भारत में परमाणु ऊर्जा से आगे अक्षय ऊर्जा
कोयले पर अपनी निर्भरता को संतुलित रखने के लिए भारत ऊर्जा की कार्बन मुक्त स्रोतों की तलाश में है। यही कारण है कि भारत में अक्षय ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा से आगे निकल गया है।
भारत में अक्षय ऊर्जा उत्पादन, परमाणु - बिजली उत्पादन की तुलना में अधिक है और यह बहुत तेज गति से आगे बढ़ रहा है क्योंकि यह सस्ता होने के साथ जल्द स्थापित भी किया जा सकता है। अक्षय ऊर्जा की लागत अब परमाणु ऊर्जा की लागत की तुलना में कम है और परिचर जोखिम के साथ नहीं आती है, जैसे कि गुजरात में इस सप्ताह के रेडियोधर्मी ईंधन रिसाव हुआ है।
वित्त वर्ष 2014-15 के दौरान, भारत में अक्षय ऊर्जा उत्पादन 61.8 बिलियन यूनिट था जबकि परमाणु- बिजली उत्पादन 36.1 बिलियन यूनिट दर्ज किया गया था। भारत में, बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी 5.6 फीसदी है जबकि परमाणु ऊर्जा के लिए यही आंकड़े 3.2 फीसदी हैं।
भारत में ऊर्जा के अंक
दो वर्षों से परमाणु ऊर्जा की तुलना में अक्षय ऊर्जा तेज गति से बढ़ रहा है। वर्ष 2013-14 और 2014-15 के दौरान, अक्षय ऊर्जा में 11.7 फीसदी और 16.2 फीसदी की वृद्धि हुई है जबकि इसी अवधि के दौरान परमाणु ऊर्जा की वृद्धि एकभाव ही हुई है।
अक्षय ऊर्जा बनाम परमाणु ऊर्जा उत्पादन
2022 का सौर लक्ष्य पूरा होने से भारत बनेगा दूसरा सबसे बड़ा ऊर्जा स्रोत
भारत का अधिकांश अक्षय ऊर्जा हवा से आती है, लेकिन फरवरी 2016 में 5775 मेगा वाट (मेगावाट) तक की स्थापित क्षमता के साथ सौर ऊर्जा में तेज़ी से वृद्धि हो रही है। राष्ट्रीय सौर मिशन ने 2022 तक सौर ऊर्जा का 1,00,000 मेगावाट करने का लक्ष्य रखा है। यदि यह लक्ष्य पूरा होता है तो कोयले के बाद एवं जल विद्युत , प्राकृतिक गैस और परमाणु ऊर्जा से पहले, भारत के लिए अक्षय ऊर्जा बिजली उत्पादन का सबसे बड़ा स्रोत बन जाएगा।
भारत में परमाणु बिजली उत्पादन क्षमता 5,780 मेगावाट है; अन्य 1,500 मेगावाट निर्माणाधीन है, और अन्य 3,400 मेगावाट की मंजूरी दे दी गई है - इस दशक के अंत तक कुल 10,680 मेगावाट होगी।
भारत की अक्षय ऊर्जा क्षमता
सौर और पवन ऊर्जा की लागत में गिरावट होने से अक्षय ऊर्जा के विकास में वृद्धि हो रही है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी अपनी खास रिपोर्ट में बताया है।
नवंबर 2015 में, अमरिका स्थित सम एडिसन ने भारत में 4.63 रुपए प्रति यूनिट सौर ऊर्जा की पेशकश की थी। जनवरी 2016 में, क फिनिश कंपनी ,फोरटम फिनसुर्या ने नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) को 4.34 रुपए प्रति यूनिट सौर ऊर्जा की पेशकश की है।
नव पन और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों द्वारा निर्माण होने वाले बिजली की तुलना में इन कीमत पर, सौर ऊर्जा पहले ही सस्ती है। उदाहरण के लिए, कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र, तमिलनाडु, की 39,849 करोड़ रुपए के विस्तार पर अब भारत काम शुरु कर रहा है, जो कि 2020-21 तक पूरा हो जाने की उम्मीद है। इन रिएक्टरों से बिजली की कीमत – यदि यह समय पर पूरा होते हैं - 6.3 रुपए प्रति यूनिट होगी।
भारत के पिछले अनुभव, इसकी कम संभावना होने की ओर इशारा करती हैं।
परमाणु ऊर्जा की धीमी प्रगति – भारत और दुनिया में
कुडनकुलम पावर प्लांट के यूनिट 1 और 2 पर काम 2001 में शुरु हुआ था और इसका काम 2007 एवं 2008 तक पूरा हो जाने की उम्मीद थी। यूनिट 1 का वाणिज्यिक परिचालन दिसंबर 2014 में शुरु किया गया जबकि यूनिट 2 का शुरु होना अब तक बाकि है।
