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जून, 2017 में नई दिल्ली में प्रदर्शन करते किसान। अल्प कृषि आय के अलावा स्वास्थ्य देखभाल की बढ़ती लागत से किसानों के कर्ज में वृद्धि हुई है। भारत में 50 फीसदी से अधिक किसानों की आत्महत्या का मुख्य कारण कर्ज ही है।

भारत के 9 करोड़ कृषि परिवारों में से करीब 70 फीसदी औसतन हर महीने मिलने वाली आय से ज्यादा खर्च करते हैं। इससे किसानों के कर्ज में वृद्धि होती है। विभिन्न सरकारी आंकड़ों पर इंडियापेंड द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार, भारत में 50 फीसदी से अधिक किसानों की आत्महत्या की मुख्य वजह कर्ज ही है।

दक्षिण भारत के कृषि परिवार सबसे ज्यादा कर्ज में हैं। अतिरिक्त ऋण की जरूरत ने खेतों का अर्थशास्त्र को अपने देश के संदर्भ में असफल साबित कर दिया है। यह अतिरिक्त ऋण किसान परिवार स्वास्थ्य सेवा की जरूरतों के लिए लेते हैं। इस कारण खेती में निवेश करने की उनकी क्षमता कम हो जाती है। पिछले एक दशक से वर्ष 2012 तक स्वास्थ्य कारणों के लिए बकाया ऋण लगभग दोगुना हुआ है और इसी अवधि के दौरान कृषि व्यवसाय के लिए ऋण लगभग आधा हो गया है।

हाल ही में हुए कई राज्यों में किसानों के ऋण माफी की मांग और उनके फसलों के लिए बेहतर कीमतों की मांग और भारत के कृषि संकट की प्रकृति को समझने में इस तरह के आंकड़े सहायता करते हैं।

देश के 6.26 करोड़ परिवार, जो अपनी आय से ज्यादा खर्च कर रहे हैं, उनके पास एक हेक्टेयर या उससे कम की भूमि है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा वर्ष 2013 की कृषि परिवारों की परिस्थिति के मूल्यांकन सर्वेक्षण से ये बात पता चलती है।

इसके विपरीत, 10 से अधिक हेक्टेयर जमीन वाले 3.5 लाख (0.39 फीसदी) परिवारों की औसत मासिक आय 41,338 रुपए देखी गई है और उपभोग व्यय 14,447 रुपए। साफ है 26, 9 41 रुपये की मासिक बचत हुई है।

एनएसएसओ के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में सभी परिचालित खेतों में से करीब 85 फीसदी खेतों का आकार दो हेक्टेयर से छोटा है।

छोटे और सीमांत भारतीय किसानों में से एक तिहाई से अधिक का संस्थागत ऋण तक पहुंच नहीं है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 8 जून, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। रिपोर्ट से पता चलता है कि ऋण माफी से उन्हें सहायता नहीं मिलेगी।

किसान की औसत मासिक आय: 6,426 रुपए

भूमि के आकार के अनुसार भारत की कृषि भूमि

Source: Ministry of Statistics and Programme ImplementationNote: ‘Income’ includes earnings from all sources, including non-farm business and wage labour

दक्षिण भारत के कृषि परिवार सबसे ज्यादा ऋण में डूबे हुए

आंध्र प्रदेश में कर्जदार किसान परिवारों की संख्या सबसे ज्यादा है। राज्य में ये आंकड़े 93 फीसदी हैं। 89 फीसदी के साथ तेलंगाना दूसरे नंबर पर और 82.1 फीसदी के साथ तमिलनाडु तीसरे स्थान पर है। राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 52 फीसदी है।

सबसे ज्यादा कर्ज में डूबे किसान परिवार वाले राज्य

Source: Ministry of Statistics and Programme Implementation

वर्ष 2015 में 55 फीसदी किसान की आत्महत्या का मुख्य कारण कर्ज ही था। वर्ष1995 के बाद से 300,000 से ज्यादा भारतीय किसान आत्महत्या कर चुके हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 2 जनवरी, 2017 की इस रिपोर्ट में बताया है।

स्वास्थ्य देखभाल की बढ़ती लागत से किसानों के कर्ज में वृद्धि

अल्प कृषि आय के अतिरिक्त, स्वास्थ्य देखभाल लागत में वृद्धि से किसानों के कर्ज में वृद्धि हुई है। कृषि और ग्रामीण विकास (नाबार्ड) के लिए, नेशनल बैंक द्वारा वर्ष 2015 के एनएसएसओ डेटा के विश्लेषण के अनुसार स्वास्थ्य कारणों के लिए बकाया ऋण वर्ष 2002 में 3 फीसदी था। जो दोगुना होकर वर्ष 2012 में 6 फीसदी हुआ है। इस बीच, कृषि व्यवसाय के लिए ऋण पिछले एक दशक में आधा गिरा है। वर्ष 2002 में यह 58 फीसदी था, जो गिरकर 2012 में 29 फीसदी तक पहुंचा है। इस बारे में इंडियास्पेंड 21 जुलाई, 2015 को इस रिपोर्ट में विस्तार से बताया है।

