भारत की नकदी की जरुरत और नकदी की कमी
नागांव: 17 अप्रैल, 2018 को असम के नागांव जिले में एटीएम के बाहर इंतजार करते लोग। पिछले कुछ हफ्तों में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और मध्य प्रदेश में मुद्रा की कमी की सूचना मिली है। महाराष्ट्र, गुजरात और बिहार के कुछ हिस्सों में भी कमी की शिकायतें थीं।
मुंबई: भारत के मुद्रा भंडार ने नकदी का तालमेल भारतीय जरूरतों के साथ नहीं रखा है, और ऐसा कोई आरक्षित निधि नहीं है, जो देश की मांगों में अचानक आई मुश्किलों से निपटने में मदद करे। हाल में कई राज्यों में मुद्रा की भारी कमी देखी गई है, जैसा कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़ो पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण से पता चलता है।
ये मुद्रा भंडार भारत की औसत आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त होना चाहिए था – अगर भारतीयों ने 8 नवंबर, 2016 को मूल्य के आधार पर देश की 86 फीसदी मुद्रा को अमान्य घोषित करने के बाद डिजिटल लेन-देन को अपनाया होता।
मार्च, 2018 में भारतीयो के लिए मुद्रा बैंक में 1.9 लाख करोड़ रुपये कम थे, जैसा कि 18 अप्रैल, 2018 को भारत के सबसे बड़े बैंक, भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की रिपोर्ट में कहा गया है। बैंक के अध्यक्ष ने 17 अप्रैल, 2018 को इस तरह की कमी से इंकार किया था, जो कि इस मुद्दे की राजनीतिक संवेदनशीलता को बताता है।
डिजिटल लेनदेन के लिए अस्थायी आंकड़ों के ( बिक्री के बिंदु पर डेबिट और क्रेडिट कार्ड लेनदेन के लिए चार बैंकों से, सामान और सेवाओं के लेनदेन के लिए आठ जारीकर्ताओं द्वारा जारी प्रीपेड भुगतान उपकरण, अनुमोदित लेनदेन के लिए राष्ट्रीय स्वचालित समाशोधन घर, वास्तविक समय सकल निपटान, जांच छंटनी प्रणाली, तत्काल भुगतान सेवा, एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस ) जो संकेतक हैं, उसमें एक गिरती हुई प्रवृत्ति दिखती है।
तब से डिजिटल लेन-देन बढ़े, लेकिन मार्च, 2017 में 149 लाख करोड़ रुपये (मूल्य में) के चरम पर, फरवरी 2018 में वे 22 फीसदी घटकर 115 लाख करोड़ रुपये हो गए हैं । इसका मतलब यह है कि भारतीय या तो नकदी लेन-देन छोड़ने के इच्छुक नहीं हैं और कई इलाकों में बैंकिंग सिस्टम की कनेक्टिविटी सीमित है और निरक्षरता या डिजिटल माध्यमों का उपयोग करने में असमर्थता भी कारण है।
जैसा कि हमने कहा, डिजिटल लेन-देन लगातार मात्रा में बढ़ी है। नोटबंदी के बाद, अस्थायी आंकड़े बताते हैं कि डिजिटल लेन-देन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जनवरी 2018 में 1,122 मिलियन से अधिक लेन-देन तक पहुंच गया,जो कि नवंबर 2016 के बाद से उच्चतम रहा है, फरवरी 2018 में 2 फीसदी नीचे रहा है।
डिजिटल भुगतान, नवंबर 2016 से फरवरी 2018
Source: Reserve Bank of India
Note: Digital payments does not include mobile banking figures. Data are indicative, and from only a few institutions as explained above.
