भारत के 37 फीसदी जिलों में सूखे जैसी स्थिति
नई दिल्ली: भारत के 251 जिलों में सूखे की संभावना है। इनमें से ज्यादातर जिले पूर्व, पूर्वोत्तर और दक्षिण में हैं। यह जानकारी 2018 के लिए वर्षा आंकड़ों पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण में सामने आई है।
वर्षा की कमी के कारण, कर्नाटक ने कुल 30 जिलों में 23 जिलों को सूखा-प्रभावित जिला घोषित किया है। आंध्र प्रदेश ने छह जिलों में से 274 ब्लॉक को गंभीर रुप से सूखा प्रभावित घोषित किया है। जैसलमेर और बाड़मेर जिलों में सामान्य से 60 फीसदी कम बारिश होने के साथ पश्चिमी राजस्थान एक दशक के बाद गंभीर सूखे का अनुभव कर रहा है। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ क्षेत्रों को भी सूखा जैसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। सितंबर महीने और दक्षिण-पश्चिम मानसून के आधिकारिक प्रस्थान के साथ इस साल मानसून वर्ष ‘सामान्य’ हो सकता है। 26 सितंबर, 2018 को प्रकाशित भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के नवीनतम साप्ताहिक विश्लेषण के अनुसार 1 जून, 2018 को मानसून की शुरुआत के बाद, 117 दिनों में देश में संचयी वर्षा, दीर्घकालिक औसत का 9 फीसदी था।पिछले सप्ताह 19 सितंबर तक वर्षा कम थी या -10 फीसदी थी।
भारत की वार्षिक वर्षा में 70 फीसदी हिस्सेदारी दक्षिण-पश्चिम मानसून की है। यह यहां की कृषि अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, जिसका मूल्य 18 लाख करोड़ रुपये (2016 में 250 बिलियन डॉलर) या सकल घरेलू उत्पाद (सकल घरेलू उत्पाद) का 11 फीसदी है। आईएमडी मानसून की वर्षा को किसी राज्य या जिला स्तर पर ‘कमी’ के रूप में वर्गीकृत करता है, जब इसे दीर्घकालिक औसत से 20 फीसदी से 59 फीसदी कम वर्षा प्राप्त होती है और 60 फीसदी से 99 फीसदी कम होने पर ‘गंभीर कमी’ होती है।
एक कम मानसून वर्ष तब होता है, जब देश भर में संचयी वर्षा 10 फीसदी या इससे ऊपर रहती है, जिसे एक बार 'अखिल भारतीय सूखा वर्ष' कहा जाता है।
251 जिलों में वर्षा ( भारत के जिलों में से लगभग 37 फीसदी ) 26 सितंबर, 2018 को समाप्त सप्ताह तक ‘कमी’ ज्यादा रही ‘है। मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, झारखंड, बिहार सहित 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 50 फीसदी और अधिक जिलों में कम से ‘ज्यादा कम’ तक वर्षा हुई है, जैसा कि हमारे विश्लेषण से पता चलता है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग के जलवायु पूर्वानुमान समूह के प्रमुख डी शिवानंद पाई ने इंडियास्पेंड को बताया, " हम मानसून खत्म होने की प्रतीक्षा कर हैं। प्रायद्वीप में वर्षा-कमी वाले क्षेत्रों में शेष दिनों में अधिक बारिश हो सकती है, जो वर्षा के आंकड़ों में सुधार करेगी।"
यदि सितंबर 2018 के शेष तीन दिनों में देश भर में कुल वर्षा 1 फीसदी अधिक गिर जाती है, तो यह 2002, 2004, 2009, 2014 और 2015 के बाद शताब्दी का छठा मानसून सूखा हो सकता है।
8 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में वर्षा की कमी
26 सितंबर, 2018 तक भारत को 793 मिलीमीटर (मिमी) बारिश प्राप्त हुई है, जबकि दीर्घकालिक औसत 870 मिमी है, जो 9 फीसदी की कमी को दर्शाता है, जैसा कि हमने उल्लेख किया है।
