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भारत में महिला सशक्तिकरण के संकेतकों को देखने से पता चलता है कि पिछले दशक में महिलाओं की स्थिति में सुधार हुई है लेकिन अब भी ऐसी कई महिलाएं हैं जिन्हें वैवाहिक (घरेलू) हिंसा का सामना करना पड़ता है और ऐसी कुछ ही महिलाएं हैं जिनका ज़मीन पर मालिकाना अधिकार है। यह जानकारी 2015-16 राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है। रिसर्च से पता चलता है कि ऐसी महिलाएं जो ज़मीन और अन्य संपत्ति की मालिक हैं उन्हें घरेलू हिंसा का सामना कम करना पड़ता है।

सशक्तिकरण के संकेतक 14 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से आंकड़ों पर आधारित हैं। अंतरराष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (मुंबई स्थित एक संगठन जो एनएफएचएस सर्वेक्षण के आंकड़ों को संग्रह और विश्लेषण करती है) का झारखंड, छत्तीसगढ़ , ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे पिछड़े राज्यों सहित अन्य राज्यों के लिए आंकड़े जारी करना बाकि है। 2005-06 एनएफएचएस, 14 में से 12 राज्यों के लिए तुलनात्मक आंकड़ा प्रदान करता है और इसमें किसी भी संघ शासित क्षेत्रों को शामिल नहीं किया गया है।

एनएफएचएस में पहली बार जमीन के स्वामित्व को शामिल किया गया है

यह पहली बार है जब एनएफएचएस ने महिलाओं के स्वामित्व वाली भूमि, मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के स्वच्छ तरीकों का इस्तेमाल और गर्भावस्था के दौरान हिंसा के अनुभव पर आंकड़ा एकत्र किया है। भारत के अन्य किसी राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण में महिलाओं द्वारा भूमि के स्वामित्व को शामिल नहीं किया गया है।

मणिपुर में ऐसी महिलाओं का प्रतिशत सबसे अधिक है जो व्यक्तिगत या किसी अन्य व्यक्ति के साथ, ज़मीन पर मालिकाना अधिकार रखती हैं। मणिपुर के लिए यह आंकड़े 69.9 फीसदी है जबकि बिहार के लिए 58.8 फीसदी है। लेकिन यह संख्या वास्तविक रुप से महिलाओं द्वारा जमीन के स्वामित्व को प्रतिबिंबित नहीं करती है क्योंकि इसमें दोनों, महिलाओं की ज़मीन पर एकल स्वामित्व और किसी अन्य व्यक्ति के साथ संयुक्त रुप से स्वामित्व, शामिल है।

मणिपुर में जमीन की स्वामित्व वाली महिलाओं का प्रतिशत सबसे अधिक

Source: National Family Health Survey 4

रिसर्च बताते हैं कि भूमि पर महिलाओं की पूरी स्वामित्व की वास्तविक संख्या कम होगी।

कर्नाटक के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं व्यक्तिगत रूप से सभी भूमि के 14 फीसदी से अधिक का स्वामित्व नहीं करती हैं जबकि शहरी क्षेत्रों के सभी गैर -कृषि व्यापार गतिविधियों में से 22 फीसदी पर उनकी स्वामित्व है। यह जानकारी बैंगलुरु स्थित इंडियन इंसट्टयूट ऑफ मैनेजमेंट द्वारा 2011 में प्रकाशित इस अध्ययन में सामने आई है। 2011 की इस अध्ययन के अनुसार, इक्वाडोर (51 फीसदी), और घाना (36 फीसदी) जैसे अन्य विकासशील देशों के साथ तुलना में कर्नाटक में महिलाएं कम भूमि (20 फीसदी)का स्वामित्व करती हैं।

रिसर्च से पता चलता है कि संपत्ति के स्वामित्व जैसे कि भूमि और घर विशेष रुप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे घर में महिलाओं की स्थिति मजबूत बनती है और इसे घरेलू हिंसा में कमी के साथ भी जोड़ा जाता है। उद्हारण के लिए, 2005 की इस अध्ययन के अनुसार, केरल में संपत्ति पर स्वामित्व से महिलाओं पर होने वाली घरेलू हिंसा की संभावना कम होती है।

2005 में तमिलनाडु की 15.9 फीसदी महिलाओं के पास थे बैंक खाते; 2015 में 77 फीसदी

महिलाओं द्वारा बैंक खातों के स्वामित्व और इस्तेमाल, पिछले दशक में उनके स्थिति में सुधार होने की ओर इशारा करती है। इस संबंध में सबसे अधिक वृद्धि तमिलनाडु में दर्ज की गई है जहां महिलाओं के लिए बैंक खातों 61.1 प्रतिशत अंक की वृद्धि हुई है। 2015-16 एनएफएचएस के आंकड़ों के अनुसार, यह आंकड़े 2005-06 में 15.9 फीसदी से बढ़ कर 77 फीसदी हुए हैं। गोवा में अधिकांश महिलाएं, 82 फीसदी, बैंक खाते का स्वामित्व और इस्तेमाल करती हैं। एनएफएचएस 4 के आंकड़ों के अनुसार, इस संबंध में 81.8 फीसदी के आंकड़ों के साथ अंडमान और निकोबार द्वीप समूह दूसरे और 77 फीसदी के साथ तमिलनाडु तीसरे स्थान पर है।