नकदी की कमी, कई कहानी
पांच से अधिक राज्यों ( उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक ) के कई क्षेत्रों में स्वचालित टेलर मशीन (एटीएम) में नकदी की कमी हुई थी।
मुद्रा मांग में अचानक वृद्धि का कारण कर्नाटक में आने वाले राज्य चुनाव, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में राज्य सरकार की योजनाओं में नकद भुगतान, वित्तीय संकल्प की गलतफहमी और जमा बीमा विधेयक की 'जमानत' खंड को बताया गया है, जो सुझाव देते हैं कि बैंक द्वारा किए गए किसी भी नुकसान का एक हिस्सा जमाकर्ता सहन करते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों से पता चलता है कि अप्रैल, 2015 में 2 लाख करोड़ रुपये की तुलना में फरवरी, 2018 में एटीएम से नकद निकासी 2.47 लाख करोड़ रुपये के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।
एटीएम नकद निकासी, 2016-2018
अप्रैल 2017 में मासिक एटीएम नकद निकासी 2.17 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर दिसंबर 2017 में 2.64 लाख करोड़ रुपये का उच्चतम स्तर तक पहुंचा और फरवरी 2018 में जब नकदी की कमी ने आपूर्ति को प्रभावित करने लगा, तो गिरकर 2.47 लाख करोड़ रुपये पर आ गया।
एटीएम नकद निकासी, 2017-18
कुछ रिपोर्ट (यहां और यहां) बताते हैं कि आरबीआई बैंकों को 2,000 रुपये का नोट नहीं दे रहा है। इसलिए, एटीएम अपनी क्षमता से का आधा काम कर रहे हैं।
एक एटीएम चार कैसेट में 65 लाख रुपये रख सकता है, जिसमें से एक कैसेट के पास 2,000 नोट, दो कैसेट के पास 500 नोट और एक के पास 100 रुपये होते हैं, जैसा कि ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ ने 18 अप्रैल, 2018 को बताया है। बैंकर्स ने आरबीआई को दोषी ठहराते हुए कहा कि बैंकों के द्वारा अधिक मुद्रा की मांग के बावजूद पर्याप्त नकदी की आपूर्ति नहीं हो पा रही है।
डेटा पत्रकारिता पोर्टल, Factly, के संस्थापक राकेश दुब्बुडू द्वारा सूचना के अधिकार के लिए अपील से प्राप्त एसबीआई द्वारा जवाब के आधार पर, तेलंगाना के विश्लेषण के मुताबिक, " सितंबर, 2017 के बाद से भारतीय रिजर्व बैंक से भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) खजाने में नकदी की आपूर्ति में काफी कमी आई है। "
Factly के विश्लेषण में कहा गया है कि " नवंबर 2016 और अगस्त 2017 के बीच 1,795 करोड़ रुपये की औसत मासिक आपूर्ति की तुलना में सितंबर 2017 और जनवरी 2018 के बीच पांच महीनों में औसत मासिक आपूर्ति 629 करोड़ रुपये या एक तिहाई है। "
विश्लेषण में पाया गया है कि, आरबीआई ने अप्रैल और नवंबर 2017 के बीच राज्य में एसबीआई खजानों को कोई नया 2,000 नोट नहीं दिया था। अक्टूबर और दिसंबर 2017 के बीच 500 रुपये की कोई भी आपूर्ति नहीं की गई थी।
‘द हिंदू’ ने 11 अप्रैल, 2018 को बताया, "25 महीनों के दौरान जिसके लिए डेटा प्रदान किया गया था, आपूर्ति पिछले साल जुलाई में 5,377 करोड़ रुपये पर था। स्पेक्ट्रम के दूसरे छोर पर, सितंबर 2016 में आपूर्ति शून्य थी।"
परिसंचरण बाधा है !
परिसंचरण में मुद्रा ( बैंकों के साथ जनता और नकदी के साथ मुद्रा के सहित ) अप्रैल 2017 में 13.8 लाख करोड़ रुपये के मुकाबले 30 मार्च, 2018 के अंत में 18.3 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
परिसंचरण में मुद्रा और जनता के बीच मुद्रा, 2016-2018
Source: Reserve Bank of India 1, 2
30 मार्च, 2018 के अंत में जनता के साथ मुद्रा भी 17.5 लाख करोड़ रुपये हो गई है, जबकि वित्तीय वर्ष 2017-18 की शुरुआत में यह 13.2 लाख करोड़ रुपये थी।
सरकार ‘कथित कमी’ के अंतर को कम करने के लिए 500 रुपये के नोट प्रिंट करेगी और भविष्य की मांग को पूरा करेगी, जैसा कि आर्थिक मामलों के सचिव सुभाष गर्ग को 18 अप्रैल, 2018 को ‘द इकोनॉमिक टाइम्स’ की रिपोर्ट में उद्धृत किया गया था।
The government has ramped up printing of currency notes and is operating all the four presses 24x7, says official. https://t.co/8W1a4FAG1i
— The Hindu (@the_hindu) April 19, 2018
हालांकि, जैसा कि हमने कहा, एक एसबीआई शोध दल ने कहा कि ‘ इनकम वलासिटी ‘( जीडीपी के पैसे की आपूर्ति के लिए ) जनता के साथ मुद्रा के आधार पर, अक्टूबर में 0.93 से मार्च में 0.84 हो गया है।
"यह इंगित करता है कि उच्च मूल्य / 2,000 रुपये की मुद्रा अर्थव्यवस्था में पर्याप्त रूप से प्रसारित नहीं हो रहा है," जैसा कि अप्रैल 2018 एसबीआई रिपोर्ट, ‘ द (नॉन) जेनयूटी ऑफ कैश क्रंच’ में कहा गया है, जिसका हमने पहले उल्लेख किया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्तीय वर्ष 2016-17 और वित्तीय वर्ष 2017-18 में नाममात्र सकल घरेलू उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद) 10.8 फीसदी और 9.8 फीसदी की वृद्धि के आधार पर, मार्च 2018 तक जनता के साथ मुद्रा 19.4 लाख करोड़ रुपये होनी चाहिए।
"हालांकि, जनता के साथ मुद्रा 17.5 लाख करोड़ रुपये है, जो 1.9 लाख करोड़ रुपये का अंतर दिखाती है। भुगतान के डिजिटल तरीके में वृद्धि मौजूदा अंतर के कुछ हिस्से को क्षतिपूर्ति करती है। डिजिटल मोड में बदलाव कम से कम 1.2 लाख करोड़ रुपये हो सकता है। इस प्रकार स्पष्ट कमी 70,000 करोड़ रुपये या इससे भी कम हो सकती है।"
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 19 अप्रैल 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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