आठ राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में कम वर्षा हुई है (-20 फीसदी से -59 फीसदी)। मणिपुर (-58 फीसदी), लक्षद्वीप (-48 फीसदी), मेघालय (-40 फीसदी) और अरुणाचल प्रदेश (-31 फीसदी) ने 26 सितंबर, 2018 तक सबसे कम वर्षा दर्ज की।
अन्य वर्षा की कमी वाले राज्य हैं: गुजरात (-27 फीसदी), झारखंड (-26 फीसदी), बिहार (-23 फीसदी) और त्रिपुरा (-21 फीसदी)। असम, पश्चिम बंगाल और पांडिचेरी को -19 फीसदी बारिश मिली है और यदि सितंबर के शेष दिनों में इन राज्यों में बारिश 1 फीसदी अधिक गिर जाती है, तो वे भी कम श्रेणी में हो सकते हैं।
राज्य अनुसार वर्षा वितरण, 1 जून- 19 सितंबर 2018
Source: India Meteorological Department
बारिश, सूखा, बाढ़: सभी एक ही साथ
आईएमडी डेटा के अनुसार, 1 जून, 2018 और 19 सितंबर, 2018 के बीच, करीब 236 जिलों ( 662 जिलों में से जिसके लिए वर्षा डेटा उपलब्ध थे ) मानसून के 117 दिनों में कम वर्षा (-20 फीसदी से -59 फीसदी) प्राप्त हुई है। पंद्रह जिलों ( पूर्वोत्तर से 33 फीसदी ) में ‘गंभीर रूप से कम’ वर्षा (-60 से 99 फीसदी) प्राप्त हुई है।
जिला-वार वर्षा वितरण मानचित्र, 1 जून से 19 सितंबर, 2018
Source: India Meteorological Department
11 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में, आधे या अधिक जिले वर्षा की ‘गंभीर कमी’ के साथ सूखा जैसी स्थिति का सामना कर रहे हैं, जैसा कि आईएमडी के आंकड़ों पर किए गए हमारे विश्लेषण से पता चलता है।
अधिकांश जिले गुजरात (22), बिहार (27), तमिलनाडु (20), झारखंड (17) और कर्नाटक (17) में प्रभावित थे। लेकिन इनमें से कुछ राज्यों में भी विरोधाभासी मौसम की स्थिति थी: तमिलनाडु और कर्नाटक में सामान्य बारिश हुई और आंध्र प्रदेश में भी जहां 13 में से छह जिलों में, करीब 46 फीसदी कम बारिश हुई है। सभी तीन राज्यों ने भी अगस्त 2018 में बाढ़ का भी अनुभव किया है - तमिलनाडु के छह जिलों, कर्नाटक में सात और आंध्र प्रदेश में दो ने बाढ़ का सामना किया है।
इसी तरह, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के लगभग 52 फीसदी और 40 फीसदी जिलों ने वर्षा की ‘कमी’ से “गंभर कमी” का सामना किया है। लेकिन दोनों राज्यों में संचयी वर्षा सामान्य रही है। ये राज्य भारत के सबसे बड़े और दूसरे सबसे बड़े चावल उत्पादक हैं, जो 27 फीसदी राष्ट्रीय चावल उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं, और जो एक अच्छे मॉनसून पर महत्वपूर्ण निर्भर करता है।
पाई ने कहा कि ये असामान्य स्थितियां राज्य और जिला स्तर पर प्राप्त वर्षा में बड़ी विविधताओं के कारण होती हैं।
पाई ने कहा कि इस वर्ष मानसून की वर्षा ने बड़ी स्थानिक बदलाव दिखाई है - भारत के विभिन्न हिस्सों में या तो बारिश भारी थी या नहीं पहुंची ही नहीं रही थी।
उदाहरण के लिए, केरल को सामान्य से 24 फीसदी अधिक बारिश मिली जबकि उत्तरी कर्नाटक और रायलसीमा (आंध्र प्रदेश के चार जिलों में शामिल एक क्षेत्र) के अंदरूनी हिस्सों में -30 फीसदी से -366 फीसदी बारिश हुई (26 सितंबर, 2018 तक)।
50 फीसदी से अधिक जिलों के वर्षा की कमी का सामना करने वाले राज्य (जून 1-सितंबर, 2018)
Source: Indian Meteorological Department