गोवा में महिलाओं द्वारा इस्तेमाल होने वाले बैंक खातों की संख्या सबसे अधिक

Source: National Family Health Survey, 3 and 4; Among women aged 15-49 years

कम से कम 358 मिलियन भारतीय महिलाओं के पास अब बैंक खाते हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अगस्त 2016 में विस्तार से बताया है। गौर हो कि केवल 2014 में, 75 मिलियन से अधिक बैंकिंग प्रणाली में जोड़े गए हैं।

घरेलू हिंसा में मामूली गिरावट; 31 फीसदी महिलाएं अब भी करती हैं घरेलू हिंसा का सामना

पिछले एक दशक में,हरियाणा, कर्नाटक, मेघालय और मणिपुर को छोड़ कर अन्य राज्यों में घरेलू हिंसा में मामूली गिरावट दर्ज की गई है। गौर हो कि हरियाणा, कर्नाटक, मेघालय और मणिपुर में घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई है। 2015-16 में, 12 राज्यों में 31.24 फीसदी महिलाओं ने हिंसा की घटना के मामले दर्ज किए हैं। 2005-06 में यह आंकड़े 33.15 फीसदी थे।

सिक्किम में महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा की घटनाएं सबसे कम

Source: National Family Health Survey, 3 and 4; Among women aged 15-49 years

महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा की घटनाओं में सबसे अधिक गिरावट त्रिपुरा में हुई है जहां यह आंकड़ा 44.1 फीसदी से गिरकर 27.9 फीसदी हुआ है। घरेलू हिंसा के मामलों में सबसे अधिक वृद्धि मेघालय में हुई है। मेघालय में यह आंकड़ा 2005-2006 में 12.8 फीसदी से बढ़ कर 2015-2016 में 28.7 फीसदी हुआ है।

मासिक धर्म के दौरान कई महिलाएं अब भी अस्वास्थ्यकर तरीकों का करती हैं इस्तेमाल

एनएफएचएस 4 के आंकड़ों के अनुसार, मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के स्वच्छ तरीकों का इस्तेमाल जैसे कि सैनिटरी नैपकिन, टैम्पोन, या स्थानीय स्तर पर तैयार नैपकिन, सार्वभौमिक से दूर है। बिहार में 15 से 24 की उम्र के बीच महिलाओं की सबसे कम प्रतिशत (31 फीसदी) सुरक्षित तरीकों का इस्तेमाल करती हैं। इस संबंध में मध्य प्रदेश के लिए आंकड़े 37.6 फीसदी और त्रिपुरा के लिए 43.5 फीसदी है। कुल मिलाकर, मासिक धर्म के दौरान, ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों की अधिक महिलाएं सुरक्षित तरीकों का इस्तेमाल करती हैं। मासिक धर्म के दौरान सुरक्षित तरीकों का उपयोग सबसे ज्यादा संघ राज्य क्षेत्र, , पुडुचेरी में दर्ज किया गया है। पुडुचेरी के लिए यह आंकड़े 96.9 फीसदी हैं।

मासिक धर्म के दौरान पुडुचेरी में सुरक्षित तरीकों का इस्तेमाल सबसे अधिक

Source: National Family Health Survey 4

घर के भीतर अधिक महिलाएं ले रही हैं निर्णय लेने में भागीदारी

असम, हरियाणा और तमिलनाडु को छोड़ कर अन्य सभी राज्यों में घरेलू निर्णय लेने के मामलों में महिलाओं की भागीदीरी में वृद्धि हुई है - 2015-16 में समाप्त हुए दशक में 12 राज्यों में यह आंकड़े औसत 83.1 फीसदी से 87 फीसदी हुआ है।

बिहार में घरेलू निर्णय लेने में मामले में महिलाओं की भागीदारी सबसे कम

Source: National Family Health Survey, 3 and 4; Among women aged 15-49 years

सबसे अधिक वृद्धि मध्य प्रदेश में हुई है, जहां घर के भीतर 68.5 फीसदी महिलाओं ने निर्णय लेने में हिस्सा लिया है, जो कि 2005-06 से 14.3 प्रतिशत अंक से अधिक है।

(शाह इंडियास्पेंड के साथ पत्रकार / संपादक है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 14 सितंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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