.5 फीसदी सामाजिक सुरक्षा पर खर्च करते हैं।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण के बाद सबसे ज्यादा हिस्सा शिक्षा को मिलता है। सामाजिक सुरक्षा और कल्याण पर जीडीपी के प्रतिशत के तौर पर खर्च 1995-96 में 0.25 फीसदी से बढ़कर 2010-11 में 0.59 फीसदी तक बढ़ा है। ऐसा श्रम संबंधी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (MGNREGA) और स्वास्थ्य बीमा की राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (RSBY) जैसी योजनाओं के चलते संभव हो पाया है।
सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का फायदा किन तक पहुंच रहा है, आइए एक नजर डालें
Source: ILO
वृद्धावस्था पेंशन योजना का लाभ उठाने वाले चार में से करीब एक व्यक्ति 60 साल से ऊपर का है। बेरोजगारों की चिंताएं भी कम नहीं हैं क्योंकि सिर्फ 3 फीसदी लोगों को इससे जुड़ी योजनाओं का लाभ मिलता है। सामाजिक बीमा और हेल्थ संबंधी अन्य याेजनाएं भी बस लड़खड़ाते हुए चल रही हैं।
12वीं पंचवर्षीय योजना के अनुसार सामाजिक सुरक्षा की योजनाओं का दायरा बढ़ाने के लिए इन पर होने वाला खर्च केंद्र की जीडीपी के 4.37 फीसदी तक बढ़ना चाहिए। इस बीच यूनेस्कोने सुझाव दिया है कि सरकार को टैक्स का आधार और बोझ बढ़ाना चाहिए, टैक्स छूट और दरों की समीक्षा करनी चाहिए और बेहतर कर प्रशासन व टैक्स शिकायतों के समाधान की बेहतर व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए जिससे कि सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों को फंड किया जा सके।
बढ़ती असमानता के साथ सरकार को सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों पर खर्च बढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है लेकिन सीमित संसाधनों और बढ़ते राजकोषीय घाटे ऐसा करना आसान नहीं है।
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