Note: No data available for 3 districts in Arunachal Pradesh and 1 district in Meghalaya
भारी वर्षा घटनाओं के बीच लंबा सूखा
बिना किसी वर्षा के बदलाव के भारत ने भारी बारिश की घटनाओं में वृद्धि देखी है। पाई ने कहा जिसका मतलब है कि भारी बारिश की घटनाओं के बीच शुष्क सूखे के लंबे अंतराल होते हैं। पिछले 110 वर्षों से 2010 तक, भारत में भारी बारिश की घटनाएं प्रति दशक 6 फीसदी की बढ़ती प्रवृत्ति दिखाती हैं, जैसा कि नवंबर 2017 के एक अध्ययन में कहा गया है। इस अध्ययन के सह-लेखक पाई हैं और इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 24 अगस्त, 2018 की रिपोर्ट में विस्तार से बताया है। 4 सितंबर, 2018 को इंडियन एक्सप्रेस द्वारा किए गए एक विश्लेषण ने मानसून की प्रवृत्ति की ओर इशारा किया: बड़ी आबादी के 22 शहरों में, मानसून का 95 फीसदी वर्षा तीन से 27 दिनों में होता है, औसतन, 121-दिवसीय दक्षिणपश्चिम मानसून के दौरान। 99 घंटे या चार दिनों में, दिल्ली दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा का 95 फीसदी हिस्सा प्राप्त करता है; 134 घंटों या सिर्फ साढ़े पांच दिनों में मुंबई सालाना मानसून की वर्षा का 50 फीसदी प्राप्त करता है, जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है।
कुछ दिनों में भारी बारिश की घटना का केंद्रित होना और मानसून बारिश के अनियमित व्यवहार, आंशिक रूप से बढ़ते वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, विशेष रूप से वायुमंडल में निलंबित कणों या एयरोसोल में वृद्धि के लिए, जैसा कि 14 सितंबर, 2018 को एक पत्रिका नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित आईआईटी कानपुर वैज्ञानिकों के एक अध्ययन से पता चलता है। वायुमंडल में एयरोसोल सामग्री में वृद्धि ( जो बादलों के गठन के लिए महत्वपूर्ण ) बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण, स्थिर बादल गठन प्रणाली में हस्तक्षेप कर रहा है और वर्षा पैटर्न को प्रभावित कर रहा है जैसा कि आईआईटी कानपुर में सेंटर फॉर इन्वाइरन्मेन्टल साइंस एंड इंजीनियरिंग में प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखकों में से एक, एस.एन त्रिपाठी ने बताया है। पुणे के इंडियन इन्स्टिटूट ऑफ ट्रापिकल मीटीअरालजी में जलवायु वैज्ञानिक, रोक्सी मैथ्यू कोल ने इंडियास्पेंड को बताया, वायु प्रदूषण के अलावा, "शहरीकरण और वन कवर में परिवर्तन" भी स्थानीय स्तर पर वर्षा पैटर्न को बदलता है।
कोल कहते हैं, "आम तौर पर, पिछले छह दशकों के दौरान मानसून की प्रकृति में तेजी से बदलाव हुआ है। मध्य भारत के अधिकांश क्षेत्रों और पश्चिमी घाट के कुछ हिस्सों में कुल मानसून के दिनों में वर्षा घट रही है और चरम बारिश की आवृत्ति बढ़ रही है।"
हालांकि, भारत भर में वर्षा के रुझानों पर असर एक समान नहीं है। ऐसे क्षेत्र हैं जहां कुल बारिश और चरम बारिश बढ़ रही है, और ऐसे क्षेत्र भी हैं जहां दोनों कम हो रहे हैं।
( त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं. )
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 28 सितंबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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