यह अनुभव अन्य देशों में नजर आता है: अमेरिकी कंपनी वेस्टिंगहाउस द्वारा बनाया जा रहा बिजली संयंत्र, पूरा होने की अपने समय सीमा से तीन वर्ष देरी से चल रहा है; एक फ्रेंच कंपनि, अरेवा, फिनलैंड में एक रिएक्टर का निर्माण कर रही है जो कि पूरा होने की समय सीमा से नौ वर्ष देरी से बन रहा है। अरेवा और वेस्टिंगहाउस दोनों उन चार विदेशी कंपनियों में से हैं जो भारत के परमाणु ऊर्जा निगम के लिए रिएक्टरों का निर्माण करना चाहते हैं।
जबकि,आमतौर पर परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का निर्माण होने में एक दशक का वक्त लगता है लेकिन 0.1 मेगावाट से 1,000 मेगावाट की क्षमता के साथ सौर और पवन फार्मों मिलों का निर्माण करने में कुछ हफ्तों से कुछ महीनों का समय लग सकता है। इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा संयंत्रों का स्वामित्व और संचालन, भारत में एक कंपनि, भारत के परमाणु ऊर्जा निगम द्वारा किया जाता है। सौर और पवन ऊर्जा लगाने का काम निजी व्यक्तियों, हवाई अड्डों, बैंकों, तेल कंपनियों और शैक्षिक संस्थाओं द्वारा स्थापित किए गए हैं।
बंद करने के अलावा – जैसे कि यह और कुंडाकुलम में यह, और यह जो हमने गुजरात के संबंध में बताया है - परमाणु ऊर्जा का निर्माण अधिक महंगा है और यहां परमाणु दायित्व का मुद्दा भी है: यदि कुछ गलत होता है तो इसका भुगतान कौन करेगा? विदेशी कंपनियों भारत में रिएक्टरों का निर्माण करना चाहते हैं लेकिन उसके एवज में देनदारियों का दायित्व नहीं लेना चाहते हैं, जैसा की इंडियास्पेंड ने पहले भी अपनी रिपोर्ट में बताया है।
अक्षय ऊर्जा की अपनी समस्याएं हैं
अक्षय ऊर्जा की सबसे बड़ी समस्या अनिरंतरता है। सूरज हमेशा नहीं चमकता है और हवा हमेशा नहीं चलती है।
इसलिए, अप्रैल 2015 से जनवरी 2016 तक अक्षय ऊर्जा के 1 मेगावाट से बिजली के 1.43 मिलियन यूनिट का उत्पादन हुआ है। इसी अवधि के दौरान, 1 मेगावाट परमाणु ऊर्जा से बिजली के 5.85 मिलियन यूनिट का उत्पादन किया गया है। परमाणु बिजली संयंत्र चौबीसों घंटे काम कर सकते हैं और रात में बिजली आपूर्ति कर सकते हैं।
वर्तमान में चौबीसों घंटे अक्षय ऊर्जा की आपूर्ति के लिए कोई लागत प्रभावी समाधान नहीं है।
एक अल्पकालीन समाधान, अक्षय ऊर्जा का उसकी उपलब्धता से अनुसार उपयोग करना हो सकता है और प्राकृतिक गैस की ओर रुख करना हो सकता है जो कोयले की तुलना में साफ है। भारत में 24,000 मेगावाट से अधिक है प्राकृतिक गैस आधारित बिजली संयंत्रों हैं - वर्तमान में बिजली की मांग का लगभग 10 फीसदी की आपूर्ति करने के लिए पर्याप्त हैं – जो ज्यादातर सस्ते ईंधन की कमी के कारण बेकार पड़े हैं। अंतरराष्ट्रीय गैस की कीमतों में गिरावट से इन्हें दोबारा शुरु करना का अवसर प्राप्त हुआ है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी विस्तार से बताया है।
सौर ऊर्जा से लिए काफी बड़ी ज़मीन की भी आवश्यकता होती है। 1 मेगावाट सौर ऊर्जा के लिए 2 हेक्टर ज़मीन की आवश्यकता होती है। इसका मतलब यह है बड़े पैमाने पर सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना केवल कृषि या वन्य जीवन के लिए इस्तेमाल न होने वाली भूमि पर ही की जा सकती है। यही कारण है कि राजस्थान, गुजरात, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के शुष्क क्षेत्रों में सौर ऊर्जा संभव नहीं हो पा रहा है। हालांकि, शहरों में, छोटे पैमाने पर छत सौर संयंत्रों स्थापित किया जा सकता है।
(भंडारी एक मीडिया , अनुसंधान और वित्त पेशेवर है। भंडारी आईआईटी- बीएचयू से एक बी - टेक और आईआईएम- अहमदाबाद से एमबीए हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 18 मार्च 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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