बकाया लोन का उद्देश्य

Source: National Bank For Agriculture and Rural Development 2015

ग्रामीण इलाकों में लाखों भारतीयों में करीब आधे यानी 48 फीसदी लोगों के द्वारा रात भर की जाने वाली यात्रा का मुख्य कारण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच होता है। शहरी क्षेत्रों के लिए इस संबंध में आंकड़े 25 फीसदी हैं।

आधे से ज्यादा ग्रामीण भारतीय आबादी निजी स्वास्थ्य सेवा का उपयोग करती है, जो कि सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के मुकाबले चार गुणा ज्यादा मंहगा है। यह खर्च भारत के 20 फीसदी गरीबों के औसत मासिक व्यय से 15 गुना ज्यादा हो सकता है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 16 जुलाई, 2016 को विस्तार से इस रिपोर्ट में बताया है।

भारत में किसानों की आत्महत्या पर लगातार रिपोर्टिंग करने वाले और रमन मैगसेसे पुरस्कार विजेता पी साइनाथ कहते हैं, “आत्महत्या करने वाले जिन परिवारों से मैं मिला हूं,वहां परिवार के कर्ज का सबसे बड़ा कारण स्वास्थ्य खर्च की लागत है। ”

कर्ज माफी नहीं है समाधान

हाल ही में, उत्तर प्रदेश ने 36,359 करोड़ रुपए और महाराष्ट्र ने 30,000 करोड़ रुपए का ऋण माफ किया है। यह रकम भारत 3.1 लाख करोड़ रुपए (49.1 बिलियन डॉलर) या वर्ष 2016-17 में देश के सकल घरेलू उत्पाद के 2.6 फीसदी हिस्से के बराबर की राशि का कर्ज माफ करने के लिए जूझ रहा है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 15 जून, 2017 को विस्तार से बताया है।

कृषि ऋणग्रस्तता पर वर्ष 2007 के विशेषज्ञ समूह की रिपोर्ट के मुताबिक, ऋण एक लक्षण है और भारत के कृषि संकट का मूल कारण यह नहीं है। अर्थशास्त्री आर राधाकृष्ण की अध्यक्षता में समूह ने रिपोर्ट किया है कि औसतन किसान परिवार का ऋण ज्यादा नहीं था । कृषि के क्षेत्र में ठहराव, उत्पादन और विपणन जोखिम और वैकल्पिक आजीविका के अवसरों की बढ़ती कमी जैसे कारकों को विशेषज्ञों ने दोषी ठहराया।

वर्ष 2016 के बजट भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का वादा किया है। उन्होंने कहा है, " देश के लिए खाद्य सुरक्षा की रीढ़ बनने के लिए हम किसानों के आभारी हैं। हमें खाद्य सुरक्षा से परे सोचने की जरूरत है और हमें किसानों की आय सुरक्षा के बारे में भी सोचना चाहिए। इसलिए, खेती और गैर-कृषि क्षेत्रों में सरकार वर्ष 2022 तक आय को दोगुना करने के लिए अपने हस्तक्षेप को और बढ़ाएगी। "

इसके बाद ही मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कृषि क्षेत्र में आय दोगुनी करने के लिए सात सूत्री रणनीति की रूपरेखा बताई है। इनमें सिंचाई को बढ़ाने, बेहतर गुणवत्ता वाले बीज उपलब्ध कराने और बाद में घाटे के नुकसान को रोकने के लिए उपाय शामिल थे, जैसा कि ‘द मिंट’ ने 17 जून, 2017 को इस रिपोर्ट में बताया है।

कि इंडियास्पेंड की ओर से 30 मार्च, 2016 को एक रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह के प्रयासों में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। इन चुनौतियों में बीज, उर्वरक और सिंचाई जैसे कृषि इनपुट की बढ़ती लागत, सरकारी खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की अप्रासंगिकता, मार्केटिंग रणनीति और बुनियादी ढांचे का अभाव जैसे गोदामों और कोल्ड स्टोरेज की अनुपलब्धता शामिल हैं।एक यह भी तथ्य कि देश में 85 फीसदी किसानों के पास बीमा नहीं है। यह भी एक बड़ी चुनौती है।

जाहिर है, भारत के कृषि संकट से बाहर निकलने के लिए बहु-आयामी समाधान की जरुरत है और ऋण माफी इसका केवल एक हिस्सा भर है।

(साहा स्वतंत्र पत्रकार हैं। वह ससेक्स विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज़ से जेंडर एवं डिवलपमेंट में एमए हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 27 जून 17 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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